पाचन क्रिया के दौरान आमाशय में होने वाली पेशीय गतियां काइम के आयतन और उसकी अवस्थिति के अनुसार होती है।
1- निम्न ईसोफेजियल द्वार से होकर आमाशय में भोजन का प्रवेश होने के कुछ क्षणों बाद धीमी क्रमाकुंचक तरंगे शुरू हो जाती है। यह तरंगे फण्डस और काय में मौजूद चिकनी पेशी की पेसमेकर कोशिकाओं में भोजन को मिश्रित करती है। पेसमेकर कोशिकाएं तीन से चार प्रति मिनट की दर से क्रमाकुंचन गतियां पैदा करती है जो भोजन को जठरनिर्गमीय संकोचनी की ओर अग्रसर कर देती है। इस क्रमाकुंचन गति को आमाशय की विद्युतीय रिदम (basic electrical rhythm-BER) कहते हैं। इन तालबद्ध संकुचनों से काइम का निर्माण होता है जो जठरनिर्गमीय क्षेत्र की ओर अग्रसर होता है।
2- जैसे ही जठरनिर्गमीय क्षेत्र भरना शुरू हो जाता है तभी शक्तिशाली क्रमाकुंचन तरंगे काइम को मथकर छोटे-छोटे कणों में बांटकर जठरनिर्गमीय नलिका या एंट्रम में ले जाती हुई जठरनिर्गम द्वार की ओर फैंक देती है। हर तरंग के साथ काइम का कुछ मिलीलीटर की मात्रा में भाग जठरनिर्गमीय द्वार से छोटी-छोटी फुहारों के रूप में छोटी आंत के ड्योडिनम वाले भाग में फैंक दिया जाता है। यह द्वार बहुत छोटा होता है इसलिए ज्यादातर काइम वापिस पाइलोरिक क्षेत्र में पहुंच जाता है ताकि क्रमाकुंचन तरंकों द्वारा दुबारा से मथा जा सके। पाइलोरिक संकोचनी द्वारा काइम को फैंकने की क्रिया को पाइलोरिक पंप कहते हैं।
3- जैसे ही आमाशय बिल्कुल खाली हो जाता है तभी क्रमाकुंचन तरंगे आमाशय की काय की ओर गति करती हुई सारी काइम को पाइलोरिक क्षेत्र में फैंक देती है।