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हृदय रोग

हार्ट अटैकःपहचानें लक्षण को और बचें पल भर की भी देरी से

फिल्मों में हार्ट अटैक का दृश्य पूरे ड्रामे के साथ दिखाया जाता है, व्यक्ति को दिल में दर्द होता है, वो छाती पर हाथ रखकर कुछ देर कराहता है और फिर नीचे गिर जाता है। ज़रुरी नहीं कि हर किसी को हार्ट अटैक फिल्मों के ड्रामाभरे अंदाज़ में आए। इसलिए हार्ट अटैक के सही लक्षणों के बारे में जानना ज़रुरी है, ताकि असल ज़िंदगी में आए हार्ट अटैक को समय रहते पहचाना जा सके।
शरीर की सभी अन्य मांसपेशियों की तरह हृदय को भी ठीक से काम करने के लिए खून की ज़रुरत होती है। हृदय रक्त वाहिकाओं और धमनियों के ज़रिए पूरे शरीर में रक्त पंप करता है। इसी तरह हृदय तक रक्त पहुँचाने का काम कोरोनरी धमनियाँ करती हैं। यदि कोरोनरी धमनी प्लाक बनने के कारण अवरुद्घ हो जाएँ तो इससे हार्ट अटैक आ सकता है।
यह कई कारणों से हो सकता हैः
 -अधिक वज़न।
 -शारीरिक श्रम की कमी।
 -अधिक वसा व कोलेस्ट्रॉलयुक्त खाना।
 -तनाव एवं धूम्रपान। अधिक शराब पीना।
 -परिवार के अन्य सदस्यों को हार्ट अटैक की समस्या।

ये कुछ ऐसे कारण हैं, जो प्लाक बनने की प्रक्रिया यानी आर्थेरोस्क्लेरॉसिस को बढ़ावा देते हैं। धीरे-धीरे जमा हो रहे इस प्लाक के कारण अंततः धमनी अवरुद्घ हो जाती है, नतीजा होता है हार्ट अटैक। धमनी के अवरुद्घ होते ही हृदय तक खून की आपूर्ति बंद हो जाती है।

हार्ट अटैक आने पर आमतौर पर ये लक्षण सामने आते हैं- 
 -पसीना आना एवं साँस फूलना।
 -छाती में दर्द होना एवं सीने में ऐंठन होना।
 -हाथों, कंधों, कमर या जबड़े में दर्द होना।
 -मितली आना, उल्टी होना।

 महिलाओं में हार्ट अटैक आने पर कुछ अन्य लक्षण भी देखे जा सकते हैं। त्वचा पर चिपचिपाहट, उनींदापन, सीने में जलन महसूस होना और असामान्य रूप से थकान इसमें शामिल है।

हार्ट अटैक कई लोगों के लिए मृत्यु का कारण बनता है। इससे मरने वाले करीब एक तिहाई मरीज़ों को तो यह पता ही नहीं होता कि वे हृदय रोगी हैं और अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। इसके लिए ज़िम्मेदार एक बड़ा कारण यह है कि पहले आए हार्ट अटैक को मरीज़ ने पहचाना ही न हो। ऐसा हार्ट अटैक,जिसके लक्षण अस्पष्ट हों या जिनका पता ही न चले,उसे साइलेंट हार्ट अटैक कहते हैं(डा. ए के पंचोलिया,सेहत,नई दुनिया अक्टूबर प्रथमांक 2011)।

"साइलेंट" हार्ट अटैक 
कभी-कभी लोगों को हार्ट अटैक होता है और उन्हें इसका पता भी नहीं चलता। हार्ट अटैक के लक्षण दिखाई नहीं देना, मरीज़ द्वारा लक्षणों को नज़रअंदाज़ कर देना या फिर इन्हें समझ ही न पाना साइलेंट हार्ट अटैक के कारण हैं। हार्ट अटैक से उबरने के लिए अवरुद्घ रक्त प्रवाह को जल्द से जल्द शुरु करना सबसे ज़्यादा ज़रुरी है। चूँकि साइलेंट हार्ट अटैक में मरीज़ या उसके परिजनों को इसका पता ही नहीं चल पाता, इसलिए उन्हें उबरने का कोई मौका भी नहीं मिलता। यही कारण है कि साइलेंटहार्ट अटैक ज़्यादा घातक होते हैं। हृदय तक रक्त की आपूर्ति कुछ देर के लिए बंद हो जाए तो मरीज़ को सीने में दर्द या एंजाइना की तकलीफ होती है। यह असल में एक चेतावनी की तरह होता है, जो इस ओर इशारा करता है कि स्थिति सामान्य नहीं है।

