रोगों से मुक्ति पाने के लिए गर्म जल का उपयोग प्राचीन समय से ही लोग करते आ रहे हैं परन्तु वैज्ञानिक ढंग से इसका उपयोग करते हैं तो उन्हें विशेष लाभ प्राप्त हो जाता है।
सुसम जल (लगभग 92 डिग्री फारेनहाइट से 94 फारेनहाइट) में बैठने या लेटने से जहां एक तरफ गर्मियों में गर्मी लगती है, वहीं दूसरी ओर उसके प्रवाह से बिना किसी प्रयत्न के शिथिलीकरण भी हो जाता है। इसलिए सुसम जल में लेटने से अनिद्रा और स्नायु की दुर्बलता नष्ट हो जाती है। सुसम जल के प्रयोग से शरीर की त्वचा में भी असाधारण रूप से निखार आ जाता है। यही कारण है कि बीमारी से मुक्त हुए कमजोर रोगियों को सुसम जल का स्नान अत्यंत लाभकारी होता है।
हल्का गर्म जल (94 डिग्री फारेनहाइट से 98 डिग्री फारेनहाइट) और गर्म जल (98 डिग्री फारेनहाइट से 104 डिग्री फारेनहाइट) का बार-बार प्रयोग करना त्वचा के लिए हानिकारक हो सकता है। इससे हमारे शरीर की स्वाभाविक स्वास्थ्यवर्द्धक क्रिया रुक जाती है जिससे शरीर की जीवनीशक्ति नष्ट हो जाती है। त्वचा पर गर्म जल का प्रयोग करने से वह फैल जाती है और साथ ही रक्त शरीर की भीतरी गंदगी को साथ लेकर नीचे से ऊपर तक अर्थात त्वचा की सतह पर दौड़ जाता है। शरीर की भीतरी गंदगी को साथ लेकर किन्तु उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने हेतु ऊपर आए हुए रक्त को पुन: शरीर के भीतर लौट जाना चाहिए जो त्वचा पर बार-बार गर्म जल के प्रयोग से संभव नही है। इस गर्म जल के प्रयोग के बाद ठंडे जल का प्रयोग करना आवश्यक होता है।
यही कारण है कि रोगों को नष्ट करने के लिए गर्म जल से स्नान करने के बाद ठंडे जल से स्नान का नियम बनाया गया है। गर्म जल से नहाने के तुरंत बाद ठंडे जल के प्रयोग से 2 प्रकार की क्रियाएं होती हैं जो निम्नलिखित हैं-
- विजातीय द्रव्यों की उपस्थिति के कारण शरीर की भीतरी जकड़न दूर होती है।
- हमारे शरीर के रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) में कमी होना हृदय के लिए लाभकारी होता है।
- शरीर में रक्त संचार के कारण रक्त के नीचे ऊपर आने-जाने से विभिन्न रोगों के विजातीय द्रव्य शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
गर्म पानी का अधिक समय तक का स्नान (लगभग 2 से 5 मिनट तक का) करने के कारण हमारे शरीर के तापमान और त्वचा की कार्यशीलता में वृद्धि होती है। इससे स्नायु संस्थान शिथिल हो जाता है तथा हृदय की गति तेज होने से इस पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गर्म जल के स्नान से शरीर की मांसपेशिया फैल जाती हैं यह पोषण शक्ति को तेज करता है तथा श्वास क्रिया को बढ़ाता है। अधिक गर्म पानी का थोड़े से समय तक का स्नान (1 से 5 सेकेण्ड तक का) शरीर का तापमान और त्वचा की कार्यशीलता को कम करता है। यह मांसपेशियों और रक्त की कोशिकाओं में संकुचन पैदा करता है, स्नायु संस्थान में स्फूर्ति उत्पन्न करता है, इससे हृदय की गति तेज होती है, यह पोषणशक्ति पर कोई भी प्रभाव नहीं डालता है तथा श्वसन क्रिया को तेज करता है। वृद्धावस्था तथा शारीरिक रूप से कमजोर रोगियों को अधिक गर्म जल स्नान नहीं करना चाहिए तथा हृदय रोगों से पीड़ित रोगियों को भोजन के 2 घंटे बाद तक और डेढ़ घंटे से पहले तक किसी भी तरह का गर्म स्नान नहीं करना चाहिए।