JK healthworld logo icon with JK letters and red border

indianayurved.com

Makes You Healthy

Free for everyone — complete solutions and detailed information for all health-related issues are available

मनुष्य का शरीर

परिचय-

        प्रकृति के अनुसार मानव के शरीर में विभिन्न कोशिकाएं पाई जाती है। इसमें से कुछ कोशिकाएं एक कोषीय और कुछ बहुकोषीय होती हैं। मनुष्य का शरीर एक प्रकार की ऐसी मशीन है जो अपनी बनावट के अनुसार किसी दूसरे जीवों से मेल नहीं खाती है। इसकी कार्य-प्रणाली भी अन्य जीवों से भिन्न पाई जाती है और यह किसी भी मशीन की स्थिरता से बिल्कुल अलग है तथा अपने मर्म एवं भाव-दशाओं की गहराई में हानि पहुंचाती है। मानवों द्वारा बनाई गई मशीनों के लिये यह एक चुनौती है, क्योंकि जहां तक इस मशीन की अपनी एक अलग उपयोगिता होती है और वही उसकी बनावट तथा सुन्दरता अनुपमेय है। कहने का अर्थ यह है कि जितनी लम्बी सेवा मनुष्य का शरीर दे सकता है उतनी लम्बी सेवा कोई मानव द्वारा बनाई गई मशीन नहीं दे सकती है। उदाहरण के लिये मनुष्य का हृदय एक प्रकार के पम्प का कार्य करता है और इस हृदय की लम्बाई 15 सेटीमीटर तथा आर-पार चौड़ाई 10 सेटीमीटर रहती है, फिर भी वह खून की वाहिनियों के लगभग 90,000 किलोमीटर क्षेत्र तक खून का संचार करता है जो एक 18,00. लीटर टैंक भरने के लिए समीचीन होता है। हृदय लगभग 70-80 वर्ष तक लगातार रात और दिन काम करता रहता है। मनुष्यों ने अब तक ऐसा कोई पम्प नहीं बनाया जो इतने लम्बे समय तक काम करता है। मनुष्यों के शरीर में बहुत सारी कोशिकायें तथा अंग पाये जाते हैं जो किसी मशीन के तरह ही अपना-अपना अलग कार्य करते हैं। जिस प्रकार कोई मशीन अपने कई भागों से कार्य करती है ठीक उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी अपने अंगों द्वारा कार्य करता है।

मनुष्य के शरीर में अनेक भाग पाये जाते हैं जो इस प्रकार है-

अस्थिपंजर-

        बांहो तथा टांगों की विभिन्न हडि्डयां, छाती की पसलियों का पिंजरा, त्रिकोणक गाणिकास्थि, पीठ की हड्डी तथा खोपड़ी आदि भागों को मिलाकर अस्थिपंजर बनता है। अस्थिपंजर ही शरीर को एक निश्चित आकार देता है तथा दूसरे अंगों को सहारा देता है। पेशियों के साथ मिलकर यह शरीर को अनेक प्रकार की गतियां कराने में मदद करता है।

अस्थिपंजर में विभिन्न भाग पाए जाते हैं-

  • पणिबन्धास्थि,
  • करभास्थि,
  • अंगुल्यस्थियां,  
  • आसनास्थि,
  • प्रपदिक,
  • गुल्फाल्थियां,
  • अन्तर्जघिका,
  • बहिर्जघिका,
  • जानुका,
  • ऊरूअस्थि,
  • जघनास्थि,
  • श्रोणिफलक,
  • उरोस्थि,
  • प्रगण्डास्थि,
  • बहि:प्रकोष्ठका,
  • अन्त:प्रकोष्ठका,
  • खोपड़ी,
  • कशेरूका खण्ड,
  • जत्रुक, 4 पर्शुका (पसली)।

