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आयुर्वेदिक औषधियां

आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग से बैक्टीरिया में resistance उत्पन्न नहीं होता है और यही इसका सबसे प्रभावी एंटीबायोटिक गुण है. आयुर्वेद विज्ञान में मनुष्य को स्वस्थ रखने के लिए अनेक औषधियों का वर्णन है. इन्हीं औषधियों से आजकल विदेशी कंपनियां उनके केमिकल निकाल कर दवा बनाती हैं और हमसे मुनाफ़ा कमाती हैं. प्राचीन काल से ही आयुर्वेद के चिकित्सकों ने ऐसे अनेक आयुर्वेदिक औषधियों पर कार्य करा है जिनसे गंभीर बीमारियों को दूर किया जा सकता है

घरेलु दर्दनाशक आयुर्वेदिक तेल !!

कई बार हमारे घुटनों,कमर ,पीठ एवं पंसलियों आदि में दर्द हो जाता है ! ऐसे ही दर्द को दूर करने के लिए बाजार में कई तरह के आयुर्वेदिक तेल मिलते हैं जिनसे मालिश करने से दर्द दूर हो जाता है ! आज ऐसा ही तेल बनाने कि विधि आपको बताता हूँ जो सस्ता ,सरल और अचूक है और घर पर आराम से बनाया जा सकता है ! 

सबसे पहले ४० ग्राम पुदीना सत्व ,४० ग्राम अजवायन सत्व और ४० ग्राम ही कपूर ले ! साफ़ बोतल में पुदीना सत्व डाल दें और उसके बाद अजवायन सत्व और कपूर को पीसकर उस बोतल में डाल दें जिसमें आगे पुदीना सत्व है ! उसके बाद ढक्कन लगाकर हिला दें और रख दें ! थोड़ी देर बाद तीनों चीजें मिलकर द्रव्य रूप में हो जायेगी और इसे ही अमृतधारा कहते हैं !

अब २०० ग्राम लहसुन लें और उसके छिलके उतार कर लहसुन कि कलियों के छोटे छोटे टुकड़े कर लें ! अब एक किलो सरसों का तेल कड़ाही में डालकर आंच पर गर्म होने के लिए रख दें ! जब तेल पूरी तरह से गर्म हो जाए तो तेल को निचे उतार कर ठंडा होने के लिए रख दें ! जब तेल पूरा ठंडा हो जाए तो उसमें लहसुन के टुकड़े डालकर उसको फिर आंच पर चढाकर तेज और मंदी आंच में गर्म करें ! तेल को इतना पकाए कि लहसुन कि कलियाँ जलकर काली हो जाए ! तेल के बर्तन को आंच पर से उतारकर निचे रखे और उसमें गर्म तेल में ही ८० ग्राम रतनजोत ( रतनजोत एक वृक्ष कि छाल होती है ) डाल दें इससे तेल का रंग लाल हो जाएगा !

तेल के ठंडा होने पर कपडे से छानकर किसी साफ़ बोतल में भर लें ! अब इस पकाए हुए तेल अमृतधारा और ४०० ग्राम तारपीन का तेल मिलाकर अच्छी तरह से हिला दें ! बस मालिश के लिए दर्दनाशक लाल तेल तैयार हो गया जिसका उपयोग आप जब चाहे कर सकते हैं 

पेट दर्द से आराम के लिए आयुर्वेदिक नुस्खे !!



