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मानसून में होने वाली बीमारियां

मानसून में होने वाली बीमारियां

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बरसात के मौसम में बाज़ार की पानी पूरी, चाट या खुले व्यंजन आपकी सेहत के लिए महंगे पड़ सकते हैं क्योंकि यही वो समय है, जबकि संक्रामक और पेट से संबंधी बीमारियां सबसे ज्यादा होती है। इतना ही नहीं, ऐसे में अपने स्वास्थ्य के प्रति आपकी थोड़ी बहुत लापरवाही भी जानलेवा साबित हो सकती है। बरसात के मौसम में बीमारियों से बचने के लिए बाहर का खाना कम खायें और पीने के पानी को उबालकर ही पीये। अपने घर और आसपास की साफ सफार्इ पर भी विशेष ध्यान दे। 
अगर घर में कूलर व फ्रीज़ का पानी बदलें और घर के आसपास पानी जमा ना होने दे। घर के अंदर और घर से बाहर मच्छर -मकिखयों और दूसरे कीड़े -मकोड़ों से बचने का हर संभव प्रयास करे। हो सके तो दवाओं का छिड़काव कराये, शाम होते ही घर की खिड़कियों को बंद कर लें। घर की सफार्इ के लिए किसी कीटनाशक का ही प्रयोग करे। बच्चों को घर के अंदर ही खेलने के लिए प्रेरित करे। अपनी सेहत बनाये रखने के लिए मौसमी फलों का सेवन करें, लेकिन सलाद और कच्ची सबिज़यां ना खाये। बारिश से बचें और बारिश में भीगने पर ज्यादा देर तक गीले कपडों में ना रहे।  

मानसून में होने वाली बीमारियों से रहें सावधान

मई-जून की तेज गर्मी के बाद बारिश का मौसम आते ही वातावरण में ठंडक के साथ-साथ कई गंभीर बीमारियां भी दस्तक देने लगती हैं। वातावरण में नमी बढ़ जाने के कारण वायरस, फंगस एवं बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेत-खलिहानों में पानी भर जाने के कारण जहरीले सांप-बिच्छू, विषैले कीड़े-मकोड़ों और मच्छरों के पैदा होने और लोगों को काटने का खतरा बढ़ जाता है। वहीं शहरी क्षेत्रों में बारिश के पानी इक_ा होने और जलभराव के कारण मलेरिया-डेंगू के मच्छर पनपने लगते हैं। इस मौसम में दूषित पानी और दूषित भोजन के सेवन से लोग संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं। इस मौसम में होने वाली बीमारियों के बारे में जानते हुए अपनी सेहत का ख्याल रखें, आइए जानते हैं…
डेंगू
पिछले कुछ सालों में देश के कई बड़े शहरों में डेंगू का कहर बहुत ज्यादा बढ़ गया है। इसका शुरुआती लक्षण होता है कंपकंपी, बुखार, नाक से पानी निकलना तथा पेट में जबरदस्त मरोड़ उठना। इसके बचाव के लिए आस-पास गंदा पानी इक_ा न होने दें, गमलों-कूलरों तथा ऐसे स्थानों की नियमित साफ-सफाई और मिट्टी तेल का छिड़काव करें। घर में टूटे-फूटे डिब्बे, टायर, बर्तन, बोतलें आदि न रखें। अगर रखें तो उल्टा करके रखें। डेंगू के मच्छर साफ पानी में पनपते हैं, इसलिए पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें। मच्छरदानी एवं मोस्क्यूटो कॉइल्स का उपयोग तथा ग्रामीण क्षेत्रों में नीम के पत्तों को जलाने से इन मच्छरों के फैलने का खतरा कम हो जाता है। सुबह-शाम के वक्त ऐसे कपड़े पहनें, जिससे शरीर का ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा ढंका रहे। खासकर बच्चों के लिए यह सावधानी बहुत जरूरी है। स्वच्छता बनाए रखें, अपने आस-पास पानी न ठहरने दें, डेंगू मच्छरों को दूर रखें और अपनी त्वचा की सुरक्षा करें। इन बातों का ध्यान रखें।
