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स्त्री-पुरुष के सेक्स से संबंधित अंग


स्त्री-पुरुष के सेक्स से संबंधित अंग



प्रकृति ने सभी कार्य को ठीक ढंग से पूरा करने के लिए किसी न किसी साधन की व्यवस्था की है जिसके द्वारा हम उस कार्य को पूरा करते हैं। इनमें से कुछ कार्य तो ऐसे होते हैं जो प्रकृति के अनुसार अपने आप चलते रहते हैं जैसे- वातावरण में परिवर्तन होना, दिन-रात होना आदि। लेकिन इसके अतिरिक्त पृथ्वी पर स्त्री-पुरुष के जीवन को को बचाने के लिए उनके शरीर में यौनांगों तथा जननेन्द्रियों की रचना की है। इसके अतिरिक्त भी स्त्री-पुरुष के शरीर में कुछ ऐसे अंग होते हैं जिनके बिना वे जी नहीं सकते हैं जैसे- हम आंखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं और पैरों से चलते हैं। ठीक इसी प्रकार से स्त्री-पुरुष के वंशों में वृद्धि के लिए भी प्रकृति ने उनके शरीर में यौनांगों तथा जननेन्द्रियों की रचना की है। जहां तक अंगों का परिचय तथा उनके महत्व का सवाल है, प्रत्येक स्त्री-पुरुष को इन अंगों को ठीक प्रकार से जानना अति आवश्यक है। आज भी बहुत से ऐसे स्त्री-पुरुष जिनको अपने साथी के पूरे अंगों के बारे में ठीक प्रकार से ज्ञान नहीं है। इस कारण से वे संभोग क्रिया के समय में इन अंगों का ठीक प्रकार से उपयोग नहीं कर पाते हैं जिसके कारण से वे संभोग क्रिया के समय पूरी तरह से आनन्द नहीं ले पाते और कभी-कभी इसका भंयकर परिणाम भी भोगना पड़ता है।

सेक्स क्रिया का पूरी तरह से आन्नद लेने के लिए सभी स्त्री-पुरुष को यह जान लेना चाहिए कि यह क्रिया करने के लिए कौन-कौन से अंगों की आवश्यकता पड़ती है। स्त्री-पुरुष के बहुत से ऐसे अंग होते हैं जो एक-दूसरे से मिलते जुलते हैं। जैसे कि आंख, नाक, मुंह, कान, गुर्दे, आमाशय, मस्तिष्क तथा सिर आदि। लेकिन यहां पर हम आपको यह बताना चाहेंगे कि स्त्री-पुरुषों के सेक्स अंग अलग-अलग होते हैं। इन अंगों में होने वाले इस प्रकार के भिन्नता के कारण से स्त्री-पुरुष की अलग-अलग पहंचान हो पाती है। इसलिए यह आवश्यक है की युवावस्था में ही स्त्री-पुरुषों को इन अंगों के बारे में जानकारी हो जानी चाहिए। बहुत से वैज्ञानिकों का तो यह कहना है कि युवावस्था में ही सेक्स के इन अंगों के बारे में ठीक प्रकार से जानकारी न होने के कारण से ही आगे चलकर स्त्री-पुरुष को सेक्स संबंधित मानसिक तथा शारीरिक रोगों का सामना करना पड़ता है।

वैसे देखा जाए तो स्त्री-पुरुष के शरीर की रचना में प्रकृति ने बहुत अधिक अंतर रखा है, लेकिन फिर भी बहुत से अंग ऐसे होते हैं जो दोनों के एक समान होते हैं, जैसे- हाथ, पैर तथा मुंह आदि। इसके अलावा स्त्री-पुरुष के कुछ अंगों की बनावट में बहुत अधिक अंतर भी होता है जैसे-स्त्री के सीने पर दो बड़े-बड़े स्तन होते हैं तो ठीक इसके विपरित पुरुष का सीना सपाट होता है, स्त्री-पुरुष के जननांग भी ठीक विपरीत होते हैं। इसी प्रकार के कुछ अंतर के कारण से ही स्त्री तथा पुरुषों में पहंचान हो पाती है।

