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चुम्बकों का चिकित्सा में प्रयोग

परिचय-

          जिस प्रकार दूसरी चिकित्साओं में औषधियों का प्रयोग रोगों का उपचार करने के लिए किया जाता है ठीक उसी प्रकार चुम्बक चिकित्सा में भी चुम्बकों का प्रयोग रोगों को ठीक करने के लिये किया जाता है। चुम्बक को रोगों को ठीक करने के लिये एक अत्यन्त शक्तिशाली हथियार माना जाता है। चुम्बक रोगी के ज्ञान, बुद्धि और विवेकशीलता को मिलाकर उन होठों की खोई हुई मुस्कान को वापस ले आता है जिन्हे रोगी कब का भूल चुका होता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर चिकित्सा में धैर्य, दया एवं विवेक सफलता के गुण माने जाते हैं। ठीक इसके विपरीत असावधानी तथा जल्दबाजी असफलता के गुण है। लगभग हर तरह की चिकित्सा का उद्देश्य रोग को ठीक करना होता है। ठीक इसी तरह चुम्बक चिकित्सा का भी उद्देश्य रोग को ठीक करना है। लगभग सभी प्रकार के  रोग चुम्बक चिकित्सा के द्वारा आसानी से ठीक हो सकते हैं।

        चुम्बक चिकित्सा करने से पहले हमें इस चिकित्सा में प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों की जानकारी लेने की आवश्यकता है-

चुम्बक चिकित्सा में प्रयोग किये जाने वाले उपकरण निम्नलिखित है-

1. उदर पट्टी- इस चुम्बकित पट्टी का उपयोग कई प्रकार की बीमारियों को ठीक करने के लिये किया जाता है जैसे- पेट दर्द, स्त्रियों की दर्दनाक महावारी की अवस्था तथा गुर्दे का दर्द आदि।

2. कमर दर्द और पेट घटाने वाली पट्टी- यह चपटी तथा लचीली पट्टी चुम्बक चिकित्सा के क्षेत्र में एक महान उपलब्धि है। इस पट्टी का प्रयोग अनेक रोगों को ठीक करने के लिये किया जाता है जैसे- कमर दर्द, सायटिका, पेट के रोग आदि।

3. गर्दन पट्टी- इस चुम्बकित पट्टी का उपयोग गर्दन की अकड़न को ठीक करने के लिये किया जाता है। इस पट्टी में चुम्बक ध्रुवों के तीन जोड़े कुछ-कुछ अन्तर पर लगे होते हैं, जिसमें दो जोडें पट्टी के बीच वाले भाग में तथा एक जोड़ा किनारे पर लगा होता है।

4. घुटने की पट्टी- घुटने की बीमारियों जैसे- जोड़ों का प्रदाह, गठिया, हडि्डयों की जोड़ों की जलन और टांगों तथा घुटने में दर्द आदि को ठीक करने के लिये भी चुम्बकित पट्टी का प्रयोग किया जाता है

5. चुम्बक हार- इस प्रकार के हार को अन्य माला की तरह ही गले में पहना जाता है तथा इससे कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं जैसे-गर्दन तथा छाती के किसी भी भाग में होने वाला दर्द, पित्ताशय में दर्द, पित्त-पथरी, दिल की धड़कन तेज होना तथा गर्दन का दर्द आदि रोग।

6. टांसिल पट्टी- इस प्रकार की पट्टी में टांसिलों के आकार के हल्के से मुड़े हुए चुम्बकों के दो जोड़े लगे होते हैं। इस पट्टी का उपयोग गले की प्रदाह की अवस्था में किया जाता है तथा इसे गर्दन के चारो तरफ इस तरह लपेटा जाता है कि पहला जोड़ा एक टांसिल को तथा दूसरा जोड़ा दूसरे टांसिल को ठीक प्रकार से ढक दे तथा पट्टी के दोनों किनारे गर्दन के पिछले हिस्से से अच्छी तरह से चिपके रहे।

7. नेत्र पट्टी- इस प्रकार की पट्टी में चुम्बकों के दो छोटे जोड़े आंखों की दूरी के अनुसार लगे होते हैं तथा इस पट्टी का उपयोग आंखों की अनेक बीमारियों को ठीक करने के लिये किया जाता है जैसे- आंखों में दर्द, आंखें आना, ‘श्वेत पटल का प्रदाह होना तथा नज़र कमजोर पड़ना आदि।

