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पित्ताशय एवं पित्तीय तन्त्र

पित्ताशय (Gallbladder)- पित्ताशय छोटी नाशपाती के आकार का थैलीनुमा अंग होता है जो जिगर के दाहिने खण्ड की निचली परत पर स्थित गर्त्त (depression) में रहता है। इसमें जिगर से निकला पित्त (bile) जमा होता है। यह औसतन 10 सेमी लम्बा होता है तथा इसमें 30 से 60 मिलीलीटर पित्त जमा हो सकता है। पित्ताशय तीन भागों में विभाजित रहता है-

1- बुध्न (Fundus),

2- काय (body)

3- ग्रीवा (neck)

पित्ताशय तीन परतों से मिलकर बनता है-

  1. बाह्य सीरमी पेरिटोनियल परत
  2. मध्य पेशीय परत
  3. आन्तरिक श्लेष्मिक कला परत- यह परत पित्त वाहिकाओं के अस्तर में विलीन हो जाती है। यह स्तम्भाकार उपकला कोशिकाओं की बनी होती है, जिससे श्लेष्मा (Mucin) स्रावित होता है तथा यह जल को तुरंत ही अवशोषित कर लेती है। लेकिन यह पित्त लवणों अथवा पित्त रंजकों को अवशोषित नहीं कर पाती, जिससे पित्त गाढ़ा हो जाता है। जब पित्ताशय खाली होता है, तो इसकी श्लेष्मिक कला पर छोटी-छोटी झुर्रियां बन जाती है, जो इसके भर जाने पर गायब हो जाती है।

पित्तीय तन्त्र- निम्नलिखित भागों का बना होता है-

  1. जिगर से आने वाली दाईं और बाईं जिगर की वाहिकाएं (left & right hepatic ducts) जो संयुक्त होकर उभय जिगर की वाहिका (Common hepatic duct) बनाती है।
  2. पित्ताशय (Gallbladder)
  3. पित्ताशयी या सिस्टिक वाहिका (Cystic duct)- यह पित्ताशय से निकलने वाली लगभग 4 सेमीमीटर लम्बी नली होती है।
  4. उभय पित्त वाहिका (Common bile duct)- यह सिस्टिक वाहिका एवं उभय जिगर वाहिका के संयुक्त होने से बनती है।
  5. उभय पित्त वाहिका एवं मुख्य अग्न्याशयिक वाहिका पाइलोरिक द्वार से लगभग 10 सेमीमीटर दूर ग्रहणी में प्रवेश करने के स्थल पर एकसाथ जुड़ जाती है और हिपेटोपैंक्रिएटिक एम्यूला या एम्पूला ऑफ वेटर बनाती है। यह एम्पूला ग्रहणी की भित्ति मे तिरछा होकर जाता है और ड्योडिनल पैपिला से होकर ग्रहणी में खुलता है। उभय पित्त वाहिका के निर्गम पर एक संकोचिनी स्थित होती है, जिसे स्फिंक्टर ऑफ बॉयडेन (Sphincter of boyden) कहते हैं। इसके नीचे अर्थात ग्रहणी में खुलने वाले छिद्र पर स्फिंक्टर ऑफ ओडाई (Sphincter of oddi) रहती है। इनमें से स्फिक्टर ऑफ बायडेन (उभय पित्त वाहिका की संकोचिनी) अधिक मजबूत तथा महत्वपूर्ण होती है। भोजन करने के लगभग 30 मिनट के बाद अथवा जब भी वसायुक्त काइम ग्रहणी में पहुंचता है, तो ग्रहणी द्वारा मुक्त कोलीसिस्टोकाइनिन (Cholicystokinin) नामक हार्मोन के प्रभाव से संकोचिनी शिथिल हो जाती है और पित्ताशय सिकुड़ जाता है, जिससे पित्ताशय में जमा पित्त (bile) ग्रहणी में चला जाता है। जब ग्रहणी में पाचन होना बन्द हो जाता है, तब पित्त जिगर से निकलकर पित्ताशय में पहुंचकर वहां जमा होता रहता है।


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