स्वस्थ जीवन के लिए हमारे भोजन में कुछ विशेष भोज्य पदार्थ (तत्व) पाए जाते हैं। इन तत्वों को भोजन के विशेष अवयव (essential nutrients) भी कहते हैं। इन तत्वों के कार्य अलग-अलग होते हैं तथा ये शरीर की अलग-अलग जरूरतों की पूर्ति भी करते हैं।
कार्बोहाइड्रेट्स:
कार्बोहाइड्रेट्स के अंदर शर्करा, स्टार्च (मांड) और सेल्यूलोज शामिल होते हैं। ये कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोजक होते हैं तथा इनमें हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन जल के समान अनुपात में रहती है। इनसे शरीर में ऊष्मा एवं ऊर्जा या शक्ति पैदा होती है तथा ऊतकों का निर्माण होता है। लेक्टोज (दुग्ध शर्करा) और ग्लाइकोजन (जिगर द्वारा संश्लेषित) के अलावा ज्यादातर कार्बोहाइड्रेट्स वनस्पतीय भोज्य पदार्थों से प्राप्त होते हैं। इनके स्रोत निम्नलिखित हैं-
कार्बोंहाइड्रेट्स को उसकी रासायनिक संरचना की जटिलता के अनुसार निम्न वर्गों में बांटा गया है-
साधारण शर्करा (Monosaccharides)- साधारण शर्करा (Mono saccharides) जैसे- ग्लूकोज, फ्रक्टोज (फलों की शर्करा) और गैलेक्टोज का अवशोषण सीधे आंत से होता है। ये सिर्फ एक इकाई या अणु के बने होते हैं।
डाइसैकेराइड्स (Disaccharides)- डाइसैकेराइड्स साधारण शर्करा (Monosaccharides) के दो अणुओं के मिश्रण से बने होते हैं। ये कुछ जटिल प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं जिन्हें अवशोषित होने से पहले पाचक नली में एन्जाइमों द्वारा पचने की जरूरत होती है जैसे- सूक्रोज, माल्टोज एवं लैक्टोज।
पॉलीसैकेराइड्स (polysaccharides)- ये बहुत से साधारण शर्करा (Monosaccharides) के अणुओं के संयोजन से बने अधिक जटिल कार्बोहाइड्रेट होते हैं। इनके अंतर्गत स्टार्च, ग्लाइकोजन, सेल्यूलोज एवं डेक्सट्रिन्स आते हैं।
पाचन क्रिया के दौरान जटिल कार्बोहाइड्रेट्स साधारण शर्करा (Monosaccharides) में विघटित होकर अवशोषित हो जाते हैं लेकिन फिर भी पाचक नली द्वारा सभी प्रकार के पॉलीसैकेराइड्स का पाचन नहीं हो पाता। इनमें सेल्यूलोज (शाकभाजी के रेशो एवं अनाजों के छिलके) का पाचन नहीं होता है लेकिन इनसे पाचक नली की क्रमाकुंचन गतियां बढ़ जाती है, जिससे मल विसर्जन ठीक प्रकार से हो जाता है और कब्ज का रोग नहीं होता।
कार्बोहाइड्रेट्स का कार्य- इनका मुख्य कार्य शरीर को क्रियाशील बनाए रखने के लिए ऊर्जा या शक्ति (energy) प्रदान करना है। एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट लगभग 4 कैलोरी ऊर्जा पैदा करता है। शरीर की कोशिकाएं साधारण शर्कराओं (monosaccharides) का उपयोग करके ऊष्मा पैदा करती है, जो जीवन बनाए रखने के लिए ऊर्जा में बदल जाती है।
प्रोटीन्स:
परिचय-
प्रोटीन सभी भोज्य पदार्थों में सबसे ज्यादा जटिल पदार्थ माना जाता है। ये कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के अलावा नाइट्रोजन, सल्फर तथा फॉस्फोरस से मिलकर बनती है। इन्हें अक्सर नाइट्रोजन युक्त भोज्य-पदार्थ कहते हैं क्योंकि ये ही सिर्फ ऐसे भोज्य पदार्थ है जिनमें नाइट्रोजन तत्व रहता है। ये जीवित प्रोटोप्लाज्म के निर्माण के लिए जरूरी होते हैं क्योंकि प्रोटोप्लाज्म भी कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइड्रोजन एवं सल्फर तत्वों का बना होता है। पाचन क्रिया में प्रोटीन मध्यवर्ती उत्पादों- पेप्टोन एवं एल्ब्यूमोसेस में बंट जाती है जो फिर अमीनो एसिड्स से विघटित हो जाते हैं। अमीनो एसिड्स प्रोटीन पाचन के आखिरी उत्पाद होते हैं और इनका अवशोषण और स्वांगीकरण हो जाता है।