लत खान पान अथवा अपच के कारण होने वाले पेट दर्द के लिए आयुर्वेद में कुछ नुस्खे बताए गये हैं ! जिनका अगर प्रयोग किया जाए तो पेट दर्द कि परेशानी से बचा जा सकता है ! हालांकि इस तरह के पेट दर्द के लिए आज भी हमारे घरों में आयुर्वेदिक नुस्खे काम में लाये जाते हैं और उनसे आराम भी मिलता है ! ऐसे ही कुछ नुस्खे आपको बता रहा हूँ :- 
१.       अदरक और लहसुन को बराबर कि मात्रा में पीसकर एक चम्मच कि मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से पेट दर्द में लाभ मिलता है !
२.      एक ग्राम काला नमक और दो ग्राम अजवायन गर्म पानी के साथ सेवन करने से पेट दर्द में लाभ मिलता है !
३.      अमरबेल के बीजों को पानी से पीसकर बनाए गये लेप को पेट पर लगाकर कपडे से बाँधने से गैस कि तकलीफ,डकारें आना,अपानवायु न निकलना,पेट दर्द और मरोड़ जैसे कष्ट दूर हो जाते हैं !
४.     सौंठ,हींग और कालीमिर्च का चूर्ण बराबर कि मात्रा में मिलाकर एक चम्मच कि मात्रा में गर्म पानी के साथ लेने से पेट दर्द में तुरंत आराम मिलता है !
५.     जटामांसी,सौंठ,आंवला और काला नमक बराबर कि मात्रा में पीस लें और एक एक चम्मच कि मात्रा में तीन बार लेने से भी पेट दर्द से राहत मिलती है !
६.      जायफल का एक चौथाई चम्मच चूर्ण गर्म पानी के साथ सेवन करने से भी पेट दर्द में आराम पहुँचता है !
७.     पत्थरचट्टा के दो तीन पत्तों पर हल्का नमक लगाकर या पत्तों के एक चम्मच रस में सौंठ का चूर्ण मिलाकर खिलाने से पेट दर्द से राहत मिलती है !
८.      सफ़ेद मुसली और दालचीनी को समभाग में मिलाकर पीस लें ! एक चम्मच कि मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से २-३ खुराक में ही पूरा आराम मिल जाता है !

श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया ) के लिए आयुर्वेदिक नुस्खे !!  



आयुर्वेद में श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) के कुछ उपाय बताये गये हैं उनमें से कुछ सरल उपाय आपको बता रहा हूँ जिनका अगर प्रयोग किया जाये तो फायदा हो सकता है ! और इनमें प्रयोग होने वाली जड़ीबूटियाँ सहजता से मिल सकती है कुछ तो अपने आसपास भी मिल जाती है और अगर कुछ नहीं भी मिलती है तो पंसारियों के यहाँ मिल जायेगी जहां से इनको ख़रीदा जा सकता है !!
१. असगंध का चूर्ण और मिश्री एक एक चम्मच मिलाकर एक कप गर्म दूध के साथ सुबह शाम नियमित रूप से कुछ हफ्ते तक सेवन करने से ना केवल श्वेत प्रदर कि शिकायत दूर होगी बल्कि शारीरिक दुर्बलता भी दूर हो जायेगी !!
२. अशोक की छाल का चूर्ण और मिश्री समान मात्रा में मिलाकर गाय के दूध के साथ एक एक चम्मच कि मात्रा में दिन में तीन बार कुछ हफ्ते तक सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है !!
३. इमली के बीजों को पानी में कुछ दिनों तक भिगो दें ताकि छिलका आसानी से निकाला जा सके उसके बाद छिलका निकाले सफेद बीजों का पीसकर बारिक चूर्ण बना लें और इसे घी में भुनकर समान मात्रा में मिश्री मिलाकर कांच की बोतल में रख लें ! एक चम्मच कि मात्रा में दिन में तीन बार दूध के साथ सेवन करें ! इससे श्वेत प्रदर कि शिकायत दूर हो जायेगी और इसी का प्रयोग अगर पुरुष करें तो उनके लिए भी यह वीर्यवर्धक और पुष्टिकारक योग है !
४. छाया में सुखाई गयी जामुन कि छाल के चूर्ण को एक चम्मच कि मात्रा में दिन में तीन बार पानी के साथ कुछ दिन प्रयोग करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है !!
५. दारु हल्दी ,दाल चीनी और शहद समभाग मिलाकर एक चम्मच कि मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से श्वेत प्रदर से राहत मिलती है !

गठिया रोग का आयुर्वेदिक इलाज !!