यहाँ पर भी ध्यान न दें तो स्थिति को बद से बदतर होते देर नहीं लगेगी। एंजाइना का लक्षण होता है सीने में दर्द उठना, लेकिन कई मरीज़ों को इसका पता ही नहीं चल पाता यानी उन्हें साइलेंट एंजाइना हो जाता है। यह आगे चलकर साइलेंट हार्ट अटैक का कारण बनता है। हार्ट अटैक के लक्षणों को कभी-कभी मरीज़ समझ ही नहीं पाता। इन लक्षणों को वो एसिडिटी, थकान, तनाव, घबराहट या ऐंठन जैसी छुटपुट समस्या समझ बैठता है और परिजनों या चिकित्सक को बताना उचित नहीं समझता। उसे लगता है कि थोड़ी देर में दर्द अपने आप ही कम हो जाएगा, लेकिन यह दर्द जानलेवा हो जाएगा, यह तथ्य उनके ज्ञान से परे होता है।

हार्ट अटैक के सभी मामलों में से २५ फीसद साइलेंट हार्ट अटैक के होते हैं। फिल्मों और टी.वी. पर दिखाए गए हार्ट अटैक के दृश्यों का लोगों पर प्रभाव इसके लिए ज़िम्मेदार कारणों में से है। साइलेंट हार्ट अटैक से मरीज़ की मौत तो हो ही सकती है, साथ ही इससे पुरुषों में डिमिंशिया का खतरा भी बढ़ जाता है। इसीलिए हार्ट अटैक के लक्षणों के बारे में जानना और महसूस होने पर इन्हें समझना बहुत ज़रुरी है। कोई भी लक्षण महसूस होने पर, चाहे वो हल्का ही क्यों न हो और कुछ ही समय के लिए हो, तुरंत चिकित्सकीय मदद के लिए संपर्क करें। इन्हें करना नज़रअंदाज़ जानलेवा हो सकता है। सही समय पर हुई मदद जीवन और मौत के फासले को बढ़ा सकती है।

दिल के दौरे में खून की जांच 
दिल का दौरा सुनते ही आँखों के सामने ज़्यादातर दर्द से तड़पते, पसीने से तरबतर हाँफते-घबराते व्यक्ति की तस्वीर आती है। ऐसी स्थिति में मरीज़ को तुरंत चिकित्सकीय देखरेख की आवश्यकता होती है। चिकित्सक सबसे पहले आवश्यक जाँच करते हैं और ई.सी.जी. व संभव हो तो ईको की जाँच भी करते हैं। इसके आधार पर वे तुरंत ही निदान करते हैं कि मरीज़ को दिल का दौरा पड़ा है या नहीं?

मरीज़ों में दिल के दौरे का निदान ज़्यादातर इन्हीं दो जाँचों के आधार पर किया जाता है। कभी-कभी इन जाँचों के लिए मशीन या इनके संचालन के लिए कुशल चिकित्सक के अभाव में दिल के दौरे का इलाज शुरू कर दिया जाता है। खून की जाँच से भी इस बात का पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति को दिल का दौरा वास्तव में पड़ा था या नहीं?

