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तीन मुख्य लक्षणों के आधार पर चिकित्सा

परिचय-

          होम्योपैथी चिकित्सकों के अनुसार औषधियों के लक्षण 2-4 की संख्या में न होकर सैंकड़ों की संख्या में होते हैं। ऐसे में बहुत से लोग सोचते हैं कि अगर औषधि के सारे लक्षण रोगी के लक्षणों के साथ नही मिलेंगे तो क्या रोगी की चिकित्सा नहीं होगी। लेकिन एक रोगी में एकसाथ सारे लक्षण मिलना नामुमकिन है।

          होम्योपैथी के एक महान चिकित्सक के अनुसार अगर औषधि और रोगी के किन्ही 3 लक्षणों को जानकर चिकित्सा की जाए तो रोगी को लाभ मिल सकता है।

औषधि और रोगी के 3 मुख्य लक्षण इस प्रकार से है-

          होम्योपैथी चिकित्सा में पहला सबसे मुख्य लक्षण जो होना चाहिए वह यह है कि रोगी को दी जाने वाली औषधि और रोगी की प्रकृति एक ही जैसी होनी चाहिए जैसे अगर औषधि गर्म प्रकृति की हो तो वह उस रोगी को तभी किसी तरह का लाभ पहुंचाएगी जबकि उस रोगी की प्रकृति भी गर्म ही हो। अगर औषधि और रोगी की प्रकृति में अन्तर होगा तो वह औषधि रोगी को किसी प्रकार का लाभ नहीं देगी।

           दूसरा मुख्य लक्षण जो है वह यह है कि रोग और औषधि के व्यापक लक्षणों में समानता होनी चाहिए जैसे कैमोमिला औषधि का व्यापक लक्षण है चिड़चिड़ापन। इसी तरह दूसरी औषधियों के भी व्यापक लक्षण हैं। अगर इन दोनों के व्यापक लक्षण मिल जाते हैं तो रोगी को बहुत जल्दी आराम मिलता है।

           इसके अलावा तीसरा मुख्य लक्षण यह है कि औषधि का रोगी के प्रमुख रोगों पर असर हो रहा है या नहीं। अगर रोगी के शरीर में किसी खास अंग में रोग होने पर औषधि का असर पड़ रहा हो तो इससे रोगी को बहुत जल्दी लाभ मिलता है।

           इन तीनों प्रकृति, व्यापक-लक्षण और मुख्य रोगों के लक्षणों पर ही रोगी की सफलतापूर्वक चिकित्सा की जाती है और बाकी लक्षणों की जरूरत रह ही नहीं जाती। अगर यह तीनों लक्षण मिल जाते हैं तो बाकी सारे लक्षण तो इनके बीच में ही आ जाते हैं।


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