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चुम्बक बनाने का तरीका

मुख्यतः कृत्रिम चुम्बक दो प्रकार से तैयार किए जाते हैं-

  • एक चुम्बक को किसी दूसरे चुम्बकीय पदार्थ से आपस में रगड़ने से चुम्बक बनता है। इस यांत्रिक क्रिया के अनुसार जब एक चुम्बक पदार्थ को किसी दूसरे चुम्बक पर एक निश्चित दिशा की ओर बार-बार रगड़कर उसका चुम्बकीकरण किया जाये तो यह चुम्बक पदार्थ दूसरे चुम्बक का गुण ले लेता है और चुम्बक बन जाता है तथा चुम्बक पदार्थ के दोनों ओर किनारे पर उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव बन जाते हैं। इस तरह से बनाये गये चुम्बक निम्न आकर्षण शक्ति वाले होते हैं।
  • चुम्बक पदार्थ को विद्युत धारा से घेरने पर उस चुम्बकीय पदार्थ में चुम्बक के गुण आ जाते हैं तथा वह पदार्थ चुम्बक बन जाता है। इस तरह से चुम्बक बनने में चुम्बक पदार्थो के चारों ओर एक विद्युत-धारारोधी चक्र को मोड़कर झुका दिया जाता है और विद्युत कोशिकाओं की सहायता से चक्र के माध्यम से उसमें विद्युत-धारा सीधी प्रवाहित की जाती है। जब छड़ के चारों ओर विद्युत-धारा चक्र के समान पड़ती है तो उस पदार्थ का चुम्बकीकरण हो जाता है और चुम्बकीय पदार्थ के दोनों किनारों पर उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव बन जाते हैं। यदि छड़ का पदार्थ बहुत अधिक कठोर है तो इससे बनने वाला चुम्बक स्थायी चुम्बक बनेगा तथा यदि नरम लोहे का पदार्थ है तो इससे बनने वाला चुम्बक अस्थायी चुम्बक होगा और इन चुम्बकीय पदार्थो के अन्दर तभी तक चुम्बकीय आकर्षण-शक्ति मौजूद रहेगी, जब तक चक्र के माध्यम से उसके अन्दर चक्र विद्युत-धारा प्रवाहित होती रहेगी। इसी तरह बनायी गई नरम लोहे के u आकृति के छड़ का बिजली द्वारा चुम्बकीकरण किया जाए तो इसकी चुम्बकीय आकर्षण-शक्ति अत्यधिक बढ़ जाती है। इस चुम्बक का प्रयोग क्रेन के लिए अधिक किया जाता है।

चुम्बकों का विघटन-

        जब एक बड़े चुम्बक के टुकड़े को तोड़ दिया जाता है तो वह टूटकर दो चुम्बकों में बदल जाता है लेकिन दोनों टुकड़ों की शक्तियां समान रहती है। प्रत्येक टुकड़े में उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव होते हैं। यदि प्रत्येक टुकड़ों को तोड़ कर छोटा करते जाये तो भी इन टुकड़ो में उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव बना रहेगा। यह भी सत्य है कि सभी चुम्बको में उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव साथथ-सा पाए जाते हैं। कहने का अर्थ यह है कि किसी भी चुम्बक में ऐसा नहीं पाया जाता है कि किसी एक चुम्बक में एक ही ध्रुव हो और न ही किसी एक चुम्बक में एक ध्रुव की शक्ति पाई जाती हो।  इसका तात्पर्य यह है कि सभी चुम्बकों में उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव जरूर पाया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक चुम्बक में कोई ध्रुव अकेला नहीं रहता है। प्रत्येक चुम्बक का प्रत्येक अणु एक छोटे से चुम्बक का कार्य करता है।

चुम्बकीय प्रेरण-

         जब किसी एक चुम्बक को किसी दूसरे चुम्बक पदार्थों के पास लाया जाता है तो उस पदार्थ के छोटे-छोटे चुम्बक प्रभावित हो जाते हैं तथा चुम्बक की स्थिति के अनुसार पहले की दिशा की ओर प्रभावित हो जाते हैं। इस चुम्बक के उत्तरी ध्रुव के पास वाला क्षेत्र दक्षिणीकर्षी हो जाता है तथा इस दक्षिणीकर्षी को ही प्रेरित दक्षिणी ध्रुव कहा जाता है। इसके बाद उत्तरी ध्रुव तथा प्रेरित दक्षिणी ध्रुव के बीच आकर्षण की प्रक्रिया को ही चुम्बकीय प्रेरण कहा जाता है।

उदाहरण के तौर पर-

       लोहे की कीलों के ढेर के पास एक शक्तिशाली चुम्बक को रखकर इस अपवर्त्य प्रेरण प्रभाव को देखा जा सकता है। इसमे यह दिखाई देगा कि कीलों की एक लड़ी सी आपस में चिपकी हुई है।

      मनुष्य के शरीर के अन्दर पाये जाने वाले रक्त के अन्दर हीमोग्लोबिन पदार्थ पाया जाता है और ये हीमोग्लोबिन चुम्बक से प्रभावित होता है क्योंकि हीमोग्लोबिन में लोहा पाया जाता है और हम जानते हैं कि लोहा चुम्बक से प्रभावित होता है इसलिए हमारे शरीर का रक्त चुम्बक से प्रभावित होता है। इसलिए कहा जा सकता है कि रक्त संचार चुम्बक से अपेक्षित रूप से प्रभावित होता है। मानव शरीर के विभिन्न ऊतकों में विद्युत धाराएं पायी जाती है इसलिये चुम्बक के प्रभाव के कारण ही मनुष्य के शरीर पर प्रकृति का अधिक जटिल प्रभाव पड़ता है।


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