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स्त्री-पुरुष के सेक्स से संबंधित अंग


प्रकृति ने सभी कार्य को ठीक ढंग से पूरा करने के लिए किसी न किसी साधन की व्यवस्था की है जिसके द्वारा हम उस कार्य को पूरा करते हैं। इनमें से कुछ कार्य तो ऐसे होते हैं जो प्रकृति के अनुसार अपने आप चलते रहते हैं जैसे- वातावरण में परिवर्तन होना, दिन-रात होना आदि। लेकिन इसके अतिरिक्त पृथ्वी पर स्त्री-पुरुष के जीवन को को बचाने के लिए उनके शरीर में यौनांगों तथा जननेन्द्रियों की रचना की है। इसके अतिरिक्त भी स्त्री-पुरुष के शरीर में कुछ ऐसे अंग होते हैं जिनके बिना वे जी नहीं सकते हैं जैसे- हम आंखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं और पैरों से चलते हैं। ठीक इसी प्रकार से स्त्री-पुरुष के वंशों में वृद्धि के लिए भी प्रकृति ने उनके शरीर में यौनांगों तथा जननेन्द्रियों की रचना की है। जहां तक अंगों का परिचय तथा उनके महत्व का सवाल है, प्रत्येक स्त्री-पुरुष को इन अंगों को ठीक प्रकार से जानना अति आवश्यक है। आज भी बहुत से ऐसे स्त्री-पुरुष जिनको अपने साथी के पूरे अंगों के बारे में ठीक प्रकार से ज्ञान नहीं है। इस कारण से वे संभोग क्रिया के समय में इन अंगों का ठीक प्रकार से उपयोग नहीं कर पाते हैं जिसके कारण से वे संभोग क्रिया के समय पूरी तरह से आनन्द नहीं ले पाते और कभी-कभी इसका भंयकर परिणाम भी भोगना पड़ता है।
सेक्स क्रिया का पूरी तरह से आन्नद लेने के लिए सभी स्त्री-पुरुष को यह जान लेना चाहिए कि यह क्रिया करने के लिए कौन-कौन से अंगों की आवश्यकता पड़ती है। स्त्री-पुरुष के बहुत से ऐसे अंग होते हैं जो एक-दूसरे से मिलते जुलते हैं। जैसे कि आंख, नाक, मुंह, कान, गुर्दे, आमाशय, मस्तिष्क तथा सिर आदि। लेकिन यहां पर हम आपको यह बताना चाहेंगे कि स्त्री-पुरुषों के सेक्स अंग अलग-अलग होते हैं। इन अंगों में होने वाले इस प्रकार के भिन्नता के कारण से स्त्री-पुरुष की अलग-अलग पहंचान हो पाती है। इसलिए यह आवश्यक है की युवावस्था में ही स्त्री-पुरुषों को इन अंगों के बारे में जानकारी हो जानी चाहिए। बहुत से वैज्ञानिकों का तो यह कहना है कि युवावस्था में ही सेक्स के इन अंगों के बारे में ठीक प्रकार से जानकारी न होने के कारण से ही आगे चलकर स्त्री-पुरुष को सेक्स संबंधित मानसिक तथा शारीरिक रोगों का सामना करना पड़ता है।

वैसे देखा जाए तो स्त्री-पुरुष के शरीर की रचना में प्रकृति ने बहुत अधिक अंतर रखा है, लेकिन फिर भी बहुत से अंग ऐसे होते हैं जो दोनों के एक समान होते हैं, जैसे- हाथ, पैर तथा मुंह आदि। इसके अलावा स्त्री-पुरुष के कुछ अंगों की बनावट में बहुत अधिक अंतर भी होता है जैसे-स्त्री के सीने पर दो बड़े-बड़े स्तन होते हैं तो ठीक इसके विपरित पुरुष का सीना सपाट होता है, स्त्री-पुरुष के जननांग भी ठीक विपरीत होते हैं। इसी प्रकार के कुछ अंतर के कारण से ही स्त्री तथा पुरुषों में पहंचान हो पाती है।

बहुत से पुरुष तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें प्रजनन अंगों के बारे में बहुत अधिक चिंता रहती है। कभी-कभी तो वे यह भी सोचते हैं कि मैं अपनी पत्नी को पूरी तरह से सेक्स की सन्तुष्टि दे पाउंगा या नहीं। वैसे देखा जाए तो यौन सुख प्राप्त करने के लिए सेक्स क्रिया करने वाले अंगों का आकार कितना होना चाहिए, यह स्त्री पुरुष की अपनी मानसिकता पर निर्भर होती है। सेक्स क्रिया के अंग कितने बड़े होने चाहिए, यह जानने से पहले उसकी कार्यविधि और रचना के बारे में जानना आवश्यक है।

पुरुष जननेन्द्रिय तंत्र तथा गुप्त अंगों की जटिलता और इनकी कार्य विधि को जानने के लिए निम्नलिखित ऐतिहासिक रूप को जानना जरूरी है-

आज से लगभग 30 करोड़ वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज पानी में रहने वाले जीव रहे होंगे और जब वे समुद्र के पानी से बाहर आकर स्थल पर आये होंगे तो उन्हें बहुत अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा, क्योंकि हम जानते हैं कि जब भी कोई जीव अपने रहने के स्थान में परिवर्तन करता है तो उसे स्थान के अनुसार अपने आप को ढालने में कष्ट तो होता ही है। हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि उनके पूर्वजों को प्रजनन के लिए पूर्ण रूप से पानी पर ही आधारित होना पड़ता था। जैसे कि जल में रहने वाले जीव करते हैं।

प्रकृति के इस रहस्य को समझने के लिए हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि मादा मछली पानी में अंडे देती है और उसके पीछे तैरता हुआ नर मछली अपना वीर्य (शुक्र कीट) उन पर जमा कर देता है। अगर इस वीर्य द्वारा एक भी अंडा निशेचित हो जाता है और पानी के अन्य जीव इसे नहीं खाते तो कुछ समय के बाद मछली की तरह एक शिशु मछली का जन्म हो जाता है। लेकिन इस प्रकार से बहुत से संख्याओं में अंडों को शुक्रकीट निशेचित कर शिशुओं की जन्म दर को बनाये रखते हैं।

पुरुष के लिंग में उत्तेजना के रहस्य को समझाने के लिए हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा मस्तिष्क को आनन्ददायक उत्तेजना मिलने से ही लिंग उत्तेजित होता है। मनुष्य की त्वचा सबसे अधिक संवेदनशील होती है। यदि इसे सहलाया जाए तो हमें बहुत अधिक आनन्द मिलता है लेकिन हमारी त्वचा में कई जगह ऐसे कामोत्तेजक क्षेत्र (कामोत्तेजक अंग) होते है जहां पर गुदगुदी उत्पन्न करने वाली तंत्रिका अंतागों का घना जाल बिछा रहता है। जब इन क्षेत्रों को सहलाया जाता है तो तंत्रिका अंतांग इस हरकत को तुरंत ही मस्तिष्क को भेजने लगते हैं जिससे मस्तिष्क में कामोत्तेजना उत्पन्न होने लगती है। मस्तिष्क इन उत्तेजनाओं को सुषुम्ना (मेरुरज्जु) में स्थित उत्थान केंद्र तंत्रिकाओं को आज्ञा देकर लिंग अथ्वा योनि की ओर रक्त के प्रवाह को बढ़ा देता है जिसके कारण से ये अंग रक्त से भरकर फूल जाते हैं। इस अवस्था को ही उत्थान कहा जाता है।

मानव प्रजनन का विकास-

बहुत से वैज्ञानिकों का कहना है कि सबसे पहले जो स्थल प्राणी रहे होंगे, वे आजकल के उभयचर प्राणी (वह प्राणी जो पानी तथा स्थल दोनों पर अपना जीवन व्यापन कर सकने की क्षमता रखते हैं, उसे उभयचर प्राणी कहते हैं।) जैसे- मेढ़क, मगरमच्छ तथा कछुआ के समान रहे होंगे क्योंकि ये स्थल पर कभी-कभी ही रहते हैं। ये ऐसा इसलिए करते हैं कि उन्हें मछलियों के समान ही अंडे देने और निषेचन के लिए पानी में लेटना पड़ता था। बाद में जब समय का बदलाव होता गया तो वे पानी से स्वतंत्र होकर स्थल पर ही प्रजनन पद्धति को विकसित करने लगे। इसके बाद सांप, पक्षी तथा अधिकाधिक स्तनधारी जन्तु भूमि पर अपने अंडे देने लगे, जो सूखने से बचने के लिए कठोर आवरण से घिरे होते थे। कुछ उच्चवर्गीय स्तनधारी अपने अंडे को मादा शरीर के अन्दर तब तक रखने लगे जब तक वह पूर्ण विकसित न हो जाए। यही अन्तिम प्रजनन प्रक्रिया मानव प्रजनन पर आधारित है। स्त्री जननांग की बाहरी तथा आन्तरिक संरचनाओं से भी स्पष्ट हो जाता है कि विकास के लिए हुए अधिकांश परिवर्तन इसी के साथ जुड़े हुए थे। प्रजनन प्रणाली में मादा का कार्य थोड़ा मुश्किल भरा होता है लेकिन नर का कार्य मादा की अपेक्षाकृत आसान होता है। नर तो केवल शुक्राणुओं को जन्म देता है और फिर उसे मादा प्रजनन तंत्र के द्वारा संवाहित कर देता है ताकि यह उसके अंडे को निशेचित कर सके।

