परिचय-
केन्द्रक (nucleus) के अलावा, कोशिका के अंदर के पूरे भाग को कोशिका द्रव्य (cytoplasm) कहते हैं। कोशिका का जीवन इसी साइटोप्लाज्म पर ही आश्रित रहता है और इसी पर कोशिका की समस्त मूलभूत जीवन-क्रियाएं- श्वसन, पाचन, उत्सर्जन, वृद्धि, गतिशीलता, चयापचय, उत्तेजनशीलता तथा प्रजनन आदि निर्भर करते हैं। जीवित अवस्था में साइटोप्लाज्म में अऩेक रासायनिक क्रियाएं बहुत ही तेज गति से होती रहती है जिसके फलस्वरूप कोशिकाएं जीवित रहती है। जीवित अवस्था में साइटोप्लाज्म की रचना देखना असम्भव होता है इसलिए इसके गठन का कुछ पता नहीं लगता है। यदि इसका विश्लेषण करने की कोशिश की जाए तो यह नष्ट हो जाता है या इसमें कुछ रासायनिक परिवर्तन हो जाते हैं। इसके नष्ट हो जाने पर समस्त जैविक-क्रियाएं रूक जाती है, जिसके फलस्वरूप प्राणी की मृत्यु हो जाती है।
साइटोप्लाज्म में अपनी दशा को बदलने की क्षमता पाई जाती है। इस कारण अलग-अलग अवस्थाओं में इसकी रचना में भिन्नता उत्पन्न हो जाती है। इसलिए विभिन्न वैज्ञानिकों ने इसकी रचना अलग-अलग तरह की बतायी है। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार यह एक रंगहीन अर्द्धपारदर्शक, चिपचिपा, गाढ़ा द्रव होता है। कभी यह समांशी (homogenous) दिखाई देता है, तो कभी रचनाविहिन लगता है। कभी इसमें सूत्रों का जाल दिखाई देता है, जिसके बीच-बीच मे तरल, रचनाविहिन पदार्थ भर रहता है तो कभी-कभी यह फेनदार भी दिखाई देता है और कभी इसमें तरल पदार्थ के बड़े-बड़े गोल कण तैरते दिखाई देते हैं। ज्यादातर वैज्ञानिकों ने इसकी रचना जाल-युक्त बतायी है। उनके अनुसार इसमें सूत्रों का जाल फैला रहता है, जिसके कोष्ठों (vacuoles) के अंदर एक साफ समांशी पदार्थ भरा होता है। जाल की रचना करने वाला पदार्थ जालक द्रव्य (spongiplasm), तथा कोष्ठों में पाया जाने वाला पदार्थ स्वच्छ द्रव्य (hyaloplasm) कहलाता है। इसके बहुत ज्यादा छोटे-छोटे कण (tiny particles) बराबर ब्राउनियन गति (brawnian movement) से गतिमान रहते हैं।
कोशिका के साइटोप्लाज्म में कार्बनिक पदार्थ (organic matters), प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट पाए जाते हैं। यह दो प्रकार के होते है-
1. घुलनशील कार्बोहाइड्रेट- ग्लूकोज, माल्टोज, सुक्रोज आदि।
2. अघुलनशील कार्बोहाइड्रेट स्टार्च- ग्लाइकोजन एवं सेल्युलोज।
इसमें वसा (fat) और अकार्बनिक पदार्थ (inorganic matters) जैसे- फॉस्फेट, क्लोराइड, कैल्शियम, सोडियम तथा पोटैशियम भी रहते है। इसके अलावा इसमें कैल्शियम, सोड़ियम तथा पोटैशियम, विभिन्न प्रकार के विटामिन जैसे- पेप्सिन तथा ट्रिप्सिन आदि एन्जाइम भी पाये जाते हैं। ऊपर दिए गए सारे पदार्थ साइटोप्लाज्म के अजीवित (non-living) भाग है, जिन्हें निर्जीवास-द्रव्य (Cytoplasmic inclusions) कहा जाता है।
साइटोप्लाज्म में कुछ सक्रिय रचनाएं भी होती है। इन्हे सक्रिय-अंगक (Cytoplasmic organelles) कहा जाता है, जिनकी उपस्थिति समस्त कोशिकाओं में होना जरूरी है जो निम्नलिखित है-
(1) कलामय अंगक (membranous organelles)-
- लाइसोसोम (lysosome)
- अन्तर्द्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum)
- माइटोकॉण्ड्रिया (mitochondria)
