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प्राथमिक चिकित्सा

परिचय-

          आधुनिक युग में जितनी ज्यादा आबादी बढ़ती जा रही है उतनी ही ज्यादा यातायात के साधनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। आज हर घर में किसी न किसी के पास बाईक या कार जरूर होती है। सड़क पर निकलो तो लगता है कि गाड़ियों का मेला सा लग रहा है। गाडियों की बढ़ती संख्या के साथ ही दुर्घटनाएं भी बढ़ती जा रही है। सुबह घर से निकला व्यक्ति पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि शाम को वह घर आ ही जाएगा। शाम तक उसके साथ किसी भी तरह की दुर्घटना घटित हो सकती है। दुर्घटना कई बार साधारण होती है जबकि कई बार जानलेवा होती है। कुछ दुर्घटनाएं ऐसी होती है जिसमें व्यक्ति को अपने शरीर का कोई अंग गंवाकर जिंदगी भर अपाहिज की जिंदगी बितानी पड़ती है। देखा जाए तो कहा जा सकता है कि आज के समय में लोग रोगों से ज्यादा दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा रहे हैं।

          एक सर्वेक्षण से पता चला है कि दस लाख की आबादी वाले शहर में हर साल लगभग 200 व्यक्तियों की मृत्यु किसी न किसी दुर्घटना में होती है। जिन शहरों में यातायात के साधन अधिक है उन शहरों में मृत्युदर 200 से भी ज्यादा हो सकती है। दुर्घटना में अपनी जान गंवाने वालों में सबसे अधिक मौत 18 से 30 वर्ष की आयु वाले लोगों की होती है, इसके बाद 30 से 50 वर्ष के लोगों की। अक्सर लोगों के साथ दुर्घटना उस आयु में अधिक होती है जब उनका जीवन संघर्षशील होता है यानि 25 से 35 के बीच। किसी दुर्घटना में अंग काट-फट सकते हैं, हड्डियां टूट सकती है तथा नाजुक अंगों में गंभीर चोट लग सकती है। यदि दुर्घटना में किसी व्यक्ति का अंग कट-फट जाता है, हड्डियां टूट जाती है या अन्य शारीरिक हानि होती है तो ऐसी स्थिति में समय रहते जल्दी से उपचार न मिलने पर छोटे से छोटा जख्म भी गंभीर हो सकता है जिसे जीवनभर भुगतना पड़ सकता है।

          इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति कभी भी और किसी समय भी भयंकर रोग से पीड़ित हो सकता है जैसे- उसे अचानक पेट में तेज दर्द उठ सकता है, हार्ट-अटैक (दिल का दौरा) पड़ सकता है, भोजन करते समय श्वासनली में भोजन का कोई ग्रास अटक जाने से सांस रुक सकती है। इस तरह की परिस्थितियों में पीड़ित व्यक्ति को तुरंत ही प्राथमिक उपचार की जरूरत पड़ती है। 

          अगर कोई व्यक्ति अचानक दुर्घटना-ग्रस्त हो जाता है, चाहे वह किसी भी कारण से हो जैसे- गाड़ी से टकराकर, ऊंचाई से गिरकर, पानी में डूबने से, सांस अटकने से, मिर्गी का दौरे पड़ने से या हार्टअटैक से। इन स्थितियों में पीड़ित व्यक्ति को तुरंत किसी चिकित्सक के पास ले जाने का समय नहीं होता जैसे- दिल का दौरा पड़ने पर पीड़ित को बेहोशी आती है और ऐसी अवस्था में अगर उसे 3 मिनट तक कोई इलाज न मिले तो उसके मस्तिष्क को हानि पहुंचने की संभावना अधिक रहती है। ऐसी स्थिति में हमारे पास एक ही विकल्प होता है कि रोगी को तुरंत प्राथमिक उपचार दिया जाए। आज हर उस व्यक्ति को प्राथमिक उपचार की आवश्यकता है जो अचानक किसी दुर्घटना या किसी भयंकर रोग से पीड़ित होता है। कई बार दुर्घटना होने पर जब तक पीड़ित अस्पताल पहुंचता है तब तक उसकी हालत इतनी गंभीर हो जाती है कि उसे ठीक करना मुश्किल हो जाता है। कई बार अस्पताल पहुंचने में देर होने से शरीर को बहुत नुकसान हो चुका होता है जैसे- अधिक खून का बह जाना या इंफेक्शन की वजह से शारीरिक अंगों को काट देना, कभी-कभी देर हो जाने से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है। ऐसी ही परिस्थितियों में प्राथमिक उपचार की आवश्यकता पड़ती है।