कभी-कभी व्यक्ति को पहले से दौरा पड़ा रहता है या उसके कार्डियोग्राम में एलबीबीबी नामक जन्मजात खराबी होती है। हो सकता है कि ऑपरेशन के दौरान मरीज़ को दिल का दौरा पड़ा हो या मरीज़ की दिमागी हालत ऐसी न हो कि वह बता सके कि उसे पहले भी कभी इस तरह की तक़लीफ हुई थी या नहीं? ऐसी स्थितियों में खून की जांच काफी मददगार सिद्घ हो सकती है।

अगर दिल का दौरा बहुत हल्का हो या पहले पूरी तरह बंद नस तुरंत इलाज़ मिलने पर खुल गई हो तोऐसे में ईसीजी व ईको की जांच का नतीज़ा नार्मल आ सकता है। सीपीकेएमबी और ट्रॉप-1 दो ऐसी जांचें हैं जो दिल के दौरे के 100 फीसदी निदान में मददगार होती हैं। अस्पताल में इन जांचों की सुविधा न हो तो खून को संबंधित लैब में भेजकर निदान किया जा सकता है ताकि दिल के दौरे का वास्तविक रूप से पता लगाया जा सके। सही निदान इसलिए ज़रूरी होता है ताकि दिल के दौरे का इलाज़ एक निश्चित पैटर्न पर किया जा सके तथा भविष्य के लिए सलाह दी जा सके(डा. मनीष वंदिष्टे,सेहत,नई दुनिया,अक्टूबर प्रथमांक 2011)।

किसी भी बीमारी में अगर वक्त पर सही इलाज मुहैया हो जाए तो मरीज की जिंदगी बचने के चांस काफी बढ़ जाते हैं। हार्ट अटैक के मामले में यह और भी जरूरी हो जाता है क्योंकि यहां कई बार कुछ मिनटों की देरी भी भारी पड़ जाती है। इसलिए,आइए अब जानते हैं कि हार्ट अटैक के लक्षण होने पर क्या करना चाहिएः

घरेलू इलाज की बजाय हॉस्पिटल पहुंचें 
जब किसी मरीज को चेस्ट पेन होता है, तो उसे अमूमन यह यकीन नहीं होता कि इसकी वजह हार्ट अटैक हो सकती है। वह समझता है कि यह दर्द किसी दूसरी वजह मसलन, एसिडिटी, गैस, मांसपेशियों में खिंचाव, नर्व्स में चुभन वगैरह से हो रहा है। ज्यादातर मरीज इस तरह के लक्षणों में घरेलू इलाज को तरजीह देते हैं और उससे बेहतर होने की उम्मीद भी बांधे रहते हैं। ऐसा देखा गया है कि एक आम आदमी ऐसी स्थितियों में हमेशा हॉस्पिटल जाने से बचता है और इस तरह देरी बढ़ती जाती है। यह गलत है। 

जब किसी को हार्ट अटैक आए, तो उसे फौरन हॉस्पिटल पहुंचाना चाहिए ताकि उसे जल्द-से-जल्द अटैक से रिकवर करने में मदद मिले। सबसे बेहतर नतीजे अटैक के दो घंटे के भीतर ट्रीटमेंट मिलने पर पाए जा सकते हैं जबकि पेशंट अमूमन घर पर रहकर या घरेलू इलाजों में इस समय को गंवा देता है। हम सलाह देते हैं कि पेशंट घरेलू इलाजों में समय बर्बाद न करें, न ही इसके लक्षणों को नजरअंदाज करें और जल्द-से-जल्द मेडिकल हेल्प लें। 

डॉक्टरों की खोजबीन में समय नष्ट न करें 
अटैक के बाद पेशंट का एंजियोग्राम कराया जाता है। अगर उसके नतीजे बताते हैं कि उसकी एक या एक से ज्यादा धमनियों में ब्लॉकेज है तो डॉक्टर सलाह देते हैं कि उसे सर्जरी करा लेनी चाहिए। लेकिन पेशंट डॉक्टर की सलाह पर अमल करने की बजाय दूसरे डॉक्टरों के चक्कर काटना शुरू कर देते हैं, ताकि वे सर्जरी से बच सकें। इस बीच उनका काफी समय बर्बाद हो जाता है, जो उनके लिए घातक भी साबित हो सकता है। 
सीने में दर्द को कब अनदेखा न करें? 
अगर आपकी उम्र चालीस वर्ष या उससे ऊपर है और आप डायबिटीज के शिकार है और धूम्रपान या तंबाकू (जर्दा, खैनी, चैनी या जाफरानी पत्ती, गुल) के आदी है और छाती में तेज चलते वक्त या सीढ़ी चढ़ने पर छाती के बायीं तरफ दर्द या हल्का भारीपन उभरता हो या थोड़ा शारीरिक व्यायाम करने पर साँस फफूलने लगे, तो दिल की बीमारी होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इन परिस्थितियों में सीने में उठ रहे दर्द को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। 