- प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasma membrane)
- गॉल्जी उपकरण (golgi apparatus or complex)
(2) साइटोप्लाज़मिक राइबोन्यूक्लिइक एसिड/राइबोसोम (cytoplasmic ribonucleic acid (RNA)/Ribosomes)
(3) सेन्ट्रोसोम (centrosomes)
(4) विविध तंतुक (Fibrils), तन्तु (filaments) एवं सूक्ष्म नलिकाएं (tubules)
[प्लाज्मोसिन (plasmosin), रिक्तिकायें (vacuoles), कणिकाएं (granules)]
- कलामय अंगक (membranous organelles)-
- प्लाज्मा मेम्ब्रेन- प्लाजमा मेम्ब्रेन कोशिका कला को कहा जाता है।
- अन्तर्द्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum)- यह साइटोप्लाज्म में मौजूद कलामय नलिकाओं (membranous canals) की जाल के जैसी एक संरचना होती है। यह दो प्रकार की होती है- पहली- रूक्ष या खुरदरी (routh) परत वाली तथा दूसरी- चिकनी (smooth) परत वाली। रूक्ष परत वाली अन्तर्द्रव्यी जालिका पर राइबोसोम के कण पंक्तियों में सटे रहते हैं। चिकनी अन्तर्द्रव्यी जालिका में लिपिड्स (Lipids) एवं स्टेरॉयड हॉर्मोन्स का संश्लेषण या निर्माण होता है तथा इसका सम्बन्ध कुछ औषधियों के निर्विषीकरण (Detoxification) से भी होता है।
- ये पेशीय कोशिकाओं में आवेगों (impulses) का संवाहन करती है। ये जिगर की कोशिकाओं में, प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट के संश्लेषण का कार्य करती है तथा आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक एसिड का स्राव करती है।
- गॉल्जी उपकरण (Golgi apparatus)- यह साइटोप्लाज्म में स्थित कलाओं (membranes) का एक समूह है जो भौतिक रूप से (Physically) एवं क्रियात्मक रूप से अन्तर्द्रव्यी जालिका से सम्बधित होता है। ये अक्सर कोशिकाओं के केन्द्रक (nucleus) के समीप स्थित होते हैं। इनकी रासायनिक रचना में लाइपोप्रोटीन अधिक रहता है।
गॉल्जी उपकरण का सम्बन्ध कोशिका की रासायनिक क्रियाओं, विशेषकर स्रावण (Secretion) की क्रिया से है। यह ग्लाइकोप्रोटीन स्राव के पॉलीसैकेराइड अंश का संश्लेषण भी करता है। इसकी आकृति, आकार एवं स्थिति समस्त कोशिका की सक्रियता के अनुसार बदलती रहती है।
कोशिका में उत्पन्न हुए स्रावी उत्पाद इसी गॉल्जी उपकरण मे एकत्रित होते है तथा कोशिका कला तक ले जाकर इन्हें बाहर छोड़ दिया जाता है।
- माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)- साइटोप्लाज्म में विभिन्न आकारों की अनेकों छोटी-छोटी रचनाएं- अण्डाकार या रॉड के समान रचनाएं चारों ओर बिखरी रहती है। इन्हे माइटोकॉण्ड्रिया कहते हैं। जीवित कोशिका में ये इधर-उधर घूमते रहते हैं। इनकी संख्या तथा आकार में बदलाव होता रहता है और ये बंट भी जाते हैं। कभी-कभी ये समूह में इकट्ठा रहते हैं तथा कभी-कभी बिखरे से रहते हैं।
माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का पावर-हाउस (ऊर्जा-गृह) कहा जाता है क्योंकि ये कोशिका के भीतर पचकर आये हुए भोजन का ऑक्सीकरण करके उसकी संग्रहित ऊर्जा को विमुक्त कर ATP में संग्रहित करते है। इससे कोशिका को विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा मिलती रहती है। कोशिका का यही अंगक ‘कोशिका-श्वसन’ (Cell respiration) के लिए उत्तरदायी होता है। इनका प्रोटीन संश्लेषण तथा लिपिड चयापचय के साथ भी सम्बन्ध होता है।
