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मानव शरीर का परिचय

परिचय-

     मानव शरीर विभिन्न संरचनात्मक स्तरों का एक जटिल संगठन है। इसकी शुरूआत परमाणुओं (Atoms), अणुओं (Molecules) और यौगिकों (Compounds) से होती है तथा कोशिकाएं, ऊतक, अंग (Organs) एवं जटिल संस्थान या तन्त्र (Systems) आपस में मिलकर सम्पूर्ण मानव का निर्माण करते है।

     रासायनिक स्तर पर मानव शरीर विभिन्न जैविक रसायनों का संगठनात्मक तथा क्रियात्मक रूप होता है। इसमें विभिन्न तत्वों के परमाणु यौगिकों के रूप में संगठित होकर जैविक क्रियाओं को संचालित करते है। इन तत्वों में ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं सल्फऱ मुख्य माने जाते हैं।

     जब दो या उससे अधिक परमाणु आपस में मिलते है, तो वे एक अणु की संरचना करते है, उदाहरणार्थ जब ऑक्सीजन के दो परमाणु आपस में मिलते है  तो वे एक ऑक्सीजन का एक अणु बनाते है, जिसे O2 लिखा जाता है। एक अणु में एक से अधिक परमाणु हो तो उसे यौगिक (Compound) कहते हैं।

     जल (H2O) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तरह ही कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन्स एवं वसा भी ऐसे यौगिक माने जाते हैं जो मानव शरीर के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

कोशिकाएं (Cells)- कोशिकाएं शरीर का सूक्ष्मतम रूप होती है। मानव शरीर करोड़ों कोशिकाओं से मिलकर बना है। यह कोशिकाएं काफी सूक्ष्म होती है इसलिए इन्हें सूक्ष्मदर्शी (Microscope) द्वारा ही देखा जा सकता है। कोशिका को जीवन की इकाई भी कहा जाता है, क्योंकि इनमें जीवन की समस्त मूलभूत क्रियाएं आदि सम्पन्न होती है जैसे- वृद्धि (Growth), चयापचय (Metabolism), श्वसन (Respiration), पाचन (Digestion), उत्सर्जन (Excretion), उत्तेजनशीलता (Irritability) एवं प्रजनन (Reproduction) है। कोशिकाएं अलग-अलग आकार और प्रकार की होती है।

ऊतक (Tissues)- समान गुणों वाली, एक ही आकार की तथा एक ही कार्य करने वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं। इन्हें चार समूहों में विभाजित किया गया है जैसे- उपकला ऊतक (Epithelial tissue), संयोजी ऊतक (Connective tissue), पेशी ऊतक (Muscle tissue) तथा तन्त्रिका ऊतक (Nervous tissue)।

अंग (Organs)- अंग दो या उससे ज्यादा तरह के ऊतकों का एक युग्मज संग्रह होता है, जो एक साथ कार्य करके एक विशेष प्रकार की क्रिया करता है। इसका एक बहुत ही अच्छा उदाहरण है- आमाशय (Stomach)। एपीथीलियल नामक ऊतक आमाशय की परत का काम करता है तथा इसे आमाशय की दीवार से स्रावित होने वाले विभिन्न एन्जाइम्स तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) की क्रिया से बचाने में सहायक होता है। अरेखित नामक पेशी ऊतक (Smooth muscle tissues) भोजन को मथता (churn) है और छोटे-छोटे टुकडों में बांटता है। नर्वस नामक ऊतक तन्त्रिका के आवेग (nerve impulse) का प्रेषण करता है, जो पेशी संकुचनों का प्रारम्भ तथा उनका समन्वय करता है। कनेक्टिव नामक ऊतक बाकी सभी ऊतको को एक साथ थामे रखने में सहायता करता है।

तन्त्र (संस्थान) (Systems)- शरीर के अलग-अलग अंग एक साथ मिलकर किसी एक खास क्रिया को करने का कार्य करते है। इस क्रिया को सामूहिक रूप से तन्त्र (System) कहते है। उदाहरण- श्वसन-संस्थान में बहुत से अंग (organs) होते है, जो शरीर के बाहर की वायु तथा अन्दर के रक्त के बीच यान्त्रिक विधि से विनिमय (परिवर्तन) करते है। पाचन-संस्थान के विभिन्न अंग भोजन के सख्त पदार्थों को नरम  पदार्थों में बदल देते है, जिससे सारभूत तत्व आसानी से शरीर द्वारा अवशोषित कर लिए जाते है। शरीर के सारे तन्त्र खास होते है तथा उनके कार्य मानव शरीर को प्रगतिशील एवं कार्य कुशल बनाए रखने के लिए समन्वयित होते है। किसी अकेले तन्त्र का कोई वजूद नही है। हर तन्त्र के अंग अपने कार्यों को करने के लिए आपस में जुड़े रहते हैं।