चिकुनगुनिया
गर्मी और बरसात का मौसम आते ही चिकुनगुनिया पांव पसारने लगता है। चिकुनगुनिया एक वायरस से होने वाली बीमारी है, जिसके लक्षण डेंगू बुखार जैसे ही होते हैं। यह बीमारी मच्छर जनित है। इस बीमारी के लक्षण जोड़ों के दर्द के साथ अचानक बुखार आना, मितली, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द के साथ सूजन, थकान और शरीर में लाल चकत्ते, अनिद्रा आदि हैं। इसमें बुखार 2 से 3 दिन तक बना रहता है और फिर अचानक समाप्त हो जाता है। इसके बाद काफी लंबे समय तक जोड़ों में दर्द व सूजन की स्थिति बनी रहती है। बचाव के लिए कूलर का पानी सात दिन में जरूर साफ करें, घर में रखा कबाड़ में पानी न ठहरने दें। मच्छरदानी का प्रयोग करें। बुखार आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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मलेरिया
बारिश का खुशनुमा मौसम आते ही मच्छर का प्रकोप बढऩे लगता है। यह बीमारी मादा मच्छर एनाफिलिज से होता है। इसमें तेज बुखार, सिर में दर्द, एक दिन छोड़कर ठंड के साथ बुखार आता है। नाक से पानी बहना, गले में खराश, खांसी (सूखी या बलगम के साथ-सफेद, हरा या पीला बलगम)। इसके अलावा तेज बुखार और शरीर में तेज दर्द होगा और बलगम ज्यादा हो सकता है। इस बीमारी के तीन मुख्य वायरस होते हैं, जिनमें ए, बी और सी टाइप शामिल हैं। ए वायरस जानवरों और इंसान दोनों में होता है और बी, सी सिर्फ इंसानों में होता है। मलेरिया से बचना हो तो सावधानी और घरेलू उपाय करें। मसलन इन्हें घर के आस-पास पनपने न दें। मच्छरों को भगाने और मारने के लिए मच्छरनाशक क्रीम, स्प्रे, मैट्स, कॉइल्स आदि का प्रयोग करें। गुग्गल के धुएं से मच्छर भगाना अच्छा देसी उपाय हैं। घर के चारों ओर पानी जमा न होने दें, गड्ïढों को मिट्टी से भर दें, रुकी हुई नालियों को साफ करें। अगर पानी जमा होने से रोकना संभव नहीं है तो उसमें पेट्रोल या केरोसिन ऑयल डालें। अगर मुमकिन हो तो खिड़कियों और दरवाजों पर महीन जाली लगवाकर मच्छरों को घर में आने से रोकें।
डायरिया
बरसात में सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या डायरिया होती है। डायरिया गैस्ट्रोइंटराइटिस का ही रूप है। इसमें अक्सर उलटी और दस्त दोनों होते हैं, लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि उलटियां न हों, पर दस्त खूब हो रहे हों। यह स्थिति खतरनाक है। लगातार शरीर से पानी का कम होना भी मुश्किल पैदा कर सकता है, क्योंकि इस दौरान शरीर से पानी और नमक की मात्रा का स्तर काफी तेजी से कम होता जाता है, और कई बार तकलीफ इस कदर ज्यादा हो जाती है कि मरीज को अस्पताल का रुख करना पड़ता है। इससे बचने के लिए खान-पान में हल्का भोजन करें और भोजन के साथ में आधे नींबू का रस तथा अदरख जरूर खाएं। मरीज को लगातार पतली और हल्की चीजें देते रहें, जैसे कि नारियल पानी, नींबू पानी (हल्का नमक और चीनी मिला), छाछ, लस्सी, दाल का पानी, ओआरएस का घोल, पतली खिचड़ी, दलिया आदि। तली-भुनी चीजों से परहेज करें।