     अब कई लोग सोचते होंगे कि प्राथमिक उपचार होता क्या है? और यह कैसे करते हैं? किसी घायल या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को तुरंत दी जाने वाली चिकित्सा को प्राथमिक चिकित्सा या उपचार कहते हैं। इस चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य पीड़ित व्यक्ति के जीवन की रक्षा करना, उसे तुरंत राहत पहुंचाना और उसकी हालत को अधिक बिगड़ने से रोकना है। यह एक साधारण व्यक्ति द्वारा किसी पीड़ित व्यक्ति को चिकित्सकीय सुविधाएं मिलने तक दिए जाने वाली जीवनरक्षक चिकित्सा है।

     प्राथमिक उपचार को प्राथमिक चिकित्सा, प्राथमिक सहायता तथा फर्स्ट-एड भी कहते हैं। प्राथमिक चिकित्सा सदियों से चली आ रही है। इस चिकित्सा के अंतर्गत कोई व्यक्ति अपने साथी आदि के किसी तरह की चोट लग जाने पर या उसके किसी दुघर्टना में ग्रस्त हो जाने पर उसका उसी समय और खुद ही इलाज करना शुरु करता है। फौजियों को ट्रेनिंग के समय प्राथमिक उपचार की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि यदि उनका कोई साथी घायल हो जाए तो वह उसकी स्वयं ही चिकित्सा कर सकें। वैसे प्राथमिक उपचार की जानकारी हर किसी को होना जरूरी है ताकि किसी के सामने अगर किसी व्यक्ति को प्राथमिक उपचार की जरूरत हो तो वह उसकी मदद कर सकें।

‘प्राथमिक उपचार’ चिकित्सा और शल्यकर्म के वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है परंतु यह रोगी की संपूर्ण चिकित्सा नहीं है। प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति को हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि वह चिकित्सक नहीं है। उसकी जिम्मेदारी सिर्फ उसी समय तक रहती है जब तक पीड़ित व्यक्ति चिकित्सक के संरक्षण में नहीं पहुंच जाता है। रोगी को चिकित्सक के संरक्षण में पहुंचा दिए जाने के बाद उसकी जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है।

प्राथमिक उपचार में उचित जानकारी- दुर्घटना आदि होने के बाद कई बार ऐसा भी होता है कि प्राथमिक उपचार मिलने के बावजूद पीड़ित व्यक्ति की हालत सुधरने की बजाय और बिगड़ जाती है। उसकी हालत ऐसी हो जाती है कि बाद में उचित उपचार मिलने के बाद भी वह शारीरिक या मानसिक रूप से अपंग रह जाता है। प्राथमिक उपचार करने वाले से अनजाने में हुई जरा सी गलती पीड़ित के लिए घातक हो सकती है। इस स्थिति का मुख्य कारण है उपचारकर्ता को प्राथमिक उपचार के बारे में सही जानकारी न होना।

