जीवित अवस्था में रक्त हमेशा शरीर में घूमता रहता है। रक्त के इसी प्रकार से घूमने की क्रिया को रक्त परिसंचरण कहते हैं। हृदय और रक्त वाहिनियों में से होकर ही रक्त शरीर में प्रवाहित होता है। रक्त, जिस स्थान से अपना सफर करना शुरु करता है, पूरे शरीर में घूमने बाद दुबारा उसी स्थान पर पहुंच जाता है और इस बन्द परिपथ चक्र (closed circuit) में ही जीवनभर घूमता रहता है, जो इस प्रकार है-
रक्त बाएं निलय (Lt. ventricle) से- महाधमनी (aorta) में- धमनी (artery) में- धमनिकाओं (arterioles) में- केशिकाओं (capillaries) में-शिरिकाओं (venules) में- शिराओं (veins) में- महाशिराओं (venae cavae) में- दाएं अलिन्द (Rt atrium) में- दाएं निलय (Rt ventricle) में- फुफ्फुसीय धमनी (pulmonary artery) में- फुफ्फुसीय शिराओं (pulmonary veins) में- बाएं अलिन्द में- और दुबारा बाएं निलय में पहुंचकर, फिर इसी परिपथ चक्र के आधार पर पूरे शरीर में लगातार प्रवाहित होता रहता है।
रक्त अपना सफर बाएं निलय (वेन्ट्रिक्ल) से शुरु करता है और यहीं से महाधमनी (aorta) द्वारा पूरे शरीर में वितरण के लिए निकलता है। महाधमनी हृदय से निकलकर कुछ ऊपर की ओर उठती है और आगे मुड़कर चाप (arch) बनाती हुई नीचे की ओर झुक जाती है। इस प्रकार इसका ऊपर की ओर उठा हुआ भाग ‘आरोही’ महाधमनी (ascending aorta), आगे की ओर मुड़ा हुआ चाप वाला भाग ‘महाधमनी चाप’ (aortic arch), तथा नीचे की ओर उतरता हुआ भाग ‘अवरोही महाधमनी’ (descending arota) कहलाता है। आरोही महाधमनी से, महाधमनी कपाट (aortic valve) के स्तर से ठीक ऊपर, दाईं और बाईं कॉरोनरी धमनियां निकलती हैं जो हृदय की रक्त आपूर्ति करती हैं। महाधमनी चाप से तीन बड़ी धमनियां निकलती हैं, जो ऊपरी अंगों को रक्त आपूर्ति करती हैं। अवरोही महाधमनी नीचे आकर डायाफ्राम (diaphragm) से होकर नीचे उतरकर पेट और निचले अंगों की शाखाओं और उपशाखाओं में बंटकर, रक्त आपूर्ति करती हैं। रक्त वाहिनियां हर कोशिका के पास पहुंचने के लिए बहुत सूक्ष्म केशिकाओं (fine capillaries) में बदल जाती हैं। केशिकाएं, पोषक पदार्थों और ऑक्सीजन को बांटने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरे व्यर्थ पदार्थों से भर जाती हैं।
व्यर्थ पदार्थों से भरी सूक्ष्म नलिकाएं शिरिकाएं (venules) कहलाती हैं। ऐसी बहुत सी शिरिकाएं मिलकर अशुद्ध रक्त को जमा करके शिराएं (veins) बनाती हैं। बहुत सी शिराएं आपस में मिलकर ऊर्ध्व एवं नीचे के अंगों के अशुद्ध रक्त को जमा करके हृदय के दाएं अलिन्द में पहुंचाती हैं।
कॉरोनरी धमनी हृदय को रक्त प्रदान करने के बाद वहां से लौटते समय ‘कॉरोनरी शिरा’ के रूप में दाएं अलिन्द में पहुंच जाती हैं। इस प्रकार दायां अलिन्द पूरे शरीर के अशुद्ध रक्त को जमा (store) कर लेता है तथा दाएं निलय में भेज देता है। दाएं निलय से अशुद्ध रक्त, फुस्फुसीय धमनी (pulmonary artery) के द्वारा फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए चल पड़ता है। फेफड़ों में रक्त श्वास-वायु से ऑक्सीजन ग्रहण करती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी गैसों का उच्छ्वसित होने वाली वायु में लौटा देता है और इस प्रकार रक्त शुद्ध (ऑक्सीकृत) हो जाता है। चार फुफ्फुसीय शिराओं द्वारा रक्त बाएं अलिन्द में लौट आता है। अलिन्द शुद्ध रक्त को बाएं निलय में पहुंचा देता है तथा इस प्रकार रक्त की परिक्रमा पूर्ण होती है। यही चक्र जीवनभर चलता रहता है।
रक्त परिसंचरण तन्त्र को शरीर का परिवहन तन्त्र माना जाता है। यही तन्त्र भोजन, ऑक्सीजन, पानी और दूसरे सभी जरूरी पदार्थ ऊतक कोशिकाओं तक पहुंचाने का और वहां के बेकार पदार्थ साथ में ले आने का कार्य करता हैं। इस तन्त्र के अंतर्गत रक्त, हृदय एवं रक्त वाहिनियां (blood vessels) आते हैं।