JK healthworld logo icon with JK letters and red border

indianayurved.com

Makes You Healthy

Free for everyone — complete solutions and detailed information for all health-related issues are available

प्लेग

 

परिचय-

          प्लेग रोग यह एक महामारी का रोग है। इस रोग को और भी कई नामों से जाना जाता है जैसे-ताऊन, गोटी वाला ज्वर। यह एक प्रकार का संक्रामक रोग है। यह रोग एक बेसीलुस पेस्टिस नामक जीवाणु के कारण होता है। यह कीटाणु सीलन वाले स्थानों, कूड़ा-करकट तथा सड़ी-गली चीजों में पनपता है। ये रोग उन पदार्थों में भी फैलता है जिनमें से गंदी बदबू आती है तथा भाप निकलती है। इन कीटाणुओं का हमला पहले-पहले चूहों के पिस्सुओं पर होता है और फिर यह बीमारी चूहों के द्वारा मनुष्यों को भी हो जाती है। जिन व्यक्तियों के शरीर में पहले से ही दूषित द्रव्य जमा रहता है उन व्यक्तियों को यह रोग जल्दी हो जाता है। जिन व्यक्तियों के शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति कम होती है, उन व्यक्तियों को भी यह रोग हो जाता है। जिन व्यक्तियों के शरीर में दूषित द्रव्य नहीं होता है उन व्यक्तियों का ये कीटाणु कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते हैं।

प्लेग रोग 4 प्रकार का होता है-

  • ब्यूबोनिक
  • न्यूमोनिक
  • सेप्टीसिमिक
  • इण्टेस्टिनल

ब्यूबोनिक प्लेग (गिल्टी वाले प्लेग) :-

   जब किसी व्यक्ति को प्लेग रोग हो जाता है तो उसकी जांघ, गर्दन आदि अंगों की ग्रन्थियों में दर्द के साथ सूजन हो जाती है। इस रोग से पीड़ित रोगी की गिल्टी एक के बाद दूसरी फिर तीसरी सूजती है और फिर फूटती है। कभी-कभी एक साथ कई गिल्टियां निकल आती हैं और दर्द करने लगती है। यदि गिल्टियां 4-5 दिनों में फूट जाती है और बुखार उतर जाता है तो उसे अच्छा समझना चाहिए नहीं तो इस रोग का परिणाम और भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। लेकिन कुछ समय में ये 7-10 दिनों के बाद फूटती है। इस प्रकार का प्लेग रोग अधिक होता है।

न्यूमोनिक प्लेग-

    न्यूमोनिक प्लेग रोग जब किसी व्यक्ति को हो जाता है तो इसका आक्रमण सबसे पहले फेफड़ों पर होता है और रोगी व्यक्ति को कई प्रकार के रोग हो जाते हैं जैसे- खांसीसांस लेने में कष्ट, शरीर में ठंड लगकर सिर में दर्द होना, नाड़ी में तेज दर्द, कलेजे में दर्द, प्रलाप, पीठ में दर्द तथा फेफड़ों से रक्त का स्राव होना आदि। न्यूमोनिक प्लेग रोग गिल्टी वाले प्लेग रोग से बहुत अधिक घातक होता है तथा रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशान करता है।

सेप्टीसिमिक प्लेग (शरीर में सड़न पैदा करने वाला प्लेग):-

          जब यह प्लेग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो रोगी के शरीर के कई अंग सिकुड़ कर सड़ने लगते हैं और रोगी के शरीर का खून जहरीला हो जाता है। रोगी की शारीरिक क्रियाएं बंद हो जाती हैं। इस रोग के होने के कारण रोगी को बहुत अधिक परेशानी होती है। जब यह प्लेग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो वह व्यक्ति 2-3 दिनों से अधिक जीवित नहीं रह पाता है।

इंटेस्टिनल प्लेग (आंत्रिक प्लेग):-

          इस रोग का प्रकोप रोगी व्यक्ति की आंतों पर होता है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति का पेट फूलने लग जाता है और उसके पेट और कमर में दर्द होने लगता है तथा उसे दस्त भी होने लगते हैं। जब रोगी व्यक्ति को यह रोग होने वाला होता है तो उसकी तबियत गिरी-गिरी सी रहने लगती है तथा उसके शरीर में सुस्ती और कमजोरी बढ़ जाती है। रोगी की यह अवस्था 1 घण्टे से लेकर 7 दिनों तक रह सकती है। फिर इसके बाद रोग का प्रकोप और भी तेज हो जाता है। जब रोगी की अवस्था ज्यादा गम्भीर हो जाती है तो उसे ठंड लगने लगती है तथा तेज बुखार हो जाता है, रोगी के सिर में दर्द होता है, रोगी के हाथ-पैर ऐठने लगते हैं। रोगी व्यक्ति के शरीर में दर्द होता है तथा उसे बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है। रोगी व्यक्ति के गालों का रंग पीला पड़ जाना, आंखों के आगे गड्ढें हो जाना, नाड़ी और श्वास में तीव्रता, भूख कम हो जाना, आवाज धीमा हो जाना, चैतना शून्य, प्रलाप, पेशाब का कम बनना या बिल्कुल न बनना, मुंह तथा जननेन्द्रियों से रक्तस्राव होना, अनिंद्रा तथा जीभ का लाल हो जाना तथा सूजन हो जाना आदि लक्षण रोगी में दिखने लगता है।