     आमतौर पर लोगों के मन में यह धारणा रहती है कि प्राथमिक चिकित्सा के लिए पूर्व जानकारी लेने की कोई जरूरत नहीं होती लेकिन यह सही नहीं है क्योंकि कोई भी प्रशिक्षित चिकित्सक बिना प्रशिक्षण के उचित प्राथमिक चिकित्सा नहीं कर सकता। इसके अलावा अगर किसी रोगी की प्राथमिक चिकित्सा करते समय चिकित्सा करने वाले व्यक्ति से जरा सी भी गलती हो जाए तो पीड़ित व्यक्ति को उसका काफी गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है जैसे- अगर किसी व्यक्ति को दिल का दौरा पडा हो तो उसे उठाना, बैठना या कुछ खिलाना हानिकारक होता है और अगर प्राथमिक चिकित्सा करने वाले व्यक्ति को इस बारे में पूरी जानकारी नहीं होगी तो सोच लीजिए की इसका परिणाम क्या होगा। अस्पताल में इलाज करने के लिए प्रशिक्षित चिकित्सकों के पास सभी जरूरी उपकरण, दवाईयां और सुविधाएं उपलब्ध होती हैं लेकिन प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति के पास ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं होती है। प्राथमिक उपचार की जरुरत अचानक पड़ती है जैसे- सड़क पर, कारखाने में, घर में, दफ्तर या अन्य स्थानों में अचानक हुई दुर्घटना के कारण। इसलिए ऐसी स्थिति में प्राथमिक चिकित्सा करने के लिए हमेशा तैयार रहना पड़ता है।

     प्राथमिक उपचार करने वालों में कुछ गुणों का होना बहुत जरूरी है जैसे- पीड़ित की जांच करने की तेज क्षमता, सही सोच और समझ रखने का गुण और बिना किसी हड़बड़ी के जल्दी से जल्दी राहत पहुंचाने की क्षमता। प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति को हमेशा आपातकालीन स्थिति में शांति और धैर्य से रहना चाहिए। उसके अंदर भरपूर आत्मविश्वास होना चाहिए, उसके चेहरे या आवाज से कभी भी घबराहट या हड़बड़ी के भाव नहीं दिखाई देने चाहिए क्योंकि इससे पीड़ित की हालत और बिगड़ सकती है। इसके अलावा उसमें पीड़ित को दिलासा देते रहने का गुण होना चाहिए ताकि पीड़ित की मानसिक हालत में सुधार आ सके।

     किसी भी पीड़ित व्यक्ति को प्राथमिक उपचार देने से पहले आसपास जमी भीड़ को हटाएं, इससे उपचार करने में बाधा नहीं आती और साथ ही पीड़ित व्यक्ति को ताजी हवा मिलती है जो उस समय उसके लिए बहुत जरुरी होती है।

प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति के लिए जरूरी निर्देश- किसी भी दुर्घटना की सूचना मिलते ही तुरंत दुर्घटना-स्थल पर पहुंचे और इसके बाद दुर्घटना-ग्रस्त व्यक्ति का नाम और पता मालूम करके उसके परिवारजनों को सूचना दें। सूचना भिजवाते समय दुर्घटना-स्थल की सही स्थिति की जानकारी होना जरूरी है।

     प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति का सबसे पहला काम है कि अपने साथी या किसी और व्यक्ति को डॉक्टर को फोन करने के लिए और दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने का प्रबंध करने के लिए कहें। इसके बाद दुर्घटना-स्थल और पीड़ित व्यक्ति की हालत का शीघ्र निरीक्षण करें। अगर पीड़ित व्यक्ति का कोई अंग किसी गाड़ी, खंभे, दीवार आदि के नीचे दबा हो तो उसे तुरंत स्वयं या किसी और की मदद से बाहर निकालने की कोशिश करें। अगर कोई व्यक्ति जलते हुए मकान या जहरीली गैस से भरे हुए कमरे में हो तो उसे तुरंत बाहर निकाल लें। अगर कोई व्यक्ति बिजली के नंगे तार के संपर्क में हो तो उसे लकड़ी या रबड़ जैसी किसी कुचालक वस्तु की सहायता से तार से दूर करें। ऐसी स्थिति में प्राथमिक चिकित्सा करने वाले व्यक्ति को अपनी भी पूर्ण सावधानी बरतने की जरूरत है नहीं तो उसके खुद के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती हैं।

