JK healthworld logo icon with JK letters and red border

indianayurved.com

Makes You Healthy

Free for everyone — complete solutions and detailed information for all health-related issues are available

वैकल्पिक चिकित्सा

  जो चिकित्सा एक रोग को ठीक करने के साथ ही अन्य रोगों को उत्पन्न करती है वह शुद्ध चिकित्सा नहीं कही जा सकती है। आधुनिक चिकित्सा एलोपैथिक में यह दोष है कि उसके द्वारा दी जाने वाली दवाइयां साइड इफेक्ट और विभिन्न प्रकार के रियेक्शन करती हैं। इस कारण से लोग यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि कोई ऐसी चिकित्सा प्रणाली होनी चाहिए जिसमें किसी भी प्रकार के साइड इफेक्ट न होते हों। वास्तव में इस प्रकार की विभिन्न चिकित्सा प्रणालियां हैं जिनको हम वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली कहते हैं।

          वैकल्पिक चिकित्सा के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रणालियों द्वारा चिकित्सा की जाती है।

1. स्पर्श चिकित्सा।

2. योग चिकित्सा

3आकाश तत्व चिकित्सा

4वायु तत्व चिकित्सा

5. अग्नि तत्व चिकित्सा

6. जल तत्व चिकित्सा

7. पृथ्वी तत्व चिकित्सा

8. खाद्य चिकित्सा।

9. एक्यूप्रेशर चिकित्सा

10. चुम्बकीय चिकित्सा

          ऊपर दी गई सभी चिकित्सा प्रणालियां बिना किसी साइड इफेक्ट के रोगों को उनके जड़ समेत खत्म करती हैं। इनकी संक्षेप में थोड़ी-थोड़ी सी जानकारी नीचे दी जा रही है।

1. स्पर्श चिकित्सा : स्पर्श चिकित्सा सभी के लिए प्रत्येक समय उपलब्ध होती है। स्पर्श चिकित्सा सरल, सुलभ, सस्ती, स्वावलम्बी, रोगों के कष्ट और उससे होने वाले दुष्प्रभावों से रहित शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक संतुलन पर आधारित होती है। स्पर्श चिकित्सा पद्धति हमारे शरीर में एकत्र हुए विजातीय द्रव्यों को नष्ट करके शरीर को उसकी प्रारम्भिक अवस्था में लाती है। इस चिकित्सा में ब्रह्यण्ड में उपलब्ध चैतन्य शक्ति की तरंगों को रोगी के शरीर के रोगग्रस्त अंग में अच्छे ढंग से प्रवाहित किया जाता है। इसके प्रयोग से रोगी को रोग से मुक्त हो जाता है।

2. योग चिकित्सा : योग का सम्बंध हमारे शरीर के सभी अंगों, अन्त:करण और आत्मा से लगाया जाता है। नियमित रूप से योगाभ्यास और योगसाधना करने से हमारा  शरीर समस्त प्रकार के रोगों से दूर रहता है। इससे हमारा शरीर निरोग और मोक्ष प्राप्त करने के योग्य बन जाता है। योग का नियमित अभ्यास करने वाले लोग शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं। वास्तव में हमारे शरीर में कोई न कोई विकार उत्पन्न होगा तो साधना ही एक ऐसी औषधि जिससे मन और शरीर दोनों को ही विकारों से मुक्ति मिलती है। आसन और प्राणायाम द्वारा शरीर में व्याप्त रोगों को नष्ट किया जाता है। इससे वात, पित्त और कफ से होने वाले रोग नष्ट होते हैं तथा पूरी तरह से शुद्ध और साफ हो जाता है।

