बच्चे को टीबी
आप बचा सकते हैं अपने बच्चे को टीबी से,मगर लक्षण पता तो हों
विश्व में प्रतिवर्ष लगभग ८० लाख नए क्षय रोगी बढ़ रहे हैं जिसमें ९५ प्रतिशत विकासशील देशों में है। किसी भी समय विश्व में लगभग डेढ़ से दो करोड़ क्षय रोगी रहते हैं, जिसमें आधे रोगियों की खंखार में क्षय के बैक्टेरिया उपस्थित रहते हैं।
भारत की लगभग ४० प्रतिशत आबादी में क्षय के बैक्टेरिया उपस्थित है और प्रतिवर्ष ५ लाख मौतें क्षय रोग से होती है। हर मिनिट में कहीं न कहीं कोई क्षय से मर रहा है। एक क्षय रोगी जिसकी खंगार में क्षय के बैक्टेरिया मौजूद है, हर वर्ष १० से १५ नए व्यक्तियों में बीमारी फैला रहा है।
क्षय रोगी जब खाँसता है या छींकता हैं तो हजारों की संख्या में क्षय बैक्टेरिया बाहर निकलते है। इनकी बड़ी-बड़ी बूंदें तो जमीन पर गिर जाती है, किंतु सूक्ष्म बूंदे हमवा में तैरती रहती है। क्षय रोगी अधिकतर गरीब, अशिक्षित होते है, जहाँ एक छोटे से बंद कमरे में पूरा परिवार रहता है। बार-बार खाँसते रहने से कमरे में बैक्टेरिया की संख्या बढ़ जाती है, जो श्वास द्वारा अन्य परिवारजनों के शरीर में फेफ़डों में और अन्य अंगों में पहुँच जाते है। बच्चे जो कि कमजोर है, तुरंत इनकी चपेट में आ जाते हैं। बच्चों में फेफ़डों में पहुँचकर यह एक रिएक्शन पैदा करता है। ८-१० सप्ताह में एक चक्र पूरा कर बैक्टेरिया सुसुप्त अवस्था में पहुँच जाता है। इस दौरान बच्चों को साधारण बुखार, खाँसी, सर्दी, जुकाम इत्यादि हो सकता है, जो कि बिना इलाज के भी ठीक हो जाता है, किंतु कुछ बच्चे, जो कुपोषित है, अन्य किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है या उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है। ऐसे बच्चे को इलाज की सख्त आवश्यकता होती है। क्षय रोग फेफ़डों के अतिरिक्त किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है। बच्चों में इसका निदान बहुत मुश्किल है। केवल समझदार विशेषज्ञ चिकित्सक ही इसका समय पर निदान कर सकते है।
बच्चों में अगर निम्न में से कोई लक्षण हो तो क्षय रोग हो सकता है
-बच्चे को बार-बार बुखार आना। बुखार के साथ आँख लाल हो जाना।
-बच्चे का वजन नहीं बढ़ना या स्थिर रहना या थोड़ा घट जाना।
-बुखार के साथ आँखे लाल हो जाना।
-खाँसी (सॉस) होना और वजन नहीं बढ़ना।
-अचानक सीने में दर्द और बुखार आना।
-पेट में दर्द और पेट फूल जाना। पेट में धीरे-धीरे बढ़ती हुई गठान।
-चलने पर पैर में लगड़ापन अथवा जोड़ो में सूजन आना अथवा गले में सूजन, गठान बढ़ जाना।
-चमड़ी पर घाव हो जाना, पानी का रिसना।
-बच्चा अचानक चिड़चिड़ा हो जाए, साथ में बुखार उल्टी और सिरदर्द हो अथवा कमजोर महसूस करना।
-बड़े बच्चों को खाँसी, बलगम के साथ सीने मेंज दर्द, बुखार और वजन घटना।
-ऐसा बच्चा, जो खसरा (मीजल्स) कुंबर खासी (व्हुपिंग कफ) या गले में टांसिल की बीमारी ठीक हो जाने पर भी पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हो।
-बच्चे को पेशाब में कोई भी तकलीफ नहीं हो, फिर भी पेशाब में पस अथवा ब्लड आना।
-उपरोक्त कोई भी लक्षण होने पर विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह लें।
बच्चे को देखकर स्वास्थ्य परीक्षण करने पर कुछ ब्लड टेस्ट और एक्स-रे,सोनोग्राफी करवाकर निदान कर सकता है। एक अन्य टेस्ट ट्यूबरकुलीन भी करवाया जाता है जिसकी रिपोर्ट 48 से 72 घंटे बाद मिलती है। यह टेस्ट पॉजिटिव होना यह दर्शाता है कि बच्चे में क्षय के बैक्टीरिया प्रवेश कर चुके हैं। कुपोषित बच्चों में और बीमार क़मज़ोर बच्चों में क्षय रोग होने पर भी यह टेस्ट नेगेटिव हो सकता है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर है।
एक बार निदान हो जाने पर चिकित्सक की देख-रेख में नियमित 6 माह तक दवाई लेने पर इस रोग से मुक्ति पाई जा सकती है। समय पर निदान अथवा इलाज़ नहीं होने पर बच्चा गंभीर रूप से बीमार हो सकता है अथवा जान भी जा सकती है। लिहाजा,हमेशा जागरूक रहें और संशय होने पर विशेषज्ञ चिकित्सक की राय लें
No comments
Thanks