परिचय-
प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में किसी प्राणी का कोई अस्तित्व नहीं था। भगवान विष्णु सागर में सोए हुए थे। चारों ओर अजीब सा सन्नाटा था। समुद्र बिल्कुल शांत था। काफी समय के बाद वह जागे और सृष्टि की रचना करने का कार्य शुरू हुआ। उनकी नाभि से एक कमल निकला। यह कमल अपनी प्रकृति के अनुसार समुद्र के तल के स्तर तक पानी के ऊपर पहुंचकर खिल गया। इसी फूल से ब्रह्माजी का जन्म हुआ। अथाह विस्तार में फैले हुए पानी के बीच ब्रह्माजी सोचने लगे कि मै कौन हूं। मैं यहां कहां से आया। मेरा नाम क्या है और मेरे यहां आने का क्या कारण है। इस प्रकार जन्म के बाद ब्रह्माजी युगों तक सोचते रहे। बाद में भगवान विष्णु की प्रेरणा से उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ जो आगे चलकर वेद-व्यास द्वारा अलग-अलग और संकलित किये जाने पर चार वेदों के रूप में जाना गया। इसी ज्ञान के आधार पर उन्होंने भगवान विष्णु की आराधना की तो भगवान विष्णु ने उन्हें सृष्टि की रचना करने का आदेश दिया।
एक दूसरे ग्रंथ के अनुसार महाप्रलय के बाद सिर्फ भगवान शिव ही मौजूद रहे। कहीं कुछ नहीं था। सैंकड़ों वर्षों के बाद भगवान शिव ने अपने शरीर के दाएं भाग से विष्णु तथा दाएं भाग से ब्रह्मा की रचना की। भगवान शिव ने ब्रह्मा को सृष्टि की रचना करने और विष्णु को उसका पालन करने का आदेश दिया। इसके अलावा भगवान शिव ने अपने जिम्मे सृष्टि के संहार का काम रखा। सबसे पहले ब्रह्मा जी ने बार-बार नारद आदि ऋषियों की मानसिक रचना की तथा उनको संतान पैदा करने का आदेश दिया लेकिन बहुत से ऋषियों ने इस आदेश को मानने से मना कर दिया और तप करने चले गए। सृष्टि की रचना का कार्य पूरा नहीं हो पा रहा था। इसका कारण था कि ब्रह्मा जी ने पुरुषों की रचना तो कर दी थी लेकिन स्त्री की रचना नहीं की थी और स्त्री के बिना सृष्टि की रचना तो असंभव थी। बहुत सी दिक्कतों के बाद ब्रह्मा जी ने अपने शरीर के दाएं भाग से मनु तथा बाएं भाग से शतरूपा की रचना की। इन दोनों ने ब्रह्मा जी के कहे अनुसार मैथुनी सृष्टि की रचना की। इन्हीं से मिलती-जुलती आदम और ईव की कहानी है। ईव भी आदमियों की पसलियों से पैदा हुई है। दुनिया के हर प्राचीन धर्मों में लगभग इससे मिलते-जुलते ऱूप में आदिमानव तथा आदिनारी की उत्त्पति हुई है।
इससे यह बात सिद्ध हो जाती है कि कई हजारों सालों तक ब्रह्मा जी खुद ही कोशिश करते रहें लेकिन उनके सभी मानस पुत्र सृष्टि रचना में भागीदार न बनकर तपस्या आदि में लीन होते रहें। इससे यह बात भी सिद्ध हो जाती है कि बिना स्त्री के संसार में कुछ भी नहीं है। स्त्री ही अपने अस्तित्व से संसार को समृद्ध बनाती है, बढ़ाती है और जीने की प्रेरणा देती है। जब से सृष्टि की शुरुआत हुई है तभी से एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। यह दोनों एक-दूसरे से अलग-अलग गुणों वाले होते हैं लेकिन फिर भी दोनों एक-साथ रहकर ही पूरे बनते हैं।