इन सभी प्लेग रोगों से बचने के लिए कुछ प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा उपाय:-

  • प्लेग रोग से बचने के लिए व्यक्तियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जैसे ही घर में चूहे मर जाएं उसे घर से बाहर छोड़ देना चाहिए तथा जहां पर रह रहे हों उस जगह पर साफ-सफाई का ध्यान देना चाहिए।
  • व्यक्तियों को सादा तथा जल्दी पचने वाले भोजन करना चाहिए तथा पेट में कब्ज नहीं होने देना चाहिए।
  • एनिमा क्रिया के द्वारा पेट को साफ करते रहना चाहिए।
  • बाजार की चीजें, मिठाइयां, दूषित दूध, सड़ी-गली भोज्य पदार्थ आदि नहीं खाने चाहिए।
  • यदि शरीर में विजातीय द्रव्य (दूषित द्रव) जमा हो गया है तो उसे जल्दी ही शरीर से बाहर निकालने के उपाय करना चाहिए। शरीर से दूषित द्रव को बाहर निकालने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए। वह व्यक्ति जिसके शरीर में दूषित द्रव नहीं होता उसके शरीर में चाहें कितने ही ताऊन कीड़े चले जाऐ, उस व्यक्ति को यह रोग नहीं हो सकता है।
  • जिन घरों के आस-पास के व्यक्तियों को यदि प्लेग का रोग हो गया हो तो स्वस्थ लोगों को कपूर का एक टुकड़ा सदैव अपने पास रखना चाहिए और भोजन के साथ प्याज अवश्य खाना चाहिए।
  • सुबह के समय में उठते ही एक गिलास पानी में नींबू के रस को मिलाकर पीना चाहिए इससे प्लेग रोग नहीं होता है।
  • शौच करने के बाद रोगी व्यक्ति को अपने हाथ-पैर को अच्छी तरह से धोकर खुले स्थान में वायु का सेवन करने के लिए निकल जाना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम 20 मिनट तक धूप से अपने शरीर की सिंकाई करनी चाहिए और फिर स्नान करना चाहिए।
  • व्यक्तियों को प्रतिदिन गहरी सांस लेने वाले व्यायाम करना चाहिए।

इन सभी प्लेग रोगों को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

  • जैसे ही व्यक्ति को प्लेग रोग होने के लक्षण दिखाई दें, चाहे सूजन हो या न अथवा बुखार हो या न, तुरंत ही पेट को साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए। फिर इसके बाद पूरे शरीर पर एक बार स्टीमबाथ कम से कम आधे घण्टे तक करना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को तुरन्त मुंह में भाप देना चाहिए तथा इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को चार-चार घण्टे बाद स्टीमबाथ करना चाहिए। फिर इसके बाद मेहनस्नान और उदरस्नान करना चाहिए। पहला स्नान तो स्टीमबाथ के बाद लेना चाहिए तथा दूसरा स्नान तीन से चार घण्टे के अंतराल पर लेना चाहिए। यदि पहले दिन के स्टीमबाथ से पर्याप्त पसीना आए तो दूसरे दिन एक और स्टीमबाथ सावधानी के साथ लेना चाहिए। यदि पसीना न निकले तो पेडू पर गीली पट्टी लगानी चाहिए। यदि गिल्टी निकल आई हो तो उस पर दो-दो घण्टे के बाद 15 मिनट तक भाप देकर बाकी समय उस पर मिट्टी की गीली पट्टी, बर्फ का जल या खूब ठंडे जल से भीगे कपडे की उष्णकर पट्टी या ठंडी की पट्टी बांधनी चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को आसमानी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रत्येक 5 मिनट के अंतराल पर रोगी व्यक्ति को पिलाना चाहिए।
  • प्लेग रोग से पीड़ित रोगी का जब तक रोग ठीक न हो जाए तब तक रोगी को उपवास रखना चाहिए। यदि रोगी की अवस्था बहुत अधिक गम्भीर हो गई हो तो शरीर पर गीले कपड़े की पट्टी एक घण्टा तक बांधना चाहिए। फिर इसके बाद स्पंजबाथ करना चाहिए इससे रोगी को बहुत लाभ मिलता है।
  • यदि रोगी न्यूमोनिया प्लेग से पीड़ित है तो उसकी छाती पर मिट्टी की गीली पट्टी दिन में दो से तीन बार बांधनी चाहिए। रोगी के सिर में दर्द हो रहा हो तो उसके सिर पर भी मिट्टी की गीली पट्टी या फिर कपड़े की ठंडी पट्टी बांधनी चाहिए और इन पटि्टयों को थोड़े-थोड़े समय पर बदलते रहना चाहिए।


Copyright All Right Reserved 2025, indianayurved