वसा ऊतकों की यह विशेषता है कि इनमें मौजूद वसा कोशिकाओं (fat cells) में उन्मुक्त वसा मौजूद रहती है। वसीय कोशिकाएं अवकाशी ऊतकों के ढीले फ्रेम (मैट्रिक्स) पर आधृत रहती है। कोशिकाएं अक्सर बड़ी-बड़ी, गोलाकार या अण्डाकार होती है। आस-पास की कोशिकाओं के दबाव के कारण इन ऊतकों की कोशिकाएं बहुसतीय (polyhedral) हो जाती है। वसीय ऊतक की कोशिका का पूरा भाग वसा-गोलिकाओं (fat globules) से भरा हुआ रहता है। यहां तक कि वसा के दबाव से साइटोप्लाज्म तथा न्यूक्लियस किनारों से चपटे हो जाते हैं। इस प्रकार के वसीय ऊतक आंखों की पलकों, लिंग, अण्डकोष (scrotum), लघु भगोष्ठ (labia minora), मस्तिष्कीय गुहा आदि के अलावा शरीर के सभी स्थानों के अधस्त्वचीय ऊतकों (subcutaneous tissue) में पाया जाता है। पीत अस्थि मज्जा (yellow bone marrow) में वसा अधिक रहती है। प्रस्र्वित दुग्ध ग्रंथियों (lactating mammary glands) में वसीय ऊतक ज्यादा रहते हैं। वसीय ऊतक त्वचा में नीचे रहकर प्रत्यंगों एवं शरीर को आकृति (Shape) देता है। यह शरीर के अंदरूनी अंगों के चारों ओर रहकर अपने-अपने स्थान पर स्थिर रखता है तथा चोट लगने से बचाता है। यह वसाओं के रूप में शरीर में ताकत को जमा करके रखता है और शरीर के तापमान को नियमित रखता है। भूखे रहने की स्थिति में शरीर में जमा इसी वसा का उपयोग होता है। ऐसी स्थिति में इसका ऑक्सीकरण होता है जिससे शरीर के लिए आवश्यक ऊर्जा एवं ऊष्मा प्राप्ति होती है।