          अगर दुर्घटना-ग्रस्त व्यक्ति किसी झगड़े में घायल हुआ हो और उसके शरीर में चाकू-छुरी जैसी वस्तु धंसी हो या गोली लगी हो तो सबसे पहले पुलिस को खबर दें और फिर प्राथमिक उपचार शुरु करें। एक बात का ध्यान रखें कि दुर्घटना स्थल से किसी भी तरह के फिंगर-प्रिंट या दूसरे सबूत न मिटने पाएं क्योंकि अंगुलियों के निशान, पीड़ित व्यक्ति के पड़े रहने की स्थिति आदि से हमलावर को पहचानने एवं पकड़ने में पुलिस को मदद मिल सकती है। 

          प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति में कम से कम समय में दुर्घटना-स्थल का जायजा लेने और जल्दी से जल्दी सही डिसिजन लेकर पीड़ित को राहत पहुंचाने का गुण होना चाहिए। यह समय पीड़ित के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है और ऐसे समय में उपचारकर्ता की थोड़ी सी देरी या लापरवाही पीड़ित के जीवन को नुकसान पहुंचा सकती है।

          अगर पीड़ित व्यक्ति होश में हो तो वह स्वयं अपनी स्थिति के बारे में बता सकता है जैसे- उसे कैसा महसूस हो रहा है, उसके किस अंग में अधिक दर्द है, सांस लेने में परेशानी हो रही है या नहीं आदि। इससे उपचार करने वाले को पीड़ित की सहायता करने में आसानी होगी और वह सबसे पहले ग्रस्त अंग की चिकित्सा करेगा।

     पीड़ित व्यक्ति को देखकर उपचारकर्ता खुद भी उसकी स्थिति की गंभीरता का पता लगा सकता है जैसे- पीड़ित व्यक्ति का चेहरा पीला पड़ना, बंद होती आंखें, नब्ज का पता न चलना, आवाज का कमजोर होना, शरीर में कंपकंपाहट होना, किसी अंग का सूजना, फैली हुई आंखों की पुतलियां, चक्कर आना, शरीर का तापमान बढ़ा हुआ आदि। इस तरह के लक्षणों को उपचारकर्ता आसानी से देख सकता है और उसके आधार पर अपना कार्य कर सकता है।

     अगर पीड़ित व्यक्ति बेहोश हो तो उपचारकर्ता को चाहिए कि वह उसकी सही स्थिति का पता लगाकर और उसकी जेब से उसकी डायरी या पहचान पत्र आदि निकालकर उसके परिवार वालों को उसकी हालत के बारे में सूचित करें। कुछ व्यक्ति अपनी जेब में हमेशा डॉक्टरी रिपोर्ट रखते हैं जिसे देखकर यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति किस रोग से पीड़ित है। इसके बाद यह देखें कि पीड़ित व्यक्ति की सांस चल रही है या नहीं। यदि ठीक से सांस न चल रही हो तो यह देखें कि कहीं सांस नली में कुछ अटका हुआ तो नहीं है। यदि पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई हो रही हो या उसके दिल की धड़कन ठीक से न चल रही हो तो तुरंत उसका उपचार शुरु कर दें क्योंकि ऐसी स्थिति में कुछ सेकंड की देरी भी पीड़ित व्यक्ति की हालत को गंभीर कर सकती है। सांस न चलने की स्थिति में अपने मुंह से पीड़ित व्यक्ति को सांस दें। इसे क्रिया को कृत्रिम सांस क्रिया कहा जाता है।

