लू
लूः इस आग के दरिया से बचके
क्या आप एक्सट्रीम गर्मियों के लिए तैयार हैं! कूलर-एसी ऑन हैं, रेफ्रिजरेटर विभिन्न फ्लैवर के शर्बतों से अटा पड़ा है या फिर सप्ताहभर के लिए हिल-स्टेशन जा रहे हैं। इन सबके बावजूद भी गर्मी का खतरा लगातार आपका पीछा कर रहा है। इंडियन मेटेरोलॉजिकल डिपार्टमेंट ने गत वर्ष रिकॉर्ड हीट दर्ज की और इसके अनुमान कहते हैं कि आगामी सालों में गर्मी के कारण "मेडिकल कैजुअलिटीज" बढ़ेंगी। यानी गर्मी से लड़ने के लिए अभी और तैयारियां बाकी हैं।
बीते चार दशकों में ग्लोबल वॉर्मिंग ने अंतरराष्ट्रीय जगत का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इसके कारण न सिर्फ पर्यावरण, बल्कि आम आदमी भी व्यापक स्तर पर प्रभावित हुआ है। ग्रीष्म लहर के कारण साधारण तकलीफ तो होती ही है, साथ ही यह जानलेवा भी हो सकती है। मध्यभारत भी इसका चपेट से बरी नहीं। हीट वेव्स कंडीशन (एचडब्ल्यूसी) यानी गर्मी के औसत से ज्यादा होने के कारण कई कैजुअलिटीज सामने आ रही हैं, जिसके प्रति कोई भी संवेदनशील हो सकता है। आम भाषा में यह स्थिति हीटस्ट्रोक के नाम से जानी जाती है जिनका शुरूआती कुछ घंटों के दौरान इलाज न होना घातक हो सकता है।
क्या है हीटस्ट्रोक
यह एक मेडिकल इमरजेंसी है, जिसमें शरीर का तापमान आकस्मिक रूप से बढ़ जाता है। मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया के दौरान शरीर में पैदा हुई गर्मी पसीने के जरिए बाहर निकलती है। हालांकि बहुत तेज गर्मी या धूप में लगातार काम करने पर शरीर गर्मी को पूरी तरह से बाहर नहीं निकाल पाता और तापमान बढ़ जाता है। डीहाइड्रेशन यानी पानी की कमी होने पर भी शरीर से पसीना ठीक तरह से नहीं निकल पाता, जिसकी वजह से तापमान लगभग १०४ डिग्री या उससे भी ज्यादा हो जाता है। हीटस्ट्रोक, स्ट्रोक से अलग है, जिसमें मस्तिष्क के किसी हिस्से में ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा नहीं पहुंच पाती।
रिस्क फैक्टर
चार साल तक के बच्चे और ६५ वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्ग इससे प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि उनका शरीर तापमान से आसानी से सामंजस्य नहीं बिठा पाता। हेल्थ कंडीशन जैसे कार्डियक, लंग और किडनी डिसीज से प्रभावित व्यक्ति हीटस्ट्रोक के प्रति संवेदनशील होते हैं। मोटापा, हाई ब्लडप्रेशर या वजन कम होना भी इसकी आशंका बढ़ाता है। ऐसे लोग जो डाइट पिल्स या सेडेटिव लेते हैं, वे भी आसानी से हीटस्ट्रोक का शिकार हो जाते हैं। एल्कोहल भी इसका बड़ा कारण है। एथलीट, कृषक और ऐसे लोग जो ज्यादातर वक्त धूप में रहते हैं, उनके इसकी चपेट में आने की आशंका सामान्य लोगों से दोगुनी होती है।
इसके लक्षण
हीटस्ट्रोक का सबसे निश्चित लक्षण है शरीर के तापमान का १०५ डिग्री फैरनहाइट से ऊपर चले जाना। इससे व्यक्ति मूर्छित हो सकता है। इसके अलावा सिर में धमक के साथ दर्द, पसीना आना कम या बंद होना, त्वचा का गर्म और लाल हो जाना, मांसपेशियों में तनाव और दर्द, उल्टियां और लगातार चक्कर आना, दिल की धड़कन बढ़ जाना जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति में संभ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है। कई लोगों को बोलने में भी परेशानी होने लगती है। चलने या खड़े होने में कठिनाई होती है और मरीज लुढ़क सकता है या कोमा में भी जा सकता है।
दें फर्स्ट-एड