3. आकाश चिकित्सा : आकाश तत्व पांचों तत्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी,) में सबसे अधिक उपयोगी और प्रथम तत्व होता है। आकाश तत्व हल्का अर्थात निराकार होता है। जिस प्रकार ईश्वर बिना किसी आकार का होता है। उसी प्रकार आकाश भी ब्रह्यण्ड का ही आधार होता है। `उपवास` आकाश तत्व की प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन होता है। आकाश तत्व के रहस्य के बारे में जानकारी प्राप्त करना ईश्वर के बारे में जानकारी प्राप्त करने के समान होता है। आकाश तत्व के ही कार्य काम, क्रोध, शोक, मोह और भय होता है। हमारे शरीर में आकाश तत्व के विशेष स्थान सिर, कंठ, हृदयपेट और कमर होता है। हमारे शरीर के उपर्युक्त अंगों में से जब भी कोई अंग रोगों से ग्रसित होता है तो उन अंगों पर आकाश तत्व चिकित्सा करके शरीर को शारीरिक और मानसिक रूप से उन्नत बनाया जाता है।

4. वायु तत्व चिकित्सा : हमारे शरीर के लिए वायु तत्व पांचों तत्वों में दूसरा सबसे अधिक उपयोगी तत्व होता है। वायु जीवन के लिए अधिक आवश्यक होती है। यदि हमें थोड़ी भी देर के लिए वायु मिलना बन्द हो जाए तो हम तुरन्त ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। पूरे विश्व के वायुमंडल में विभिन्न प्रकार की वायु मिश्रित रहती है। इससे हमें यह पता चल पाता है कि कौन सी वायु हमारे के शरीर के लिए लाभदायक तथा कौन सी वायु का सेवन हमारे शरीर के लिए हानिकारक होता है। इतना ही नहीं हम वायु के उचित उपयोग से अपनी आयु भी बढ़ा सकते हैं। वायु के सही सेवन से व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक शक्ति को जागृत कर सकता है।

5. अग्नि तत्व चिकित्सा : पंचतत्वों में अग्नि तीसरा सबसे उपयोगी तत्व होता है। इस तत्व में सूर्य के द्वारा चिकित्सा की जा जाती है। हमारे सौरमंडल के सभी ग्रहों में सूर्य सबसे बड़ा होता है तथा अन्य सभी ग्रह इसके चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं तथा रोशनी और ऊर्जा को प्राप्त करते हैं। हमारे समाज में सूर्य को देवता का स्थान प्राप्त है तथा नियमानुसार सूर्य की पूजा भी होती है जो व्यक्ति जितना अधिक सूर्य के प्रकाश का सेवन करता है। उसकी दिमागी शक्ति उतनी ही अधिक विकसित होती है। सूर्य की उपासना के ही कारण हमारे देश के ऋषि-मुनि इतने बुद्धिमान और ज्ञानवान बन सके हैं कि विश्व में उनके समान कोई भी नहीं हुआ है। सूर्य से सात प्रकार के रंगों की किरणें निकलती हैं जिनका अपना-अपना महत्व होता है। हमारे शरीर के समस्त रोगों को नष्ट करने के लिए सूर्य की किरणों का अलग-अलग विशेष महत्व होता है। सूर्य के सप्त किरणों के द्वारा दिया गया धूपस्नान शरीर के रोगों के लिए लाभकारी होता है।

6. जल चिकित्सा : पांचों तत्वों में जल चौथा तत्व है। यह सभी जीवधारियों के लिए उतना ही उपयोगी होता है जितना कि सांस लेने के लिए वायु की आवश्यकता होती है। हमारे शरीर का 70 प्रतिशत जल है। कहा भी गया है कि `जल ही जीवन है`, जल में अग्नि को ग्रहण करने की शक्ति होती है जिससे रोगों का उपचार करने में बहुत अधिक सहायता मिलती है। यदि जल आवश्यकता से अधिक शीतल हो जाता है तो यह बर्फ में परिवर्तित हो जाता है। जिस प्रकार जल में अग्नि को बुझाने की शक्ति होती है उसी प्रकार मिट्टी में अग्नि को बुझाने की शक्ति होती है। रोगों के उपचार के लिए जब मिट्टी और जल का एक साथ प्रयोग करते हैं तो इससे रोग इस तरह से शांत होता है जैसे कि किसी ने जादू कर दिया हो। इस तत्व में गर्म और ठंडे दोनों तत्वों से चिकित्सा की जा सकती है जिसमें वाष्प स्नान, ठंडा स्नान, रीढ़ स्नान आदि प्रमुख होते हैं।