हैजा
दूषित पानी व भोजन के सेवन से उल्टी, दस्त, पीलिया, तेज बुखार आदि का संक्रमण होता है। शरीर में नमक और पानी की कमी हो जाने से शरीर कमजोर हो जाता है। इससे बचाव का उपाय होता है कि खाने की चीजों को पकाने से पहले अच्छी तरह धोया जाए। कच्ची सब्जियों, कटे फलों एवं रेहड़ी पटरी पर बिकने वाली चीजों को खाने से परहेज करें। पीने के पानी में क्लोरीन की गोली मिलाएं और पानी को उबालकर पीएं। पांच साल से कम उम्र के बच्चे, 65 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं सावधानी से रहें। पानी को उबालें, छानें या फिर अल्ट्रावॉयलेट या रिवर्स ऑस्मोसिस फिल्टर से साफ करें। नियमित तौर पर स्नान करें, अपने हाथों को समय-समय पर साबुन से धोकर साफ रखें। संक्रमित व्यक्ति को नमक-चीनी का एवं ग्लूकोज का घोल पिलाने से शरीर में नमक और पानी की क्षतिपूर्ति होती है।
फूड प्वॉइजनिंग
गर्मी व बारिश का मिला-जुला मौसम सेहत के लिए संवेदनशील होता है। इस मौसम में फूड प्वॉइजनिंग का खतरा बना रहता है। इस बीमारी का सबसे बड़ा लक्षण यह है कि अगर खाना खाने के एक घंटे से 6 घंटे के बीच उल्टियां शुरु हो जाती हैं, तो मान लेना चाहिए कि व्यक्ति को फूड प्वॉइजनिंग की शिकायत है। इसे तुरंत काबू में करने के लिए डॉक्टर से सलाह लें। फूड प्वॉइजनिंग बैक्टीरिया युक्त भोजन करने से होता है। इससे बचाव के लिए घर में साफ-सफाई से बना हुआ ताजा खाना खाएं। अगर बाहर का खाना खा रहे हैं तो ध्यान रखें कि खुले में रखे हुए खाद्य पदार्थों तथा एकदम ठंडे और असुरक्षित भोजन का सेवन न करें। ब्रेड, पाव आदि को खाने से बचें। घर के किचन में भी साफ-सफाई का ध्यान रखें। गंदे बर्तनों का उपयोग न करें। कम एसिड वाला भोजन करें। अम्लीय, खट्टे, विटामिन सी युक्त आहार लें। इससे रोग प्रतिरोधक
क्षमता में इजाफा होगा। दही में काला नमक जमकर खाएं।
पीलिया
बारिश में पीलिया होने का खतरा भी रहता है। पीलिया के लक्षणों में हल्का बुखार, सिर दर्द, थकावट, मन खराब रहना और भूख कम लगना पीला पेशाब, उल्टियां, बेहद कमजोरी महसूस करना तथा त्वचा और आंखों का पीला होना शामिल हैं। यदि आपकी त्वचा पर सफेदी व आंखों में पीलापन दिखायी दे तो यह पीलिया का लक्षण हो सकता है। इस स्थिति में पेशाब व मल का रंग गहरा पीला हो जाता है। इससे बचाव और इलाज के लिए साफ पानी पिएं या फिर पानी उबाल कर पीएं। खाना खाने से पहले और शौच जाने के बाद हाथ जरूर धोएं। पानी न उबाल पाने की स्थिति में 20 लीटर पानी में 500 मिलीग्राम क्लोरिन की गोली मिलाएं। गोली मिलाने के 30 मिनट तक पानी को ढंका रहने दें। अधिक परेशानी होने पर तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें।
जुकाम व इंफ्लुएंजा
