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पुरुष के प्रमुख यौन रोग , कारण , लक्षण एवं निवारण


पुरुष के प्रमुख गुप्त रोग , कारण , लक्षण एवं निवारण

स्वपनदोष ( Night emission )
स्वपन मेँ किसी के साथ रति क्रिया करते हुए वीर्यपात का होना ।
कारण
जिन्होँने 12-17 वर्ष अर्थात्‌ Teens के समय मेँ अपने हाथोँ से वीर्यवाहक नली Spermatic cord को आघात पहुचाया हो और अपनी वीर्य नष्ट किया हो , जिनके विचार गंदे है । लेकिन समय पर ध्यान न रखा गया तो यही रोग बढ़कर गहरी नीँद मेँ वीर्यपात होकर ऐसे व्यक्ति को सुबह ज्ञात होता है कि रात मेँ क्या हुआ था । केवल सुबह मेँ वीर्य लगा था । स्वपनदोष को माह मे 1 से 2 बार होना चिँताजनक नहीँ परंतु अधिक होने पर शरीर खोखला हो जाता है । लक्षण कमर मेँ दर्द , सिर चकराना , दिल ज्यादा धड़कना , किसी काम मेँ मन न लगना , लिखते-पढ़ते आँखोँ के नीचे अँधेरा आना , पढ़ा लिका याद न रहना इत्यादि । धातुक्षीनता ( Spermatorrhea) पैखाना या पेशाब के समय लसदार धातु निकलना का नाम है शुक्रमेह या धातुक्षीनता । कारण स्वपनदोष और कब्ज लक्षण मल-मुत्र त्यागते समय थोड़ा ज्यादा जोड़ लगाने से वीर्य निकलने लगता है । हस्त-मैथुन स्त्रियोँ के दर्शन से ही वीर्य पतन होने लगता है । रोग बढ़ने पर मन मेँ बेचैनी , सलज्जा भाव स्मृति की हानी , निरुतसाह , शारीरिक कमजोरी , भुख की कमी , कब्ज , पेट फुलना , छाती धड़कन , सिर दर्द , अक्स्मात खड़ा होने पर अंधकार दिखाई देना , आँख के चारो ओर काले दाग , स्वपनदोष एवं शीध्रपतन आदि । फिर भी रोगी को पता नहीँ चलता कि मुझे क्या हुआ है , अंत मेँ मर्दाना शक्ति चला जाता है ।

पुरुष-स्त्री संभोग से हाथ धो बैठता है , औलाद का मुह देखना नसीब नहीँ होता । पुरुष स्त्री को कभी भी संतुष्ट नही कर पाता रोगी दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जाता है । शीध्रपतन ( Premature ejaculation ) संभोग के समय वीर्य शीध्र निकल जाने को शीध्रपतन कहते है । जिस प्रकार पानी से भरी बोतल को उलटने से जल्द गिर जता है , उसी प्रकार गाढ़ी शहद के बोतल को उलटने से जल्द न गिरता है वही दशा वीर्य का है ।
वीर्य पतला होने पर शीध्र निकलता परंतु गाढ़ा वीर्य जल्द नही निकलता । शीध्रपतन के रोगी संभोग मेँ सदा असफल रहता है । नोट : इस रोग मेँ अफीम , नशीली दवाये या पदार्थ सेवन से बचना चाहिए । इस रोग का व्यक्ति संभोग करने की इच्छा होती है पर लिँग मेँ भी उत्तेजना आती है परंतु अकारण वीर्यपात हो जाता है ।
शीध्रपतन रोग पुरुष को शर्मिँदा करने वाला रोग है । स्त्री के ह्रदय से नफरत उत्पन्न कर देने वाली बिमारी से छुटकारा न मिलने पर पुरुष सदा स्त्री के नजर मेँ गिर जाता है । स्त्री अपने ह्रदय ठंडा करने के लिए रिस्तेदारोँ , पड़ोँसियोँ आदि से कामेच्छ पूरी करने के लिए संभोग करवाती है । जिसका परिणाम धन , धर्म , इज्जत सभी नष्ट होता है । रोगी शर्म के मारे मौत को अधिक पसंद करने लगता है ।

इलाज स्वपनदोष ,

 धातुक्षीनता एवं शीध्रपतन का एक इलाज कि प्रात:काल बरगद के वृक्ष के निचे जाएँ और एक बताशे मेँ 10 बुँदे बरगद का दुध रख कर 3 महिने तक खायेँ । और ब्रह्मचर्य का पालन करेँ तथा इलाज शुरु के 1 शाल तक वीर्यपात न करेँ ।

ब्रह्मचर्य हमारे अन्य नोट मेँ विस्तार से दिया गया है । नपुंसकता ( Empotency ) पुरुष जब संभोग क्रिया मेँ स्त्री को पूर्णरूप से संतुष्ट नहीँ कर सकेँ वीर्य मेँ शुक्रकीट का अभाव जो संतान पैदा न कर सके उसे नपुंसकता कहते है । इससे औरत अपना वासना की तृप्ति के लिए गलत मार्ग पर चल पड़ती है । सुखी दाम्पत्य जीवन तथा गृहस्थ जीवन बर्बाद हो जाता है । दवा आयुर्वेदिक "पावरफुल" (Powerful) का सेवन करेँ । सिफलिस , गर्मी , आतशक , विसर्प ( Syphilis ) यह रोग अत्यन्त भयानक रोगोँ मेँ एक है वैश्याओँ के साथ संभोग करने से होता है । इस रोग मेँ संभोग के कुछ दिन बाद इन्द्री पर छोटी फुन्सि पैदा हो जाती है । जो जल्द ही फैलकर जख्म बन जाती है इसका प्रथम भाव मामूली होता है लेकिन इलाज मेँ लापरवाही की जाएँ तो यह रोग पुश्तोँ तक पिछा नहीँ छोड़ती ।
इसकी प्रथम धाव केवल इन्द्री पर होते है और दूसरी श्रेणी मेँ शरीर पर काले दाग तथा ताँबे के रंग की फुन्सियाँ और धीरे-धीरे धाव हो जाते हैँ ।
 तिसरी श्रेणी मेँ आतशक का प्रभाव हड्डियोँ मेँ चला जाता है तथा नाक की अस्तियाँ गल जाती है । यदि आतशक के जीवाणु दिमाग पर आक्रमण करेँ तो रोगी अंधा हो जाता है अंत मेँ मृत्यु को प्राप्त करता है ।

 सुजाक ( Geonorhoea )
 यह रोग गंदे स्त्री के साथ संभोग करने से होता है इसमेँ संभोग के कुछ दिनोँ बाद रोगी पेशाब करते समय अधिक जलन और चुभन होती हैँ कि रोगी सचमुच मेँ कठारता है और पेशाब करने मेँ धबराता है । कभी-कभी पेशाब मेँ खुन आ जाता है । ज्योँ ज्योँ यह रोग पुराना होता है , पीड़ा और जलन बढ़ती जाती है ।
सिफलिस और गोनोरिया एवं नपुंसकता का इलाज किसी गुप्त रोग विशेषज्ञ से करायेँ क्योकि ये घरेलु इलाज के लिए नही है ।

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