सीने के दर्द में खास बात यह होती है कि आराम करने से या चलते वक्त रुक जाने पर छाती का हल्का दर्द व भारीपन गायब हो जाता है। दिल का दर्द चलते वक्त बाएँ हाथ, बाई गर्दन व बाएँ जबड़े में भी उभरता है। छाती दर्द की चिंता से मुक्ति होने का एक ही रास्ता होता है, पहले ट्रेडमिल टेस्ट करवा लें। अगर परिणाम संदेहास्पद है तो स्ट्रेस इकोकरवाकर हार्ट की बीमारी होने के संदेह का निराकरण करें। पूर्णतः निश्चिन्त होने के लिए सबसे उत्तम जाँच मल्टी स्लाइस सीटी कोरोनरी एंजियोग्राफी करवाएँ। इस विशेष एंजियोग्राफी के लिए अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती है और न ही जाँच के जरिए तार डालने की आवश्यकता होती है।

सीने में दर्द के और क्या कारण हो सकते हैं? 
छाती दर्द का सबसे बड़ा कारण छाती की अंदरूनी दिवारों में सूजन का होना है। होता यह है जब फेफ़डे के ऊपरी सतह पर स्थित झिल्ली में सूजन आ जाती है तो छाती की अंदरूनी दीवार में स्थित सूजी हुई सतह से साँस लेते वक्त हवा रगड़ खाती है तो असहनीय दर्द होता है। इस अवस्था को मेडिकल भाषा में प्ल्यूराइटिस कहते हैं। यह प्ल्यूराइटिस छाती में पानी इकट्ठा होने का शुरूआती संकेत है। देश में प्ल्यूराइटिस का ज्यादातर कारण टीबी का इंफेक्शन होता है। लोग छाती दर्द के लिए दर्द निवारक गोलियों का सेवन करते रहते हैं और सही जाँच व इलाज के अभाव में समस्या को और गंभीर बना देते हैं। अगर प्ल्यूराइटिस की समस्या को सही समय पर नियंत्रित न किया गया तो छाती में फेफ़डे के चारों ओर पानी इकट्ठा हो जाता है। टीबी के अलावा न्यूमोनिया का इंफेक्शन भी इस अवस्था को पैदा कर देता है। इस तरह की समस्या पर किसी थोरेसिक सर्जन यानी चेस्ट सर्जन से परामर्श लें।

मवाद से भी होता है सीने में दर्द 
छाती में मवाद यानी पस जमा हो जाने की घटना बहुत आम है। न्यूमोनिया या अन्य फेफ़डे का इंफेक्शन जब पूरी तरह से नियंत्रित नहीं हो पाता है, तो फेफ़डे के चारों ओर विशेषतः निचले हिस्से में इंफेक्शन वाला पानी या मवाद (पस) इकट्ठा हो जाता है।

सरवाईकल स्पोन्डिलाइटिस 
व्यायाम के अभाव में रीढ़ की हड्डियों के जोड़ काफी सख्त हो जाते हैं और उनमें लचीलापन खत्म हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप रीढ़ की हड्डी से हाथ, कंधे और छाती के हिस्से में जाने वाली नसों पर दबाव पड़ने लगता है। जिसके फलस्वरूप छाती और हाथ में दर्द उभरने लगता है और लोग इसे दिल का रोग व संभावित हार्ट अटैक गलती से मान बैठते हैं और अंजानें में अप्रत्याशित हार्ट अटैक की संभावना के मद्देनजर अपनी दिनचर्या में अनावश्यक आमूलचूल परिवर्तन करते हैं। इसकी वजह से उनमें आत्मविश्वास व कार्यक्षमता दोनों में ही भारी कमी आती है।

