लगभग 102 डिग्री फारेनहाइट के तापमान के जल में यह स्नान आरम्भ करना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे गर्म पानी डालकर स्नान के टब के जल के पानी का तापमान 108 डिग्री फारेनहाइट कर देना चाहिए। स्नान करने से पहले रोगी को अपना सिर ठंडे जल से धोकर उस पर ठंडे जल से भीगा तथा निचोड़ा हुआ तौलिया लपेट लेना चाहिए। यह स्नान कुर्सीनुमा टब या बड़ी नांद, जिसमें पशुओं को चारा खिलाया जाता है, में भी किया जा सकता है। टब में इतनी मात्रा में पानी भरना चाहिए कि उसमें बैठने पर पानी नाभि और जांघों तक पहुंचे। टब के बाहर दोनों पैरों को गर्म पानी से भरे हुए दूसरे बर्तन में रखना चाहिए। टब में पीठ की तरफ सहारा लेकर बैठते हुए रोगी को चाहिए कि वह बिना रुके हुए तेजी से अपने दाहिने हाथ से नाभि के नीचे पेट की मालिश करने के साथ-साथ कमर के उस भाग की भी मालिश करे जोकि जल के अन्दर होता है। गर्म जल के स्नान के बाद शीघ्र ही ठंडे पानी से भरे हुए टब में 5 से 10 सेकेण्ड तक बैठना चाहिए। यह स्नान हमेशा गर्म कमरे में लेना चाहिए। इस स्नान को करने से स्त्रियों के गुप्तरोग, बवासीर, गुर्दे और मसाने की पथरी के दर्द, सूजाक, पेशाब में अवरोध, सायटिका पेन तथा अंडकोष की जलन में अधिक लाभ मिलता है।
नोट :
गर्भवती महिलाओं को यह स्नान डाक्टरों की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए।