कोई भी मनुष्य बिना जल के कुछ दिन और बिना भोजन के कुछ सप्ताह तक जीवित रह सकता है किंतु यदि श्वास-क्रिया अर्थात सांस लेने की क्रिया (breathing) 3 से 6 मिनट के लिए भी रुक जाए तो मनुष्य की मृत्यु होने से कोई नहीं रोक सकता। शरीर के ऊतकों, खास करके हृदय और मस्तिष्क के ऊतकों को ऑक्सीजन की हर समय जरूरत पड़ती है, जिसकी आपूर्ति होना जरूरी है। ऑक्सीजन के अभाव से कुछ ही मिनटों में ऊतक निष्क्रिय हो जाते हैं, हृदय-स्पन्दन बंद हो जाता है तथा मस्तिष्क की तंत्रिकाएं भी कुछ ही देर बाद निष्क्रिय होने लगती है। इसलिए कहा जाता है- ऑक्सीजन ही जीवन है। श्वसन-संस्थान वायुमण्डल से ऑक्सीजन के अंर्तग्रहण करने का कार्य करता है। श्वसवन-संस्थान के द्वारा ही शरीर की हर कोशिका को ऑक्सीजन की आपूर्ति (supply) होती है और कोशिकाओं द्वारा उसका उपयोग हो जाने के बाद त्यागने वाले पदार्थ के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड गैस बाहर निकलती है। कहने का तात्पर्य है कि- श्वसन-क्रिया (respiration) कोशिकाओं तथा वातावरणीय वायु के बीच होने वाला पारस्परिक विनियम अर्थात आदान-प्रदान ही है।
श्वसन-क्रिया दो पूरी तरह अलग-अलग क्रियाओं प्रश्वसन (inspiration) और निःश्वसन (expiration) का सम्मिलित रूप है। जिस क्रिया के द्वारा वातावरणीय वायु को अंदर लिया जाता है, उसे प्रश्वसन (inspiration) कहा जाता है और जिस क्रिया से व्यर्थ गैसों को बाहर निकाला जाता है, उसे निःश्वसन (expiration) कहते हैं। ‘श्वसन’ की एक प्रक्रिया में एक बार सांस अंदर लेना तथा दुबारा सांस बाहर निकालना सम्मिलित है।
श्वसन-संस्थान में ये दोनों प्रक्रियाएं दो अलग-अलग स्तरों पर होती रहती है। पहली क्रिया कोशिकाओं और वायुकोशों (alveoli) के बीच होती है, जिसे ‘बाह्य-श्वसन’ (external respiration) अथवा ‘फुफ्फुसीय श्वसन’ (pulmonary respiration) कहा जाता है तथा दूसरी क्रिया रक्त कोशिकाओं (capillaries) और ऊतकों के बीच होती है, जिसे ‘अंतः श्वसन’ (internal respiration) अथवा ‘ऊतक श्वसन’ (tissue respiration) कहा जाता है।
श्वास-पथ (Respiratory Tract)- नासिका से लेकर फुफ्फुसीय वायुकोशों तक निरंतरता में स्थित श्वसनीय अंग (इन अंगों से होकर वायु गमन करती है) श्वास मार्ग का निर्माण करते हैं