ठंड के महीनों में दिल को चाहिए ज़्यादा हिफ़ाज़त

हदय रोगों के लिए सर्दी के महीने बेहद घातक होते हैं । ठंडे मौसम का हृदय रोगों से गहरा संबंध होता है । हृदय एवं रक्त संचार कई तरह से प्रभावित होते हैं । गाढ़ा हो जाने से रक्त का लसलसापन बढ़ जाता है । पतली रक्त नलिकाएं और संकरी हो जाती हैं । इससे रक्त का दबाव बढ़ जाता है, दिल की धड़कन भी बढ़ जाती है। 

जाड़े की दस्तक के साथ ही मौज-मस्ती का सिलसिला शुरू हो रहा है । क्रिसमस से लेकर पूरे जनवरी महीने तक बेफिक्री का आलम रहेगा। रंग में भंग डालने की मेरी कोई मंशा नहीं है लेकिन मौज-मस्ती के अपने धांसू आइडिया के साथ अपने दिल की खैरियत के खयाल की गठरी भी बांध लें तो बेहतर होगा । इस दौरान दिल की तरफ से बेतकल्लुफ हो जाना खतरे से खाली नहीं है । ब्रिटेन के चर्चित कवि टी. एस. इलियट की तर्ज पर कहें तो दिल की परवाह नहीं की तो ये महीने सबसे निर्दयी साबित हो सकते हैं । खाने-पीने का दौर ही नहीं, जाड़े की ठिठुरन भी घातक साबित होती है । सीधे कहें तो इन महीनों में दिल के दौरे का खतरा बहुत बढ़ जाता है । उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोग तो खास खयाल रखें । हदय रोगों के लिए ये महीने सबसे घातक होते हैं । 

ठंडे मौसम का हृदय रोगों से गहरा संबंध होता है । हृदय एवं रक्त संचार कई तरह से प्रभावित होते हैं । गाढ़ा हो जाने से रक्त का लसलसापन बढ़ जाता है । पतली रक्त नलिकाएं और संकरी हो जाती हैं । इससे रक्त का दबाव बढ़ जाता है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है । यह स्थिति दिल के मरीजों के लिए तो ठीक नहीं ही है, उनके दिलों के लिए भी घातक हैं जो मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा एवं कोलेस्ट्रॉल जैसे जोखिम कारकों से लैस हैं । इस मौसम में श्वसन से संबंधित बीमारियां होती हैं जो दिल पर बुरा असर डालती हैं । जाड़े में लोग शराब का अधिक सेवन करते हैं । उच्च रक्तचाप एवं खून को पतला करने सहित अन्य जरूरी दवाइयों से बचते हैं । मस्ती के दौरान उन लक्षणों को गंभीरता से नहीं लेते जो दिल के दौरे की तरफ इंगित करते हैं । छाती के दर्द तक को गैस या अपच के कारण हुआ समझने की भूल करते हैं । जाड़े में अधिक समय तक ठंड में रहने और खुली जगह में शारीरिक मेहनत करने से बचें तभी आपके दिल की गर्मजोशी बरकार रहेगी । 

होम्योपैथ 
हृदय रोगों से बचाव के लिए हमेशा तत्पर रहने की जरूरत है । ३५-४० वर्ष के लोगों में आजकल हृदय रोग के ज्यादा मामले देखे जा रहे हैं । इसकी मुख्य वजह अतिरिक्त वसा वाला भोजन, आरामतलब जीवन, तनाव एवं फास्ट फूड आदि माना जा सकता है । सर्दियों में अतिरिक्त वसा युक्त भोजन, मांसाहार, शराब आदि का सेवन हृदय रोगों को आमंत्रण देता है । देखा जा रहा है कि बच्चों और युवाओं में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है । यह भी हृदय रोगों का कारण है । आजकल हृदयघात के लिए लाइपोप्रोटीन, फीनोटाइप, इन्सुलिन प्रतिरोध, हिमोसिस्टीन आदि भी जिम्मेदार हैं । 

