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साईनोसाइटिस

 

परिचय-

          जब किसी व्यक्ति को साईनोसाइटिस रोग हो जाता है तो उसकी नाक के पास की हडि्डयों के छिद्रों में सूजन आ जाती है जिसके कारण रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक कष्ट होता है।

साईनोसाइटिस रोग के लक्षण :-

          इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की आवाज भारी हो जाती है तथा उसकी जीभ से स्वाद पहचानने की शक्ति कम हो जाती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के सूंघने की शक्ति भी कम हो जाती है। साईनोसाइटिस रोग हो जाने के कारण रोगी की नाक के पीछे के भाग में भारीपन तथा थोड़े तनाव की अनुभूति होती है। रोगी व्यक्ति के सिर में दर्द होने लगता है जो रोगी के लिए असहनीय हो जाता है और उसे सर्दी तथा जुकाम भी होने लगता है। कभी-कभी रोगी व्यक्ति को बुखार भी हो जाता है।

साईनोसाइटिस रोग होने का कारण :-

          इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण यह है कि जब नसिका की अस्थियों के ढांचों के छिद्रों में दूषित द्रव्य या मल जमा हो जाता है तो उसकी नाक के पास की हडि्डयों में सूजन हो जाती है और साईनोसाइटिस रोग व्यक्ति को हो जाता है। जब यह रोग धीरे-धीरे बढ़कर पुराना हो जाता है तो बड़ी परेशानी से जाता है क्योंकि इस रोग से छुटकारा पाने के लिए नाक के रोग स्थल की ही नहीं बल्कि रोगी के पूरे शरीर तथा उसके खून की शुद्धि करनी पड़ती है जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो सकता है।

साईनोसाइटिस रोग को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

  • इस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को 2 दिनों तक उपवास रखना चाहिए और कब्ज को दूर करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इसके बाद कम से कम 14 दिनों तक उबली हुई शाक-सब्जी, शहद, सूखे मेवें तथा मौसमी फलों का रस पीना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन गहरी सांस लेनी चाहिए तथा प्रतिदिन गर्दन का व्यायाम करना चाहिए।
  • रोगी को अपने पेड़ू पर प्रतिदिन मिट्टी की पट्टी कम से कम 1 घण्टे के लिए रखनी चाहिए।
  • सुबह के समय में रोगी व्यक्ति को कम से कम 10 मिनट तक उदरस्नान करना चाहिए और प्रतिदिन अपने चेहरे पर 15 मिनट तक भाप देनी चाहिए। इसके बाद गीले तथा निचोड़े हुई तोलिये से अपना मुंह साफ करना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को रात को सोते समय अपने पैरों को 15 मिनट तक गरम पानी में रखना चाहिए। इसके बाद सिर पर ठंडे पानी से भीगा तौलिया रखना चाहिए और उसके बाद रोगी को अपने पैरों को एक मिनट के लिए ठंडे पानी में डालना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को कम से कम 3 दिनों तक लगातार एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि पेट साफ हो जाए और दिन में 2 बार पेट पर मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक उपचार करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
  • इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर मालिश करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप जमा हुआ बलगम बाहर निकलने लगता है और रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
  • रोगी व्यक्ति को एक टब में गुनगुना पानी लेकर उसमें अपने पैरों को कुछ देर तक रखना चाहिए तथा इसके बाद गुनगुने पानी से अपनी बांह को धोना चाहिए। इसके फलस्वरूप रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • गर्म पानी में युकेलिप्टस की पत्तियां या कपूर डालकर नाक से भाप लेने से जमा हुआ स्राव बाहर निकल जाता है और रोग ठीक हो जाता है।
  • रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन अपने सिर को अच्छी तरह से धोना चाहिए और नाक तथा मस्तिष्क पर गरम या ठंडा सेंक बारी-बारी से कम से कम 20 मिनट तक दिन में 2 बार करना चाहिए।


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