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पेशीय ऊतक

पेशीय ऊतक संकुचनशील तन्तुओं से मिलकर बनता है। यह शरीर तथा शरीर के किसी भाग में गति प्रदान करने का काम करता है। इस ऊतक की एक विशिष्टता है कि यह उत्तेजित होने पर संकुचित हो जाता है। इसमें उत्तेजनशील (irritability), चालकता (conductivity)  तथा लचीलेपन (elasticity) का गुण भी होता है। पेशीय ऊतक में अन्तराकोशिकी पदार्थ बहुत कम पाया जाता है, जिससे तन्तु या कोशिकाएं बहुत अधिक करीब-करीब चिपकी होती है।

 

हृदयपेशी:

इस वर्ग की पेशियां केवल हृदय की भित्तियों में ही पायी जाती है। इनमें ऐच्छिक पेशियों की तरह पट्टियां  होती है लेकिन इनकी क्रिया अनैच्छिक होती है। ये मृत्यु पर्यन्त बिना विश्राम किए संकुचित एवं शिथिल होती रहती है।

       हृदय पेशी लाल रंग की होती है। इसके तन्तु छोटे तथा बेलनाकार होते है एवं अनुदैर्ध्य दिशा में आयताकार तथा अनुप्रस्थ दिशा में बहुतलीय होते हैं। हर तन्तु में केवल एक न्यूक्लियस रहता है, जो अक्सर बीच में स्थित रहता है। हृदयपेशी में अनुदैर्ध्य दिशा तथा अनुप्रस्थ दिशा, दोनों में पट्टियां होती है, परन्तु ये पट्टियां अधूरी एवं अस्पष्ट-सी रहती है। पेशी आवरण (sarcolemma) भी अस्पष्ट एवं अधूरा रहता है। तन्तुओं में से शाखाएं निकली रहती है जो दूसरे तन्तुओं से  निकली शाखाओं से मिल जाती है। इस प्रकार इनमें जीवद्रव्य का सातव्य (protoplasmic continuity) बना रहता है।

 

ऐच्छिक पेशी:

   ऐच्छिक पेशी को रेखित पेशी (striated muscle) भी कहा जाता है। इस पेशी को अपनी इच्छानुसार संकुचित एवं फैलाया जा सकता है। इससे शरीर के अलग-अलग अंगों में गति होती है इसलिए इन्हें ऐच्छिक पेशियां कहते हैं। ये पेशियां हड्डियों से संलग्न रहती है, इसलिए इन्हें कंकालीय पेशियां (skeletal muscles) भी कहते हैं।

      ऐच्छिक पेशी कई सारे तन्तुओं से मिलकर बनती है, जो संयोजी ऊतकों द्वारा आपस में जु़ड़े होते हैं। हर पेशी तन्तु बेलनाकार (Cylindrical) होता है और बहुत से पेशी तन्तुकों (myofibrils) का बना होता है। यह साइटोप्लाज्म द्वारा निर्मित दृढ़ कोशिका कला (cell membrane) में बन्द रहता है, जिसे सार्कोलीमा (sarcolemma) कहते हैं। हर पेशी तन्तु में कई अण्डाकार केन्द्रक होते हैं जो सार्कोलीमा के बिल्कुल नीचे स्थित रहते हैं। पेशीतन्तु में माइटोकॉण्ड्रिया तथा गल्जी-अंगक भी रहते हैं। कोशिका पदार्थ में असंख्य अनुदैर्घ्य पेशीतन्तुक (myofibrils), विद्यमान रहते है, जिन्हें सार्कोस्टाइल (sarcostyles) कहते हैं तथा एक स्वच्छ तरल पदार्थ रहता है जिसे सार्कोप्लाज्म (sarcoplasm) कहते हैं। हर तन्तु एक-दूसरे से समान्तर होता है और जब इन्हें सूक्ष्मदर्शी में देखा जाता है, तो इन पर बिल्कुल साफ एकान्तरतः (alternately) आड़ी काली तथा सफेद पट्टियां धारीदार सी दिखायी देती है। हर सफेद पट्टी की सीमा रेखा पर बिन्दुओं की क्षैतिज पंक्तियां दिखाई देती है। काली पट्टी के दोनों ओर पडने वाली बिन्दुओं की पक्तियों में से, आमने-सामने वाले बिन्दुक, एक बारीक पतली रेखा से जुड़े दिखाई देते हैं। यह रेखा काली पट्टी को पार करती हुई स्थित रहती है। हर सफेद पट्टी एक और रेखा के द्वारा ठीक बीच से दो भागों में बंट जाती है जिसे क्रॉसीज कला या डॉबीस लाइन (Krause’s membrane or dobies line) कहते हैं। डॉबीस लाइन (dobies line) हर सार्कोस्टाइल को छोटे-छोटे विभागों में बांट देती है जिन्हें सार्कोमीयर (sarcomere) कहते हैं।

