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संचार प्रणाली

परिचय-

        हम जानते है कि हमारे ‘शरीर में पाये जाने वाला खून एक प्रकार का बहुत ही आवश्यक द्रव्य है क्योंकि इसके बिना जीव निर्जीव के समान है। एक व्यक्ति के ‘शरीर में लगभग 5 लीटर रक्त पाया जाता है जो पूरे शरीर के भार का 1/13 भाग होता है। खून के द्वारा ही पोषाहार तथा ऑक्सीजन ‘शरीर में पाये जाने वाले विभिन्न ऊतकों तथा कोशिकाओं तक पहुंचते हैं। खून के बिना पूरे ‘शरीर का पोषण करना असम्भव होता है। खून का रंग लाल होता है और स्वाद नमकीन होता है। यह लाल रंग के द्रव सा दिखाई देता है। जब इस द्रव को सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखते हैं तो इसमें बहुत सारी कोशिकाएं दिखाई देती हैं। ये कोशिकाएं लाल रक्त कोशिकाएं कहलाती है। ये कोशिकाएं भी अनेक कोशिकाओं में विभाजित होती है। एक व्यक्ति के खून में लगभग 4-5 लाख लाल रक्त कोशिकाएं प्रतिघन मिलीमीटर पाई जाती है। खून का रंग लाल होने के कारण इसमें पाया जाने वाला हीमोग्लोबिन होता है। इस हीमोग्लोबिन में लोहे के कण मिले होते हैं। यदि खून मे हीमोग्लोबिन नहीं मिला होता तो शायद ये कोशिकाओं तक ऑक्सीजन को नहीं ले जा पाता। हीमोग्लोबिन के कारण ही ऐसा होता है क्योंकि इसमें ऑक्सीजन को फेफड़े तक पहुंचाने की क्षमता होती है।  

        ‘शरीर मे ‘श्वेत रक्त कोशिकाएं (लसीकाणुओं) की संख्या लगभग 5000 से 9000 प्रतिघन मिलीमीटर तक होती है। ये कोशिकाएं रक्षात्मक क्रिया करती है। ये कोशिकाएं ‘शरीर में हानिकारक पदार्थ तथा रोग को उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट करती है तथा ‘शरीर को नुकसान पहुंचाने से रोकती है।

        खून में बहुत ज्यादा मात्रा में खनिज लवण भी पाये जाते हैं। उदाहरण के लिये- साधारण नमक, पोटेशियम, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन तथा सोडियम क्लोराइट आदि। इन खनिज लवणों से ‘शरीर का उचित विकास होता है।

        खून धमनियों में पाया जाता है और चमकता हुआ लाल रंग का होता है। जो खून हृदय तथा शिराओं के अन्दर पाया जाता है वह गाढ़े लाल रंग का होता है।  धमनियां उस खून का संचालक होती है जो विभिन्न अंगों से शुद्ध रक्त का संचार करता है और शिराएं वे होती है जो विभिन्न अंगों से दूषित खून को इकट्ठा करती है। ‘शरीर में फुफ्फुस-शिरा भी होती है जो खून को फेफड़े से हृदय तक पंहुचाने का काम करती है और ये चमकते हुए लाल रक्त को ले जाती है।

खून का थक्का बनना-

        यह एक महत्वपूर्ण घटनाचक्र है जिसमें खून जमकर थक्का बन जाता है। खून में फाइब्रोनाजन नामक पदार्थ भी पाया जाता है जिसके कारण ही यह थक्का बनता है। फाइब्रोनाजन जैसे ही यह हवा के सम्पर्क में आता है यह खून की ऊपरी परत को जमा देता है और खून का थक्का बन जाता है। (यह चमत्कारी पदार्थ वायु के सम्पर्क में आने पर फाइब्रोनाजन के रूप में बदल जाता है और रक्त कोशिकाओं को थक्के में बदल देता है।) यदि यह पदार्थ खून में न हो तो खून हवा के सम्पर्क में आने पर नहीं जमेगा। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति को चोट लग जाती है तो उसके चोट वाले स्थान से खून निकलने लगता है और ये खून हवा के सम्पर्क मे आ जाता है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति के चोट वाले स्थान पर एक थक्का जम जाता है और खून बहना रूक जाता है। इसी प्रकार यदि खून में फाइब्रोनाजन नामक पदार्थ न हो तो व्यक्ति के चोट लगने पर खून बहता चला जायेगा, जिसके कारण व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।

        रक्त कोशिकाओं के अन्दर खून के थक्के नहीं बनने चाहिए नहीं तो रक्त संचार में रुकावट आ सकती है। चोट ग्रस्त रक्तवाहिका के अन्दर जो थक्का जमता है उसे घनास्त्र कहते हैं और इस अवस्था को घनास्त्रता अवस्था कहा जाता है। हृदय की रक्त वाहिकाओं के अन्दर जो घनास्त्र बनता है उसे हृदय घनास्त्रता भी कहते हैं तथा मस्तिष्क प्रभावित हो तो उसे प्रमस्तिष्क घनास्त्रता कहा जाता है।


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