स्त्री और पुरुष की मानसिक और शारीरिक रचना अलग-अलग होते हुए भी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। पुरुष के होठों के आसपास, ठोढ़ी पर और छाती में सख्त बाल होते हैं। इसके अलावा उसके शरीर में और भी जगह मजबूत बाल हैं। स्त्री के शरीर में यह बाल बहुत ही हल्के होते हैं जो उसे आकर्षित और मनमोहक बनाती हैं। शारीरिक रूप से स्त्री और पुरुष में काफी भिन्नता देखी जाती है। स्त्रियों के भारी स्तन, स्तनों में दूध पैदा करने वाली ग्रंथियां, योनि, डिंब-ग्रंथियां, अंडवाहिनी नलिका और गर्भाशय होता है। इनके विपरीत पुरुषों में योनि के बजाय लिंग, डिंब-ग्रंथियों के बदले अंडकोष, अंडवाहिनी के बजाय वीर्य प्रणाली आदि होते हैं। पुरुषों में स्त्रियों की तरह दूध का निर्माण करने वाली ग्रंथियां नहीं होती हैं। ऐसे ही स्त्रियों में भी पुरुषों में पाई जाने वाली पौरुष ग्रंथि नहीं होती है। पुरुषों में सात धातु रस, रक्त, मांस, वसा, हड्डी, मज्जा और वीर्य है तो स्त्रियों में मासिकस्राव है। परम धातु दोनों में ही ओज है। इसी छोटे से अंतर के कारण एक सृष्टि की रचना करने वाली हैं तो दूसरा संतान का बीज पैदा करने वाला है।
स्त्री शारीरिक ताकत में पुरुष से कमजोर होती है। पुरुष ने बल और शरीर में स्त्री से मजबूत होने तथा सामाजिक व्यवस्था व उपार्जन में प्रमुखता के कारण स्त्री को अपने से हमेशा नीचा समझा और माना है। वैसे शुरुआत से ही स्त्री ने कई बार पुरूषों को नीचा दिखाया है और अपनी वरीयता साबित की है। प्राचीन ग्रंथों आदि को उठाकर देखा जाए तो यह सिद्ध हो जाता है स्त्री पुरुष से शारीरिक बल और देह धर्म को छोड़कर हर नजरिए से बेहतर है। जिनमें देवी अरूंधती, भगवती लोपामुद्रा, देवी लीलावती, माता सीता, जगदंबा भवानी, आम्रपाली, सुजाता, चंदनबाला, कश्मीर की महारानी लल्ल, द्रौपदी, शकुंतला आदि नें समय-समय पर पुरुष से ज्यादा अपनी वरीयता साबित की है।
पुरुष स्त्री का अर्धांग व पूरक है। पुरुष वह कभी नहीं कर सकता जो स्त्री कर सकती है। एक स्त्री ही पुरुष को किसी भी मुसीबत या परेशानी से उबार सकती है। वह पुरुष को सबसे अच्छा भोजन बनाकर खिलाती है। रात को बिस्तर में वह पुरुष को स्वर्ग का आनंद देती है। जब पुरुष घर से बाहर होता है तो भी वह उसके बारे में ही सोचती रहती है। वह पुरुष की संतान को अपने गर्भ में धारण करती है और 9 महीनों तक उसे संभालती है। पुरुष के वंश को चलाने वाला पुत्र देती है। सिर्फ दो वक्त के भोजन के बदले वह पुरुष के घर की देखभाल, सेवा-सत्कार, उसके घर वालों और बच्चों की देखभाल करती है। वह अपने पुराने घर और घर वालों को भूलकर पति के घर की ही होकर रह जाती है।
स्त्री के बारे में एक और भी बात कहना बिल्कुल सही लगता है। कि जो स्त्री एक बच्चे के रूप में पुरुष को जन्म देती है उसका पूरा जीवन उसी पर निर्भर होकर रह जाता है। बचपन से लेकर शादी होने तक पिता के ऊपर, शादी के बाद पति के ऊपर और बुढ़ापे में बेटों पर आश्रित रहती है। पुरुष का स्वभाव प्राकृतिक रूप से हिंसक है। स्त्रियों के अंदर जितनी कोमल भावनाएं पुरुष के प्रति होती है उतनी पुरुष की स्त्री के प्रति नहीं होती है। इसका पता तब ही चल जाता है जब किसी घर में लड़की जन्म लेती है। लड़की के जन्म के बाद घर में उतनी खुशिय़ां नहीं मनाई जाती जितनी कि लड़का पैदा होने के बाद मनाते हैं। इस प्रकार का भेदभाव अक्सर अपने आसपास देखने को मिल जाता है। लड़का अगर घर में किसी चीज की डिमांड रखता है तो उसे तुरंत ही पूरा