- लाइसोसोम (lysosomes)- लाइसोसोम साइटोप्लाज्म में मौजूद कलामयी स्फोटिकाएं (membranous vesicles) होती है। यह अण्डाकार या गोलाकार थैली के जैसी होती है। इन रचनाओं में हाइड्रोलाइटिक एन्जाइम्स पैदा होते हैं जो कोशिका के अंदर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं न्यूक्लिइक एसिड (RNA, DNA) के बड़े अणुओं को छोटे-छोटे अणुओं में बांट देते हैं। यह बाद मे माइटोकॉण्ड्रिया द्वारा ऑक्सीकृत होते हैं। किसी-किसी विशेष परिस्थिति में लाइसोसोम अपने अंतर्पदार्थ को भी पचा जाते हैं, इसीलिए, इन्हें ‘आत्महत्या की थैली’ (Suicide bag) भी कहा जाता है। इनका मुख्य कार्य ‘अन्तरकोशिकीय पाचन’ (Intracellular digestion) से है इसीलिए इन्हें ‘पाचन उपकरण’ (Digestive apparatus) भी कहते हैं। क्षतिग्रस्त कोशिका को भी लाइसोसोम पचा जाता है (Cell necrosis)। श्वेत रक्त कोशिकाओं में यह ऐसे एन्जाइम उत्पन्न करते हैं जो सूक्ष्मजीवों को पचा जाते हैं। जीवाणु भक्षण (phagocytosis) लाइसोसोम की एक अदभुत एवं विलक्षण क्रिया है।
- राइबोसोम (Ribosome’s)- राइबोसोम स्वभाव से राइबोन्यूक्लियो- प्रोटीन होते है तथा ये पूरे साइटोप्लाज्म या कोशिकाद्रव्य में एकाकी अथवा समूहों में बिखरे हुए रहते हैं। राइबोसोम राइबोन्यूक्लिइक एसिड (RNA) से भरपूर रहते हैं तथा पूरी कोशिका का 60 प्रतिशत प्रोटीन इन्हीं में रहता है। राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण (Protein synthesis) से सम्बन्धित है इसीलिए इन्हें ‘प्रोटीन फैक्टरी’ भी कहा जाता है।
- सेन्ट्रोसोम (centrosome)- सेन्ट्रोसोम न्यूक्लियस के समीप छड़ की आकृति की एक रचना है। यह धागों के जैसी चारों ओर निकली हुई रचना से घिरी रहती है। इसमें कुछ अधिक गहरे रंग की दो गोलाकर रचनाएं और होती है, जिन्हें सेन्ट्रियोल (centrioles) कहते हैं। सेन्ट्रोसोम इन्हीं सेन्ट्रियोल्स द्वारा कोशिका विभाजन में महत्वपूर्ण भाग लेता है।
तान्त्रिका- कोशिकाओं में सेन्ट्रोसोम और सेन्ट्रियोल नहीं होता है, इसीलिए ये उत्पादन में असमर्थ रहती है।
- प्लाज्मोसिन (plasmosin)- प्लाज्मोसिन साइटोप्लाज्म का हमेशा मौजूद रहने वाला विशिष्ट संघटन है।
- रिक्तिकाएं (vacuoles)- साइटोप्लाज्म में इधर-उधर छोटे-छोटे दिखाई देने वाले रिक्त स्थानों को रिक्तिकाएं (vacuoles) कहते हैं। ये परिवर्तनशील होती है। इनके चारों ओर कुछ मात्रा में लिपिड पदार्थ संग्रहित पाया जाता है।
- कणिकाएं (Granules)- साइटोप्लाज्म में ऊपर दी गई रचनाओं के अलावा कोशिकाओं की किसी फिजियोलॉजीकल अवस्था में, जैसे धूप में तपने के बाद त्वचा की एपीथीलियल कोशिकाओं में पिगमेन्ट के कण प्रकट हो जाते हैं। इनके अलावा कुछ स्रावी कण भी पैदा हो जाते हैं।
- आन्तरकोशिक तन्तुक (intracellular fibrils)- इसमें लंबे आकार के प्रोटीन के कण होते है जिनमें डीऑक्सीराइबोन्यूक्लियो प्रोटीन अत्यधिक मात्रा में रहता है। ये कण आपस में लम्बाई में सटे रहते है तथा ‘आन्तरकोशिक तन्तुक’ का निर्माण करते है। इसके उदाहरण है- एपीथीलियल कोशिकाओं के टोनोफाइब्रिल (ton fibril), पेशी कोशिकाओं के पेशी तन्तुक (myofibrils) तथा तन्त्रिका कोशिकाओं के तन्त्रिका तन्तुक (nerve fibrils)।