विकास तथा इसके कार्यकारी रचना का एक प्रभावशाली भाग पुरुष जननांग होता है। इसकी कार्यशीलता की जटिलता और प्रभावशीलता मूत्र संचारण से मिले होने के कारण सिकुड़ जाती है। शुक्र कीटों का निर्माण जहां पर होता है, वह पुरुष जननांग दो अंडकोषों या अंडाशयों में बट जाता है। ये भाग ही पुरुष लिंगीय हार्मोन की भी रचना करते हैं। इसी के कारण से विभिन्न प्रकार के शारीरिक परिवर्तन होते रहते हैं।

सेक्स क्रिया में उपयोग में आने वाले पुरुष के अंग (Male Sex Organs)-

पुरुष के सेक्स अंग लिंग (Penis), शुक्राणु कोष (Seminal Vesicles), अण्डकोष (Testis), काउपर ग्लैंड्स (Cowper Glands) तथा प्रोस्टेट ग्लैंड (Prostate Gland) आदि होते हैं।

सेक्स क्रिया में इन सभी अंगों की महत्वपूर्म भूमिका होती है लेकिन इनमें से सबसे महत्वपूर्ण अंग लिंग होता है क्योंकि इसी से संभोग क्रिया की जाती है तथा इससे मूत्र त्याग भी किया जाता है और वीर्य भी इसी के द्वारा योनि के अंदर डाला जाता है।

लिंग-

लिंग दोनों जंघाओं की संधियों के बीच लटकते हुए थैलीनुमा अंडकोष के ऊपर स्थित होता है। यह वह भाग होता है जिसके द्वारा वीर्य स्त्री के योनि में प्रवेश कराया जाता है। यह पुरुष का अधिक संवेदनशील अंग है, जिसका सेक्स क्रिया करने में सबसे अधिक योगदान होता है। इस अंग के दो मुख्य कार्य होते हैं- एक मूत्र के द्वारा शरीर के अपद्रव्य पदार्थों को बाहर निकालना है तथा दूसरा संभोग क्रिया के समय में उत्तेजित होकर संभोग के कार्य को सम्पादित करना और वीर्य को लिंग से बाहर निकालकर स्त्री की योनि में प्रवेश करना तथा स्त्री को गर्भवती करना है।

सेक्स के समय में जब लिंग उत्तेजना में आ जाता है तो इसकी लम्बाई और आकार में वृद्धि हो जाती है। जब पुरुष संभोग क्रिया के समय स्त्री की योनि में अपने लिंग को प्रवेश कराके घर्षण करता है तो उसके बाद उसके लिंग से वीर्य निकलकर स्त्री की योनि में चला जाता है तथा इसके बाद उसका लिंग ठंडा पड़ जाता है अर्थात शिथिल हो जाता है। लेकिन जब दुबारा से उत्तेजना पुरुष में होती है तो वह उत्तेजना में आ जाता है। लिंग के आगे के भाग को लिंगमुंड (ग्लांस पेनिस) कहते हैं। यह पतली त्वचा से ढका रहता है तथा इस पतली त्वचा को प्रीयूस कहते हैं।

लिंग के आगे का भाग एक टोपी के समान होता है और इस पर ढके हुए प्रीपयूस को आगे-पीछे सरका सकते हैं। लिंगमुंड का कॉलर उठा हुआ संवेदनशील होता है। सेक्स क्रिया करते समय इस भाग पर रगड़ लगने से अत्यधिक आनंद आता है।

लिंगमुंड और प्रीप्यूस से एक प्रकार का तरल पदार्थ निकलता है, जो लिंग के इस भाग को नम बनाए रखता है। यह तरल पदार्थ वहां पर जमा हो जाता है, जिसे स्मेगमा कहते हैं। इसकी सफाई करनी जरूरी होती है। यदि इसकी सफाई नहीं होती है तो फाइमोसिस रोग की शिकायत हो सकती है।

लिंग के अन्दर तीन नलिकाएं होती है और उत्तेजना की अवस्था में इन नलिकाओं में रक्त भर जाता है। इसके कारण से लिंग में तनाव आ जाता है तथा वह सख्त होकर उत्तेजित अवस्था में आ जाता है। संभोग क्रिया में जब वीर्य लिंग से निकलता है तो इन नलिकाओं में आया हुआ रक्त वापस लौट जाता है और वह दुबारा से ढीला पड़ जाता है।

जब यह शिथिल अवस्था में होता है तो लिंग की लम्बाई 7.5 सेमी. से 10 सेमी होती है तथा इसकी परिधि लगभग 7.5 सेमी. होती है और जब यह उत्तेजित अवस्था में होता है तो इसकी लम्बाई 15 सेमी. से 16.5 सेमी. होता है। लिंग की लम्बाई के आधार पर इसे तीन भागों में बांटा जा सकता है।




  1. छोटा लिंग- जिस लिंग की लम्बाई उत्तेजित अवस्था में 10 सेमी. से कम होती है, उसे छोटा लिंग कहा जाता है।


  2. मध्यम लिंग- जिस लिंग की लम्बाई उत्तेजित अवस्था में 10 से 18 सेमी. होती है, उसे मध्यम लिंग कहा जाता है।


  3. बड़ा लिंग - जिस लिंग की लम्बाई उत्तेजित अवस्था में 18 सेमी. से अधिक होती है, उसे बड़ा लिंग कहा जाता है।

  4. वैज्ञानिकों के आधार पर लिंग की लम्बाई आनुवंशिक तौर पर छोटी-बड़ी हो सकती है, लेकिन सामान्य तौर पर लिंग की लम्बाई पुरुष की लम्बाई के अनुपात में हो सकती है। जिस पुरुष की लम्बाई 6 फुट होती है, उसके उत्तेजित लिंग की लम्बाई 6 इंच होती है। यह लम्बाई सामान्य आधार पर है, आनुवंशिक आधार पर यह कम ज्यादा भी हो सकती है।

    कुछ पुरुषों के लिंग छोटे होते हैं जिसके कारण से वह सेक्स क्रिया करने में कतराते रहते हैं, जबकि यह कहना गलत है क्योंकि प्रजनन अंग अर्थात लिंग छोटे-बड़े होने से विवाह में (यौन जीवन) कोई कठिनाई नहीं होती है। सामान्य दृष्टि से पुरुष के लिंग का आकार इतना ही होना चाहिए जितना की वह योनि में पहुंचाया जा सके। जब तक किसी भी आकार के लिंग के शुक्रकीट (वीर्य) को योनि में नहीं पहुंचाया जा सकता है तब तक प्रजनन सफलता पूर्वक होगा ही नहीं। यदि कोई ऐसा व्यक्ति जिसके लिंग का आकार इतना छोटा हो कि वह योनि में ठीक तरह से प्रवेश कराया न जा रहा हो तो वह स्त्री को गर्भवती नहीं कर पायेगा।

    गोत्र-

    लिंग के सुपारी के पीछे का सम्पूर्ण गोल व लम्बा भाग लिंग का गोत्र कहलाता है। इसके ऊपर बिना बालों वाली चिकनी त्वचा लगी रहती है जो सामान्य स्थिति में सिकुड़ी हुई रहती है। यह त्वचा भी शरीर के अन्य अंगों की तरह लिंग से चिपकी हुई नहीं रहती है बल्कि यह लिंग से बिल्कुल अलग केवल उसे ढकी हुई अवस्था में रहती है। यदि उसे उंगलियों से पकड़कर इस त्वचा को उठाया जाए तो यह ऊपर की ओर आसानी से उठ जाती है। जब पुरुष को कामोत्तेजना होती है तो लिंग की लम्बाई व मोटाई कुछ बढ़ जाती है, इस अवस्था में यह लिंग को ढके रहती है।

    हम जानते हैं कि पूरे शरीर में नसों व नलिकाओं का जाल है तथा उनके चारों ओर अधिक मात्रा में चर्बी भी होती है। इस कारण से वे अधिकतर दिखाई नहीं देती लेकिन लिंग के ऊपरी भाग पर नलिकाओं पर चर्बी न होने कारण से वे दिखाई देती रहती हैं जो पूर्ण रूप से स्वाभाविक व प्राकृतिक बात होती है।

    लिंग मूल (शिश्न मूल)-

    लिंग का यह भाग सबसे पीछे होता है। इसका अंतिम सिरा बाहर की तरफ दिखाई नहीं देता है लेकिन दोनों अंडकोषों के नीचे से बीच में टटोलकर इसको महसूस किया जा सकता है। इसी भाग को लिंगमूल कहा जाता है जो पीछे मुड़कर मूत्राशय की तरफ जाता है। लिंगमूल के दोनों तरफ एक-एक काउपर ग्रंथि होती है। जब व्यक्ति में सेक्स उत्तेजना होती है तो इन काउपर ग्रंथियों से एक प्रकार का चमकीला, चिकना व गाढ़ा सा स्राव निकलता है जो लिंग के निचली ओर स्थित मूत्र व वीर्य नलिका को क्षारीय बना देता है, जिससे वीर्य के द्वारा प्रवाहित होने वाले शुक्राणु क्रियाशील हो जाते हैं। यही स्राव योनि की अम्लता को भी समाप्त कर देता है। जिससे वीर्य द्वारा स्खलित शुक्राणु सुरक्षित रहकर योनि का पूरा रास्ता पार करके स्त्री के शरीर में निर्मित डिम्ब से मिलने के लिए गर्भाशय तक पहुंच जाते हैं। यदि हम मानसिक रूप से सेक्स क्रिया का चिंतन करते हैं तो इस तरल पदार्थ के स्राव से लिंगमुण्ड गीला व चिकना हो जाता है। कामवासना के विषय में सोचने से इस तरल पदार्थ का स्राव होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है, कुछ लोगों को इस तरल पदार्थ के बारे में जानकारी नहीं होती है, वे इसे अक्सर धातु रोग मान लेने का भूल कर बैठते हैं और भ्रमित होकर अपने मन को दुःखी कर लेते हैं।