नए शोध बताते हैं कि सर्दियों में लोग ज्यादा धूम्रपान करते हैं । इससे थ्रामबोसिस की संभावना बढ़ जाती है । महिलाओं में ज्यादा गर्भनिरोधी गोलियों का सेवन भी थ्रामबोसिस को बढ़ा देता है और हृदयघात हो सकता है । सर्दियों में नमक का ज्यादा सेवन भी उच्च रक्तचाप को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है । सर्दियों में घुटनों के रोग व रुमेटाइड आर्थराइटिस आदि की वजह से भी हृदय रोगों में अधिकता देखी जाती है । आवश्यकता है कि लोग सर्दियों में अपनी जीवनशैली स्वास्थ्यवर्द्धक रखें । नियमित व्यायाम, लंबी सैर, सादा भोजन, तनाव से मुक्ति आदि हृदय रोग से मुक्ति के नहीं बल्कि संपूर्ण आरोग्य के नुस्खे हैं। होम्योपैथी में हृदय रोगों से बचाव व उपचार की अच्छी औषधियां उपलब्ध हैं। हृदय में थक्का बनने से रोकने के लिए एलियबसिपा,लैकेसिस,डिजिटेलिस,एकोनाइट आदि दवाएं बेहद प्रभावी हैं लेकिन ध्यान रहे कि होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श के बिना दवाएं न लें।

आधुनिक जीवन-शैली और हृदय-रोग

आदिकाल से भारतीय आहार में घी और तेल खूब इस्तेमाल किया जाता है। कृषि प्रधान शाकाहारी देश में सभी को अधिक कैलोरी की जरूरत रही होगी। संभवतः इसी वजह से वसा अधिक खाई जाती थी। काम करने का तरीका तो बदल गया, लेकिन हमने भोजन शैली में कोई परिवर्तन नहीं किया। वसा हम पहले की तरह ही खूब खाते हैं। पहले हम खेती किसानी में अच्छी खासी शारीरिक मेहनत कर लेते थे, अब उतनी नहीं करते। 

जितनी कैलोरी खाते थे उससे कहीं ज्यादा खर्च हो जाती थी। हम वसा के रूप में कैलोरी पहले जितनी ही खा लेते हैं, लेकिन खेतों में मेहनत करके उतनी कैलोरी खर्च नहीं करते। ग्रामीण आबादी तेज़ी से शहरों की ओर आ रही है। कई ग्रामीण युवा अब सूचना उद्योग द्वारा रची क्रांति के हिस्सेदार हैं। गुड़गाँव, नोएडा, पुणे, बेंगलुरू और हैदराबाद जैसे कई बड़े शहरों के अलावा कई मझोले और छोटे शहर भी आईटी की फसल काटने वालों में शामिल हो गए हैं। पहले की तुलना में शहरी आबादी अधिक हो गई है। आईटी उद्योग अपने साथ विदेशी जीवनशैली भी लेकर आया है। कई शहरों में फास्टफूड और जंकफूड के आउटलेट २४ घंटे खुले रहते हैं। कारबोनेटेड ड्रिंक्स की खपत कई गुना बढ़ गई है। इस सबका असर युवाओं के शरीर पर दिखाई देने लगा है। कम उम्र में दिल की बीमारियाँ आम हो गई हैं। डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसे रिस्क फैक्टर अब सामान्य हो गए हैं। युवा हृदयरोगियों की संख्या बढ़ने का यह भी एक बड़ा कारण है। व्यावसायिक तनाव और आधुनिक जीवनशैली इसके लिए बराबर की ज़िम्मेदार हैं। आने वाले वर्षों में दिल से जुड़ी कई बीमारियों के युवा मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा होगा। हमने अभी तक भविष्य में मधुमेह, उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारी के अन्य रिस्क फैक्टरों से निपटने के संसाधन विकसित नहीं किए हैं(संपादकीय,सेहत,नई दुनिया,अक्टूबर प्रथमांक)। 