     विभिन्न तन्त्र एक साथ समूहित होकर किसी प्रकार मानव शरीर की रचना करते है, इसके बारे में नीचे संक्षेप में दिया गया है-

त्वचीय (आच्छदीय) संस्थान (Integumentary system)- इस तन्त्र में बाल, नाखून, त्वचा, पसीना एवं तैलीय ग्रन्थियां शामिल होती है। यह तन्त्र आंतरिक अंगों (internal organs) को आच्छदित करके उनकी रक्षा करता है। यह शरीर के तापमान के नियमन में सहायक होता है। इसमें संवेदी ग्राही (Sensory receptors) भी मौजूद रहते है जो उद्दीपनों (Stimuli) को ग्रहण करके उनका संचालन करते है।

 

कंकाल-तन्त्र (अस्थि-संस्थान) (Skeletal system)- कंकाल-तन्त्र में हड्डियां और उपास्थियां (Cartilages) शामिल होती है। यह तन्त्र शरीर को आकार प्रदान करता है, सहारा देता है तथा उसके अंगों (organs) की रक्षा करता है। कंकालीय पेशियों (skeletal muscles) एवं तन्त्रिका तन्त्र के सहयोग से जो़ड़ों में गति (movement) आती है। इसके अलावा यह तन्त्र रक्त कोशिकाओं का निर्माण भी करता है।

 

पेशीय तन्त्र (Muscular system)- शरीर का पूरा कंकाल-तन्त्र पेशियों से आच्छादित होता है, जिसे सामूहिक रूप से पेशीय तन्त्र कहते हैं। पेशीय तन्त्र के माध्यम से ही पूरे शरीर में गति पैदा होती है। कंकाल-तन्त्र और पेशीय तन्त्र को एकसाथ मिलाकर गति संस्थान (locomotar system) भी कहते है। यह शरीर में गर्मी पैदा करता है तथा शरीर के अंगों द्वारा पदार्थों को गतिशील बनाये रखता है। इस तन्त्र में तीन अलग-अलग तरह की पेशियां शामिल होती है- कंकालीय (Skeletal), चिकनी (smooth), तथा हृदयी (cardiac) पेशियां। इनके अलावा इसमें प्रावरणियों (Fasciae) एवं कण्डराएं (नसें) (tendons) भी होती है जो पेशियों को हड्डियों से जोड़ती है।

 

तन्त्रिका-तन्त्र (नाड़ी-संस्थान) (Nervous system)- तन्त्रिका-तन्त्र पूरे शरीर की ज्यादातर क्रियाओं को नियमित एवं नियन्त्रित करता है। यह तन्त्र संवेदी अंगों से संदेश प्राप्त करके उनका विश्लेषण करता है और पेशियों की गतियों को शुरु करता है। इस तन्त्र के केन्द्रीय तन्त्रिका-तन्त्र (Central nervous system) तथा परिसरीय तन्त्रिका-तन्त्र (Peripheral nervous system) दो भाग होते है-

  1. केन्द्रीय तन्त्रिका-तन्त्र में मस्तिष्क एवं सुषुम्नारज्जु (Spinal cord) शामिल होते हैं।
  2. परिसरीय तन्त्रिका-तन्त्र में मस्तिष्क से निकलने वाली 12 जोड़ी कपालीय तन्त्रिकाएं (Cranial nerves) और सुषुम्ना से निकलने वाली 31 जो़ड़ी सुषुम्ना-तन्त्रिकाओं (spinal nerves) शामिल होती हैं।

     इनके अलावा एक अनैच्छिक तन्त्रिका-तन्त्र (autonomic  nervous system) भी होता है। यह तन्त्रिका-तन्त्र का अऩैच्छिक भाग होता है। यह शरीर में स्वयं होने वाली क्रियाओं जैसे- दिल धड़कने, पाचक नली की ग्रन्थियों के स्रावों आदि को नियन्त्रित करता है। इसमें अनुकम्पी (Sympathetic) एवं परानुकम्पी (Parasympathetic) दो प्रकार की तन्त्रिकाएं होती है।

