परिचय-
होम्योपैथिक चिकित्सा की शुरुआत में एक बात ने बहुत ज्यादा तूल पकड़ा था कि इसकी प्रयोग की जाने वाली औषधि किस `शक्ति´ में दी जानी चाहिए। महात्मा हैनीमेन जी के अनुसार जैसे-जैसे हम इसकी ऊंची शक्तियां लेना शुरू करते हैं वैसे ही उसमें छिपी हुई शक्तियां अपना असर दिखाने लगती है लेकिन अगर इसकी कम शक्तियां लेते हैं तो इसका असर पूरी तरह नज़र नहीं आता। इसकी ऊंची शक्तियों में औषधि का बहुत थोड़ा भाग रहता है। एक महान चिकित्सक के अनुसार किसी भी माइक्रोसोप से तीसरी शक्ति में जाने के बाद उसके अन्दर किसी भी तरह के औषधि के अंश बिल्कुल भी नहीं रह जाते। एलोपैथ से एकदम होम्योपैथक में आने के बाद हैनिमेन जी के दिमाग में यह बात नहीं बैठती थी कि जब इसकी ऊंची शक्तियों में औषधि नाम के लिए भी नहीं रह जाती तो उससे आराम किस तरह पड़ सकता है। ऐसे में वे इसकी 3x, 6x मात्रा या 3 या 6 शक्ति देने के ही पक्ष में थे क्योंकि वे समझते थे कि कम शक्तियों की इन औषधियों में कुछ न कुछ भाग तो रहता ही होगा। इसी कारण से शुरुआती चिकित्सक इसकी कम शक्तियों के पक्ष में ही थे। होम्योपैथी औषधि की 30 शक्ति का अर्थ है 1 के बाद 200 शून्य लगा देना, 200 शक्ति का अर्थ है- एक के बाद 400 शून्य लगा देना, 1m का अर्थ है 1 के बाद 2000 शून्य लगा देना। 30 शक्ति में औषधि का इतना थोड़ा भाग होता है कि जितना कि 1 के बाद 200 शून्य लगा देने से हो सकता है, 200 शक्ति में औषधि का इतना थोड़ा भाग होता है कि जितना कि 1 के बाद 400 शून्य लगा देने पर हो सकता है, 1m में औषधि का इतना थोड़ा भाग होता है जितना 1 के बाद 2000 शून्य लगा देने पर हो सकता है।
होम्योपैथी चिकित्सा के अनुसार अगर रोगी के रोग के लक्षण और औषधि के लक्षण एक ही हो, रोगी औषधि के प्रति संवेदनशील हो तो इसकी निम्न-शक्ति तथा उच्च-शक्ति दोनों का ही रोगी पर अच्छा असर होता है।
अब एक बात और है कि जब होम्योपैथी की 3 शक्ति के बाद होम्योपैथी औषधि में औषधि का बिल्कुल भाग नहीं रह जाता तब इसकी 30, 200, 1000, 20000, 100000 में औषधि कहां रह जाती है। लेकिन अनुभव से यह पता चलता है कि औषधि की दृष्टि से हम जितना ऊपर-ऊपर चढ़ते हैं रोग को दूर करने में औषधि का उतना ही अच्छा असर होता है लेकिन देर से होता है। जो इस कारण से होता है कि औषधि में से जितना भाग छंटता जाता है उतना ही उसके अन्दर छिपी हुई शक्ति प्रकट होने लगती है और जितना ही वह स्थूल-भाग को छोड़ती है उतना ही उसकी शक्ति का भाग क्रियाशील हो जाता है। यही कारण है कि 3 से 6, 6 से 30, 30 से 200 शक्ति का असर गहरा और देर से होता है।
अब रोगी तो यह सोचेगा कि इस चिकित्सा में औषधि की ऊंची शक्तियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यह इस बात पर निर्भर करता कि रोगी का रोग किस स्तर पर है।
अगर शक्ति के रूप में औषधियों के विभिन्न स्तर हैं तो रोग के भी उसके समानान्तर विभिन्न स्तर है। रोगी का एक रोग 30 शक्ति की औषधि के स्तर पर हो सकता है, दूसरा और गहरा 200 शक्ति के स्तर पर हो सकता है। 30 शक्ति के स्तर के रोग पर 30 या 200 शक्ति की औषधि का सेवन करना ठीक है। इससे ऊंची शक्ति की औषधि का प्रयोग उचित नहीं है।
निम्न-शक्ति की औषधि के स्तर के रोग को `तरुण-रोग´ कहा जाता है, उच्च-शक्ति की औषधि के स्तर के रोग के जीर्ण-रोग कहा जाता है। साधारण तौर पर तरुण-रोगों में होम्योपैथी औषधि की निम्न-शक्ति दी जा सकती है क्योंकि वह गहरे नहीं होते और जीर्ण-रोगों में उच्च-शक्ति दी जाती है क्योंकि वह शरीर के बहुत अन्दर की तरफ हो जाते हैं।