बहुत से पुरुष तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें प्रजनन अंगों के बारे में बहुत अधिक चिंता रहती है। कभी-कभी तो वे यह भी सोचते हैं कि मैं अपनी पत्नी को पूरी तरह से सेक्स की सन्तुष्टि दे पाउंगा या नहीं। वैसे देखा जाए तो यौन सुख प्राप्त करने के लिए सेक्स क्रिया करने वाले अंगों का आकार कितना होना चाहिए, यह स्त्री पुरुष की अपनी मानसिकता पर निर्भर होती है। सेक्स क्रिया के अंग कितने बड़े होने चाहिए, यह जानने से पहले उसकी कार्यविधि और रचना के बारे में जानना आवश्यक है।

पुरुष जननेन्द्रिय तंत्र तथा गुप्त अंगों की जटिलता और इनकी कार्य विधि को जानने के लिए निम्नलिखित ऐतिहासिक रूप को जानना जरूरी है-

आज से लगभग 30 करोड़ वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज पानी में रहने वाले जीव रहे होंगे और जब वे समुद्र के पानी से बाहर आकर स्थल पर आये होंगे तो उन्हें बहुत अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा, क्योंकि हम जानते हैं कि जब भी कोई जीव अपने रहने के स्थान में परिवर्तन करता है तो उसे स्थान के अनुसार अपने आप को ढालने में कष्ट तो होता ही है। हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि उनके पूर्वजों को प्रजनन के लिए पूर्ण रूप से पानी पर ही आधारित होना पड़ता था। जैसे कि जल में रहने वाले जीव करते हैं।

प्रकृति के इस रहस्य को समझने के लिए हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि मादा मछली पानी में अंडे देती है और उसके पीछे तैरता हुआ नर मछली अपना वीर्य (शुक्र कीट) उन पर जमा कर देता है। अगर इस वीर्य द्वारा एक भी अंडा निशेचित हो जाता है और पानी के अन्य जीव इसे नहीं खाते तो कुछ समय के बाद मछली की तरह एक शिशु मछली का जन्म हो जाता है। लेकिन इस प्रकार से बहुत से संख्याओं में अंडों को शुक्रकीट निशेचित कर शिशुओं की जन्म दर को बनाये रखते हैं।

पुरुष के लिंग में उत्तेजना के रहस्य को समझाने के लिए हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा मस्तिष्क को आनन्ददायक उत्तेजना मिलने से ही लिंग उत्तेजित होता है। मनुष्य की त्वचा सबसे अधिक संवेदनशील होती है। यदि इसे सहलाया जाए तो हमें बहुत अधिक आनन्द मिलता है लेकिन हमारी त्वचा में कई जगह ऐसे कामोत्तेजक क्षेत्र (कामोत्तेजक अंग) होते है जहां पर गुदगुदी उत्पन्न करने वाली तंत्रिका अंतागों का घना जाल बिछा रहता है। जब इन क्षेत्रों को सहलाया जाता है तो तंत्रिका अंतांग इस हरकत को तुरंत ही मस्तिष्क को भेजने लगते हैं जिससे मस्तिष्क में कामोत्तेजना उत्पन्न होने लगती है। मस्तिष्क इन उत्तेजनाओं को सुषुम्ना (मेरुरज्जु) में स्थित उत्थान केंद्र तंत्रिकाओं को आज्ञा देकर लिंग अथ्वा योनि की ओर रक्त के प्रवाह को बढ़ा देता है जिसके कारण से ये अंग रक्त से भरकर फूल जाते हैं। इस अवस्था को ही उत्थान कहा जाता है।