8. सिर और गले की पट्टी- इस चुम्बकित पट्टी का प्रयोग कई प्रकार के गले तथा सिर के रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है जैसे- आधासीसी का दर्द, सिरदर्द, चेहरे का दर्द, मसूढ़े में दर्द, दिमागी थकान, कमजोरी तथा तन्त्रिकावसाद आदि।

9. बाजू-बंद (कलाई पट्टी)- इस प्रकार की पट्टी का प्रयोग चुम्बकीय चिकित्सा में रोगी के ब्लड प्रेशर को सामान्य गति देने में किया जाता है। जब रोगी का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ रहता है तो इसे रोगी की दाईं कलाई पर बांधने से ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है। लेकिन जब रोगी का ब्लड प्रेशर सामान्य से कम हो तो उस समय इस पट्टी को रोगी की बाई कलाई पर बांधना चाहिए जिससे रोगी का ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाए।

10. सेरामिक चुम्बक- ये कम शक्ति के अर्धचन्द्राकार चुम्बक होते हैं। इस प्रकार के चुम्बकों का प्रयोग शरीर के कोमल अंगों पर तथा छोटे बच्चों की कई प्रकार की बीमारियों को ठीक करने के लिये किया जाता हैं जैसे- नींद न आना, टांसिलों का प्रदाह, आंखे दुखना तथा बौनापन आदि रोग।

11. मध्यम शक्ति के चुम्बक- इस प्रकार के चुम्बकों का प्रयोग बच्चों की हथेलियों पर तथा पैर के तलुवों पर किया जाता है। कान तथा दांत दर्द जैसे रोगों में इनका प्रयोग किया जाता है। बड़ी उम्र के व्यक्तियों पर इन चुम्बकों का प्रयोग बहुत अधिक लाभदायक होता है लेकिन तब जब इन चुम्बकों का प्रयोग स्थानिक प्रयोग के रूप में शरीर के अत्यन्त कोमल अंगों तथा अन्य जैवी अंगों पर किया जाए।

12. प्रेसीडण्ट चुम्बक- इस प्रकार के चुम्बक का प्रयोग बूढ़े लोगों पर अत्यधिक लाभदायक होता है। अधिकतर इन चुम्बकों का प्रयोग पुरानी बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है।

13. चुम्बकित जल- चुम्बक द्वारा जो जल चुम्बकित किया जाता है उसे चुम्बकित जल कहते हैं। इस जल का प्रयोग चुम्बक चिकित्सा में कई प्रकार की बीमारियों को ठीक करने के लिये किया जाता है।

14. चुम्बकित तेल- यह चुम्बकित तेल चुम्बक चिकित्सा में मालिश करने के लिये प्रयोग किया जाता है। चुम्बक द्वारा बनाये गये इस तेल से कई प्रकार की बीमारियों को ठीक किया जाता है जैसे-अकौता, जोड़ों की जलन व दर्द, सायटिका तथा काली खांसी आदि रोग।

15. नीला तेल- चुम्बक चिकित्सा में इस तेल का प्रयोग कई प्रकार की बीमारियों को ठीक करने के लिये किया जाता है जैसे- दर्दनाक सूजन, रक्तसंचयी अवस्था, फोड़े-फुन्सियां आदि रोग।

16. लाल तेल- चुम्बक चिकित्सा में इस तेल का उपयोग प्रदाह, सायटिका तथा कशेरूकाओं की प्रदाह आदि रोगों में किया जाता है।

17. उत्तरी ध्रुव चुम्बक- इस प्रकार के चुम्बक का प्रयोग चुम्बक चिकित्सा में चुम्बकित जल तथा तेल बनाने के लिये किया जाता है तथा इस चुम्बक द्वारा कई प्रकार की बीमारियों को ठीक किया जाता है।

18. दक्षिणी ध्रुव चुम्बक- इस प्रकार के चुम्बक का प्रयोग भी चुम्बक चिकित्सा में चुम्बकित जल तथा तेल बनाने के लिये किया जाता है तथा इस चुम्बक द्वारा कई प्रकार की बीमारियों का इलाज किया जाता है।

19. सूर्य का प्रकाश- चुम्बक चिकित्सा में सूर्य के प्रकाश का उपयोग सिंकाई करने के लिये किया जाता है। सबसे पहले शरीर के प्रभावित भाग में चुम्बकित तेल लगाया जाता है और फिर उस भाग पर सूर्य के प्रकाश द्वारा सिंकाई की जाता है।


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