अस्थि-पंजर के अगले भाग का चित्र

        मनुष्य के शरीर में पाई जाने वाली हडडी भी एक प्रकार की ऊतक होती हैं। इन ऊतकों को अस्थि-ऊतक कहते हैं और हडडी के अन्दर जो कोमल पदार्थ पाए जाते हैं उन्हे अस्थिमज्जा कहते हैं। रक्त-कोशिकाओं को बनाने का कार्य कतिपय हड्डियों की लाल अस्थिमज्जा करती है। हड्डियों में जैवी तथा अजैवी पदार्थ पाया जाता है और अजैवी पदार्थो में लवण पाये जाते हैं। हडडी में पाये जाने वाले जैवी पदार्थ ही हडडी को लचीला तथा खनिज पदार्थ हडडी को ठोस बनाते हैं। मनुष्य की उम्र बढ़ने के साथ-साथ उसके शरीर की हड्डियों के आकार में भी परिवर्तन आ जाता है। उदाहरण के तौर पर एक बूढ़े व्यक्ति के ‘शरीर की हडडी धीरे-धीरे सूख जाती है तथा उसके ‘शरीर की हडडी में दो-तिहाई लवण और एक-तिहाई जैवी पदार्थ पाये जाते हैं। छोटे बच्चे की हडडी में बहुत अधिक जैवी पदार्थ पाये जाते हैं इसलिए बच्चों की हड्डियां बड़े व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक लचीली तथा कोमल होती है। हड्डियों के भी अनेक रूप और आकार हैं जैसे- कुछ लम्बी हड्डी जो टांगों में पाई जाती है तो कुछ छोटी हड्डी जो हाथ पैर की उंगलियों में पाई जाती है। कुछ चौड़ी हड्डी जो खोपड़ी, छाती तथा पसलियों में पाई जाती है तथा कुछ मिश्र हड्डी पाई जाती हैं जो करोटिमूल तथा खोपड़ी के सबसे नीचे वाले हिस्से में पाई जाती है। इन हड्डियों का शरीर में अलग-अलग कार्य होता है।

        मनुष्यों के ‘शरीर की हड्डियों का सन्धिकरण भी कई प्रकार की हड्डियों जैसे- कंधे, कोहनी, घुटने आदि से मिलकर सम्भव होता है। हड्डियों में एक विशिष्ट प्रकार की अस्थि-संधि पाई जाती है जिसमें सफेद लचीला पदार्थ होता है। इस पदार्थ को उपस्थि कहते हैं। यह मुड़ी हुई हड्डी की सतह से जुड़ी रहती है और यह पदार्थ हड्डियों के बीच प्रकट होने वाले घर्षण को कम करता है। इससे लगी दो कलियां भी होती है- पहली बाहरी तन्तुकला तथा दूसरी आन्तरिक श्लेषककला। ये एक प्रकार का चिपचिपा पदार्थ छोड़ती है और हड्डी के जोड़ों पर तेल के संचार जैसा कार्य करती है।

        एक कोमल गोलाकार हडडी का सिरा दूसरी हड्डी के प्याले जैसी आकृति वाले खोल के अन्दर जाकर, अच्छी तरह फंसकर कंधे, कूल्हों की गोल तथा कोटर सन्धियों का निर्माण करता है। अस्थि-पंजर में एक चूल सन्धियां भी पाई जाती है जो कोहनी तथा घुटने में पाई जाती है। इसके कारण कोहनी और घुटने को मोड़ने या चलने-फिरने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती है। ये बाजू बंद, पैर तथा पसलियों और रीढ़ की हडडी के बीच के जोड़ो की सीमित गति होती है तथा वे या तो घूम सकती है या फिसल सकती है।

