परिचय-
दुनिया के सभी देशों में मालिश का प्रयोग अलग-अलग रूपों में किया जाता है। हर एक देश में मालिश करने के अपने ढंग व प्रकार पाए जाते हैं। बहुत से ढंग तो ऐसे हैं, जो हमारे सामने अभी तक स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दिये हैं। मालिश करने का उद्देश्य शरीर को मजबूत करना, मांसपेशियों को सबल बनाना, रक्त-संचार को तेज करना और नाड़ी-संस्थान को उत्तेजित करना है।
भारत में मालिश के कई तरीके अपनाए जाते हैं जैसे- दक्षिण में मालाबारी मालिश (पांव-हाथ की मालिश), उत्तर में मुलतानी मालिश व पहलवानी मालिश आदि।
आजकल मालिश का जो वैज्ञानिक ढंग भारत और विदेशों में प्रचलित है, वह स्वीडिश मालिश है। स्वीडिश मालिश को ही डॉक्टरों ने मान्यता दी है। इसके अलावा मालिश के अन्य तरीके, जो उपचार के काम में आते हैं, उन सभी के बारें नीचे चर्चा की गई है-
मालिश के प्रकार -
- तेल की मालिश
- सूखी मालिश
- पांव से मालिश
- ठण्डी मालिश
- गर्म-ठण्डी मालिश
- पॉउडर से मालिश
- बिजली से मालिश
हर प्रकार की मालिश के अपने कुछ ढंग और नियम हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है। किस व्यक्ति पर कौन-सी मालिश की जानी चाहिए, इसका फैसला रोगी के रोग और शारीरिक स्थिति को देखकर किया जाता है क्योंकि हर एक रोगी की एक ही प्रकार से मालिश नहीं की जा सकती।
नींद का न आना, नाड़ी की कमजोरी, शरीर में अधिक गर्मी, जलन, सूखी खारिश, हाथ-पांव में सरसराहट आदि रोगों में ठण्डी मालिश बहुत लाभकारी होती है। ठण्डी मालिश के अलावा रोगी को तेल की मालिश भी की जा सकती है। कमजोर, दुर्बल और पतले व्यक्तियों के लिए तेल की मालिश सबसे अधिक लाभदायक होती है। सूखी मालिश और ठण्डी मालिश से मोटापा दूर किया जा सकता है।
अधरंग (शरीर के आधे भाग में लकवा होना), जोड़ों का दर्द, गठिया, पीठ-दर्द, टांगों का दर्द, बच्चों का पोलियो, साइटिका के रोगों में तेल मालिश, पांव से मालिश, गर्म-ठण्डी मालिश और बिजली की मालिश लाभदायक है। उपवास के दौरान तेल की मालिश करवाना काफी लाभकारी होता है। पॉउडर और तेल से मालिश कराने से शरीर की थकावट दूर हो जाती है।
स्वस्थ व्यक्तियों के लिए तेल मालिश और ठण्डी मालिश सबसे लाभदायक है। पहलवानों और अधिक कसरत करने वालों को तेल-मालिश और पांव मालिश से बहुत लाभ पहुंचता है।
कई रोगों में मालिश का काफी लाभ मिलता है जैसे स्नायु-कमजोरी में मेरूदण्ड की मालिश विशेष लाभ देती है। अनिद्रा में मेरूदण्ड, गर्दन तथा सिर की मालिश फायदेमन्द है। दमा रोग में छाती और पीठ की मालिश, कब्ज में पेट की मालिश, सिरदर्द में सिर और गर्दन की मालिश, साइटिका रोग में पैर व पीठ के निचले भाग की मालिश, नपुंसकता (नामर्दी) में चुल्लिका ग्रंथि की मालिश, खून की कमी में पीठ और पेट की मालिश विशेषकर जिगर की मालिश करने से रोगी को विशेष लाभ मिलता है।
चुल्लिका ग्रंथि मनुष्य के गले में होती है। इसी के बढ़ जाने को `घेंघा´ कहा जाता है। इस ग्रंथि का आकार देसी चूल्हे से मिलता-जुलता है, इसी कारण इसका नाम `चुल्लिका ग्रंथि´ पड़ा है। यह ग्रंथि स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा कुछ बड़ी होती है। इसका रंग पीलापन लिए भूरा होता है। जब स्त्री गर्भावस्था में होती है, तो इस ग्रंथि का आकार थोड़ा-सा बढ़ जाता है। चुल्लिका ग्रंथि में जो वस्तु बनती है, उसे कम बनने से या बिल्कुल न बनने से व्यक्ति में एक प्रकार की मूर्खता आ जाती है। कुछ बच्चे बचपन से ही मन्दबुद्धि होते हैं। ऐसे बच्चों का विकास भली-भांति नहीं हो पाता। उनके दांत एक तो देर से निकलते हैं और जो निकलते हैं, वे जल्दी ही गल जाते हैं। पेट फूला हुआ और चेहरा पीला-सा रहता है। बच्चा अपने आप खड़ा भी नहीं हो पाता। बड़ा होने के बाद भी उसकी बुद्धि बच्चों जैसी ही रहती है।
चुल्लिका ग्रंथि के बिगड़ जाने पर और भी कई प्रकार के रोग हो जाते हैं। ये रोग विशेषकर स्त्रियों में अधिक होते हैं। इन रोगों के कारण स्त्री में मोटापे की अधिकता होती है, बाल टूटने-झड़ने लगते हैं, उसका मिजाज चिड़चिड़ा हो जाता है। अगर यह रोग बढ़ता ही जाए तो स्त्री पागल भी हो जाती है।
अगर यह ग्रंथि आवश्यकता से अधिक काम करे तो भी यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इससे हृदय की गति में तेजी आ जाती है। नाड़ी की गति, जो साधारणत: 70-75 प्रति मिनट होती है, वह बढ़कर 90, 100, 140 या 160 तक होने लगती है।