परिचय.
बद्ध-पद्मासन को भस्मासन भी कहते हैं। इस आसन की स्थिति में शरीर दोनों हाथ व दोनों पांव से इस तरह बंध जाता है जैसे किसी रस्सी को खम्भे पर लपेट देते हैं। इसलिए योगियों ने इसे बद्ध-पद्मासन कहा है। यह आसन रोगी, निरोगी, योगी आदि सभी व्यक्तियों के लिए लाभकारी है। इस आसन का अभ्यास कई प्रकार से किया जाता है और इसका प्रयोग अनेक बीमारियों व यौगिक क्रियाओं में किया जाता है।
बद्ध-पद्मासन करने की विधि-
पहली विधि-
आसन का अभ्यास हमेशा स्वच्छ वातावरण तथा स्वच्छ हवा के प्रवाह वाले स्थान पर करें। बद्ध-पद्मासन के लिए जमीन पर चटाई या दरी बिछाकर उस पर सामान्य स्थिति में बैठ जाएं। अब दाएं पैर को घुटनों से मोड़कर बाएं पैर की जांघ के संधिस्थल पर रखें। इसके बाद बाएं पैर को भी घुटनों से मोड़कर दाएं पैर की जांघ के संधिस्थल पर रखें। इसके बाद बाएं हाथ को पीछे की तरफ से लाकर दाएं पैर के अंगूठे को पकड़ लें और दाएं हाथ को पीछे से लाकर बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ लें। इस स्थिति में आगे पिण्डलियों व पीछे हाथों से एक प्रकार से क्रॉस का निशान जैसा बन जाएगा। बद्ध-पद्मासन के इस स्थिति में आने के बाद मेरूदंड (रीढ़ की हड्डी) छाती, सिर व गर्दन समेत पूरे शरीर को सीधा तान कर रखें। सिर को तान कर और आंखों को सामने की ओर रखें। अब सांस अंदर खींचते हुए छाती को बाहर निकालें और शरीर को ऊपर की ओर खूब खींचें। अपनी दृष्टि (आंख) को नाक के अगले भाग पर टिकाकर रखें। आसन की स्थिति में जब तक रहना सम्भव हो रहें और सामान्य स्थिति में श्वासन क्रिया करते करें। इस आसन का अभ्यास पैरों की स्थिति बदल कर भी करें।
दूसरी विधि-
बद्ध.पद्मासन की इस विधि में स्थान व वातावरण पहले वाला ही रखें। इसमें हाथ व पैरों की स्थिति भी पहली स्थिति की तरह ही रखें। अब सामान्य रूप से सांस को धीरे-धीरे बाहर छोड़ते हुए शरीर को धीरे-धीरे आगे की ओर झुकातें हुए सिर या नाक को फर्श से लगाने की कोशिश करें। नीचे झुकने के बाद इस स्थिति में जितने देर तक रहना सम्भव हो रहें। फिर धीरे-धीरे ऊपर सीधे हो जाएं। इस आसन को पुनरू करने के लिए पांव की स्थिति बदल कर भी अभ्यास कर सकते हैं।
सावधानी.
सिर को नीचे फर्श से लगाते समय जल्दबाजी न करें तथा धीरे-धीरे सिर को फर्श से टिकाने की कोशिश करें।
लाभ-
- इस आसन से पाचन शक्ति मजबूत होती है। इसलिए योगियों ने इसे भस्मासन भी कहा है। इस आसन में पूरे शरीर का खिंचाव होता है। इस खिंचाव से पेट, छाती, हाथ व पैर पर बल पड़ता है और व शक्तिशाली व निरोग (रोगों से मुक्त) होता है। यह पेट की अधिक चर्बी कम कर मोटापे को कम करता है, जिससे कमर पतली, मजबूत व सुंदर बनती है। इससे शरीर की सुंदरता में वृद्धि होती है। यह कब्ज को खत्म करता है तथा पेट के रोगों को दूर करता है। जिन्हें मल खुलकर न आता हो उन्हे सुबह उठकर शौच से पहले इस आसन को करना चाहिए। इससे मल खुलकर आता है तथा मलक्रिया के समय अधिक देर तक बैठने की जरूरत नहीं पड़ती।
- गर्भवती स्त्री को यह आसन करने से गर्भाशय की अनेक बीमारियां दूर हो जाती हैं। प्रसव के बाद स्त्री के पेट की त्वचा पर पड़ने वाली झुर्रियां, ढीलापन तथा कोमलता आदि इस आसन को करने से खत्म हो जाते हैं। इस आसन से हड्डियों का बुखार ठीक होता है तथा पेट की बीमारियां व सर्दी कभी नहीं होती। प्राणायाम के द्वारा नाड़ी को शुद्ध करने के बाद इस आसन को करना लाभकारी होता है। इसके अभ्यास से प्राण-अपान से एक होने लगते है जिसके फलस्वरूप चित्त (मन), एकाग्र व प्रसन्न होता है और शरीर हल्का रहता है। इस आसन को योगी, भोगी, रोगी और निरोगी सभी कर सकते हैं।