आयुर्वेद दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह अथर्ववेद का विस्तार है। यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। ‘आयुर्वेद’ नाम का अर्थ है, ‘जीवन का ज्ञान’ - और यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है। यह चिकित्सा प्रणाली केवल रोगोपचार के नुस्खे ही उपलब्ध नहीं कराती, बल्कि रोगों की रोकथाम के उपायों के विषय में भी विस्तार से चर्चा करती है।
‘आयुर्वेद’ दो शब्दों से मिलकर बना है, आयु अर्थात जीवन और वेद का अर्थ होता है- शास्त्र। इस प्रकार आयुर्वेद का अभिप्राय यह हुआ कि शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा के मेल को ‘आयु’ कहते हैं। सामान्य शब्दों में कहने का मतलब है कि जब तक मनुष्य के शरीर में इंद्रियां काम करती रहती हैं, मन कार्यरत रहता है और आत्मा प्राणों को बचाये रखती है तब तक मनुष्य जीता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में मृत्यु को छोड़कर सभी प्रकार के रोगों की चिकित्सा संभव है। यदि कहीं किसी रोग में असफलता मिलती है तो वैद्य या चिकित्सक में कोई कमी है जो चिकित्सा कर रहे हैं। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति अपने आपमें पूर्ण है।
प्राचीन ऋषियों के अनुसार जिस शास्त्र में आयु के हित, अहित अर्थात इच्छा का पूरा न होना, रोग, निदान और व्याधि-शमन का उल्लेख किया गया हो, उसे ‘आयुर्वेद’ के नाम से पुकारा जाता है।