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गर्भकाल के दौरान रक्तस्राव (गर्भावस्था में खून का आना)(Bleeding during pregnancy)

गर्भकाल के दौरान रक्तस्राव (Bleeding during pregnancy)

परिचय

किसी-किसी गर्भवती को माहवारी (ऋतुकाल) के समय में बहुत कम मात्रा में रक्तस्राव (महावारी के समय खून निकलना) होता रहता है जो अधिक चिंता करने की बात नहीं है क्योंकि माहवारी (ऋतुकाल) के समय में कुछ न कुछ तो रक्तस्राव (महावारी के समय खून निकलना) होता ही है। लेकिन किसी-किसी स्त्री को गर्भकाल (गर्भावस्था) में गर्भाशय, पाकस्थली, फेफड़ों तथा नाक से खून निकलने लगता है। जिसके कारण गर्भवती स्त्री की मृत्यु भी हो सकती है। गर्भकाल के दौरान रक्तस्राव होने का सबसे प्रमुख कारण कब्ज का होना है।

गर्भकाल के दौरान रक्तस्राव होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार

रक्तस्राव से पीड़ित गर्भवती स्त्री को सबसे पहले इस रोग का उपचार करने के लिए कब्ज की समस्या को दूर करना चाहिए, इसके बाद अन्य चिकित्सा करनी चाहिए।
रक्तस्राव से पीड़ित गर्भवती स्त्री को अपने पेडू पर मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए, इसके बाद एनिमा क्रिया का प्रयोग करना चाहिए।
रक्तस्राव से पीड़ित गर्भवती स्त्री को यदि भूख नहीं लग रही हो तो भोजन खाना बंद कर देना चाहिए।
रक्तस्राव से पीड़ित गर्भवती स्त्री को यदि भूख लगने लगे तो फलों का रस या फिर मट्ठा पीना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों के अन्दर ठीक हो जाता है।
रक्तस्राव से पीड़ित गर्भवती स्त्री को जब तक रक्तस्राव (महावारी के समय नाक, गर्भाशय, मलाशय द्वार तथा फेफड़े से खून निकलना) हो रहा हो तब तक आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल की मात्रा लगभग 26 मिलीलीटर लेकर दो-दो घण्टे के बाद पीना चाहिए और इसके बाद गहरे नीले रंग की बोतल का जल तीन भाग लेकर इसमें पीले रंग के सूर्यतप्त जल का एक भाग मिलाकर चार-चार घण्टे के बाद पीना चाहिए।
इसके बाद रक्तस्राव से पीड़ित गर्भवती स्त्री को हरे रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल में रुई को भिगोकर योनि में रखना चाहिए।
रक्तस्राव से पीड़ित गर्भवती स्त्री को अपने मुंह तथा गर्दन पर नीला प्रकाश डालना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने पर कुछ ही दिनों के बाद यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।

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