बारिश के मौसम में जुकाम व इंफ्लुएंजा का संक्रमण तेजी से फैलता है। यह नम और उमस भरे मौसम में पनपने वाले वायरस की वजह से होता है। लंबी अवधि के लिए गीले कपड़े पहने रहना एयर कंडीशनर से देर तक नम हवा में रहना ठंड लगने की आशंका को बढ़ा देता है। आमतौर पर संक्रमण के संपर्क में आने के 2 से 3 दिन बाद सामान्य जुकाम के लक्षण नजर आते हैं। गले में खराश, सांस लेने में परेशानी, साइनस में सूजन, छींक, खांसी, सिरदर्द, बुखार, मांसपेशियों में दर्द, पसीना आना व हर समय थकावट ऐसे लक्षण हैं, जो संक्रमित व्यक्ति में देखने को मिलते हैं। छींक व खांसते समय मुंह ढंक कर रखें। रुमाल की जगह टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करें। टिश्यू पेपर को इस्तेमाल के तुरंत बाद डस्टबिन में डाल दें। साफ-सफाई का खास ध्यान रखें। तरल पदार्थ जैसे सूप, जूस, गुनगुना पानी आदि का अधिक सेवन करें। ताजी हवा में रहें तथा ताजे फल और सब्जियां खाकर आपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करें।
अस्थमा
बरसात के दौरान तापमान में बदलाव होते रहते हैं, जिससे अस्थमा यानी दमा के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। इस बीमारी में श्वास नली या इससे संबन्धित हिस्सों में सूजन के कारण फेफड़े में हवा जाने वाले रास्ते में रुकावट आने लगती है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। इससे फेफड़ों के लिए शरीर को आक्सीजन पहुंचाना मुश्किल हो जाता है। जब एलर्जन्स या इरिटेट्स श्वास नली में सूजे हिस्से के संपर्क में आते हैं तो पहले से ही संवेदनशील श्वांस नली सिकुड़ कर और भी संकरी हो जाती है जिससे व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है। यह बीमारी एक दूसरे के संपर्क में रहने पर फैलती है। बुखार, नाक बहना, कफ, खांसी तथा सांसों का फूलना इसके लक्षण हैं। इससे बचने के लिए भीड़भाड़ वाले स्थानों में जाने से बचें। बच्चों में अस्थमा के लक्षण बच्चों में उस समय प्रकट होते हैं, जब मौसम में कोई बदलाव होता है।
लेप्टोस्पाइरोसिस
लेप्टोस्पाइरोसिस एक ऐसा रोग है जो बैक्टीरिया से फैलता है और सामान्य दिनों की अपेक्षा इस रोग के होने की संभावना बारिश के मौसम में सबसे ज्यादा होती है। तभी इसका सबसे ज्यादा संक्रमण फैलता है। इस रोग का बैक्टीरिया मानव में सीधे ही प्रवेश न करके जीवों जैसे भैंस, घोड़ा, बकरी, कुत्ता आदि की सहायता से प्रवेश करता है और इस बैक्टीरिया का नाम है लैप्टोस्पाइरा यह बैक्टीरिया इन जानवरों के मूत्र विसर्जन से यह प्रकृति में आता है। यह नमी युक्त वातावरण में लम्बे समय तक जीवित रहता है। आम लोगों के आंखों में लाली अधिक होना, सिर, कमर और पैर में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण है। इसके अलावा मेनजाइटिस, जॉन्डिस, लिवर बढऩा, पेशाब के रास्ते खून आना, किडनी को डैमज करता है। अगर यह लक्षण किसी भी व्यक्ति में मिलता है तो तुरंत चिकित्सक से सम्पर्क कर इलाज शुरू करना चाहिए। अपने घर या मुहल्ले स्थित गौशाला के आस-पास साफ सफाई करना और बारिश के पानी में बच्चे-बूढ़े को स्नान करने से रोकना चाहिए।
कंजक्टीवाइटिस/आईफ्लू
