परिचय-
जोड़ों का दर्द शरीर में अधिक अम्लता बढ़ जाने और कब्ज रहने से होता है। भोजन में गलत चीजों का सेवन करने के कारण खून में अम्लता बढ़ जाती है। जिससे खून खराब हो जाता है क्योंकि शरीर के अंग जोड़ों पर आकर मुड़ते हैं, इसलिए खून की नलियों में यहीं पर रुकावट आने लगती है। अम्लता के कारण खून वैसे ही धीमी गति से चलता है, साथ ही इन जोड़ों पर आकर खून की गति में और कमी आ जाती है। शिराएं जो शरीर के विकारों को दिल की तरफ ले जाती हैं, इससे प्रभावित होने लगती हैं। फिर शरीर का विकार इन्हीं जोड़ों पर एकत्रित होने लगता है तथा वहीं पर जम जाता है।
जोड़ों पर जब विकार एकत्रित हो जाता है, तो यही विकार जोड़ों में दर्द पैदा करने लगता है। आरम्भ में रोगी इसे मामूली दर्द समझकर इस पर ध्यान नहीं देता तथा दवाइयों आदि की सहायता से दर्द को वहीं दबा देता है। दर्द कम या कभी-कभार होने से रोगी इस पर कतई ध्यान नहीं देता। उसका खान-पान वैसा ही चलता रहता है, जिसके कारण रक्त यानी खून दोबारा खराब होने लगता है तथा शरीर का विकार दोबारा जोड़ों पर एकत्रित होना आंरभ हो जाता है।
उपचार-
खून को साफ करने और शरीर के अन्दर की सफाई करने के लिए रोगी को एनिमा, कटि-स्नान, मेहन-स्नान तथा कभी-कभी एपसम साल्ट बाथ´ देना चाहिए। साथ ही रोगी की रोजाना मालिश भी करनी चाहिए। मालिश द्वारा रक्त-नालिकाओं की सफाई होती है जिससे उनमें साफ खून का संचार होने लगता है।
शरीर के जिस-जिस जोड़ में दर्द हो, उस स्थान पर मालिश करने से लाभ होता है। अपने अंगूठे की मदद से जोड़ के चारों तरफ दबाव डालकर दिल की ओर मालिश करें। मालिश में गांठ का घुमाना, जोड़ों को कसरत देना, ठोक देना, मसलना, घर्षण, अंगुलियों से ठोक देना, खड़ी थपकी और कंपन देना आदि क्रियाओं का प्रयोग करें। रोगी की मालिश यदि धूप में व लाल बोतल में तैयार तेल से की जाए, तो बहुत लाभदायक होती है।
इस बात का ध्यान रहें कि मालिश करते समय रोगी अधिक कष्ट का अनुभव न करे। यदि मालिश करते समय रोगी कष्ट का अनुभव करे तो मालिश धीरे-धीरे कसरत देते हुए करनी चाहिए। मालिश के बाद रोगी को कुछ देर के लिए धूप में ही लेटा रहने दें, उसके बाद ही अन्य उपचार करें। यदि मालिश करने से पहले रोगी को गर्म-ठण्डा सेंक दे दिया जाए तो अच्छा रहेगा क्योंकि इससे रोगी को कष्ट भी कम होगा और लाभ जल्दी होगा।
इस रोग में रोगी के लिए उपवास करना काफी लाभदायक होता है। पर ध्यान रहे कि उपवास के दौरान रोगी को नींबू पानी जरूर पिलाएं। रोगी को दिन में 3-4 बार नींबू के पानी में लगभग 2 छोटे चम्मच शहद मिलाकर भी दिया जा सकता है। कुछ दिनों तक रोगी को उपवास रखवाएं तथा बाद में उसे सब्जियों और फलों का रस दें। फिर धीरे-धीरे उसे भाप से बनी सब्जी, चोकर वाले आटे की रोटी, दूध, फल और सलाद जैसे प्राकृतिक भोजन दिए जा सकते हैं।
इस रोग में रोगी को पालक और पालक का रस नहीं देना चाहिए क्योंकि इसमें `एग्जौलिक एसिड´ होता है जो इस रोग के रोगी के लिए बहुत हानिकारक होता है। रोगी को अन्य हरी सब्जियों का प्रयोग भी बहुत कम करना चाहिए। इस रोग में `लहसुन´ बहुत लाभकारी साबित होता है। यह औषधि का काम करता है। थोड़ा सा लहसुन रोगी की सब्जी में जरूर डालना चाहिए। यदि संतरे और टमाटर खट्टे न हों तो इनका भी प्रयोग किया जा सकता है। नींबू की खटाई के अलावा रोगी को किसी अन्य खटाई का उपयोग नहीं करना चाहिए तथा नींबू को सिर्फ स्वाद के लिए ही सब्जी आदि में प्रयोग करना चाहिए।