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थोड़े बुखार में दवा नहीं खानी पड़ेगी, जानिए कुछ देसी नुस्खे


बुखार की बात हो तो हमारा ध्यान सीधे शरीर में बढ़े हुए तापमान पर जाता है। दरअसल, बुखार कोई रोग नहीं बल्कि, शरीर में हो रही किसी भी गड़बड़ी का सूचक है, यानि बुखार को हल्के में लेना घातक भी हो सकता है। यूं तो बाजार में शरीर के तापमान को कम करने के लिए दवाओं की भरमार है, लेकिन इन दवाओ के साइड इफेक्ट्स को भी ध्यान में रखना जरूरी है। ऐसे में यदि थोड़ा बुखार हो तो हर्बल नुस्खे अपनाएं, चलिए जानते है आज कुछ चुनिंदा उपायों को..

1. आदिवासियों के अनुसार रत्ती पौधे की पत्तियों की सब्जी बेहद शक्तिवर्धक होती है। इस सब्जी का सेवन बुखार से ग्रस्त व्यक्ति को कराया जाए तो बुखार उतर जाता है, आदिवासियों का ये भी मानना है कि पत्तियों की चाय बनाकर पीने से बुखार उतर जाता है, साथ ही सर्दी और खांसी में भी राहत मिलती है।

थोड़े बुखार में दवा नहीं खानी पड़ेगी, जानिए कुछ देसी नुस्खे

2. सप्तपर्णी की छाल का काढ़ा पिलाने से बदन दर्द और बुखार में आराम मिलता है। डांग गुजरात के आदिवासियों के अनुसार जुकाम और बुखार होने पर सप्तपर्णी की छाल, गिलोय का तना और नीम की आंतरिक छाल की समान मात्रा को कुचलकर काढ़ा बनाएं और रोगी को दें। इससे बहुत जल्दी आराम मिलता है।आधुनिक विज्ञान भी इसकी छाल से मिलने वाले डीटेइन और डीटेमिन जैसे रसायनों को क्विनाईन से बेहतर मानता है।
3. बुखार में जब सिर दर्द हो और सारे बदन में भी दर्द हो तो सिवान की पत्तियों को पीसकर लेप करें। सिर पर और शरीर के दर्द वाले हिस्सों पर लेप करने से दर्द और जलन खत्म जाती हैं। डांगी आदिवासियों के अनुसार सिवान की पत्तियों और छाल के रस में तिल के तेल को मिलाकर मालिश करने से बुखार के दौरान होने वाले बदन दर्द में राहत मिलती है।

4. सूरजमुखी की पत्तियों का रस निकाल कर बुखार आने पर शरीर पर लेपित करें, बुखार उतर जाएगा। पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि यह रस शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।
5. गुजरात के आदिवासी सोनापाठा की लकड़ी का छोटा सा प्याला बनाते हैं। वे रात को इसमें पानी रख लेते हैं। इस पानी को अगली सुबह उस रोगी को देते है जो लगातार बुखार से ग्रस्त है। आदिवासी इसकी जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ले करने की भी सलाह देते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये शरीर में बुखार के दौरान तापमान को नियंत्रित तो करता ही है, इसके अलावा मुंह के स्वाद को बेहतर बनाने में भी मदद करता है।
6. गुजरात के आदिवासी हंसपदी के संपूर्ण अंगों यानि तना, पत्ती, जड़, फल और फूल सुखा लेते है। फिर इन सभी को पीसकर चूर्ण तैयार करते है, इस चूर्ण का चुटकी भर भाग शहद के साथ सुबह और शाम लेते है, जिससे बुखार में आराम मिलता है।
7. पातालकोट के आदिवासी मानते है कि हुरहुर की जड़ों के रस की कुछ मात्रा (लगभग 5 से 10 मिली) सुबह और शाम लेने से बुखार के कारण आई कमजोरी दूर हो जाती है।

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