7. प्रथ्वी तत्व चिकित्सा : हमारी पृथ्वी को सभी जड़-चेतन वस्तुओं को धारण करने के कारण `धरती`, धरा, वसुन्धरा भी कहते हैं। पृथ्वी के गर्भ में विभिन्न प्रकार के खनिज होने के कारण इसे `रत्नगर्भा` , विष के प्रभाव को नष्ट करने के कारण इसे `अमृता` तथा सभी रोगों को नष्ट करने के गुण के कारण इसे `सर्वरोगहारिणी` भी कहा जाता है। जिन पांच तत्वों से मिलकर हमारे शरीर का निर्माण होता है, मिट्टी तत्व उसमें सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता है। मिट्टी में अनेक प्रकार के गुण पाये जाते हैं। इसमें दुर्गंध को नष्ट करने का गुण पाया जाता है। मिट्टी में सर्दी और गर्मी को रोकने की शक्ति पायी जाती है। जल स्वच्छ और निर्मल बनाने की शक्ति भी मिट्टी में पायी जाती है। मिट्टी में सभी प्रकार के धातुओं को धारण करने की शक्ति पायी जाती है तथा रोगों की नष्ट करने की अपूर्व क्षमता भी पायी जाती है। मिट्टी सर्वगुण सम्पन्न होने के कारण सभी रोगों की चिकित्सा की जाती है।

8. एक्यूप्रशेर चिकित्सा : हमारे शरीर के निश्चित बिन्दुओं, हिस्सों और अंगुलियों या अंगूठे से सीधा दबाव डालकर रोगों की चिकित्सा करना `एक्यूप्रेशर चिकित्सा प्रणाली` के नाम से जाना जाता है। यह शरीर के रोगग्रस्त हिस्से पर दबाव देने की क्रिया शुरू करता है। ऐसा ही इसे एक्यूपेशर चिकित्सा में किया जाता है।

9. खाद्य चिकित्सा : वायु और जल के बाद भोजन हमारे जीवन की सबसे प्रमुख आवश्यकता होती है। हमें आहार के द्वारा मुख्य रूप से सात तत्व- प्रोटीन, कार्बोज, स्फोक, वसा, जल, विटामिन्स और खनिज लवण प्राप्त होते हैं। इन तत्वों में से यदि किसी तत्व की कमी हमारे शरीर में हो जाती है तो इसके कारण हमारा शरीर रोगग्रस्त हो जाता है। हमारे शरीर के लिए आहार से अधिक महत्वपूर्ण आहार का पाचन होता है। वर्तमान समय में विश्व की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या अपने आहार का सेवन सही तरीके से नहीं करती है जिसके फलस्वरूप वे रोगों से घिर जाते हैं। हमें गांधी जी के सिद्धांत जीने के लिए खाना चाहिए न कि खाने के लिए जीना चाहिए, सिद्धांत को अपनाना चाहिए। हम अपनी जीभ की स्वाद पूर्ति के लिए कुछ भी खा पी लेते हैं और बीमार हो जाते हैं। खाद्य चिकित्सा में पौष्टिक और संतुलित आदि द्वारा रोगी की चिकित्सा करके उसे रोगों से मुक्त किया जाता है। आहार चिकित्सा के द्वारा रोगी को हमेशा के लिए स्वस्थ और निरोग बनाया जा सकता है। प्राकृतिक चिकित्सा में आहार चिकित्सा का महत्वपूर्ण स्थान है।

10. चुम्बकीय चिकित्सा : जीवधारियों में चुम्बक की शक्ति के द्वारा रोगों की चिकित्सा करना चुम्बकीय चिकित्सा कहलाता है। चुम्बकीय चिकित्सा प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है, जिसका सफल प्रयोग विभिन्न रोगों में किया जाने लगा है। चुम्बक चिकित्सा की सहायता से असाध्य रोगों जैसे कैंसर का भी इलाज किया जा सकता है। इस चिकित्सा की खास बात यह है कि यह चिकित्सा उत्तरी और दक्षिणी धु्वों द्वारा की जाती है। इन्ही ध्रुवों पर के विभिन्न प्रयोगों द्वारा रोग से मुक्ति दिलाई जा सकती है।


Copyright All Right Reserved 2025, indianayurved