मानव प्रजनन का विकास-

बहुत से वैज्ञानिकों का कहना है कि सबसे पहले जो स्थल प्राणी रहे होंगे, वे आजकल के उभयचर प्राणी (वह प्राणी जो पानी तथा स्थल दोनों पर अपना जीवन व्यापन कर सकने की क्षमता रखते हैं, उसे उभयचर प्राणी कहते हैं।) जैसे- मेढ़क, मगरमच्छ तथा कछुआ के समान रहे होंगे क्योंकि ये स्थल पर कभी-कभी ही रहते हैं। ये ऐसा इसलिए करते हैं कि उन्हें मछलियों के समान ही अंडे देने और निषेचन के लिए पानी में लेटना पड़ता था। बाद में जब समय का बदलाव होता गया तो वे पानी से स्वतंत्र होकर स्थल पर ही प्रजनन पद्धति को विकसित करने लगे। इसके बाद सांप, पक्षी तथा अधिकाधिक स्तनधारी जन्तु भूमि पर अपने अंडे देने लगे, जो सूखने से बचने के लिए कठोर आवरण से घिरे होते थे। कुछ उच्चवर्गीय स्तनधारी अपने अंडे को मादा शरीर के अन्दर तब तक रखने लगे जब तक वह पूर्ण विकसित न हो जाए। यही अन्तिम प्रजनन प्रक्रिया मानव प्रजनन पर आधारित है। स्त्री जननांग की बाहरी तथा आन्तरिक संरचनाओं से भी स्पष्ट हो जाता है कि विकास के लिए हुए अधिकांश परिवर्तन इसी के साथ जुड़े हुए थे। प्रजनन प्रणाली में मादा का कार्य थोड़ा मुश्किल भरा होता है लेकिन नर का कार्य मादा की अपेक्षाकृत आसान होता है। नर तो केवल शुक्राणुओं को जन्म देता है और फिर उसे मादा प्रजनन तंत्र के द्वारा संवाहित कर देता है ताकि यह उसके अंडे को निशेचित कर सके।

विकास तथा इसके कार्यकारी रचना का एक प्रभावशाली भाग पुरुष जननांग होता है। इसकी कार्यशीलता की जटिलता और प्रभावशीलता मूत्र संचारण से मिले होने के कारण सिकुड़ जाती है। शुक्र कीटों का निर्माण जहां पर होता है, वह पुरुष जननांग दो अंडकोषों या अंडाशयों में बट जाता है। ये भाग ही पुरुष लिंगीय हार्मोन की भी रचना करते हैं। इसी के कारण से विभिन्न प्रकार के शारीरिक परिवर्तन होते रहते हैं।

सेक्स क्रिया में उपयोग में आने वाले पुरुष के अंग (Male Sex Organs)-

पुरुष के सेक्स अंग लिंग (Penis), शुक्राणु कोष (Seminal Vesicles), अण्डकोष (Testis), काउपर ग्लैंड्स (Cowper Glands) तथा प्रोस्टेट ग्लैंड (Prostate Gland) आदि होते हैं।

सेक्स क्रिया में इन सभी अंगों की महत्वपूर्म भूमिका होती है लेकिन इनमें से सबसे महत्वपूर्ण अंग लिंग होता है क्योंकि इसी से संभोग क्रिया की जाती है तथा इससे मूत्र त्याग भी किया जाता है और वीर्य भी इसी के द्वारा योनि के अंदर डाला जाता है।

लिंग-

लिंग दोनों जंघाओं की संधियों के बीच लटकते हुए थैलीनुमा अंडकोष के ऊपर स्थित होता है। यह वह भाग होता है जिसके द्वारा वीर्य स्त्री के योनि में प्रवेश कराया जाता है। यह पुरुष का अधिक संवेदनशील अंग है, जिसका सेक्स क्रिया करने में सबसे अधिक योगदान होता है। इस अंग के दो मुख्य कार्य होते हैं- एक मूत्र के द्वारा शरीर के अपद्रव्य पदार्थों को बाहर निकालना है तथा दूसरा संभोग क्रिया के समय में उत्तेजित होकर संभोग के कार्य को सम्पादित करना और वीर्य को लिंग से बाहर निकालकर स्त्री की योनि में प्रवेश करना तथा स्त्री को गर्भवती करना है।