गठिया रोग को अंग्रेजी में आर्थ्राइटिस और हिंदी में इसको संधि शोथ भी कहतें है यह बड़ा पीड़ादायक रोग है लेकिन आयुर्वेद में कुछ ऐसे उपचार हैं जिनसे इससे छुटकारा पाया जा सकता है उनमें से दो नुस्खे आपके सामने लिख रहा हूँ जिसमें से एक बथुआ है जो अभी सर्दियों में बहुतायत से होता है दूसरा नागौरी असगंध है जो बारह महीने सुलभ है और दोनों ही चीजें सर्व सुलभ है 


१. बथुआ के ताजा पत्तों का रस पन्द्रह ग्राम प्रतिदिन पीने से गठिया दूर होता है। इस रस में नमक-चीनी आदि कुछ न मिलाएँ। नित्य प्रातः खाली पेट लें या फिर शाम चार बजे। इसके लेने के आगे पीछे दो – दो घंटे कुछ न लें। दो तीन माह तक लें। 

२. नागौरी असगन्ध (अश्वगंधा ) की जड़ और खांड दोनों समभाग लेकर कूट-पीस कपड़े से छानकर बारिक चुर्ण बना लें और किसी काँच के पात्र में रख लें। प्रतिदिन प्रातः व शाम चार से छः ग्राम चुर्ण गर्म दूध के साथ खायें। आवश्यकतानुसार तीन सप्ताह से छः सप्ताह तक लें। इस योग से गठिया का वह रोगी जिसने खाट पकड़ ली हो वह भी स्वस्थ हो जाता है। कमर-दर्द, हाथ-पाँव जंघाओं का दर्द एवं दुर्बलता मिटती है। यह एक उच्च कोटि का टॉनिक है।

निम्न रक्तचाप में लाभकारी है किशमिश !!


आपको अक्सर चक्कर आते हैंकमजोरी महसूस होती है तो हो सकता है कि आप लो ब्लड प्रेशर के शिकार हों। ज्यादा मानसिक तनावकभी क्षमता से ज्यादा शारीरिक काम करने से अक्सर लोगों में लो ब्लडप्रेशर की शिकायत होने लगती है।

कुछ लोग इसे नजरअन्दाज कर देते हैं तो कुछ लोग डॉक्टर के यहां चक्कर लगाकर परेशान हो जातें हैं। लेकिन आयुर्वेद में लो ब्ल्डप्रेशर को कन्ट्रोल करने के लिए कारगर इलाज है वो है किशमिश। नीचे बताई जा रही विधि को लगातार 32 दिनों तक प्रयोग में लाने से आपको कभी भी लो ब्लड प्रेशर की शिकायत नहीं होगी।

32 किशमिश लेकर एक चीनी के बाउल में पानी में डालकर रात भर भिगोएं। सुबह उठकर भूखे पेट एक-एक किशमिश को खूब चबा-चबा कर खाएं,पूरे फायदे के लिए हर किशमिश को बत्तीस बार चबाकर खाएं। इस प्रयोग को नियमित बत्तीस दिन करने से लो ब्लडप्रेशर की शिकायत कभी नहीं होगी।

विशेष-जिसको लो बी पी की शिकायत हो और अक्सर चक्कर आते हों तो आवलें के रस में शहद मिलाकर चाटने से जल्दी आराम होता है।

लो बी पी के समय व्यक्ति को ज्यादा बोलना नहीं चाहिए। चुपचाप बायीं करवट लेट जाना चाहिए थोड़ी देर में नीदं आ जाएगी और लो बी पी में फायदा होगा।

उच्च रक्तचाप ( HIGH BLOOD PRESSER ) के लिए आयुर्वेदिक उपचार !!