कर दिया जाता है लेकिन लड़की को कई बार छोटी से छोटी चीज के लिए भी इंतजार कराया जाता है। ऐसा ही लडकियों की शिक्षा के क्षेत्र में भी देखा जाता है जैसे कोई लड़की अगर पढ़ाई में बहुत अच्छी भी होती है तो उसे पढ़ने से मना कर दिया जाता है और कहा जाता है तुम्हें पढ़कर करना क्या है आगे जाकर तो ससुराल में खाना ही पकाना है। इन सब चीजों का असर स्त्री के व्यक्तित्व पर बहुत ज्यादा पड़ता है और वह स्वभाव से कमजोर और डरी-डरी सी हो जाती है। उसके अंदर विरोध करने की या अपने अधिकारों से लड़ने की शक्ति रहती ही नहीं है। इसी आधार पर स्त्री के व्यक्तित्व को 3 भागों में बांटा गया है- पुरुष को शारीरिक संतुष्टि प्रदान करें, बच्चों की सही देखभाल करें और परिवार को ठीक तरह से चलाए।
कहते हैं कि स्त्री के दिल में इतनी गहराई होती है जितनी कि समुद्र में होती है। उसके अंदर समर्पण और प्यार कूट-कूटकर भरा हुआ है। इसी से उसके अंदर की सहनशक्ति बढ़ती है। स्त्री चाहे किसी का विरोध न कर पाए, अपने अधिकारों के लिए लड़ न पाए लेकिन फिर भी जिस तरह से वह अपने आपको परिस्थितियों में ढाल लेती है, उनका सामना करती है वह किसी और के यहां तक की पुरुष के बस की भी बात नहीं है। इस तरह से तुलना करने पर पुरुष स्त्री के सामने कहीं पर भी नहीं ठहरता है। स्त्री बच्ची के रूप में अपने मां-बाप के घर में जन्म लेती है, खेलती-कूदती है, जवान होती है और एक दिन ऐसा आता है जब उसकी शादी करके एक अंजान सी जगह पर भेज दिया जाता है। उसे ऐसे इंसान के साथ पूरी जिंदगी बिताने के लिए भेज दिया जाता है जिसको वह पूरी तरह से जानती भी नहीं है। अब कम से कम लड़की को उसके होने वाले पति से शादी से पहले एक बार मिलने की इजाजत दे दी जाती है लेकिन पहले तो उसे लड़के का चेहरा तक नहीं दिखाया जाता था। इसके बावजूद वह लड़की नए घर, नए माहौल और नए तरह के लोगों के अनुरूप अपने आपको ढाल लेती है और फिर उसकी पूरी जिंदगी उसी घर और घर वालों की देखभाल में निकल जाती है। अगर इस जगह पर स्त्री की जगह पर पुरुष होता तो क्या वह यह सब इतनी आसानी से संभाल लेता, क्या अपने आपको सारी परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेता शायद नहीं। यह सारी क्षमताएं सिर्फ स्त्री के अंदर ही होती हैं और इसी से पता चलता है कि स्त्री पुरुष से किसी मुकाबले में कम नहीं है बल्कि बढ़कर ही है।
स्त्री को जितना सम्मान मिलना चाहिए उसे उतना सम्मान मिल नहीं पाता है। पिता का घर उसका अपना होता है लेकिन फिर भी कह जाता है कि यह उसका घर नहीं है उसे तो दूसरे घर जाना है। लड़की जैसी ही कुछ बड़ी होती है तभी से उसके ऊपर बहुत सी पाबंदियां लगने लग जाती है। वह कुछ भी करती है तो उसको टोक दिया जाता है कि यह मत करो, वह मत करो, कल को दूसरे घर जाएगी तो वहां पर क्या कहेंगे। काफी समय तक तो लड़की यह ही नहीं समझ पाती है कि जब यह मेरा घर है तो मै दूसरे घर क्या करने जाऊंगी। कई बार तो मां-बाप या कोई और भी कह पड़ता है कि यह तेरा घर थोड़े ही न है तुझे तो शादी करके दूसरे घर जाना है। जब लड़की किसी और लड़की को शादी के बाद रोते हुए अपना घर छोड़कर दूसरे घर जाते हुए देखती है तो उसके मन में यह सवाल जरूर उठता है कि क्या उसे भी एक दिन अपना घर छोड़कर किसी और के घर जाना होगा लेकिन क्यों।