सेक्स के समय में जब लिंग उत्तेजना में आ जाता है तो इसकी लम्बाई और आकार में वृद्धि हो जाती है। जब पुरुष संभोग क्रिया के समय स्त्री की योनि में अपने लिंग को प्रवेश कराके घर्षण करता है तो उसके बाद उसके लिंग से वीर्य निकलकर स्त्री की योनि में चला जाता है तथा इसके बाद उसका लिंग ठंडा पड़ जाता है अर्थात शिथिल हो जाता है। लेकिन जब दुबारा से उत्तेजना पुरुष में होती है तो वह उत्तेजना में आ जाता है। लिंग के आगे के भाग को लिंगमुंड (ग्लांस पेनिस) कहते हैं। यह पतली त्वचा से ढका रहता है तथा इस पतली त्वचा को प्रीयूस कहते हैं।

लिंग के आगे का भाग एक टोपी के समान होता है और इस पर ढके हुए प्रीपयूस को आगे-पीछे सरका सकते हैं। लिंगमुंड का कॉलर उठा हुआ संवेदनशील होता है। सेक्स क्रिया करते समय इस भाग पर रगड़ लगने से अत्यधिक आनंद आता है।

लिंगमुंड और प्रीप्यूस से एक प्रकार का तरल पदार्थ निकलता है, जो लिंग के इस भाग को नम बनाए रखता है। यह तरल पदार्थ वहां पर जमा हो जाता है, जिसे स्मेगमा कहते हैं। इसकी सफाई करनी जरूरी होती है। यदि इसकी सफाई नहीं होती है तो फाइमोसिस रोग की शिकायत हो सकती है।

लिंग के अन्दर तीन नलिकाएं होती है और उत्तेजना की अवस्था में इन नलिकाओं में रक्त भर जाता है। इसके कारण से लिंग में तनाव आ जाता है तथा वह सख्त होकर उत्तेजित अवस्था में आ जाता है। संभोग क्रिया में जब वीर्य लिंग से निकलता है तो इन नलिकाओं में आया हुआ रक्त वापस लौट जाता है और वह दुबारा से ढीला पड़ जाता है।

जब यह शिथिल अवस्था में होता है तो लिंग की लम्बाई 7.5 सेमी. से 10 सेमी होती है तथा इसकी परिधि लगभग 7.5 सेमी. होती है और जब यह उत्तेजित अवस्था में होता है तो इसकी लम्बाई 15 सेमी. से 16.5 सेमी. होता है। लिंग की लम्बाई के आधार पर इसे तीन भागों में बांटा जा सकता है।




  1. छोटा लिंग- जिस लिंग की लम्बाई उत्तेजित अवस्था में 10 सेमी. से कम होती है, उसे छोटा लिंग कहा जाता है।


  2. मध्यम लिंग- जिस लिंग की लम्बाई उत्तेजित अवस्था में 10 से 18 सेमी. होती है, उसे मध्यम लिंग कहा जाता है।


  3. बड़ा लिंग - जिस लिंग की लम्बाई उत्तेजित अवस्था में 18 सेमी. से अधिक होती है, उसे बड़ा लिंग कहा जाता है।

  4. वैज्ञानिकों के आधार पर लिंग की लम्बाई आनुवंशिक तौर पर छोटी-बड़ी हो सकती है, लेकिन सामान्य तौर पर लिंग की लम्बाई पुरुष की लम्बाई के अनुपात में हो सकती है। जिस पुरुष की लम्बाई 6 फुट होती है, उसके उत्तेजित लिंग की लम्बाई 6 इंच होती है। यह लम्बाई सामान्य आधार पर है, आनुवंशिक आधार पर यह कम ज्यादा भी हो सकती है।