     पीड़ित व्यक्ति की सांस ठीक से चल रही हो और दिल की धड़कन भी ठीक हो तो यह मालूम करें कि उसके किसी अंग से खून तो नहीं निकल रहा है। यदि पीड़ित व्यक्ति के शरीर के किसी अंग से खून निकल रहा हो तो किसी तरह से उसे बंद करने का उपाय करें। यदि खून का निकलना बंद नहीं किया जाता तो इसके कारण पीड़ित के शरीर में खून की कमी हो सकती है जिससे उसकी हालत गंभीर हो सकती है।

     यदि पीड़ित व्यक्ति के किसी बाहरी घाव से खून निकल रहा हो तो वह आसानी से पता लग जाता है लेकिन दुर्घटना के कारण आंतरिक अंगों में चोट लगने से अंदर ही अंदर खून का स्राव होने लगता है। यह खून शरीर से बाहर नहीं निकल पाता बल्कि शरीर के अंदर ही किसी खाली स्थान पर जमा होने लगता है जैसे- पेरीटोनियल कैविटी, थोरासिक कैविटी या कपाल आदि। इस तरह खून का निकलना बहुत खतरनांक होता है क्योंकि इसमें बाहर कोई चोट दिखाई नहीं देती लेकिन स्थिति इतनी गंभीर होती है कि व्यक्ति की मौत हो सकती है।

     प्राथमिक उपचार करते समय ध्यान रखें कि दुर्घटना-ग्रस्त व्यक्ति शॉक में तो नहीं है या उसकी किसी अंग की हड्डी तो नहीं टूटी हुई है या उसके सिर, पीठ, पेट आदि पर चोट तो नहीं लगी है।

     ज्यादातर दुर्घटनाएं सड़क पर तेजी से चलने वाले वाहनों के कारण होती हैं। इस प्रकार की दुर्घटनाओं में पीड़ित व्यक्ति को संक्रमण से बचाना भी जरुरी होता है क्योंकि सड़कों पर पड़ी धूल, गोबर, लीद, कचरे आदि में उपस्थित कीटाणु शीघ्र ही पीड़ित व्यक्ति की चोटों को संक्रमित कर सकते हैं।

     सड़क पर दुर्घटना-ग्रस्त हुए व्यक्ति को प्राथमिक उपचार देने से पहले उसे किसी छायादार जगह में ले जाना चाहिए। बारिश हो रही हो, ठंडी हवा चल रही हो या बहुत तेज धूप हो तो पीड़ित व्यक्ति को जल्दी से जल्दी पास के किसी घर में ले जाएं। पर कुछ परिस्थितियां जैसे पीड़ित व्यक्ति के दिल की धड़कन बंद हो जाने या उसकी सांस रुक जाने या उसकी रीढ़ की हड्डी टूट जाने पर खराब मौसम में भी, रोगी के ऊपर छाती तानकर या कपड़ा ढककर या केवल अखबार ढककर सड़क या दुर्घटना-स्थल पर ही उसका उपचार शुरु कर देना चाहिए।

     पीड़ित व्यक्ति को शुद्ध हवा में रखना चाहिए लेकिन उसे धूप से भी बचाकर रखना चाहिए। अगर दुर्घटना किसी खुली जगह पर हुई हो और किसी बड़ी हड्डी के टूटने के कारण रोगी को वहां से जल्दी हटा पाना संभव न हो तथा वहां धूप हो तो ऐसी स्थिति में रोगी के ऊपर छाता या चाद्दर तानकर धूप से उसका बचाव करें।

     प्राथमिक उपचार करने के लिए पट्टी बांधने, खपच्ची लगाने, कृत्रिम सांस देने, मालिश करने आदि की जानकारी होनी चाहिए। प्राथमिक उपचारकर्त्ता को यह भी ज्ञान होना चाहिए कि अगर किसी समय किसी जरूरी वस्तु का अभाव हो तो उसकी पूर्ति किसी दूसरीवस्तु से की जा सकती है।