आई फ्लू यानी कंजक्टीवाइटिस बरसात के दिनों में तेजी से फैलता है। यह भी एक वायरस जनित बीमारी है, जो तापमान में अचानक परिवर्तन एवं दूषित पानी के कारण फैलता है। आंखों में खुजली होना, आंखें लाल होना, सूज जाना एवं आंखों का दुखना इसके लक्षण हैं। पीडि़त व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रूमाल तौलिए आदि का किसी और द्वारा उपयोग करने से आईफ्लू की संभावना बढ़ जाती है। कंजक्टीवाइटिस से बचने के लिए चेहरे अथवा आंखों पर बार-बार हाथ लगाने से बचें और अपने हाथों को बार-बार धोएं। अपना तौलिया, रूमाल व चश्मा आदि किसी के साथ शेयर न करें। हर दिन 4 से 5 बार स्वच्छ पानी से आंखों को धोएं। आंखों को मसलें नहीं क्योंकि इससे रेटिना में जख्म हो सकता है। इसके बचाव के लिए अच्छा होता है कि स्कूल-दफ्तर से छुट्टी लेकर आंखों को आराम दें। आंखों पर काला चश्मा लगाए और आईफ्लू के
लिए उपलब्ध विशेष मलहम का भी उपयोग करें। ज्यादा समस्या होने पर खुद इलाज करने के बजाय डॉक्टर की सलाह लें।
फंगल इन्फेक्शन
बारिश में रिंगवॉर्म यानि दाद-खाज की समस्या बढ़ जाती है। पसीना ज्यादा आने, मॉइस्चर रहने या कपड़ों में साबुन रह जाने से ऐसा हो सकता है। इसमें गोल-गोल टेढ़े-मेढ़े रैशेज जैसे नजर आते हैं, रिंग की तरह। ये अंदर से साफ होते जाते हैं और बाहर की तरफ फैलते जाते हैं। इनमें खुजली होती है और एक से दूसरे में फैल जाते हैं। पैरों में, गले पर एवं कानों के आस-पास खुजली, चकते तथा धब्बे आदि की शिकायत हो जाती है। इसके बचाव के लिए लंबे समय तक गीले कपड़े विशेषकर जूतों को पहनने से बचें और पैरों में सरसों के तेल की मालिश करें। अगर फंगल इन्फेक्शन बालों या नाखूनों में है तो खाने के लिए भी दवा दी जाती है। फंगल इंफेक्शन से बचाव के लिए ऐंटि-फंगल क्रीम लगाएं। जरूरत पडऩे पर डॉक्टर की सलाह लें।
बालों में डैंड्रफ
मौसम में बदलाव होते ही बाल प्रभावित होने लगते हैं। बारिश में बालों में पानी रहने से फंगल इन्फेक्शन होने का खतरा बना रहता है। खासकर बालों में डैंड्रफ होता है। इससे बालों की जड़े कमजोर हो जाती है। इस तरह की समस्या से बचने के लिए साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें। बाल ज्यादा देर गीले न रहें। ऐसा होने पर बाल उलझ सकते हैं और गिर सकते हैं। बालों को हफ्ते में दो बार जरूर धोएं। जरूरत पडऩे पर ज्यादा बार भी धो सकते हैं। बाल धोने के बाद अच्छी तरह सुखाएं। पंखे या ड्रायर को थोड़ा दूर रखकर बाल सुखा लें। बाल प्रोटीन से बनते हैं, इसलिए हाई प्रोटीन डाइट जैसे कि दूध, दही, पनीर, दालें, अंडा, विटामिन-सी और हरी सब्जियां खूब खाएं।
घमौरियां/रैशेज
ज्यादातर मॉइस्चर की वजह से घमौरियां/रैशेज की समस्या पनपती हैं। ये ज्यादातर उन जगहों पर होती हैं, जहां स्किन फोल्ड होती है, जैसे जांघ या बगल आदि में। पेट और कमर पर भी इस तरह की समस्या हो सकती हैं। ठंडे वातावरण
यानि एसी और कूलर में रहें। दिन में एकाध बार बर्फ से सिंकाई कर सकते हैं। खुजली ज्यादा है तो डॉक्टर की सलाह पर खुजली की दवा ले सकते हैं।
ऐथलीट्स फुट
मई-जून के माह में अक्सर जूते पहनने वालों के पैरों की उंगलियों के बीच की त्वचा गलने लगती है। अधिक समस्या बढऩे पर इन्फेक्शन नाखून तक फैल जाता है और वह मोटा और भद्दा हो जाता है। इससे बचने के लिए जूते पहनने के बजाए खुली चप्पल पहनें। जूते पहनना जरूरी हो तो पहले पैरों पर पाउडर डाल लें। क्लोट्रिमाजोल क्रीम या पाउडर लगाएं

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