    अण्डकोष-

    पुरुष के अंगों में यह सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह अंग पुरुष के पुरुषत्व का प्रमाण होता है और दूसरा यह है कि यह कोई शर्म के बजाए दबाने या छिपाने और केवल यौन सुख प्राप्त करने की कोई चीज है। इसका सबसे प्रमुख कार्य सेक्स हार्मोंन तथा शुक्राणुओं का निर्माण करना है। वैसे देखा जाए तो यह पुरुषों का सबसे प्रमुख अंग भी होता है क्योंकि यह शरीर गुहा के अंतिम भाग पर स्थित होता है। यह देखने में चमड़े के सिकुड़े हुए थैले के समान का वह भाग है जिसे स्क्रोटम कहते हैं। यह सबसे पहले शरीर के अंदर ही स्थित होता है लेकिन जन्म के समय यह छोटा स्क्रोटम के रूप में बाहर की ओर तैयार हो जाता है।

    स्क्रोटम अंदर से दो भागों में बटा होता है। यह लिंग के अगल-बगल में नीचे की ओर लटके होते हैं। ये ठंड से सिकुड़ जाते हैं और उत्तेजना में ऊपर की ओर बढ़ जाते हैं। इसका बाहरी भाग देखने में छोटी-छोटी धारियों में खंडित-सा होकर (धारियों में बट-बटकर) मधुमक्खी के छत्ते का आकार ले लेता है। बहुत से मनुष्यों में बायां अंडकोष दायें से कुछ ज्यादा लटका रहता है। लेकिन दोनों ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर की ओर घूमते रहते हैं। यह सारा कार्य दो प्रकार की प्रणाली एक डांट्रस मांसपेशी (स्क्रोटम के अंदर) तथा दूसरा कीनस्टर मांसपेशी (अंडकोश से संलग्न) द्वारा संपादित होता है।

    यह अंग इतना नाजुक और संवेदनशील होता है कि इस पर हल्की-सी चोट लगने पर अधिक दर्द होता है। व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है। जोर की चोट लगने पर उसकी मृत्यु तक हो सकती है। टेस्टिस के अंदर अधिक बारीक 300 नलिकाएं होती हैं, जिनमें शुक्राणुओं का निर्माण होता है। ये नलिकांए मिलकर इपिडियमीस नामक एक नलिका का निर्माण करती हैं। यह नली शुक्राणुओं को स्त्री की योनि में पहुंचाने का काम करते हैं।

    वैज्ञानिकों के अनुसार अंडकोष में शुक्राणु 35 डिग्री सी अर्थात 95 डिग्री एफ या सामान्य शरीर के तापमान से दो डिग्री नीचे के ताप पर ही जीवित रह सकता है। यदि तापमान इससे अधिक हो जाए तो पर्याप्त शुक्राणु नहीं बन पायेंगे और फिर पुरुष शुक्राणु पैदा करने लायक नहीं रहेगा, अर्थात वह किसी भी स्त्री को गर्भवती नहीं बना सकेगा। इसलिए बहुत से वैज्ञानिकों का कहना है कि बहुत समय तक साइकिल चलाते रहने या तंग पैंट पहनने आदि से भी शुक्राणु के उत्पादन में हस्तक्षेप होने लगता है।

    टेस्टिस के अंदर टेस्टोस्टेरॉन नामक हार्मोन का निर्माण होता है और इसी के कारण से पुरुष में पौरुष गुण आते हैं। यह हार्मोन वास्तव में शारीरिक मानसिक विकास का मूल स्रोत होता है। जब बच्चों के रक्त में टेस्टोस्टेरॉन काफी मात्रा में घुलने-मिलने लगता है तब वह तेज गति से बढ़ने लगेगा। इस हार्मोन की वजह से ही पुरुषों में मोटी तथा भारी आवाज, पौरुषशक्ति, दाढ़ी तथा मूंछ आदि आते हैं। यदि पुरुष के शरीर में इस हार्मोन का निर्माण होना बंद हो जाए तो वह संभोग क्रिया करने में असमर्थ हो जाएगा।

    वैसे 14 वर्ष की आयु तक पुरुष में अंडकोषों की सक्रियता मंद रहती है। उसके बाद मस्तिष्क में स्थित पिट्रयूटरी ग्रंथि से एक ऐसा रसायन निकलने लगता है कि अंडकोष भी उससे प्रभावित बिना नहीं रह पाता। शुक्राणुओं का पैदा होना इसी सक्रियता का परिणाम है।

    अंडकोषों द्वारा उत्पादित हार्मोन से व्यक्ति के शरीर में परिवर्तन नहीं होता और न ही इसकी वजह से उसकी भावनाओं में उथल-पुथल होता है। बल्कि इसकी वजह से जहां बालक में चंचलता घटती जाती है, वही गंभीरता का विकास होने लगता है और धीरे-धीरे ज्यादा चिन्तनशील होना शुरू होता जाता है। इस स्थिति में बोलना कम और काम करना ज्यादा होता है।

    अंडकोषों द्वारा उत्पन्न हार्मोन से सेक्स की भावना जागने लगती है, इसलिए उसका आकर्षण स्त्री के प्रति होने लगता है। इस स्थिति में पुरुष स्त्री का प्यार पाने के लिए ललक में रहता है तथा उसके दिमाग में उसे पाने की चिंता लगी रहती है। जब पुरुष 30 से 32 के उम्र के आस-पास पहुंच जाता है तो अंडकोष पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है और तब कामोत्तेजना भी तेज हो जाती है।

    शुक्राणु कोष -

    यह दो होता है जो मूत्राशय के पीछे की ओर स्थित होते हैं। इसको सेमीनल वेसिकल्स भी कहते हैं। इसमें वह शुक्राणु जमा होते हैं जो टेस्टिकल से निकलते रहते हैं। इसकी नलिकाएं शुक्रनलिका से मिली होती हैं। शुक्राणु कोष से निकली नलिका एवं शुक्रनलिका मिलकर दोनों ओर एजाकुलेटरी डक्ट्स तैयार करते हैं। शुक्राणु कोष का सबसे प्रमुख कार्य एक विशेष प्रकार के द्रव्य को जमा करना है जो शुक्राणुओं को पोषण देने का काम करती हैं तथा इससे मिलकर वीर्य कुछ तरल हो जाता है।

    शुक्राणु कोष ही शुक्राणुओं को आगे बढ़ने में गति प्रदान करता है, जब शुक्राशय में शुक्र अधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं तो यह स्वप्नदोष द्वारा बाहर निकल जाता है। शुक्राशय एक प्रकार से सेफ्टी वॉल्व का काम करता है। शुक्र नलिकाओं की लम्बाई लगभग 18 इंच तथा मोटाई 1/7 इंच होती है।

    शुक्राणु इतने छोटे होते हैं कि उनको आंखों से नहीं देखा जा सकता है। यह एक ओर से मोटे सिरे वाला और दूसरी ओर से लम्बी पूंछ वाला होता है। यह पूंछ के सहारे ही तैरते हुए छलांगें मारते रहता हैं। यह इतना छोटा होता है कि लगभग 1300 शुक्राणु एक साथ मिल जाए तो यह केवल डॉट चिन्ह के बराबर ही हो सकता है।

    प्रोस्टेट ग्लैंड-

    लिंग के पास त्रिकोणीय आकार की प्रोस्टेट ग्लैंड (पौरुष ग्रंथि) होती है। लिंग के अंदर एक मूत्र नलिका भी स्थित होती है। प्रोस्टेट ग्लैंड से एक प्रकार का तरल द्रव्य स्रवित होकर मूत्र नलिका में जाकर खुलती है जो वीर्य को एक विशेष प्रकार की गंध प्रदान करती है। प्रोस्टेट ग्लैंड का आंतरिक स्राव थायरॉयड, एड्रिनल और पिट्यूटरी के हार्मोन से संबंध है। इसकी वजह से ही प्रोस्टेट ग्लैंड की वृद्धि हो जाती है जिसके कारण से सेक्स की उत्तेजना तेज हो जाती है। इस स्थिति में संभोग की उत्तेजना इतनी अधिक भड़क उठती है कि व्यक्ति अपना होश खो बैठता है।

    काउपर ग्लैंड्स 

    यह लिंग के जड़ से दाईं और बाईं ओर प्रोस्टेट ग्लैंड के ठीक नीचे एक-एक की संख्या में मटर के दाने के समान आकार लिए पीले रंग की ग्रंथि होती है जिसे शिश्नमूल ग्रंथि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्दर एक प्रकार का हल्का सफेद, पारदर्शी तथा चिपचिपा पदार्थ स्रावित होता है और इसकी गंध मूत्र के समान होती है। जब पुरुष सेक्स की उत्तेजना में होता है तो मूत्रनली में से एक-दो बूंद यह स्राव के रूप में निकलकर मूत्रमार्ग को चिकना करने का काम करता है।

