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स्वर यन्त्र में जलन

 

परिचय-

          इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को अपने स्वर यन्त्र में जलन होने लगती है जिसके कारण उसका गला खुश्क हो जाता है तथा उसे तर खांसी होने लगती है।

स्वर यन्त्र में जलन होने का कारण-

1. अधिक गाना गाने, चीखने-चिल्लाने तथा जोर-जोर से भाषण देने से रोगी के स्वर यन्त्र में जलन हो जाता है।

2. ठंड लगने तथा सीलनयुक्त स्थान पर रहने के कारण स्वर यन्त्र में जलन हो सकती है।

3. ठंडी चीजों को भोजन में अधिक प्रयोग करने के कारण भी यह रोग सकता है।

4. शरीर के अंदर कोई दूषित द्रव्य जमा हो जाता है तथा जब यह दूषित द्रव्य किसी तरह से हलक में पहुंच जाता है तो स्वर यन्त्र में जलन हो जाती है।

5. अधिक मिर्च-मसालेदार भोजन खाने के कारण या आवश्यकता से अधिक भोजन खाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

स्वर यन्त्र में जलन होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

  • स्वर यन्त्र में जलन होने पर उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने पेड़ू पर गीली मिट्टी की पट्टी से लेप करना चाहिए तथा इसके बाद एनिमा क्रिया का प्रयोग करके अपने पेट को साफ करना चाहिए।
  • स्वर यन्त्र में जलन से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम को अपने गले के चारों तरफ गीले कपड़े या मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए।
  • स्वर यन्त्र में जलन से पीड़ित रोगी को अपने गले, छाती तथा कंधे पर गरम या ठंडा सेंक बारी-बारी से करना चाहिए तथा इसके दूसरे दिन उष्णपाद स्नान करना चाहिए।
  • स्वर यन्त्र में जलन से पीड़ित रोगी को गरम पानी में हल्का नमक मिलाकर उस पानी से गरारा करना चाहिए और सुबह तथा शाम के समय में 1-1 गिलास नमक मिला हुआ गरम पानी पीना चाहिए।
  • स्वर यन्त्र में जलन से पीड़ित रोगी को 1 सप्ताह तक चोकरयुक्त रोटी तथा उबली-सब्जी खानी चाहिए।
  • फल और दूध का अधिक सेवन करने से स्वर यन्त्र में जलन का रोग ठीक हो जाता है।
  • स्वर यन्त्र में जलन से पीड़ित रोगी को पानी में नींबू का रस मिलाकर दिन में कई बार पीते रहना चाहिए तथा इसके अलावा गहरी नीली बोतल का सूर्यतप्त जल कम से कम 25 मिलीलीटर दिन में 6 बार पीना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से स्वर यन्त्र में जलन ठीक हो जाती है।


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