प्रोटीन के स्रोत- प्रोटीन पौधों और पशुओं के मांस, दूध तथा अण्डे द्वारा प्राप्त किया पाता है। इस प्रकार प्रोटीन प्राप्त करने के निम्नलिखित दो स्रोत होते हैं-
प्राणिज प्रोटीन्स (Animal Proteins)—
अंडे - इनमें एल्ब्युमिन (Albumin) प्रोटीन मौजूद रहती है।
मांस - इसमें मायोसिन (Myosin) प्रोटीन मौजूद रहती है।
पनीर - इसमें कैसीन (casein) प्रोटीन मौजूद रहती है।
दूध - इसमें कैसीनोजन (Caseinogen) और लैक्टएल्ब्युमिन (Lactalbumin) प्रोटीन मौजूद रहती है।
वनस्पतीय प्रोटीन्स (vegetable proteins)—
गेहूं एवं दूसरे अनाज- इनमें ग्लूटीन (Gluten) प्रोटीन पाई जाती है।
दालें (मूंग, मसूर, मटर, सेम, सोयाबीन आदि)- इनमें लेग्यूमिन (Legumin) प्रोटीन पाई जाती है।
प्रोटीन्स अमीनो एसिड्स के संयोजन से बनी होती है। इन अमीनो एसिड्स की संख्या लगभग 22 होती है लेकिन हर प्रोटीन में इनमें से सिर्फ कुछ ही अमीनो एसिड्स होते हैं। अमीनो एसिड्स अलग-अलग प्रकार के होते हैं जो एक-दूसरे से बिल्कुल अलग होते हैं। इनके अलग-अलग प्रकार तथा अलग-अलग मात्रा के संयोग से विभिन्न प्रकार की प्रोटीन बन जाती है। प्राणिज या वनस्पतीय प्रोटीन का हर प्रकार अमीनो एसिड्स का एक जटिल मिश्रण होता है। 10 अमीनो एसिड्स ऐसे हैं जो उचित पोषण के लिए बहुत ही जरूरी माने जाते हैं इन्हें अनिवार्य अमीनो एसिड्स (essential aminoacids) भी कहते हैं। इन अमीनो एसिड्स को शरीर खुद अपने लिए नहीं बना सकता है बल्कि ये भोज्य-पदार्थो से प्राप्त होते हैं।
ऐसे प्रोटीन्स जिनमें सभी 10 जरूरी अमीनो एसिड्स उचित मात्रा में मौजूद हो, उन्हें पूर्ण प्रोटीन्स या उत्तम प्रोटीन्स कहते हैं- उदाहरण- एल्ब्युमिन, मायोसिन, कैसीन आदि। जिन प्रोटीन्स में सभी दस अमीनो एसिड्स मौजूद नहीं होते हैं उन्हें अपूर्ण प्रोटीन्स कहते हैं- उदाहरण- जिलेटिन (हड्डियों को उबालने से निकलने वाला चिपचिपा पदार्थ), ग्लूटीन, लेग्यूमिन आदि।
प्रोटीन के कार्य-
- प्रोटीन कोशिकाओं और ऊतकों की टूट-फूट की मरम्मत और वृद्धि के उपयोग में आती है।
- प्रोटीन पाचक रस (एन्जाइम्स) एवं हॉर्मोन्स बनाती है।
- प्रोटीन रोग प्रतिकारकों (antibodies) को पैदा करने में मदद करती है, जिससे शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति आ जाती है।
- प्रोटीन ऊर्जा पैदा करने में मदद करती है।
- प्रोटीन हीमोग्लोबिन, प्लाज्मा, अम्ल तथा क्षार को संतुलन में रखने का कार्य है।
जो प्रोटीन हम भोज्य पदार्थों प्राप्त करते हैं वह आमाशय तथा आंतों में पाचक रस (एन्जाइम्स) की मदद से अमीनो एसिड्स में बदल जाती है। ये अमीनो एसिड्स रक्त नलिकाओं द्वारा अवशोषित हो जाते हैं जहां से ऊतक अपनी जरूरत के अनुसार इन्हें ले लेते हैं। बाकी बचे जो अमीनो एसिड्स अवशोषित नहीं हो पाते हैं वह जिगर में चले जाते हैं। वहां वे ईंधन का काम करते हैं और ऊष्मा और ऊर्जा प्रदान करते हैं। एक ग्राम प्रोटीन से 4 कैलोरी ऊर्जा (energy) मिलती है।