अंतःस्रावी तन्त्र (Endocrine system)- यह तन्त्र शरीर का एक प्रमुख तन्त्र माना जाता है। यह तन्त्र तन्त्रिका-तन्त्र के साथ मिलकर शरीर की अलग-अलग क्रियाओं को नियंत्रण में करता है। इसमें वाहिकाविहीन या अन्तःस्रावी ग्रन्थियां (ductless or endocrine glands)- पीयूष ग्रन्थि (pituitary gland), अवटु ग्रन्थि (Thyroid gland), परावटु ग्रन्थियां (Parathyroid gland), अधिवृक्क ग्रन्थियां (Adrenal gland), अग्नाशय के लैंगरहैन्स की द्वीपिकाएं (islets of langerhans of the pancreas), जनन ग्रन्थियां (gonads) पुरूषों में शुक्र ग्रन्थियां (testes) तथा स्त्रियों में डिम्ब ग्रन्थियां (ovaries) होती है। इन ग्रन्थियों में बनने वाले रसों को हॉर्मोन्स कहते है। ये हॉर्मोन्स इन ग्रंथियों से होकर सीधे रक्त में पहुंच जाते है और रक्त के साथ भ्रमण करते हुए शरीर के उस अंग में पहुंच जाते है, जिस पर क्रिया विशेष होती है

रक्त परिसंचरण तन्त्र (Circulatory system)- इसे शरीर का परिवहन तन्त्र माना जाता है और यह शरीर के हर अंग का पोषण करता है। इसके तन्त्र में हृदय, रक्त एवं रक्तवाहिकाएं शामिल होती है। रक्त हृदय की पम्प क्रिया द्वारा रक्तवाहिकाओं से होकर पूरे शरीर के ऊतकों में पहुंच जाता है। शरीर के एक अंग से दूसरे अंग तक भोजन, ऑक्सीजन, वर्ज्य- पदार्थ एवं दूसरे आवश्यक पदार्थों को पहुंचाने का काम रक्त ही करता है।

रक्तवाहिकाएं दो प्रकार की होती है-

धमनियां (Arteries)- धमनियां हृदय से ऊतकों तक शुद्ध रक्त (ऑक्सीजन सहित) पहुंचाती है।

शिराएं (veins)- शिराएं ऊतकों से हृदय तक अशुद्ध रक्त को (ऑक्सीजन सहित) पहुंचाती है।

लसीका तन्त्र (Lymphatic system)- इस तन्त्र में लसीका (lymph), लसीका वाहिनियां (Lymph vessels) एवं लसीका ग्रंथि (lymph nodes) तथा दूसरे लसीका ऊतक, प्लीहा (spleen), टॉन्सिल्स एवं थाइमस ग्रन्थि शामिल होते हैं। यह तंत्र भी रक्त परिसंचरण तंत्र की तरह ही होता है तथा दोनों का आपस में मजबूत संबंध होता है। लसीका-तन्त्र इम्यून सिस्टम (immune system) का एक भाग होता है।

श्वसन तन्त्र (Respiratory system)- यह तन्त्र शरीर और वायुमण्डल के बीच ऑक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड गैसों को लेने और छोड़ने का काम करता है। इस तन्त्र में अनेकों वायुमार्गो; नसिका-गुहा (nasal cavity), नासिका (nose). स्वरयन्त्र (larynx), ग्रसनी (pharynx), श्वास नलियां (bronchus), श्वास-प्रणाली (trachea), श्वास नलिकाएं (bronchioles), फेफड़े (lungs), फुफ्फुसावरण (pleurae), अन्तरापर्शुकी पेशियां (intercostals muscles) तथा डायाफ्राम (diaphragm)  शामिल होते हैं।

 

पाचन-तन्त्र (Digestive system)- यह तन्त्र भोजन के पाचन और अवशोषण तथा अनावश्यक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का काम करता है। इस तंत्र में मुख (mouth), ग्रसनी (pharynx), ग्रासनली (oesophagus), आमाशय (Stomach) छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय (rectum) एवं गुदा (anus), तथा विभिन्न सहायक अंग (accessory organs) दांत, जीभ, 3 जोड़ी लार ग्रन्थियां (Salivary glands), अग्नाशय (pancreas), जिगर (liver), पित्ताशय (gall bladder) और पित्तनली (bile duct) शामिल होते हैं।