अपने दिल का रखें ख़याल 
ज़िंदगी की एक भयानक घटना दिल दहला देती है। गम के लम्हों में दिल बैठ जाता है। दिल ही व्यक्ति के दिलेरी की पहचान कराता है। छोटे आकार तथा हल्के वजन के बावजूद इस दिल को कितना अधिक कार्य करना पड़ता है। दिल एक मिनट में 72 बार धड़कता है। इस तरह, एक वर्ष में दिल करीब 3 करोड़ 70 लाख बार धड़कता है । पैंसठ वर्ष की औसत आयु तक हृदय 240 करोड़ बार धड़कता है तथा लंबी रक्त नलिकाओं में प्रवाहित करता है जो एक दूसरे से मिला दी जाएं तो पूरी दुनिया का ढाई बार पूरा चक्कर लगा लेगी। कुदरत का कमाल है कि दिल आराम हराम है को चरितार्थ कर निरंतर धड़कता रहता है। लेकिन यही धड़कन तीव्र ज्वर,भय,हर्ष,व्यायाम,दौड़,मनोविचार,क्रोध के समय दो से चार गुना तक बढ़ जाती है। इसी प्रकार,अवसाद,निर्बलता,उपवास में हृदय की धड़कन घट जाती है। दिल 100 वर्ष या इससे अधिक समय तक निरंतर कार्य कर सकता है। 

दुनिया तेज़ी से बदल रही है, लोगों के खानपान जीवनशैली में बहुत से बदलाव आए हैं। यही कारण है कि आज तीस या चालीस वर्ष के वयस्कों में १० प्रतिशत रोगी दिल के मरीज़ होते हैं। धूम्रपान, शराब, शारीरिक श्रम की कमी, आलस्य, तंबाकू, मानसिक तनाव, चिंता दिल के दौरे का कारण बनते हैं। यही वजह है कि देश में दिल के रोगियों की संख्या में लगातार वृद्घि हो रही है। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग ७ करोड़ ७० लाख दिल के रोगी हैं। लगभग ५० लाख लोगों की मृत्यु दिल के रोगों के कारण प्रतिवर्ष होती है। इनमें से ३० प्रतिशत रोगी ६२ वर्ष से कम आयु के होते हैं। ५० प्रतिशत दिल के मरीज़ों में पहले से कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। हृदय की धमनी के ७० प्रतिशत रक्त प्रवाह के बंद होने पर ही दिल के दौरे के लक्षण प्रकट होते हैं। 

हृदय रोग से कैसे बचें... 
दिल के रोग के खतरे की यदि पहले ही जाँच-पड़ताल हो जाए तो समय रहते इनसे बचाव करना संभव होता है। हृदय रोग से बचने के लिए इन घातक लक्षणों से सावधान रहें। मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, धूम्रपान, शराब, तंबाकू, शारीरिक श्रम में कमी, आलस्य शरीर के शत्रु हैं। मोटापे के कारण हृदय रोग, उच्च रक्तचाप व मधुमेह जैसे रोगों की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए जिन लोगों का वजन अधिक है, जिनके परिवार में हृदय रोगी हैं, उन्हें अपना वजन कम करना चाहिए। यह तभी संभव है, जब वे चीनी, चिकनाई, चावल, मिठाई आदि का सेवन कम करें। तले हुए वसायुक्त नमकीन को त्याग दें। और इसके बजाए भुने हुए चने जैसी कम कैलोरीयुक्त चीज़ों का सेवन करें। प्रतिदिन एक घंटा सुबह टहलना शुरू करें। एक मिनट टहलने से १.५० मिनट आयु बढ़ती है। 

हृदय रोग से कैसे बचें?