    इस स्राव के कारण से मूत्रनली में लगे मूत्र के अंश निष्क्रिय हो जाते हैं। यह मूत्रनली में इतनी अधिक चिकनाहट पैदा कर देती है कि वीर्य मूत्रनली में बिना किसी रुकावट के तेज गति से आगे की ओर जाता है। जैसे ही पुरुष के दिमाग में सेक्स करने के लिए विचार आता है वैसे ही काउपर ग्लैंड अपना कार्य शुरु कर देती है। इस स्राव से कभी भी भयभीत और घबराना नहीं चाहिए।

    वीर्य-

    शुक्राणु तथा कई प्रकार की ग्रंथियों स्राव एक साथ मिलकर वीर्य का निर्माण करते हैं। इन ग्रंथियों से स्राव की रचना विशेष प्रकार की रासायनिक जटिलताओं से होती है। यही कारण है कि यदि बलात्कार के बाद अदालत में प्रस्तुत किये जाने वाले वस्त्र पर अगर वीर्य का धब्बा मिले तो रासायनिक जांच के द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि यह गुनाहगार का वीर्य है या नहीं। वीर्य में पाए जाने वाले जो कीटाणु होते हैं, उन्हें शुक्राणु कहा जाता है। वीर्य को बहुत से लोग शुक्र नाम से भी जानते हैं। शुक्राशय में शुक्राणुओं का निर्माण होता है। वीर्य शुक्र ग्रंथियों द्वारा उत्पन्न किये गये स्रावों का मिश्रण होता है। पुरुष के शरीर में वीर्य का निर्माण लगभग 13 से 14 वर्ष की आयु में शुरू हो जाता है लेकिन जब पुरुष 17 से 18 वर्ष का हो जाता है तो इसके निर्माण में और भी तेजी आ जाती है।

    वीर्य गाढ़ा, चिपचिपा तथा सफेद रंग का पदार्थ होता है और जब कपड़े पर लग जाता है तो कपड़ा उस स्थान पर कड़ा पड़ जाता है और एक प्रकार धब्बा जैसा लगने लगता है।

    पुरुषों के शरीर में कई कोष होते हैं जो गिने नहीं जा सकते हैं। इनमें से तो 46 क्रोमोजोम होते हैं, लेकिन शुक्रकोष (शुक्राणु स्पर्मसेल) में सिर्फ 23 ही क्रोमोजोम होते हैं। कोई भी शुक्रकोष जैसे ही स्त्री के डिम्ब में घुसते हैं वैसे ही डिम्ब के 23 क्रोमोजोम इसमें भी आ मिलते हैं और वह इस मामले में पूर्ण हो जाते हैं। अंडकोष के शुक्रकोष में लड़का या लड़की पैदा करने वाले x क्रोमोजोम और y क्रोमोजोम दोनों ही हैं। इसलिए लड़का-लड़की पैदा करने का पूरा दायित्व तो अकेले अंडकोष का ही होता है।

    शुक्रकोष पर अधिक ताप लगने से ये मर जाते हैं लेकिन ये अपनी लम्बी पूंछ के सहारे बड़ी तेजी से भागते हैं ये एक घंटे में 7 इंच का फासला तय कर लेते हैं जो इनके छोटे रूप के आकार के अनुसार बहुत लम्बी दूरी है। इनमें से किसी एक का नारी डिम्ब में प्रवेश भी कुछ कम साहसिक नहीं, क्योंकि डिम्ब की सतह सख्त होती है और खुद अत्यन्त कोमल। यह भी एक रहस्य ही है। शुक्रकोष में अंडकोषों का एक विशेष रसायन भी रहता है। इस रसायन को इन्जाइम्स कहते हैं। इंजाइम्स डिम्ब की कठोरता को तरल बना देता है और इससे कोमल शुक्रकोष को इसे भेदने में आसानी होती है।

    यदि शुक्रकोषों को बाहर निकलने के अवसर नहीं मिले यानि पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन किया जाए तो जानते हैं इससे क्या होगा? ये सब शुक्राणु बूढ़े होकर मर जायेंगे और ठीक इसी प्रकार यदि इनका जल्दी-जल्दी बर्हिमन (नष्ट) किया जाए तो ये पुष्ट नहीं हो पायेंगे और इस कारण से ये स्त्री के नारी डिम्ब को उर्वरित (ऊर्जावान) करने में समर्थ भी नहीं हो सकेंगे। उदाहरण के लिए यदि प्रतिदिन लगातार दो-चार बार मैथुन करते रहे तो इस स्थिति में ऐसा पुरुष स्त्री को गर्भधारित नहीं कर सकेगा।

    ऐसा देखा गया है कि एक स्वास्थ्य पुरुष के वीर्यपात होने पर उसमें लगभग साठ करोड़ शुक्रकीट निकल जाते हैं। इस पूरे के पूरे वीर्य में केवल शुक्रकोष ही भरा नहीं होता बल्कि इसमें अन्य द्रव भी होते हैं। इस वीर्य में पौरुष ग्रंथि आदि से स्राव हुए द्रव्य पदार्थ आदि भी होते हैं, इन स्रावों के चलते ही शुक्रकोषों को सुरक्षा मिलती है। इनमें प्रोटीन, शक्कर और खनिज पदार्थ घुले-मिले होते हैं।

    पुरुषों को अपने जननेन्द्रियों में कोई विकार होने से बचाने के लिए कुछ सुझाव-




    • लिंगमुण्ड तथा उसके आगे की त्वचा से चिपचिपेदार ग्रीज की तरह का पदार्थ जमा होने लगता है, जिसको मैल कहते हैं। लिंगमुण्ड के पास जमा होने वाले इन मैल को हटाते रहना चाहिए तथा लिंगमुण्ड को साफ रखना चाहिए। इस मैल के जमा होने से न केवल उस स्थान पर सूजन होती है बल्कि खुजली भी होने लगती है और इससे दुर्गंध भी आती है। इसका रंग सफेद होता है तथा यह कभी-कभी लिंग कैंसर होने का कारण भी बन जाता है।


    • छोटे बच्चे के लिंग को साफ पानी से धोते रहना चाहिए ताकि लिंगमुण्ड साफ रहे और मैल जमा न हो सके।


    • मुसलमान लोग अपने लड़के के लिंगमुंड के ऊपरी पर्दे को बचपन में ही हटा देते हैं जिससे लिंग का मैल एक जगह जमा होने से बच जाता है जिसके फलस्वरूप लिंग का कैंसर नहीं होता है।


    • वैसे तो लिंग का आकार कुछ टेढ़ापन लिए होता है जो उत्तेजना के स्थिति में भी कुछ-कुछ टेढ़ापन बना रहता है। बहुत से पुरुषों को यह भम्र होता है कि मेरा लिंग टेढ़ा क्यों है या यह मेरे द्वारा हस्तमैथुन करने के कारण ही हुआ है। ऐसी सोच वाले व्यक्तियों की इसी अज्ञानता व चिंता का फायदा कुछ नकली चिकित्सक उठाते हैं तथा इस स्वाभाविक टेढे़पन को ठीक करने के लिए तरह-तरह के तेल, पट्टी व लेप आदि बेचकर उनसे पैसा ठगते हैं।


    • यह कहना पूरी तरह से गलत होगा कि स्त्री को चरमसुख देने में लिंग की लम्बाई का योगदान होता है क्योंकि वैज्ञानिक खोज से यह ज्ञात हो चुका है कि सेक्स क्रिया में लिंग की लम्बाई, मोटाई या अधिक वजन आदि का कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होता। हम आपको यह बताना चाहेंगे कि स्त्री का भग प्रदेश योनि के निचले हिस्से की एक तिहाई जगह पर स्थित होती है जो सामान्य रूप से विकसित लिंग की पहुंच से बाहर नहीं होती है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक कलात्मक उपक्रम के तरह ही सेक्स क्रिया में भी गुण का महत्व होता है, परिणाम का नहीं। अतः इन सबके प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि छोटे लिंग का पुरुष भी एक सफल वैवाहिक जीवन जी सकता है। इसलिए पुरुष को छोटे लिंग होने पर भी चिंता नहीं करनी चाहिए। वैसे हम आपको यह कहना चाहेंगे कि अपने से कम लम्बाई का जीवन साथी चुनना अधिक ठीक रहता है क्योंकि उसकी योनि की लम्बाई भी उसकी लम्बाई के अनुपात में ही होती है।


    • बहुत से लोगों को यह भम्र होता है कि बड़े लिंग वाला पुरुष संभोग में दूसरे व्यक्ति से अधिक अपने पत्नी को संभोग क्रिया का सुख देने में सक्षम होता है। कुछ लोगों में यह भी धारणा होती है कि यदि लिंग में टेढ़ापन हो तो संभोग की शक्ति कम हो जाती है। लेकिन बहुत से वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि यह सब धारणा बिल्कुल गलत है क्योंकि सामान्य तौर यह देखा गया है कि छोटे लिंग वाले मनुष्य में भी सेक्स क्रिया की उत्तेजना हो तो वह पूरी तरह से स्त्री को सन्तुष्ट कर सकता है। जिन लोगों का छोटा लिंग हो उन्हें कभी भी दुःखी नहीं होना चाहिए और न ही ठगी लोगों तथा हकीमों के चक्कर में पड़कर मालिश, लोशन और दवाओं से लिंग की लम्बाई बढ़ाने के कोशिश करें।


    • कभी भी पुरुषों को यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि पुरुष नसबंदी से पुरुष के पुरुषत्व पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि जब परिवार नियोजन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऑपरेशन किया जाता है तब शुक्राणुओं का उत्पादन प्रभावित होता है लेकिन हार्मोन का निर्माण होता रहता है।