हडडी की सन्धि का चित्र

रीढ़ की हडडी-

        मनुष्य के ‘शरीर में पाये जाने वाली रीढ़ की हडडी को पृष्ठवंश तथा मेरुदण्ड के नाम से भी जाना जाता है। रीढ़ की हड्डी ‘शरीर का सारा भार संभालकर रहती है। इस हडडी में कई वर्षो तक मुड़ने तथा फैलने की क्षमता विद्यमान रहती है। रीढ़ की हड्डियों में 24 खण्ड पाए जाते हैं। इन खण्डों को कशेरूका कहते हैं। ये कशेरूकाएं आपस में एक-दूसरे से मिलकर एक जंजीर की तरह का आकार बनाती है जिन्हे ग्रैव कशेरूकाएं कहा जाता है। इस कशेरूका के निचले हिस्से में एक तिकोणी हडडी पाई जाती है जिसे त्रिकास्थि कहते हैं तथा उस पर जुड़ी हुई 5 कशेरूकाएं रहती है। सबसे नीचे पूंछ जैसी एक छोटी-सी नुकीली हड्डी होती है जिसे अनुत्रिक अथवा गुदास्थि कहा जाता हैं। गुदास्थि से 4-5 जुड़ी हुई कशेरूकाएं पाई जाती है। इस प्रकार की कशेरूकाएं मनुष्य के पूर्वजों की पूंछ के अवशेषों का संकेत देती है। प्रत्येक कशेरूका की आगे की ओर बेलन जैसी आकृति रहती है जिसे कशेरूका पिण्ड कहा जाता है। इस कशेरुका पिण्ड के पीछे एक चाप होता है जो अनेक नाड़ियों को सुरक्षित रखता है तथा कशेरुका और सन्धियों द्वारा एक के साथ ऊपर तथा दूसरी के साथ नीचे से जुड़ा रहता है। कशेरुका की प्लेट चौड़ी तथा बिस्कुट के समान होती है जो एक प्रकार की कोमल गद्दी का काम करती है जिसके कारण मेरूदण्ड की कशेरुकायें झटका या चोट लगने पर एक-दूसरी कशेरूका से टकरा नहीं पाती है। इन प्लेटों द्वारा ही पीठ की हडडी मुड़ती तथा घूमती है।

पीठ की हडडी का चित्र

        मेरूरज्जु जो एक कोमल रस्सी के समान होता है, मस्तिष्काधार को छोड़ देता है तथा इस नली के अन्दर से गुजरता हुआ छोटी-छोटी नाड़ियों में बिखरकर फैला जाता है और इनके माध्यम से कशेरूका अनेक भागों में पहुंच जाता है। ये नाड़ियां ‘शरीर के विभिन्न अंगों के निमित्त कार्य कराती है।

        वक्ष कशेरूकाओं की अवस्था में, पसलियों का एक जोड़ा दोनों ओर की कशेरूका से जुड़ा होता है। मनुष्य के ‘शरीर में पसलियों के 12 जोड़े पाए जाते हैं जिनमें 7 जोड़े अपनी उपास्थियों से होकर वक्षास्थि अर्थात उरोस्थि से मुड़ जाते हैं और 2 जोड़े सबसे छोटे होते हैं। ये पसलियां क्रियात्मक होती है और इन्हे यथार्थ पशुर्काएं कहते हैं। इनके अलावा 5 जोड़े उरोस्थि के साथ नहीं मुड़ते तथा इन्हें अयथार्थ पशुंर्काएं कहा जाता है।

        रीढ़ की हडडी में कण्ठास्थियां तथा स्कन्ध फलकों की हड्डियां, जिनका चौड़ा त्रिकोणक आकार होता है, मेखला का निर्माण करती है। अस्थिपंजर में पाई जाने वाली सभी हड्डियां पेशियों के साथ जुड़ी रहती है जो ‘शरीर की विभिन्न प्रकार की ऐच्छिक तथा अनैच्छिक गतियां देने में सहायक होती है। पंजर में 400 कंकाल पेशियां होती हैं।

रीढ़ के हड्डी में पाई जाने वाली पेशियां 2 प्रकार की होती है-

1. ऐच्छिक पेशियां- ऐच्छिक पेशियां वह पेशियां होती है जिन्हे इच्छानुसार नियंत्रण में रखा जा सकता है । उदाहरण के लिये-सिर, गर्दन, तथा हाथ-पैरों की पेशियां।

2. अनैच्छिक पेशियां- ये वे पेशियां होती है जिन्हे इच्छानुसार नियंत्रण मे नहीं रखा जा सकता है। उदाहरण के लिये- आंख, हृदय तथा आंत आदि।

त्वचा-

        शरीर के आन्तरिक अंगों की रक्षा करने के लिए त्वचा या खाल पूरे ‘शरीर को ढककर रखती है। ‘शरीर पर जो बाहरी परत पाई जाती है उसे चमड़ी, खाल या त्वचा की बाहरी झिल्ली कहा जाता है। इस त्वचा के अन्दर जो तत्व पाया जाता है उसे यर्थाथ त्वचा के रूप में जाना जाता है। इस त्वचा में स्वेद ग्रन्थियां पाई जाती है जो ‘शरीर के नियमित तापमान को बनाये रखने में सहायक होती  है।


Copyright All Right Reserved 2025, indianayurved