वसाएं:
कार्बोहाइड्रेट्स की तरह वसाएं भी कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के यौगिक है परंतु इनमें हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन उतनी मात्रा में नहीं होती जितनी कि वे जल में होती है अर्थात इनमें ऑक्सीजन की मात्रा कम रहती है।
वसाओं में कार्बोहाइड्रेट्स से दुगुनी ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता होती है। पाचन क्रिया के दौरान वसाएं वसीय अम्लों (fatty acids) और ग्लिसरॉल (glycerol) में बंटकर अवशोषित हो जाती है। वसा (fat) को पचाने के लिए कार्बोहाइड्रेट्स की जरूरत पड़ती है। अगर इसे कार्बोहाइड्रेट्स न मिले तो यह अधपचा ही रह जाता है। इसके कारण ऊतकों में एसीटोन (Acetone) पैदा होकर रक्त में मिल जाता है। यह एसीटोन पेशियों में थकावट व सिरदर्द पैदा कर देता है और यदि यह अधिक मात्रा में मौजूद हो तो रक्त की प्रतिक्रिया बदलकर रक्त अम्लता (acidosis) नामक स्थिति पैदा कर देता है। यह स्थिति मूर्च्छा लाने वाली और मृत्यु के मुंह तक ले जाने वाली हो सकती है।
वसाएं प्राणिज एवं वनस्पतीय दोनों ही पदार्थों से प्राप्त होती है। वसा प्राप्ति के मुख्य स्रोत है-
प्राणिज वसा (Animal fats)-
- वसायुक्त मांस (चर्बी) और मछली का तेल
- दूध, पनीर, मक्खन, घी।
वनस्पतीय वसा (vegetable fats)-
प्राणिज वसाओं में मुख्य रूप से संतृप्त वसीय अम्ल (saturated fatty acids) और ग्लिसरॉल (glycerol) तथा वनस्पतीय वसाओं में असंतृप्त वसीय अम्ल (unsaturated fatty acids) और ग्लिसरॉल मौजूद होते हैं। इनमें ग्लिसरॉल को साधारण तथा निष्क्रिय वसा माना जाता है।
वसीय अम्ल अक्सर तीन सामान्य अम्लों (acids)- ऑलीइक (oleic), स्टीएरिक (stearic) और पामिटिक (palmitic) से मिलकर बनता है।
लाइनोलीक (linoleic), लाइनोलेनिक (linolenic) और एराकिडोनिक (arachidonic) एसिड्स, ये तीनों बहुअसंतृप्त (polyunsaturated) वसीय अम्ल है जो भोजन में जरूर मौजूद होने चाहिए, क्योंकि ये शरीर में संश्लेषित नहीं हो सकते हैं। ये प्रोस्टेग्लैण्डिन्स (शरीर में असंतृप्त वसीय अम्लों से बनने वाले वसीय अम्ल व्युत्पन्न) के पूर्णगामी (precursors) होते हैं।
वसाओं के कार्य-
- यह शरीर के कुछ अंगों जैसे- गुर्दों, आंखों आदि को सहारा देती है।
- वसाएं शरीर में ऊष्मा और ऊर्जा पैदा करती है।
- वसाएं अवत्वचीय परत के रूप में त्वचा से होने वाले ऊष्मा के नुकसान को कम कर देती है।
- यह शरीर में कॉलेस्ट्रॉल एवं स्टीरॉयड हॉर्मोन्स का संश्लेषण करती है।
- वसाएं वसा में घुलनशील विटामिंस जैसे- A, D, E एवं K का परिवहन एवं भण्डारण करती है।
- जरूरत से अधिक वसा लेने पर वसाएं त्वचा के नीचे वसीय ऊतक (adipose tissue) और मीजेन्ट्री (आन्त्रयोजनी) में जमा हो जाती है, जो ऊर्जा का मुख्य सुरक्षित भण्डार होता है।
- एक ग्राम वसा से लगभग 9 कैलोरी ऊर्जा पैदा होती है। एक सामान्य वयस्क को रोजाना 35 से 60 ग्राम वसा की जरूरत होती है।