    • स्त्री के यौनांग और उसकी कार्य प्रणाली-

      हम सब यह जानते हैं कि स्त्री प्रेम और पुरुषों की सेवा करने के लिए पति भक्त, कभी पत्नी के रूप में, कभी शिक्षिका तो कभी सही रास्ते का राजमार्ग दिखाने वाली और कभी तो हमारे जीवन को आनन्दित करने वाली होती है। कभी यह हमें दया का पाठ सिखाती है तो कभी ममता का पाठ और कभी प्रेम का पाठ सिखाती है। ऐसी स्त्री के शरीर की बनावट को सभी जानना चाहते हैं। देखा जाए तो स्त्री के यौनांगों की बनावट पुरुषों के जननांगों से बिल्कुल भिन्न होती है, इसे ठीक से समझने के लिए हम स्त्री के यौनांगों को कई भागों में बाट सकते हैं।

      स्त्रियों के बहुत से यौनांग अंग भीतरी होते हैं और केवल योनिद्वार ही शरीर से बाहर दिखाई देता है। संभोग क्रिया के समय में आनन्द प्राप्त करने के लिए तथा इस क्रिया को समझने के लिए इन अंगों का जानना जरूरी होता है ताकि आप एक सफल पति बन सकें। जब आप अपनी पत्नी के सभी अंगों को अच्छी तरह से जान लेंगे तभी आप सेक्स क्रिया ठीक तरह से कर पायेंगे।

      स्त्रियों के यौन उत्तेजित अंग-

      जिस प्रकार से पुरुषों के लिंग का अगला भाग अर्थात लिंगमुण्ड सबसे अधिक संवेदनशील तथा उत्तेजित होता है, उसी प्रकार से स्त्री के पूरे शरीर में सेक्स के प्रति कामोत्तेजना भरी होती है लेकिन लाज और संकोच के कारण से उनकी यह उत्तेजना दबी रहती है।

      वैसे देखा जाए तो सेक्स क्रिया के समय को लम्बा करने के लिए तथा उसकी कामोत्तेजना को बढ़ाने के लिए उनकी यौन कामोत्तेजक अंग तथा संवेदनशील अंगों को सहलाकर, दबाकर तथा चूमकर कामोत्तेजना को बढ़ाया जा सकता है। इन अंगों को इस प्रकार से उत्तेजित कर सकते हैं, इससे स्त्रियों को अधिक आनन्द भी प्राप्त होता है।

      उदाहरण के लिए जब तक मछली को पानी से निकालकर बाहर नहीं रखा जाता है तब तक वह तड़पती नहीं है, ठीक उसी प्रकार से जब तक स्त्रियों के यौन उत्तेजित अंगों से छेड़-छाड़ नहीं करते तब तक वह उत्तेजना में नहीं आती। इसलिए कहा जा सकता है कि जब तक पुरुष स्त्री के संवेदनशील अंगों को छेड़छाड़ करके उसमें सेक्स के प्रति भावना को जगा नहीं देता तब तक वह स्त्री सेक्स करने के लिए पूर्ण रूप से तैयार ही नहीं होती है।

      जो पुरुष स्त्री के यौन उत्तेजित अंगों को पकड़कर छेड़छाड़ करते हैं, उन्हें बाहों में लेते हैं, उनके अंगों को चूमते हैं, उनसे काम क्रिया का खेल खेलते हैं, उनकी बांहों से स्त्री बाहर आना ही नहीं चाहती क्योंकि जब कोई चीज किसी को मिलती है तो वह उस चीज को छोड़ना नहीं चाहता है, ठीक उसी प्रकार स्त्रियों को जब इस क्रिया में चरम सुख प्राप्त होने लगता है तो वह इस पल को कैसे छोड़ सकती है।

      बहुत से पुरुष तो इस भ्रम में रहते हैं कि योनि बहुत अधिक संवेदनशील होती है जबकि हम आपको यह बताना चाहते हैं कि स्त्रियों की इस अंग के अलावा और भी अंग संवेदनशील होते हैं जो इस प्रकार हैं- स्तन, मुंह, होंठ, पीठ आंखें, तलवे, जांघ, कमर, कान तथा गाल आदि।

      स्त्रियों के सेक्स करने वाले अंग के अलावा कुछ अन्य संवेदनशील तथा उत्तेजक अंग होते हो जो इस प्रकार हैं-

      कान-

      स्त्रियों के कान बहुत अधिक कोमल भाग होते हैं, जहां वह आभूषण पहनती है। यह अधिक उत्तेजक तथा संवेदनशील अंग हैं। यदि कोई भी पुरुष अपनी पत्नी के कानों को दोनों उंगलियों से मसले तो वह जल्दी ही उत्तेजित हो जाएगी। यदि आपकी पत्नी को कामेच्छा का अभाव हो तो आप उसके कान के मुलायम भाग को हल्के-हल्के से मसलें। ऐसा करने से वह उत्तेजित हो जाएगी। यहां हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि स्त्रियों की कानों पर चुंबन करने या गरम सांसें फेंकने से वह जल्दी ही उत्तेजित हो जाती है। आप इस क्रिया के द्वारा अपनी पत्नी की उत्तेजना को भी जान सकते हैं कि वह इन अंगों से छेड़-छाड़ करने से उत्तेजित हो जाती है या नहीं।

      गर्दन तथा गला 

      ये भाग भी स्त्रियों के अधिक उत्तेजक तथा संवेदनशील अंग होते हैं। इन अंगों की तंत्रिकाएं सीधे यौनांग तक जाती हैं। स्त्रियों की गर्दन तथा गले वाले भाग पर होंठों का स्पर्श तथा हल्के-हलके चुंबन करने से और सहलाने पर वह जल्दी ही उत्तेजित हो जाती हैं। आप आपनी पत्नी के इन भागों पर जीभ फिराकर देख सकते हैं कि वह किस तरह से उत्तेजित होगी।

      माथा -

      स्त्री के माथे को चूमने से भी उसकी उत्तेजना को जगाया जा सकता है। ऐसा करने से उसकी धड़कने तेज हो जाएंगी और शरीर के खून गति भी बढ़ जाएगी। स्त्रियों के माथे पर हल्का-हल्का चुंबन लेने से उसकी यौन उत्तेजना को चरम सीमा पर पहुंचाया जा सकता है।

      बाल 

      स्त्रियों के बाल भी बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं जिसके द्वारा उसको सेक्स करने के लिए उत्तेजित किया जा सकता है। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि उनके बालों से ऐसी किरणें निकलती हैं जो पुरुषों की सेक्स उत्तेजना को बढ़ा देती हैं। हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि सुंदर बाल वाली स्त्रियों के साथ सेक्स क्रिया करने से पुरुष काफी देर तक उत्तेजित रहता है। यह भी देखा गया है कि यदि पुरुष स्त्री के बालों को अपनी उंगलियों में फंसाकर सहलाए तो उनके शरीर में उत्तेजना भरने लगती है तथा उसका शरीर मचलने लगता है।

      स्तन 

      वैसे देखा जाए तो स्तन स्त्री-पुरुष दोनों में ही होते हैं लेकिन पुरुष में यह छोटी घुंडियों के रूप में होते हैं और स्त्री में यह पूरे रूप से उभरा हुए रहते हैं। जब लड़की छोटी होती है तो यह उनमें पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते हैं लेकिन जब वह तरुण अवस्था में पहुंचती है तो उसके स्तन विकसित होकर एक बड़े रूप में उभर जाते हैं। स्त्रियों में जिसके स्तन अधिक विकसित सुडौल व उठे हुए होते हैं। उस स्त्री का शरीर और भी अधिक सुन्दर लगता है। यह सौन्दर्य का प्रतीक भी माने जाते हैं, जब स्त्री युवा अवस्था में होती है तब उसका मासिकधर्म आना शुरू हो जाता है तथा इसके साथ ही उसके स्तनों में भी उभार आने लगता है तथा सीने पर दोनों तरफ गोलाइयां भी उभरने लगती हैं जो लगभग 14 से 17 वर्ष की उम्र तक काफी पुष्ट हो जाती हैं। प्रकृति के अनुसार स्तनों का उपयोग बच्चे को आहार उपलब्ध कराने के लिए होता है लेकिन सेक्स क्रिया में भी स्तनों का स्पर्श व हल्का दबाव स्त्री को कामोत्तेजित करने में सहायक होता है।

      बहुत से लड़कियों के स्तनों का विकास धीरे-धीरे होता है और कुछ के निप्पल पहले उभरने लगते हैं और कुछ के स्तन की गोलाई पहले उभरती है। इस तरह से यदि स्तनों का विकास होता है तो कुछ लड़कियां इसे छिपाकर रखने की कोशिश करती है क्योंकि इस तरह के स्तन अधिक अच्छे नहीं लगते हैं। कुछ लड़कियां इस बात की चिंता नहीं करती हैं और इसे सामान्य ढंग से लेती हैं।