    कुछ पुरुषों के लिंग छोटे होते हैं जिसके कारण से वह सेक्स क्रिया करने में कतराते रहते हैं, जबकि यह कहना गलत है क्योंकि प्रजनन अंग अर्थात लिंग छोटे-बड़े होने से विवाह में (यौन जीवन) कोई कठिनाई नहीं होती है। सामान्य दृष्टि से पुरुष के लिंग का आकार इतना ही होना चाहिए जितना की वह योनि में पहुंचाया जा सके। जब तक किसी भी आकार के लिंग के शुक्रकीट (वीर्य) को योनि में नहीं पहुंचाया जा सकता है तब तक प्रजनन सफलता पूर्वक होगा ही नहीं। यदि कोई ऐसा व्यक्ति जिसके लिंग का आकार इतना छोटा हो कि वह योनि में ठीक तरह से प्रवेश कराया न जा रहा हो तो वह स्त्री को गर्भवती नहीं कर पायेगा।

    गोत्र-

    लिंग के सुपारी के पीछे का सम्पूर्ण गोल व लम्बा भाग लिंग का गोत्र कहलाता है। इसके ऊपर बिना बालों वाली चिकनी त्वचा लगी रहती है जो सामान्य स्थिति में सिकुड़ी हुई रहती है। यह त्वचा भी शरीर के अन्य अंगों की तरह लिंग से चिपकी हुई नहीं रहती है बल्कि यह लिंग से बिल्कुल अलग केवल उसे ढकी हुई अवस्था में रहती है। यदि उसे उंगलियों से पकड़कर इस त्वचा को उठाया जाए तो यह ऊपर की ओर आसानी से उठ जाती है। जब पुरुष को कामोत्तेजना होती है तो लिंग की लम्बाई व मोटाई कुछ बढ़ जाती है, इस अवस्था में यह लिंग को ढके रहती है।

    हम जानते हैं कि पूरे शरीर में नसों व नलिकाओं का जाल है तथा उनके चारों ओर अधिक मात्रा में चर्बी भी होती है। इस कारण से वे अधिकतर दिखाई नहीं देती लेकिन लिंग के ऊपरी भाग पर नलिकाओं पर चर्बी न होने कारण से वे दिखाई देती रहती हैं जो पूर्ण रूप से स्वाभाविक व प्राकृतिक बात होती है।

    लिंग मूल (शिश्न मूल)-

    लिंग का यह भाग सबसे पीछे होता है। इसका अंतिम सिरा बाहर की तरफ दिखाई नहीं देता है लेकिन दोनों अंडकोषों के नीचे से बीच में टटोलकर इसको महसूस किया जा सकता है। इसी भाग को लिंगमूल कहा जाता है जो पीछे मुड़कर मूत्राशय की तरफ जाता है। लिंगमूल के दोनों तरफ एक-एक काउपर ग्रंथि होती है। जब व्यक्ति में सेक्स उत्तेजना होती है तो इन काउपर ग्रंथियों से एक प्रकार का चमकीला, चिकना व गाढ़ा सा स्राव निकलता है जो लिंग के निचली ओर स्थित मूत्र व वीर्य नलिका को क्षारीय बना देता है, जिससे वीर्य के द्वारा प्रवाहित होने वाले शुक्राणु क्रियाशील हो जाते हैं। यही स्राव योनि की अम्लता को भी समाप्त कर देता है। जिससे वीर्य द्वारा स्खलित शुक्राणु सुरक्षित रहकर योनि का पूरा रास्ता पार करके स्त्री के शरीर में निर्मित डिम्ब से मिलने के लिए गर्भाशय तक पहुंच जाते हैं। यदि हम मानसिक रूप से सेक्स क्रिया का चिंतन करते हैं तो इस तरल पदार्थ के स्राव से लिंगमुण्ड गीला व चिकना हो जाता है। कामवासना के विषय में सोचने से इस तरल पदार्थ का स्राव होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है, कुछ लोगों को इस तरल पदार्थ के बारे में जानकारी नहीं होती है, वे इसे अक्सर धातु रोग मान लेने का भूल कर बैठते हैं और भ्रमित होकर अपने मन को दुःखी कर लेते हैं।