उच्च रक्तचाप की बीमारी हमारे समाज में खान पान और तनाव युक्त जीवन के कारण लगातार बढ़ रही है ! आयुर्वेद में इस बीमारी पर काबू पाने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं जिनको में आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ जिनका अगर प्रयोग किया जाए तो फायदा हो सकता है ! 
१. रात को तांबे के बर्तन में पाँव किलो पानी रखें और उसमें असली* रुद्राक्ष के आठ दाने डालकर रख दें ! रोजाना सवेरे उषापान के रूप में वह पानी पी जाएँ ! इसके नित्य प्रयोग से तीन माह में हि रक्तचाप कम हो जाएगा ! आप उन्ही दानों को तीन माह तक प्रयोग कर सकते हैं हाँ रुद्राक्ष को दो तीन सप्ताह बाद ब्रुश से साफ़ करके धुप में सुखा लें !
२. दौ सौ पचास ग्राम ताज़ी हरी लौकी छिलके सहित पांच सौ ग्राम पानी में प्रेशर कुकर में डालकर आग पर रख दें और एक सीटी बजने पर आग पर से उतार लें ! मसलकर छान कर ( बिना इसमें कुछ मिलाएं ) इसे सूप कि तरह गर्म गर्म पी लें ! आवश्यकतानुसार प्रात: खाली पेट लगातार तीन चार दिन तक रौजाना एक खुराक लें !
३. एक तांबे की कटोरी में १०-१५ ग्राम मैथी दाना रात को पानी में भिगो दें ! सुबह मैथी दाना निकालकर वह पानी पी लें ! रक्तचाप कि अवस्था में आवश्यक परहेज के साथ यह प्रयोग करने से चाहे रक्तचाप बढ़ा हुआ हो या कम हो सामान्य होने लगेगा ! साथ हि इस प्रयोग से मधुमेह तथा मोटापा में भी लाभ होता है !
४. उच्च रक्तचाप में रात्री में सोने से पहले बादाम के तेल की पांच पांच बूंदों का नस्य लेने से भी ना केवल रक्तचाप बल्कि सिर के अनेक रोगों में भी लाभ होता है !

शुद्ध रुद्राक्ष की पहचान यह है कि शुद्ध रुद्राक्ष पानी में डूब जाता है !

आयुर्वेदिक औषधियों के लिए ( WEIGHT CALCULATION )मापन प्रणाली !!



प्राय: देखा जाता है कि आयुर्वेद में औषधि या नुस्खे बताते समय औषधि के जो माप बताए जाते हैं वो जल्दी से कोई समझ नहीं पाता है क्योंकि आयुर्वेद में औषधियों के माप हैं वो पुराने समय से चले आ रहें हैं और आज माप अंग्रेजी मापन प्रणाली पर आधारित है इसलिए जरुरी है कि किसी भी औषधि का प्रयोग करने से पहले उसका परिमाण भली प्रकार ज्ञात हो ! इसी को ध्यान में रखते हुए में आज आपके सामने पुराने मापन प्रणाली और नयी मापन प्रणाली में परिवर्तित करके बता रहा हूँ !

पुरानी मापन प्रणाली के अनुसार नाम               नयी मापन प्रणाली के हिसाब से 
१. एक ग्रेन                                                             एक गेंहूं के दाने के बराबर या ६० मिलीग्राम 
२. एक रती                                                             दो ग्रेन अथवा १२० मिलीग्राम 
३. एक माशा                                                           आठ रती अथवा एक ग्राम 
४. एक तोला                                                           १६ रती अथवा १६ ग्राम 
५.१/४ तोला या चवन्नी भर                                       ३ माशा अथवा तीन ग्राम 
६. एक छंटाक                                                           ५ तोला अथवा ६० ग्राम 
७. एक पौंड                                                              आधा सेर अथवा लगभग ४५० ग्राम 
८. एक सेर                                                                लगभग ९६० ग्राम 
९. एक टेबल स्पून                                                     तीन चाय के चम्मच के बराबर 
१०.एक कप                                                                १६ टेबल स्पून के बराबर 
११.एक चम्मच                        जहां भी चम्मच शब्द का प्रयोग हो वहाँ चाय वाले चम्मच हि समझे 
ऐसे तो और भी माप है जो आयुर्वेदिक औषधियों के लिए प्रयुक्त होतें हैं लेकिन सामान्यतया जो वर्तमान समय में बताए जातें हैं उनको हि मैंने बताया है !


आयुर्वेदिक औषधियों के लिए संपर्क करे या ई मेल करे 
Email "sharna.devilal@gmail.com"



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