     पाचन तन्त्र बहुत से भागों में मिलकर बना एक तन्त्र है, जिसमें हर भाग अपना विशेष कार्य करता है।

 

मूत्रीय संस्थान (Urinary system)- यह शरीर का मुख्य उत्सर्जन तन्त्र माना जाता (excretory system) है। यह चयापचायी अनावश्यक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालता है तथा रक्तदाब को नियंत्रित करने, जल एवं लवणों का तथा अम्ल एवं क्षारीय (Acid- base) सन्तुलन बनाए रखने में सहायक होता है। इसमें गुर्दे (kidneys), दो मूत्रनलियां (ureters), मूत्राशय (bladder) तथा मूत्रमार्ग (urethra) शामिल होते हैं।

 

प्रजनन तन्त्र (reproductive system)- यह तन्त्र अपने जैसे ही जीव को पैदा करके प्रजाति के अस्तित्व को बनाये रखता है। इसमें लिंग कोशिकाएं पैदा होती है तथा पुरूषों में शुक्राणु (Spermatozoa) और स्त्रियों में डिम्ब या अण्डाणु (ova) बनते है। इस तन्त्र का सम्बन्ध सन्तान पैदा करने से है। इसमें स्त्री और पुरूष के बाहरीय एवं आन्तरिक जननांग शामिल होते हैं।

समस्थिति (Homeostasis)- जब शरीर रचना एवं क्रिया में सही तरह का तालमेल होता है तो शरीर के आंतरिक अंगों में आपेक्षित स्थिरता बनी रहती है, जिसे हम समस्थिति (homeostasis) कहते हैं। वैसे शरीर के बाहर का वातावरण हर समय बदलता रहता है, फिर भी स्वस्थ शरीर का आन्त्रिक वातावरण (internal environment) सामान्य सीमाओं में स्थिर बना रहता है। सामान्य अवस्थाओं में मस्तिष्क में मौजूद नियन्त्रण केन्द्रों द्वारा शरीर की अनुकूल यन्त्रविधियों (mechanisms) से हॉर्मोन्स स्रावित होते है जो विभिन्न अंगों (organs) द्वारा सीधे रक्त में पहुंच जाते हैं। इससे शरीर की समस्थिति बनी रहती है। कुछ कार्य जैसे रक्तदाब (ब्लडप्रेशर), शरीर का तापमान, श्वास-प्रश्वास (सांस लेना और छोड़ना) तथा हृदय की गति होम्योस्टैटिक मेकेनिज्म द्वारा नियंत्रित होते हैं।

     शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए रासायनिक सन्तुलन (Chemical balance) या हॉर्मोनल सन्तुलन इसकी कोशिकाओं के अंदर तथा बाहर सावधानीपूर्वक स्थिर बना रहना चाहिए। इस संतुलन के लिए कोशिकाओं के बाहर के द्रव्य (Extra cellular fluid) का संघटन (Composition) सही तरह से स्थिर बना रहना चाहिए। बाह्म कोशिकाद्रव्य पूरे शरीर में परिसंचरित होता है तथा अनेक पदार्थ इस द्रव्य के जरिये से कोशिकाओं के अन्दर एवं बाहर चले जाते हैं। इस प्रकार यह द्रव्य शरीर के तन्त्रों (body systems) के तापमान एवं दबाव स्तरों को स्थिर रखता है। इसके साथ ही अम्ल एवं क्षारों, ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का सही सन्तुलन बनाए रखता है तथा रक्त में पाये जाने वाले जल, पोषक तत्त्वों (Nutrients) एवं अऩेकों रसायनों (हॉर्मोन्स) के घनत्व (Concentration) का सन्तुलन बनाए रखता है।