ऐसा ही पति के घर पर भी होता है क्या वह उसका अपना घर होता है या वह हक से उसे अपना घर कह सकती है। ससुराल में जाने पर बहू चाहे जितनी भी अच्छी बनकर रहे, सबकी देखभाल करें लेकिन फिर भी कोई बात होने पर उससे कहा जाता है कि यह इसका घर थोड़े ही न है यह तो दूसरे घर से आई है। पति का भी जब उसके साथ झगड़ा आदि होता है तो वह भी यही कहता है कि जा निकल जा मेरे घर से या अपने बाप के घर चली जा। ऐसे में स्त्री को यह लगता है कि क्या उसका कोई भी घर अपना नहीं है।
इसको स्त्री की महानता ही कहा जा सकता है कि वह दो घरों को जोड़ने वाले एक पुल का काम करती है। वह न तो पूरी तरह से अपने घर से अलग हो पाती है और न ही ससुराल को। लड़का-लड़की की शादी होने के बाद संबंध बढ़ते ही है। दो परिवारों की रिश्तेदारी होती है. उन दोनों परिवारों के लोग एक-दूसरे के करीब आते हैं। स्त्री अपने अच्छे बर्ताव से दोनों परिवार के रिश्तों को और भी मजबूत बनाती है। शादी होने के बाद भी उसकी अपने मां-बाप के घर के बारे में उतनी ही चिंता रहती है जितनी की ससुराल की। वह दोनों घरों के सुख और दुख से बराबर प्रभावित होती है। पुरुष के साथ ऐसा नहीं होता इसलिए वह स्त्री के दुख या परेशानी को समझ नहीं पाता है।
आज वह समय आ गया है कि हमें अपने विचारों को बदलना चाहिए। स्त्री को कमजोर समझने की भावना जो हमारे अंदर बैठी है उसे दूर करना चाहिए। स्त्री का सम्मान करने का मतलब है अपना सम्मान करना। क्योंकि स्त्री के बिना पुरुष के अस्तित्व की कल्पना करना भी मुश्किल है। पत्नी के रूप में स्त्री को पुरुष के बराबरी का हक मिलना चाहिए, मां के रूप में पूरा सम्मान मिलना चाहिए और बेटी के रूप में आगे बढ़ने के ज्यादा से ज्यादा अवसर देने चाहिए। अगर पत्नी पति से ज्यादा कामयाब हो जाती है तो इससे पति को अपने आपको नीचा नहीं समझना चाहिए। स्त्री के आगे बढ़ने से पुरुष का महत्व किसी मायने में कम नहीं होता है। आज के आधुनिक युग में वही घर खुशहाल होता है जहां पर पति और पत्नी एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं, एक-दूसरे को पूरा सहयोग देते हैं। परिवार एक ऐसी गाड़ी होता है जो दो पहियों के रूप में पति और पत्नी से ही चलता है। इसलिए पुरुष को अपनी मानसिकता को बदलकर कोशिश करनी होगी कि स्त्री को उसका पूरा हक मिले।
जीवन में हर दिन कोई न कोई परेशानियां आती ही रहती हैं जिसमें कुछ तो परिवार के अंदर की होती हैं और कुछ परिवार के बाहर की। परिवार के अंदर की समस्याओं को स्त्री संभाल लेती हैं और बाहर की समस्याओं को पुरुष। लेकिन कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जिनका सामना पति और पत्नी के लिए अकेला करना मुश्किल हो जाता है और दोनों को मिलकर ही इनका सामना करना पड़ता है। इस तरह से बड़ी से बड़ी समस्या को भी दोनों मिलकर आसानी से निपटा लेते हैं। इसके अलावा अगर पुरुष स्त्री को घर के अंदर सहयोग करता है और स्त्री आर्थिक तौर पर पुरुष को हाथ बंटाती है तो इसमें किसी तरह का कोई हर्ज नहीं है। इसके लिए स्त्री और पुरुष दोनों को ही अपने-अपने मन को साफ करना होगा, अपने मन से किसी भी तरह की जलन आदि की भावना को निकालना होगा।