परिचय-
इस प्रकार की संयोजी ऊतकों की रचना तन्तुमय रहती है लेकिन श्वेत सौत्रिक ऊतकों से मिलती है। इनमें पीलापन रहता है तथा तन्तु कुछ मोटे होते है। हर एक तन्तु में से अनेक उन्मुक्त शाखाएं फूटती है जो एक-दूसरे से जुड़ती जाती है, जिससे एक जाल के समान रचना बन जाती है। तन्तु अलग-अलग और कभी-कभी बण्डलों के रूप में प्रवाहित होते हैं। बण्डल में रहने पर भी हर तन्तु की बाह्य रेखा साफ रूप से दिखाई देती है। इनमें लहरिया (wavy) प्रवाह नहीं रहता है, बल्कि ये सीधे-सीधे ही प्रवाहित होते है। इन तन्तुओं में प्रत्यास्थता (elasticity) रहती है तथा ये ‘इलास्टिन’ (elastin) नाम के प्रोटीन से बने होते हैं।
इस प्रकार के ऊतक रक्त वाहिनियों एवं श्वास नलिकाओं की भित्तियों में पाये जाते हैं। इनके अलावा ये बाह्य कर्णों (external ears) में भी पाये जाते हैं। स्नायुओं के रूप में ये ऊतक संधियुक्त भागों को कसकर थामे रहते हैं और यही लचीले स्नायु जुड़े हुए अंगों को स्वच्छंद गति प्रदान करते हैं। इस प्रकार के ऊतक रक्तवाहिनियों में अपने प्रत्यास्थ प्रतिक्षेप (elastic recoil) गुण के द्वारा अत्यधिक फैलाव की स्थिति आने से रोकते हैं। इस प्रकार से यह रक्त-परिसंचरण तथा रक्तचाप को नियन्त्रित रखने में भी सहायता प्रदान करते है। फेफड़ों में इसका प्रत्यास्थ- प्रतिक्षेप गुण बहिःश्वसन (expiration) क्रिया में भी सहायता प्रदान करता है।