      लड़कियों के स्तनों में जब बदलाव होने लगता है तो उनकी मां को चाहिए कि वह अपनी लड़कियों को इस बदलाव को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करें। इस बदलाव के कारण से वह जिस तरह के कपड़े पहनना चाहती है, उसे पहनने से रोकना नहीं चाहिए और उस पर किसी चीज का कोई भी दबाव नहीं डालना चाहिए। आज भारत में कुछ ऐसे परिवार भी हैं जो पुराने परम्पराओं को अधिक मान्यता देते हैं और अक्सर अपनी लड़की में आने वाले परिवर्तनों के बारे में ठीक ढंग से शिक्षा नहीं देते, जिसके कारण से वे अधिक चिंतित रहती हैं। इस प्रकार के चिंता से उनके शरीर का स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगता है। यदि किसी के परिवार में कोई लड़की अपने स्तनों के बदलते रूप के कारण से चिंतित हो और उसके चेहरे पर बेचैनी और परेशानी दिखाई दे तो मां को चाहिए कि वह उसे कठोर नजरों से न देखकर सहेली के रूप में उससे बात करें। उसे समझाएं कि इस उम्र में यह बदलाव होना जरूरी होता है क्योंकि इससे तुम्हारी सुंदरता में और चार चांद लग जायेगा। इस उम्र में लड़कियों को भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है जो मां से ज्यादा और कोई नहीं दे सकता है।

      बहुत से पुरुष तो ऐसे होते हैं जो यौन शिक्षा को न जानने के कारण से सेक्स क्रिया के समय स्तनों को इतना जोर से दबाते हैं कि उनका आकार बिगड़ने लगता है क्योंकि स्तनों की कोशिकाएं बहुत कोमल होती हैं। इन्हें अनुचित ढंग से दबाने व मसलने से उसके रक्त प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होता है जिसके कारण से स्तनों का सौंदर्य व आकर्षण बिगड़ने लगता है और स्तन ढीले पड़कर लटक जाते हैं। हम आपको यह भी बताना चाहते हैं कि स्त्री के स्तनों का निर्माण कुछ विशेष ग्रंथियों तथा कोमल पेशियों से होता है। इन ग्रंथियों पर हल्का चोट लगने व अनावश्यक दबाव से उनमें सूजन उत्पन्न हो सकती है। इसके कारण से रक्त व दुग्धवाहिनी नलिकाओं में भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इस कारण से स्त्री को बहुत अधिक दर्द का भी सामना करना पड़ता है। इसकी वजह से स्त्री यौन संबंध बनाने से डरने भी लगती हैं। इसलिए सेक्स क्रिया में स्तन को इतना ही दबाना चाहिए जितना की जरूरत हो।

      स्त्रियों के स्तनों को इतना अधिक संवेदनशील होता है कि उसको छूने मात्र से ही वह सेक्स के लिए उत्तेजित हो जाती है। इसके अतिरिक्त यह देखा गया है कि इसको छूने से पुरुष भी उत्तेजित हो जाता है। हम यह भी आपको बताना चाहेंगे कि पुरुष तो स्त्रियों को देखने मात्र से ही उत्तेजित हो जाता है। स्तनों को हल्के हाथ से दबाने तथा सहलाने से स्त्रियों में उत्तेजना बढ़ने लगती है। स्तनों के चूचक (निप्पल) अति संवेदनशील होते हैं। इसको सहलाने, छूने, चूसने तथा चुंबन लेने से स्त्री इतना अधिक उत्तेजित हो जाती है कि सेक्स के लिए तैयार हो जाती है और अपने जीवन साथी को कसकर पकड़ लेती हैं।

      गाल 

      स्त्रियों का यह हिस्सा भी अधिक संवेदनशील होता है। यदि पुरुष अपने गालों से उसके गाल को छुए, गालों को सहलाए, चुंबन ले तथा उस पर जीभ फेरे तो स्त्री तुरंत उत्तेजित जो जाती है। सेक्स विशेषज्ञों के अनुसार कुछ स्त्रियों के गालों में इतनी अधिक सेक्स के प्रति कामोत्तेजना होती है कि पुरुष के द्वारा गालों को सहलाने या चुंबन लेने पर वे उन्माद में भावविह्नल हो जाती हैं। वह कामोत्तेजना के कारण से इतना अधिक उत्तेजित हो जाती हैं कि अपने साथी को बाहुपाश में जकड़ लेती हैं और सेक्स करने के लिए सिसकारियां भरने लगती हैं।

      होंठ-

      यह स्त्री का वह अंग होता है जिस पर अपने होंठों द्वारा चुंबन लेने से वह इतनी अधिक कामोत्तेजित हो जाती है कि उसके शरीर का अंग-अंग उत्तेजना में फड़कने लगता है। यह भी देखा गया है कि पुरुष के द्वारा होंठों से होंठों को चूमने, चूसने तथा हल्के से दांत गाड़ने पर स्त्री की उत्तेजना कई गुना बढ़ जाती है।

      जीभ 

      ऐसा माना जाता है कि स्त्री की जीभ भी अधिक उत्तेजक तथा संवेदनशील अंग है। यदि कोई पुरुष स्त्री के जीभ को अपने होंठों से खीचता, दबाता तथा चूमता तो वह कामोत्तेजित हो जाती है।

      मांसल अंग-

      स्त्रियों के मांसल अंग, जांघ, पेट तथा कूल्हे होते हैं और ये अधिक संवेदनशील होते हैं। यदि पुरुष इन अंगों को अपने हाथों से सहलाए, चुंबन ले या उन पर जीभ फेरे तो वह जल्दी ही कामोत्तेजित हो जाती है। स्त्री की नाभि को दूसरी भगनासा कहा जाता है। इसलिए उसकी नाभि को देखते ही पुरुष उत्तेजित हो जाता है। जब पुरुष स्त्री की नाभि को सहलाता है, चूमता है या छूता है तो वह सेक्स के प्रति उत्तेजित हो जाती है। कुछ पुरुष स्त्री की नाभि को अपनी जीभ से सहलाते हैं तो वह इतनी अधिक उत्तेजित हो जाती है कि अपने आप को पुरुष के हवाले कर देती है। अधिकतर यह भी देखा गया है कि पुरुष स्त्री के कूल्हे, पिंडलियों तथा जांघ को अपने हाथों से मसलते हैं तो इससे ठंडी स्त्री भी उत्तेजित हो जाती है। स्त्री के पैरों का तलवा भी बहुत ही उत्तेजित अंग है। यदि पुरुष अपनी उंगलियों को स्त्री के तलवों पर हल्के-हल्के फेरता है तो इससे स्त्री उत्तेजित हो उठती है। उसकी योनि में सुरसुराहट होने लगती है तथा जल्दी ही कामोत्तेजना की भावना उसमें भरने लगती है। इसके प्रभाव से स्त्री की सूखी योनि गीली होने लगती है, उसकी उत्तेजना इतनी अधिक बढ़ जाती है कि पुरुष का लिंग पकड़कर अपनी योनि में प्रवेश करने की कोशिश करने लगती है। ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर पुरुष को चाहिए कि वह तुरंत ही उससे संभोग क्रिया करना शुरू कर दें।

      स्त्रियों के सेक्स करने वाले अंग (Female Sex Organs)-

      स्त्री के इस भाग को उत्तेजित करने में प्रायः कुछ समय लग जाता है। इसके लिए पुरुष को चाहिए कि वह अपने हाथों से या लिंग से स्त्री के भगनासा को रगड़े या इसे उंगिलयों के द्वारा धीरे-धीरे मसले या फिर इस पर चुंबन लें या जीभ के द्वारा इस भाग को सहलाएं। ऐसा करने से स्त्री को इतना अधिक आनन्द मिलता है कि वह तुरंत ही कामोत्तेजित हो जाती है।

      भग –

      यह स्त्री का सेक्स क्रिया को करने के लिए सबसे प्रमुख भाग होता है तथा यह उस स्थान पर स्थित होता है जिस स्थान पर पुरुषों का जननेंद्रिय होता है अर्थात यह स्त्री के जंघाओं की संधियों के बीच पेडू के नीचे तथा गुदा के आगे वाले सभी हिस्से का क्षेत्र होता है। जब लड़की यौवनावस्था में प्रवेश करती है, तब इस क्षेत्र में काफी परिवर्तन हो जाता है। इस समय में लड़कियों के भग के आस-पास रोएं तथा नीचे चिपचिपा पदार्थ उत्पन्न होने लगता है। इसी कारण यह क्षेत्र मुलायम हो जाता है तथा फूला रहता है। इस अवस्था में जब स्त्रियां उत्तेजित होती हैं तो उनका भग प्रदेश में तेजी से रक्त संचार होने लगता है जिसके कारण से यह क्षेत्र थोड़ा सा फूल जाता है।

      यदि स्त्री कमर के बल लेट जाए और दोनों घुटनों को मोड़कर अपनी जांघों को थोड़ा सा फैला लें तो उसका पूरा भग दिखाई देने लगेगा। इसी भग के भाग में स्त्री के सारे बाहरी यौनांग स्थित होते हैं।

      बृहद भगोष्ठ -

      भग के बीचों-बीच एक लम्बी सी दरार होती है जिसके दोनों ओर के भाग देखने में होंठ की तरह लगते हैं। इन्हें बृहद भगोष्ठ कहते हैं। ये कपाट के समान भग को ढके रखते हैं। यह अधिकतर 3 इंच लम्बे होते हैं जो मोटे तथा गुदगुदे लगते हैं। इन भगोष्ठों की बाहरी सतह की त्वचा पर बाल होते हैं। वसा और स्नायु के द्वारा बृहद भगोष्ठ का निर्माण होता है। वृद्धावस्था तथा बचपन में वसा की मात्रा में कमी हो जाने से यह सिकुड़ा हुआ रहता है। इस बृहद भगोष्ठ के पीछे की ओर छोटे-छोटे दो कोमल तथा गुलाबी रंग के क्षुद्र भगोष्ठ होते हैं जिनकी लम्बाई लगभग डेढ़ इंच होती है। जिस स्त्री का बच्चा न हुआ हो, उसके बृहद् भगोष्ठ आपस में सटे रहते हैं तथा उसके बीच में स्थित अन्य बाहरी अंग दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन जिस स्त्री का बच्चा हो चुका होता है, उस स्त्री के बृहद् भगोष्ठ थोड़ा सा खुला हुआ होता है और जिससे उनके मध्य दरार में स्थित अन्य बाहरी अंग दिखाई देने लगते हैं।