अगर आसपास का कोई व्यक्ति इस तरह के संकेत दे रहा है तो सबसे पहले इमरजेंसी मेडिकल सुविधा के लिए निकट के अस्पताल में फोन करें। इस दौरान मरीज को फर्स्ट-एड देना उसकी जान बचाने में बहुत महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। उसे ठंडे और छायादार वातावरण में ले जाएं। शरीर से अतिरिक्त कपड़े हटा दें और तापमान कर करने का प्रयास करें। कांख, गले, पीठ और शरीर के अन्य हिस्सों पर बर्फ मलें और लगातार पोंछते रहें। मरीज को आइस-बाथ भी दिया जा सकता है।
बरतें सावधानी
गर्मी की मार से बचने का सबसे पहला और आसान तरीका है धूप में निकलने से बचना। अगर बाहर निकलता जरूरी हो जाए तो हल्के, हल्के रंग के और ढीले-ढाले कपड़े पहनें और सिर को धूप से बचाएं। त्वचा के बचाव के लिए ३० एसपीएफ से ज्यादा वाली सन्सक्रीन चेहरे, गरदन और हाथों पर लगाएं। ज्यादा से ज्यादा लिक्विड डाइट लें, साथ ही शरीर से नमक का स्तर भी न घटने दें। व्यायाम करते हुए या घर से बाहर काम करते वक्त अतिरिक्त सर्तकता बरतनी चाहिए, जैसे काम शुरू करने से पहले पर्याप्त पानी लें और हर दो घंटे पर पानी पीते रहें। शारीरिक मेहनत से पहले और इसके तुरंत बाद वजन लेना बता सकता है कि शरीर से पसीने के रूप में कितना पानी बाहर निकला है। भरपाई के लिए प्यास लगने का इंतजार न करें। आउटडोर एक्टिविटी रीशेड्यूल करने का प्रयास करें अगर वो दिन के गर्म समय में हों और सुबह या शाम का वक्त भी लिया जा सकता है।
एक्सपर्ट ओपिनियन
हीटस्ट्रोक में शरीर का तापमान बहुत बढ़ जाता है, त्वचा रेड-हॉट हो जाती है और पल्स तेज हो जाती है। ऐसे में शरीर का तापमान नियंत्रण में आना जरूरी है वरना परिणाम घातक हो सकता है। ऐसी स्थिति में चिकित्सक से संपर्क करें और इससे पहले मरीज को लक्षणों के आधार पर फर्स्ट-एड दें जैसे उसे ठंडे स्थान पर ले जाएं और लगातार पसीना पोंछते जाएं ताकि शरीर के बंद रोमछिद्र खुल सकें और तापमान घटे। हीटस्ट्रोक के अलावा,गर्मी के मौसम में मच्छरों के कारण होने वाली बीमारियां जैसे-मलेरिया,चिकनगुनिया और डेंगू की भी आशंका बढ़ जाती है। खानपान से संबंधित रोग भी इस समय आम हैं,इसलिए स्वच्छ पेय तथा ताज़ा भोजन ही लें।
इन्हें भी जानें
हीटस्ट्रोक के अलावा गर्मी से अन्य कई तरह की समस्याएं भी होती हैं, मसलन हीट एग्जॉशन और हीट क्रैम्प्स।
हीट एग्जॉशन में
-ठंडी, नम, निस्तेज या फ्लश करती त्वचा
-थकान व बहुत अधिक पसीना आना
-सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द
- उबकाई आना या उल्टियां होना
-शरीर का तापमान सामान्य होना या हल्का सा बढ़ना
क्या करें
-व्यक्ति को ठंडे स्थान पर ले जाएं।
-प्रभावित स्थान की मसल्स को हल्के से खींचें।
-हर पंद्रह मिनट में पानी पिलाएं।
-कैफीनयुक्त पेय बिल्कुल न दें
हीट क्रैंप्स में
-पैरों के अलावा शरीर के अन्य भागों में भी मांसपेशियों में कड़ापन
-थकान होना और चलने की इच्छा न होना
क्या करें
-व्यक्ति को तुरंत ठंडे, छायादार स्थान पर ले जाएं।
-हल्के, नर्म कपड़े पहनाएं।
-हर पंद्रह मिनट में ठंडा पानी पिलाएं।
जांच और निदान
हालांकि चिकित्सकों को मरीज की अवस्था देखकर ही अंदाजा हो जाता है कि वो हीटस्ट्रोक का शिकार है या नहीं लेकिन इसे सुनिश्चित करने के लिए कई जांचें भी की जाती हैं। ब्लड सोडियम और पोटैशियम के स्तर में कमी को जांचने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है क्योंकि हीटस्ट्रोक के दौरान इनकी कमी सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर डालती है। यूरिन टेस्ट किया जाता है क्योंकि मूत्र का गहरा रंग इस ओर इशारा करता है कि गर्मी की वजह से किडनी पर कितना असर पड़ा है। मसल फंक्शन टेस्ट की मदद से देखा जाता है कि मांसपेशियों के ऊतकों की खास हानि तो नहीं हुई या वो किस स्तर तक हुई है
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