     प्राथमिक चिकित्सक को तंदुरुस्त शरीर वाला होना चाहिए क्योंकि प्राथमिक चिकित्सा के दौरान कई बार ऐसी परिस्थितियां भी पैदा हो जाती है जिनमें कि प्राथमिक चिकित्सक को पीड़ित व्यक्ति को अपनी पीठ पर या गोद में उठाकर ले जाना होता है। इसके अलावा उसे भाग-दौड़ और पीड़ित की मालिश आदि और भी कई काम करने पड़ते हैं।

     दुर्घटना-ग्रस्त व्यक्ति को कोई उत्तेजक औषधि बहुत सोच-समझकर देनी चाहिए। अगर ठंड ज्यादा हो तो उसे गर्म चाय, कॉफी, दूध आदि दिया जा सकता है। अगर पीड़ित व्यक्ति बेहोश हो तो नौसादर में चूना मिलाकर सुंघाने से वह होश में आ सकता है।

     प्राथमिक चिकित्सक को समझदार, बुद्धिमान, दूरदर्शी, बहादुर, धैर्यवान और हंसमुख होना चाहिए। पीड़ित की परेशानी को समझकर उसकी जरूरी चिकित्सा करने में उसे बिल्कुल भी देर नहीं लगानी चाहिए।  

प्राथमिक उपचारकर्त्ता के लिए जरूरी जानकारियां-

  • प्राथमिक उपचारकर्त्ता को सबसे पहले घटना-स्थल पर पहुंचकर पीड़ित व्यक्ति की जांच करके उसकी हालत की सही जानकारी लेनी चाहिए।
  • यदि पीड़ित व्यक्ति के दिल की धड़कन बंद हो गई हो तो बिना समय गंवाए उसकी रुकी हुई धड़कन को चालू करने का उपचार करना चाहिए।
  • यदि पीड़ित व्यक्ति की सांस बंद हो गई हो तो उसे तुरंत ही कृत्रिम सांस देनी चाहिए।
  • यदि पीड़ित व्यक्ति के शरीर से ज्यादा खून निकल रहा हो तो सबसे पहले उसे रोकने का उपाय करना चाहिए।
  • यदि पीड़ित व्यक्ति शॉक में हो तो तो तुरंत ही उसे शॉक से बाहर लाने का उपचार करें।
  • पीड़ित व्यक्ति के ऐसे जोड़ों और हड्डियों को देखें जिनके टूटने से उसे उठने-बैठने में कष्ट होता हो जैसे- कूल्हे की हड्डी, जांघ की हड्डी, घुटना आदि। प्राथमिक उपचार इस प्रकार दें कि पीड़ित व्यक्ति अस्पताल ले जाने लायक हो सके।
  • यदि दुर्घटना में पीड़ित व्यक्ति जल गया हो तो उसके घावों पर ठंडा पानी डालें।
  • पीड़ित व्यक्ति के आंख, नाक और कान की चोटों की ओर ध्यान दें।
  • पीड़ित व्यक्ति के शरीर की गहरी चोटों को साफ करके उनकी मरहम-पट्टी करें।
  • आखिर में पीड़ित व्यक्ति के पूरे शरीर की एकबार दुबारा से जांच करें। हो सकता है कि पहली बार जांच करने पर कुछ ऐसे लक्षणों की ओर ध्यान न गया हो जो किसी घातक चोट के संकेत हो सकते हैं जैसे- कानों से खून बहना, मस्तिष्क में लगी चोट आदि।
  • पीड़ित को खाने-पीने के लिए कुछ भी न दें। सिर्फ डॉक्टर की सलाह पर ही उसे पीने के लिए चाय या कॉफी जैसा कोई पेय दें। क्योंकि अगर तुरंत उसका ऑप्रेशन करने की जरूरत पड़ जाए तो खाया गया ठोस या तरल पदार्थ अड़चन पैदा कर सकता है।


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