परिचय-
हड्डी के ढांचे (अस्थि-पंजर) के भीतर शरीर का काम करने के लिए कोमल अंग होते हैं। ये कोमल अंग सौत्रिक तंतुओं द्वारा इन हडि्डयों से जुड़े रहते हैं। कई प्रकार की ग्रंथियां होती हैं, जो शरीर को सुचारू रूप से चलाने का काम करती हैं। हडि्डयों को ढकने तथा ग्रंथियों और अन्य कोमल अंगों की रक्षा के लिए मांसपेशियां होती हैं, इन्हीं मांसपेशियों से शरीर में सुडौलता आती है। इन मांसपेशियों के ऊपर चर्बी (वसा) तथा उसके ऊपर त्वचा होती है, जो बाहर से शरीर पर दिखाई देती है। शरीर में हर जगह मांस होता है, कहीं थोड़ा तो कहीं अधिक।
चलना-फिरना, बोलना, हाथ उठाना, मुंह खोलना, पलकें झपकाना, मैथुन करना आदि सब क्रियाएं मांसपेशियों के द्वारा ही होती हैं। इसी प्रकार दिल का धड़कना, आंखों की पुतली का छोटा-बड़ा हो जाना, सांस लेना, अन्न-मार्ग में भोजन धीरे-धीरे नीचे सरकना, भयभीत होकर या सर्दी के कारण रोओं का खड़ा हो जाना आदि सभी क्रियाएं मांसपेशियां ही संचालित करती हैं।
हमारे अस्थि-पंजर से लगे हुए मांस के बहुत-से छोटे-छोटे गट्ठों या टुकड़ों को ही मांसपेशियां कहा जाता है। ये पेशियां सौत्रिका तंतुओं द्वारा आपस में जुड़ी रहती हैं। यदि यह सौत्रिक तंतु अंगुली के जोड़ से हटा दिया जाए तो मांसपेशियां एक-दूसरे से अलग की जा सकती हैं। पेशियों के बीच तथा उनके अन्दर रक्त की नलियां और वात-सूत्र जाते हुए दिखाई देते हैं। अस्थि-पंजर से लगा हुआ मांस तो पेशियों में बंटा होता है, परन्तु आशयों, नलियों, मार्गों तथा हृदय आदि अंगों में भी मांस की मोटी व पतली परतें होती हैं, जैसे- अन्न-मार्ग की दीवारें मांस से बनी होती हैं। उसे यह नहीं कहा जा सकता है कि यहां एक पेशी का अन्त तथा दूसरी का आंरभ हुआ है या यह कि इसमें इतनी पेशियां हैं।
सभी मांसपेशियों का आकार तथा परिणाम अलग-अलग होते हैं। कोई पेशी लम्बी होती है तो कोई चौड़ी, कोई मोटी तो कोई पतली। ये पेशियां एक स्थान से आरम्भ होकर एक या एक से अधिक संधियों के ऊपर से गुजरती हुई दूसरी अस्थियों `कारटिलेज´ से जा लगती हैं। कोहनी विशेषकर 2 पेशियों की सहायता से मुड़ती है। जब हम कोहनी को मोड़ते हैं, तो बाजू के सामने का भाग पहले की अपेक्षा मोटा और सख्त हो जाता है। सिर को इधर-उधर घुमाने से हमारी गर्दन की पेशियां स्पष्ट दिखाई देती हैं। इसका कारण यह है कि वे पहले की उपेक्षा अधिक मोटी तथा सख्त हो जाती हैं।
मांस की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह सिकुड़कर मोटा और छोटा हो सकता है फिर पहले वाली अवस्था में भी आ सकता है। इसमें आवश्यकता के अनुसार किसी भी अवस्था में बदलने की क्षमता होती है। मांस के सिकुड़ने को `संकोच´ और फैलने को `प्रसार´ कहा जाता है।