        इस प्रकार से हर सार्कोमीयर में एक काली पट्टी (sarcous element) तथा दोनों ओर की आधी-आधी सफेद पट्टी रहती है। हर सार्कस-तत्व ठीक बीच में एक और रेखा द्वारा बंटा रहता है। अनुदैर्ध्य दिशा में इसमें नलियां रहती है, जिनका खुला मुख सफेद पट्टी में रहता है तथा बन्द पिछला सिरा काली पट्टी की बीच वाली रेखा (डोबी लाइन) में रहता है। पेशी में संकुचन होने पर सार्कोप्लाज्म इन नलिकाओं में भर जाता है और इस क्रिया से काली पट्टी, सार्कोप्लाज्म भर जाने से फूल जाती है तथा सफेद पट्टी सिकुड़ जाती है।

      इस तरह की पेशियां बीच में मोटी तथा दोनों सिरों पर बहुत पतली होती है। इन सिरों को कण्डराएं (tendons), कहते हैं। यह तन्तुमय ऊतक के बने होते हैं और इन्हीं कण्डराओं के द्वारा पेशी हड्डी से जुड़ी होती है। कंकालीय पेशियां (skeletal muscles) दो तरह की होती है- जो एक दूसरे के विपरीत कार्य करती है। अंगों को मोड़ने वाली पेशियों को आकुंचनी (flexor) तथा अंगों को फैलाने या उन्हें सीधा करने वाली पेशियों को प्रसारिणी (extensor) कहा जाता है।

 

अनैच्छिक पेशी:

परिचय-

       अनैच्छिक पेशी को अरेखित (untreated) तथा चिकनी (smooth) पेशी भी कहते हैं। इस वर्ग की पेशियां इच्छाधीन नहीं होती है। इनमें अनैच्छिक तन्त्रिका तन्त्र (involuntary nervous system) की नियन्त्रण व्यवस्था रहती है।

        सूक्ष्मदर्शी द्वारा इस प्रकार की पेशी का परीक्षण करने पर इसमें धुरी के आकार के (spindle shaped) लम्बे तन्तु पाए जाते हैं। इनके बीच में सिर्फ एक अण्डाकार न्यूक्लियस होता है। इस प्रकार के पेशी तन्तु में पट्टियां नहीं पायी जातीं जिसके कारण इन्हें अरेखित पेशी कहा जाता है। ऐसी पेशियां किसी हड्डी से जु़ड़ी नहीं होती बल्कि किसी आंतरिक अंग से जुड़ी होती है। इसे इन्हे आन्तरांगी पेशी (viscerel muscle) कहा जाता है। इस वर्ग की पेशियां खोखले अभ्यन्तरांग ट्यूब, ग्रन्थि की नलियों, श्वसनीय-पथ, आहारनली, मूत्राशय, मूत्र-नलियों, गर्भाशय, डिम्बवाहिनियों आदि की भित्तियों, प्लीहा, त्वचा, नेत्रगोलक आदि में पायी जाती है। इस प्रकार की पेशियों की सहायता से  आहारनाल में क्रमाकुंचक गति (peristaltic movement) द्वारा भोजन का नीचे को खिसकना, मूत्राशय से मूत्र का शरीर से बाहर निकलना, डिम्बवाहिनियों में डिम्बों का गर्भाशय की ओर खिसकना आदि क्रियाएं अपने आप होती है।

संवरणी या अवरोधिनी पेशी (sphincter muscle)- यह एक प्रकार की अनैच्छिक पेशी होती है। यह वृत्ताकार पेशी तन्तुओं की बनी होती है। यह किसी छिद्र के मुख पर अथवा किसी नली के बाह्म एवं आन्तरिक द्वारों पर मौजूद होती है। जब यह संकुचित होती है तो छिद्र अथवा नली के द्वार कसकर बन्द हो जाते हैं उदाहरणतः- गुदीय संवरणी (anal sphincter) जो गुदा को बन्द करती है, आमाशय एवं  ग्रासनली के जुड़ने वाले भाग पर मौजूद कार्डियक संवरणी (cardiac sphincter) आदि।

 

 

 

 

 

 

 

 


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