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अस्थि ऊतक

परिचय-

         सभी संयोजी ऊतकों में अस्थि ऊतक को सबसे सबसे ज्यादा सख्त एवं मजबूत ऊतक माना जाता है। यह अस्थि कोशिकाओं (bone cells), कैल्सियम लवणों तथा अन्तराकोशकीय आधार-पदार्थ का बना होता है तथा कंकाल (skeleton) का निर्माण करता है। यह सब अस्थ्यावरण (periosteum) से आच्छादित रहते है। इसमें तीन प्रकार की अस्थि कोशिकाएं- ऑस्टियोब्लास्ट, ऑस्टियोसाइट तथा ऑस्टियोक्लास्ट होती है, जो आपस में जुड़ी रहती है।

     घनत्व एवं कठोरता के आधार पर अस्थि (हड्डी) को दो वर्गों में विभाजित किया गया है-

  1. सुषिर अस्थि (cancellated or spongy bone)-
  2. सघन अस्थि (compact or dense bone)-
  1. सुषिर अस्थि- (numbering problem) सुषिर अस्थि नंगी आंखों से देखने पर खोखली या स्पन्जी दिखायी देती है। सूक्ष्मदर्शी से इसकी अनुप्रस्थ (transverse section) का परीक्षण करने पर हैवरसीयन-नलिकाएं सघन अस्थि से बहुत बड़ी-बड़ी नजर आती है और पटलिकाएं बहुत कम दिखती है, जिससे अस्थि की अनुप्रस्थ काट मधुमक्खियों के छत्तों की तरह नजर आती है। सुषिर अस्थि में हमेशा लाल अस्थि मज्जा (red bone marrow) पायी जाती है। यह कोमल कार्बनिक पदार्थ होता है, जो अस्थि के अवकाशों में भरा होता है। यह पदार्थ रक्त का निर्माण करता है तथा इससे लाल रक्त कोशिकाओं की उत्पत्ति होती है। सुषिर अस्थि, चपटी अस्थियों के आन्तरिक भाग, दीर्घास्थियों के गोलाकार सिरों, पर्शुकाओं, तथा कशेरूकाओं के कार्यों (body of the vertebrae) आदि में पायी जाती है। सघन अस्थि की पतली परत से ढकी रहने वाली अस्थियां भी अंदर से सुषिर (Spongy) रहती है।

अस्थ्यावरण (periosteum)- यह एक तन्तुमय (fibrous) वाहिकीय (vascular) झिल्ली होती है, जो अक्सर पूर्णरूपेण अस्थियों को आच्छादित किए रहती है। इसमें दो परतें होती है- बाह्म एवं आन्तरिक। इसकी बाह्म परत श्वेत-तन्तुमय ऊतकों की बनी होती है। जिसमें रक्तकोशिकाएं तथा लसिकाएं होती है और इससे ही हड्डी को पोषण मिलता है। इसकी आन्तरिक परत ऑस्टियोब्लास्ट्स एवं ऑस्टियोक्लास्ट्स नामक कोशिकाओं से बनी होती है तथा हड्डी के ठीक ऊपर उसी से सटी रहती है। इन्हीं कोशिकाओं के शेषांश (remnants) मूल हड्डी की रचना में भाग लेते है।

     अस्थ्यावरण (periosteum), हड्डी को ढकते हुए उसको ज्यादा बढ़ने से रोकती है। सामान्य अस्थि (हड्डी) निर्माण की पहली नियन्त्रक, अस्थ्यावरण ही होती है। इससे हड्डी को पोषण मिलता है। अस्थ्यावरण से ही पेशियां तथा उनकी कण्डराएं सलंग्न रहती है। अस्थ्यावरण की निचली परत, नई हड्डी के निर्माण की भी क्षमता रखती है। अपनी इसी खासियत के कारण ये अस्थि भंग के विरोहरण (healing) में सहायता देती है। हड्डी का विकास (ossification) धीरे-धीरे, कई अवस्थाओं को पार करने के बाद पूरा होता है।

  1. सघन अस्थि (हड्डी)- सारी हड्डियों की बाह्म परत तथा दीर्घास्थियों के काण्ड (Shaft) सघन प्रकृति के होते हैं। नंगी आंखों से देखने पर सघन अस्थि ठोस महसूस होती है। लेकिन इसकी अनुप्रस्थ काट (transverse section) का सूक्ष्मदर्शीय परीक्षण करने पर चक्रों का एक डिजाइन-सी दिखाई देता है। हर चक्र के बीच में एक नलिका पायी जाती है, जिसे हैवरसीयन-नलिका (haversian canal) कहते हैं, इसमें रक्त वाहिनियां, लसीका वाहिनियां, तन्त्रिकाएं एवं कुछ मज्जा कोशिकाएं रहती है, जो चारों ओर से हड्डियों की परतों (plates) से घिरी होती है। ये विभिन्न आकार की चक्राकार परतें होती है जो एक दूसरे के अंदर मौजूद रहती है। इन्हें हैवरसीयन पटलिका (haversian lamellae) कहते हैं। पास-पास सटी इन परतों के बीच में सूक्ष्म रिक्त स्थान (गर्त) होते हैं, जिन्हें रिक्तिकाएं (lacunae) कहते है। इनमें लसीका (lymph) तथा अस्थि कोशिकाएं (osteocytes) पायी जाती है। प्रत्येक रिक्तिका (lacunae) के चारों ओर सूक्ष्म लहरदार नलिकाएं निकलती है, जिन्हें सूक्ष्म प्रणलिकाएं (canaliculi) कहते हैं। इन सूक्ष्म प्रणलिकाओं द्वारा प्रत्येक रिक्तिका (lacunae) एक-दूसरे से तथा अन्ततः हैवरसीयन-नलिका से सम्बन्धित रहती है। रक्त से निकला हुआ लसीका हैवरसीयन नलिका में होकर, प्रणलिकाओं में होता हुआ, रिक्तिकाओं की गर्तिकाओं में पहुंच जाता है तथा वहां पर मौजूद अस्थि कोशिका का पोषण करता है। ये सभी रचनाएं मिलकर हैवरसीयन-यन्त्र (haversian system) कहलाती है।


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