      अगर वृहद भगोष्ठ तथा क्षुद्र भगोष्ठ को फैलाया जाए तो अन्दर की ओर दो छिद्र दिखाई देते हैं। ऊपर वाला छोटा छिद्र मूत्रद्वार तथा नीचे का बड़ा छिद्र योनि द्वार होता है। भगोष्ठों में तंतु पाए जाते हैं। यह बहुत ही कोमल होता है। इसके ऊपर पतली श्लैष्मिक झिल्ली (म्यूकस मेंब्रेन) होती है जो इसे नम और लचीला बनाये रखती है। क्षुद्र तथा वृहद दोनों भगोंष्ठ आपस में एक-दूसरे को ढके रहते हैं। इसी वजह से यह भाग सुरक्षित रहता है। जब स्त्रियां उत्तेजित होती हैं तो क्षुद्र तथा बृहद दोनों भगोष्ठ में तेजी से रक्त संचार होता है जिसकी वजह से ये फूल जाते हैं और सेक्स क्रिया के समय में आनन्द महसूस होता है।

      छोटा भगोष्ठ (लघु भगोष्ठ) –

      वृहद भगोष्ठ को उंगली से इधर-उधर हटाने पर इनके अन्दर कुछ छोटे आकार के अंग दिखाई देते हैं। यह योनि के दरार के दोनों ओर होते हैं। इनकी लम्बाई लगभग एक से डेढ़ इंच तथा चौड़ाई 8 मि.मी. से 15 मि.मी. तक होती है। इन्हें छोटा भगोष्ठ (लघु भगोष्ठ) कहा जाता है। ये दो होते हैं जो भगनासा के सामने आपस में मिले रहते हैं।

      कामाद्रि-

      यह भग प्रदेश का वह भाग होता है जो बालों से ढका रहता है तथा कुछ फूला हुआ होता है। इस क्षेत्र को कामाद्रि कहते हैं। स्त्री के इस भाग में त्वचा के नीचे कुछ अधिक मात्रा में चर्बी जमा होती है। इसलिए यह भाग थोड़ा उभरा हुआ लगता है। यदि इस जगह को उंगली से टटोला जाए तो उसके पीछे भगसंधि की हड्डी होती है। यह भाग अधिक संवेदनशील होता है।

      योनि-

      भग के नीचे की ओर गुहा के मुंह जैसा एक छिद्र होता है जिसे योनि कहते हैं। यह स्त्री का मुख्य रूप से इंद्रिय तथा जननांग होता है। लेकिन इसका प्रवेश द्वार बाहर की ओर होने के कारण से इसे बाहरी जननांग में रखा गया है। योनि आकार में स्त्रियों के कद-काठी के अनुसार होता है। यह मांसपेशियों तथा अनैच्छिक तंतुओं से निर्मित होता है जिसके कारण इसमें फैलने और सिकुड़ने की स्वाभाविक क्षमता होती है। सेक्स क्रिया करते समय लिंग का प्रवेश जब योनि में होता है। इसी योनिमार्ग से होकर वीर्य तथा शुक्राणु गर्भाशय में प्रवेश करते हैं।

      योनिच्छद -

      जो स्त्रियां कुंवारी होती हैं उनकी योनिमार्ग एक पतली सी झिल्ली से ढंकी होती है, इसे योनि पटल, योनिच्छद, हाइमेन तथा कुमारीच्छद कहते हैं। यह पर्दा किसी स्त्री में अर्धचन्द्राकार तो किसी में गोल स्वरूप में होता है। किसी स्त्री में इस पर्दे की त्वचा बहुत पतली और किसी स्त्री में इस पर्दे की त्वचा कुछ मोटी और सख्त होती है। अधिकतर यह पर्दा पहली बार स्त्री संभोग क्रिया करती है तो पुरुष के लिंग के दबाव के कारण से फट जाता है जिसके कारण से स्त्री को थोड़ा बहुत कष्ट अनुभव होता है तथा थोड़ा सा रक्तस्राव भी होता है। जिस स्त्री का यह पर्दा मोटा तथा सख्त होता है, वह फट नहीं पाता, लेकिन ऐसा बहुत ही कम देखा गया है। ऐसी स्थिति में शल्य चिकित्सा के द्वारा चीरा जाता है। लघु भगोष्ठ के अंदर तथा योनि के ऊपर बार्थोलिन ग्रंथि (BARTHOLIN GLAND) होती है। जब स्त्री को सेक्स उत्तेजना होती है तब इससे एक प्रकार का स्राव होता है।

      स्त्री को प्रत्येक महीने योनिमार्ग से मासिकस्राव (Menstrual Fluid) होता है। इस अवस्था में योनिद्वार से एक प्रकार का स्राव होता है जिसे लैक्टिक एसिड कहा जाता है। जब यह स्राव डिंब अंडाशय से बाहर निकलता है तब लैक्टिक एसिड की कम हो जाती है जिसके कारण से शुक्राणु को जीवित रहने में मदद मिलती है। इस एसिड के कारण से बैक्टीरिया योनि पर अपना प्रभाव नहीं डाल पाते हैं।

      अधिकतर 13 से 14 वर्ष की आयु की लड़कियों का मासिकस्राव आना शुरू हो जाता है जो 46 से 48 वर्ष की उम्र तक चलता रहता है। यह स्राव 3 से 5 दिनों तक गर्भाशय से निकलकर बाहर आता है। मासिकस्राव को मासिकधर्म के नाम से भी जाना जाता है। स्राव लाल रंग का होता है। यह 28 दिन में एक बार होता है। किसी-किसी स्त्री को एक-दो दिन आगे-पीछे भी हो सकता है।

      योनिद्वार-

      यह योनि के पास वह भाग होता है जो सामान्य स्थिति में बंद रहता है क्योंकि योनि की अगली तथा पिछली दीवारें एक-दूसरे से सटी रहती हैं। ये फैलने तथा सिकुड़ने में सक्षम होती है। इसलिए इसके अंदर लिंग, कोई यंत्र या उंगली प्रविष्ट कराने या अंदर से मासिकस्राव अथवा प्रसव के समय बच्चे को बाहर निकालने के समय यह योनिद्वार फैलकर खुल जाता है। कभी-कभी कुछ स्त्रियों में योनि की अगली व पिछली दीवारों का भाग योनिद्वार से ही दिखाई पड़ने लगता है। ऐसा अधिकतर उस समय होता है जब इसके फैलने तथा सिकुड़ने की गति में कमी हो जाती है या बार-बार बच्चे को जन्म देते रहने पर या फिर अधिक समय तक संभोग क्रिया करने से होता है।

      भगांकुर (भगनासा) -

      योनिद्वार के ऊपरी भाग में तथा क्षुद्र भगोष्ठ के बीच के भाग में मटर के दाने जैसा एक छोटा-सा मांस का अंकुर होता है जिसे भंगाकुर अथवा भगनासा कहते हैं। इसकी संरचना पुरुष के लिंग के समान लगती है इसलिए इसे छोटा लिंग (मिनिएचर पेनिस) के नाम से जाना जाता है। इसे भगशिश्न भी कहा जाता है। यह पुरुष के लिंग के समान ही अधिक संवेदनशील होता है।

      जब स्त्रियां संभोग क्रिया के समय उत्तेजित होती हैं तो यह भगांकुर रक्त से भर जाता है जिसके कारण उसमें कठोरता आ जाती है। जब पुरुष अपने लिंग को योनि में डालकर घर्षण करता है तब इसमें प्रहर्षण (Thrill) उत्पन्न होता है और स्त्री को आनन्द महसूस होता है। वह संभोग क्रिया से पूरी तरह से आन्नदित हो उठती है। इसके बाद यह पुरुष के लिंग की तरह ही ढीला हो जाता है। यदि सेक्स करने से पहले काम-क्रीड़ा के समय स्त्री के भगांकुर को ठीक तरीके से उत्तेजित किया जाए तो वह पूरी तरह से संतुष्ट हो जाती हैं।

      यह स्त्री का सबसे संवेदनशील अंग होता है क्योंकि स्त्रियों के इस अंग को हल्के-हल्के व धीरे से उंगलियों से सहलाने पर अपार सुखदायक आनन्द की अनुभूति होती है। स्त्री चाहे कैसी भी मंद उत्तेजना वाली क्यों न हो, यदि उसकी भगनासा को ठीक प्रकार से सहलाया जाए या उससे छेड़-छाड़ की जाए तो उसमें भी कामवासना जागने लगती है। ऐसा करने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्त्री को शारीरिक या मानसिक उत्तेजना होने पर भगनासा में रक्त संचार अधिक बढ़ जाता है तथा यह अंग कठोर होकर अपने सामान्य आकार से लगभग डेढ़ गुना बड़ा हो जाता है। इस स्थिति में भगनासा की त्वचा से एक सफेद रंग का विशेष गंध वाला पदार्थ का स्राव होता है जो भगनासा के अगले भाग तथा वृहद व लघु भगोष्ठों के बीच बनी सिकुड़न में इकट्ठा हो जाता है। इसकी सफाई पर स्त्री को विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह पदार्थ जब जमा होकर जमने लगता है तो इससे खुजली, सूजन व जलन की समस्या होने लगती है। यदि स्त्रियों के इसमें इस प्रकार की समस्यां बहुत दिनों तक बनी रही तो स्त्री का यह भाग स्पर्श की अनुभूति व संवेदनशील नहीं रह पाएगा।