    अण्डकोष-

    पुरुष के अंगों में यह सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह अंग पुरुष के पुरुषत्व का प्रमाण होता है और दूसरा यह है कि यह कोई शर्म के बजाए दबाने या छिपाने और केवल यौन सुख प्राप्त करने की कोई चीज है। इसका सबसे प्रमुख कार्य सेक्स हार्मोंन तथा शुक्राणुओं का निर्माण करना है। वैसे देखा जाए तो यह पुरुषों का सबसे प्रमुख अंग भी होता है क्योंकि यह शरीर गुहा के अंतिम भाग पर स्थित होता है। यह देखने में चमड़े के सिकुड़े हुए थैले के समान का वह भाग है जिसे स्क्रोटम कहते हैं। यह सबसे पहले शरीर के अंदर ही स्थित होता है लेकिन जन्म के समय यह छोटा स्क्रोटम के रूप में बाहर की ओर तैयार हो जाता है।

    स्क्रोटम अंदर से दो भागों में बटा होता है। यह लिंग के अगल-बगल में नीचे की ओर लटके होते हैं। ये ठंड से सिकुड़ जाते हैं और उत्तेजना में ऊपर की ओर बढ़ जाते हैं। इसका बाहरी भाग देखने में छोटी-छोटी धारियों में खंडित-सा होकर (धारियों में बट-बटकर) मधुमक्खी के छत्ते का आकार ले लेता है। बहुत से मनुष्यों में बायां अंडकोष दायें से कुछ ज्यादा लटका रहता है। लेकिन दोनों ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर की ओर घूमते रहते हैं। यह सारा कार्य दो प्रकार की प्रणाली एक डांट्रस मांसपेशी (स्क्रोटम के अंदर) तथा दूसरा कीनस्टर मांसपेशी (अंडकोश से संलग्न) द्वारा संपादित होता है।

    यह अंग इतना नाजुक और संवेदनशील होता है कि इस पर हल्की-सी चोट लगने पर अधिक दर्द होता है। व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है। जोर की चोट लगने पर उसकी मृत्यु तक हो सकती है। टेस्टिस के अंदर अधिक बारीक 300 नलिकाएं होती हैं, जिनमें शुक्राणुओं का निर्माण होता है। ये नलिकांए मिलकर इपिडियमीस नामक एक नलिका का निर्माण करती हैं। यह नली शुक्राणुओं को स्त्री की योनि में पहुंचाने का काम करते हैं।

    वैज्ञानिकों के अनुसार अंडकोष में शुक्राणु 35 डिग्री सी अर्थात 95 डिग्री एफ या सामान्य शरीर के तापमान से दो डिग्री नीचे के ताप पर ही जीवित रह सकता है। यदि तापमान इससे अधिक हो जाए तो पर्याप्त शुक्राणु नहीं बन पायेंगे और फिर पुरुष शुक्राणु पैदा करने लायक नहीं रहेगा, अर्थात वह किसी भी स्त्री को गर्भवती नहीं बना सकेगा। इसलिए बहुत से वैज्ञानिकों का कहना है कि बहुत समय तक साइकिल चलाते रहने या तंग पैंट पहनने आदि से भी शुक्राणु के उत्पादन में हस्तक्षेप होने लगता है।

    टेस्टिस के अंदर टेस्टोस्टेरॉन नामक हार्मोन का निर्माण होता है और इसी के कारण से पुरुष में पौरुष गुण आते हैं। यह हार्मोन वास्तव में शारीरिक मानसिक विकास का मूल स्रोत होता है। जब बच्चों के रक्त में टेस्टोस्टेरॉन काफी मात्रा में घुलने-मिलने लगता है तब वह तेज गति से बढ़ने लगेगा। इस हार्मोन की वजह से ही पुरुषों में मोटी तथा भारी आवाज, पौरुषशक्ति, दाढ़ी तथा मूंछ आदि आते हैं। यदि पुरुष के शरीर में इस हार्मोन का निर्माण होना बंद हो जाए तो वह संभोग क्रिया करने में असमर्थ हो जाएगा।

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