     व्यवहारिक रूप से शरीर में होने वाली सारी प्रक्रियाएं समस्थिति का निर्वाह करने में मदद करती है। उदाहरण- गुर्दे (kidneys) रक्त को छानकर साफ करने का काम करते हैं तथा नियमन (regulate) हुए जल एवं अनावश्यक पदार्थों को सावधानीपूर्वक निकाल देते हैं। फेफड़े पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने एवं कार्बन डाइऑक्साइड को निकालने के लिए हृदय, रक्तवाहिकाओं एवं रक्त के साथ मिलकर कार्य करते हैं। पोषक तत्व पाचन संस्थान से छोटी आंतों की भित्तियों द्वारा अवशोषित होकर रक्त में पहुंच जाते हैं। फिर रक्त इन्हें आवश्यकतानुसार शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है। सामान्य रूप से शरीर के सारे तन्त्र आन्तरिक समस्थिति के साथ मिलकर कार्य करते हैं जिसके फलस्वरूप मनुष्य का स्वास्थ्य हमेशा अच्छा बना रहता है।

     समस्थिति की पूरी नियमन प्रक्रिया (regulation process) तन्त्रिका एवं हॉर्मोनल संस्थानों के संवेदनशील तंत्र के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष नियन्त्रण के अलावा अनेकों अंगो (organs) एवं ऊतकों की समन्वयित फीडबैक क्रिया द्वारा सम्भव होती है। यदि समस्त तंत्र (systems) तरह से कार्य कर रहे होते हैं, तो मनुष्य स्वस्थ महसूस करता है, जिससे समस्थिति (homeostasis) का पता चलता है। यदि तंत्रों के बीच तालमेल टूट जाता है, तो मनुष्य अस्वस्थ महसूस करने लगता है। यदि शरीर द्वारा स्वयं अथवा उपचार द्वारा आन्तरिक समस्थिति का दुबारा स्थापन नहीं होता तो मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।

दबाव एवं समस्थिति (Stress and homeostasis)- समस्थिति का निर्वाह करने के लिए मनुष्य को अपने मन और शऱीर को आन्तरिक एवं बाह्म वातावरण में पैदा होने वाले विभिन्न असन्तुलनों के प्रति अनुकूल बना लेना चाहिए। शरीर में समस्थिति असन्तुलनों को पैदा करने वाले कारकों (factors) को स्ट्रेसर्स (stressors) अर्थात दबाव पैदा करने वाले कारक कहा जाता है तथा सर्वांगीण बिगाड़ जो शरीर में अनुकूलनीय परिवर्तनों को बाह्म करता है, उसे दबाव कहा जाता है।

     माइक्रोबायोलॉजीकल (वायरस, बैक्टीरिया), फिजियोलॉजीकल (ट्यूमर्स, आसामान्य क्रियाएं), विकासशील (वृद्धावस्था, आनुवांशिक परिवर्तन), स्ट्रेसर्स, भौतिक (गर्मी, शोरगुल), रासायनिक (खाद्य, हॉर्मोन्स) या मनोवैज्ञानिक (भाववेग, मानसिक गड़बड़ियां) आदि समस्थिति का संतुलन बिगाड़ सकते हैं। कुछ मात्रा मे दबाव सामान्य होता है तथा यथार्थ (fabliau) में लाभ पहुंचाने वाला हो सकता है। उदाहरण- चलने पर हड्डियों, पेशियों एवं जोड़ों पर कुछ दबाव पड़ता है, जो इन्हें मजबूती देने में सहायक होता है। चलने-फिरने का कार्य न करने से या ज्यादा दबाव से हड्डियां और पेशियां कमजोर पड़ जाती है, जबकि ज्यादा शारीरिक दबाव से हड्डियां टूट जाती है तथा पेशियां फट जाती है।

     ऐसे व्यक्ति जो अपने स्वभाव पर काबू नही कर पाते हैं उनके शरीर में रोग होने की संभावना (Susceptibility) बढ़ जाती है। ऐसे व्यक्ति जो अपने कार्यों में अधिक व्यस्त रहते है, उनमें रक्त में अधिक कॉलेस्ट्रॉल स्तर वाले तथा अधिक धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की तरह हृदय रोग होने की सम्भावना रहती है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि अधिक समय तक तनावग्रस्त रहने पर इम्यून सिस्टम की क्षमता घट जाती है तथा कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों ने अऩुभव किया है कि दबाव अर्थात तनाव ही कई रोगों के होने का कारण है।

     अत्यधिक एवं निरन्तर तनाव बने रहने पर रोग, अक्षमता, (Disability) यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है। व्यावहारिक रूप से देखा गया है कि, कैंसर, कोरोनरी हार्ट डिजीज, फेफड़ों के रोग, दुर्घटनाएं एवं आत्महत्या आदि में सीधे या किसी भी रूप से तनाव का हाथ होता है।


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