दिल के रोग के खतरे की यदि पहले ही जाँच-पड़ताल की जाए तो हम समय रहते इनसे अपना बचाव कर सकते हैं। यदि आप हृदय रोगों से बचना चाहते हों तो इन खतरों से सावधान रहें।

मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, धूम्रपान, शराब, तनाव, शारीरिक श्रम में कमी आदि। ये शरीर के शत्रु हैं। मोटापे के कारण हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कैंसर और श्वास के रोगों की संभावना प्रबल हो जाती है। इसलिए जिन लोगों का वज़न अधिक है, जिनके परिवार में हृदय रोगी हैं, उन्हें अपना वज़न कम करना चाहिए। यह तभी संभव है, जब वे चीनी, चिकनाई, चावल आदि का सेवन कम करें। तले हुए वसायुक्त नमकीन और मिठाइयों को त्याग दें और प्रतिदिन सुबह एक घंटा टहलना शुरू करें। एक सामान्य व्यक्ति को अपने शरीर का वज़न नियंत्रित करने के लिए प्रतिदिन १० हज़ार कदम चलना चाहिए। यह तभी संभव है, जब अधिक से अधिक पैदल चलने की आदत डाली जाए। शारीरिक श्रम और संतुलित आहार के बल पर ही आप अपने हृदय की ५० प्रतिशत रक्षा कर सकते हैं। उच्च रक्तचाप की पहचान होने पर नियमित रूप से जाँच कर रक्तचाप १३०/८५ मिमी तक नियंत्रित रखें। नमक की मात्रा कम करें और डॉक्टर के परामर्श के अनुसार दवाइयाँ नियमित रूप से निरंतर लेते रहें। रक्तचाप नियंत्रित करके

घरेलू नुस्खों से करें कोलेस्ट्रोल ठीक

बढ़ता कोलेस्ट्रोल निशानी है हृदय रोग होने की। हृदय रोग होने का मतलब है जीवन को खतरा। हमें जानकारी होनी चाहिए कि क्यों बढ़ता है रक्त का कोलेस्ट्रोल। कैसे पाएं इससे छुटकारा?
* कोलेस्ट्रोल का बढऩा, हृदय रोग का होना आमतौर पर वंशानुगत रोग है फिर भी खानपान की गलतियों के कारण किसी को भी हो सकता है।
* कोलेस्ट्रोल का अपना रंग पीला है। हल्का पीला रंग होता है। यह चर्बी व वसा लिये होता है।
* कोलेस्ट्रोल का होना जरूरी है। किंतु सामान्य से अधिक हो तो हानिकारक।
* व्यक्ति के भोजन का 30 प्रतिशत तक का भाग कोलेस्ट्रोल ही है। यह जिगर में बनता है। होता है यह सामान्य से अधिक।
* यह हमारे शरीर को हमारे भोजन से ही प्राप्त होता है। यह वसायुक्त पदार्थ है। यह हमारे भोजन में विद्यमान निम्रलिखित पदार्थों की ही उत्पत्ति है। शराब, धूम्रपान, मक्खन, घी, तले पदार्थ, तेल, मांस, अंडा या कोई भी अन्य चर्बीयुक्त पदार्थ।
कैसे करें कोलेस्ट्रोल कम ?
व्यायाम
योगासन जिस में प्राणायाम भी हो हल्के व्यायाम, खेलना, तैरना, पैदल चलना, बड़े कदमों से सैर, साइकिल चलाना, कम से कम समय आराम करना, शरीर चलाये रखना।
परहेज
अनाज व तले पदार्थों की जगह अधिक फलों का प्रयोग, फल ऐसे हों जो पेड़ पर ही पके हों। हरी सब्जियां खाना, सैर करना, लेटे नहीं रहना, जिन कारणों से यह रोग होता है उसे निकाल फेंकें।
उपचार
* कोलेस्ट्रोल कम करने का अर्थ है हृदय रोग का सही उपचार। इसके लिए प्रतिदिन प्रात: अंकुरित अनाज मुट्ठी भर जरूर खाएं।
* अंकुरित दालें भी खानी आरंभ करें।
* सोयाबीन का तेल अवश्य प्रयोग करें यह भी उपचार है।
* लहसुन, प्याज, इसके रस उपयोगी हैं।
* नींबू, आंवला जैसे भी ठीक लगे, प्रतिदिन लें।
* शराब या कोई नशा मत करें, बचें।
* इसबगोल के बीजों का तेल आधा चम्मच दिन में दो बार।

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