      योनि की दरार-

      यह दरार भगनासा के नीचे दोनों ओर भगोष्ठों से घिरी हुई स्थान है जिसमें सबसे नीचे की तरफ योनिछिद्र होता है जो कुमारी स्त्रियों में एक पतली झिल्ली से ढका हुआ होता है।

      मूत्रद्वार-

      यह मूत्रद्वार स्त्रियों का वह द्वार होता है जिससे वे मूत्र त्याग करती हैं। यह लगभग भगनासा से आधा इंच नीचे की तरफ तथा योनि छिद्र के थोड़ा ऊपर एक छिद्र होता है, इसे ही मूत्रद्वार कहा जाता है। यह लगभग डेढ़ इंच लम्बी एक नली का मुख होता है जो अन्दर से मूत्राशय के साथ जुड़ी होती है। इस द्वार के थोड़ा पीछे दोनों तरफ एक-एक बहुत बारीक नलिका होती हैं, जिन्हें स्क्रीन ग्रंथियां कहा जाता है। ये लघु भगोष्ठों तथा योनिछिद्र के पिछले भाग में दोनों तरफ खुलती हैं जो दिखाई नहीं देती हैं। जब कामोत्तेजना होती है तब इन ग्रंथियों से बहुत चिकना, रंगहीन तथा पारदर्शक पदार्थ का स्राव होता है जो पूरे योनिमार्ग को गीला व चिकना बनाया रखता है।

      डिंबग्रंथियां-

      इनमें अंडे तथा डिंब उत्पन्न होते हैं। डिंब ग्रंथियों को अंडाशय भी कहा जाता है। यह बादाम के आकार की दो डिंब ग्रंथियां होती हैं जो गर्भाशय के दोनों ओर श्रोणि के नीचे बाहरी भागों में होता है। यह अनैच्छिक मांसपेशियों तथा अनेक तंतुओं से निर्मित होती हैं। संपूर्ण डिंबाशय को ओवरी कहा जाता है। डिंब ग्रंथि में केवल अंडे का निर्माण होता है और यहां पर ही इसका पोषण होता है। यह ही स्त्री हार्मोन का निर्माण करता है जो स्त्रियों के स्वास्थ्य, स्तनों के आकार, सौंदर्य, मासिकचक्र, स्तनों में दूध का निर्माण, गर्भ का विकास तथा उसकी सक्रियता और स्वास्थ्य बनाये रहता है।

      डिंब वाहिनियां-

      यह गर्भाशय के ऊपरी भाग से शुरू होकर दो भुजाओं की तरह डिंबकोष के दोनों ओर दाएं तथा बाएं फैली होती है। इन्हें डिंब प्रणाली भी कहा जाता है। इसका आकार 4 से 5 इंज लम्बा होता है। इसका एक किनारा गर्भाशय से तथा दूसरा डिंब ग्रंथियों से जुड़ा होता है। इन्हीं के द्वारा डिंब ग्रंथियों से डिंब गर्भाशय में पहुंचता है। इसके अन्दर से एक प्रकार का स्राव उत्पन्न होता है जो यहां से निकलकर डिंब को गर्भाशय तक पहुंचाने में सहायता करता है।

      गर्भाशय-

      यह स्त्री के श्रोणि गुहा तथा मूत्राशय के पीछे की ओर कमर के निचले भाग में स्थित होता है। इसके तीन भाग होते हैं जो इस प्रकार है- बॉडी, ग्रीवा तथा बुध्न। बुध्न इसका ऊपरी भाग होता है जो सामने की ओर मूत्राशय द्वारा टंगा रहता है। इसके दाईं-बाईं ओर डिंब वाहिनियां होती है जो खुली रहती हैं।

      गर्भाशय का एक और भाग होता है जिसे बॉडी कहते हैं। इसकी दीवारें अनैच्छिक मांसपेशियों से बनी होती हैं जो आसानी से फैल और सिकुड़ सकती हैं। इसकी अंदरुनी भाग श्लेष्मिक झिल्लियों से ढकी रहती है जो काफी तंग होता है। गर्भाशय के नीचे के भाग को ग्रीवा कहते हैं। इसका निचला भाग योनि में खुलता है और इसी के द्वारा वीर्य गर्भाशय में पहुंचता है।

      डिंब –

      इसका निर्माण डिंबकोष में होता है और इसकी निर्माण की प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार की क्रिया है जिस प्रकार से पुरुषों में शुक्राणुओं का निर्माण होता है। ये आकार में काफी छोटे-छोटे होते हैं। जब इसका मिलन पुरुष के शुक्राणु से होता है तो स्त्री गर्भवती हो जाती है।

      स्त्रियों के यौनांगों से संबंधित कुछ विशेष बातें-




      • स्त्री के भगांकुर के थोड़ा सा नीचे एक सूक्ष्म छिद्र होता है। सेक्स क्रिया के समय में इस छिद्र का कोई संबंध नहीं होता है लेकिन मूत्रछिद्र के नीचे बड़े भगोष्ठ दिखाई पड़ते हैं। इन भगोष्ठों पर उंगली फेरने से स्त्री बहुत जल्दी कामोत्तेजित हो जाती है। जब स्त्री को ऐसा करके कामोत्तेजित कर ले उसके बाद ही लिंग को उनके योनि में प्रवेश करना चाहिए। वैसे मासिकधर्म के समय में भी इसी छिद्र से स्राव होता है।


      • हम जानते हैं कि योनि एक पाइप की तरह खोखली नली के समान होती है और लघु भगोष्ठों से शुरू होकर गर्भाशय तक पहुंचने का यही एक रास्ता है और प्रजनन के समय नवजात शिशु भी इसी से होकर योनि द्वार से बाहर निकलते हैं।


      • योनिपथ की लम्बाई 8 से 10 सेंटीमीटर होती है। इसके फैलने की क्षमता इतनी अधिक होती है कि इसमें सेक्स क्रिया के समय में 8 से 10 या 15 से 18 सेंटीमीटर लम्बा और 8 से 10 सेंटीमीटर व्यास का लिंग आसानी से अंदर प्रवेश कर सकता है तथा इसमें प्रवेश कराके घर्षण भी आसानी से किया जा सकता है। इससे स्त्री को दर्द भी नहीं होता है बल्कि स्त्री को इससे आनन्द ही मिलता है।


      • योनिमार्ग की यह विशेषता है कि एक ओर तो बच्चे को जन्म देते समय इसी मार्ग से बच्चे को बाहर निकालती हैं तथा यह दूसरी ओर सेक्स क्रिया के समय में पतले से पतले लिंग को भी आसानी से जकड़ लेती है। यह विशेषता योनिमार्ग में नहीं होती तो स्त्री को इसमें लिंग प्रवेश कराने से इतना अधिक आनन्द नहीं मिलता है जितना सेक्स क्रिया के समय में मिलता है।


      • सभी स्त्रियों को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब वह पहली बार संभोग क्रिया करती है तब पुरुष का लिंग उसके योनि में प्रवेश करता है तो योनिमार्ग में झिल्ली का एक पर्दा लगा होता है वह लिंग के दबाव से फट जाती है और उससे खून बहने लगता है तथा थोड़ा बहुत दर्द भी होता है। ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि यह पर्दा बहुत नर्म होता है। ऐसा होने पर स्त्री को कभी भी मानसिक तनाव या भावनात्मक भय नहीं रखना चाहिए। कभी-कभी यह झिल्ली किसी अन्य कारण से अपने-आप भी फट जाती है। इसके फटने का सबसे बड़ा कारण यह है कि जब वह पहली बार संभोग क्रिया करती है तो उस समय लिंग के दबाव से यह झिल्ली फट जाती है, जिस कारण कुछ रक्त भी निकलता है। कभी-कभी यह झिल्ली खेल-कूद, दौड़-भाग तथा साइकिल चलाने आदि कारणों से भी फट सकती है।


      • कभी-कभी स्त्रियां यह सोचकर भयभीत रहती हैं कि विवाह के बाद जब मेरा पति मुझसे सेक्स क्रिया करेगा तो मेरी योनि फट जायेगी और मैं मर जाऊंगी। इस कारण से वे डरती रहती हैं। उनकी इस प्रकार की सोच से न केवल सेक्स क्रिया का आनन्द नष्ट होता है बल्कि पूरे जीवन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। कभी भी स्त्रियों को ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि योनि की कुमारीछिद्र के फटने से थोड़ा बहुत ही खून निकलता है तथा मामूली सा दर्द होता है।


      • कभी भी पुरुषों को अपने मन में यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि पहली संभोग क्रिया के समय में पत्नी के योनि से खून क्यों नहीं निकला, कही मेरी पत्नी पहले से ही किसी और से संभोग क्रिया तो नहीं करवा चुकी है। बल्कि उसे अपने पत्नी से प्यार से पूछना चाहिए कि इस झिल्ली के फटने का क्या कारण हुआ था? वैसे हम आपको बताना चाहेंगे कि अपनी पत्नी से इसके बारे में न ही पूछे तो अच्छा होगा क्योंकि हो सकता है कि आपकी पत्नी की यह कुमारीछिद्र साईकिल चलाने, व्यायाम करने, उछल-कूद करने या भागदौड़ के कारण से फटा हो।
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