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अतिअम्लता

परिचय-

          चिकित्सा ‘शास्त्र के अनुसार मनुष्य के ‘शरीर में पाये जाने वाले पाचक रसों में अम्ल की अधिक बढ़ी हुई मात्रा को अतिअम्लता कहा जाता है। वैसे इसे अम्लाधिक्य के रूप में भी जाना जाता है। इसके अलावा इस रोग को हृदय जलन के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इस रोग में पीड़ित व्यक्ति के हृदय में जलन होती है।

लक्षण-

        इस रोग से पीड़ित मनुष्य के हृदय में जलन होती रहती है, जीभ के पीछे खट्टापन तथा जलनयुक्त स्वाद रहता है। मुंह के स्वाद में भी खट्टापन आ जाता है और जीभ से बहुत अधिक मात्रा में लार निकलती है। रोगी के पेट के अन्दर हवा भर जाती है।

कारण-

        अधिक मसालेदार भोजन का सेवन करना, ‘श्वेतसारिक पदार्थो का सेवन करना, फलियों से प्राप्त दालों का अधिक सेवन करना तथा अधिक ‘शराब पीना आदि कारणों से यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।

उपचार-  

  • इस रोग से पीड़ित रोगी को  में दिनएक बार अपनी हथेलियों पर शक्तिशाली चुम्बक का प्रयोग करना चाहिए- दिन में 3-4 बार चुम्बकित जल को दवाई की मात्रा के अनुसार सेवन करना चाहिए।
  • मनुष्य को अधिक मात्रा में पत्तीदार सब्जियों तथा नींबू, फलों का अपने भोजन में प्रयोग करना चाहिए।
  • व्यक्ति को ‘शराब, ‘श्वेतसारिक पदार्थों तथा चीनी को खाने में प्रयोग नहीं करना चाहिए।


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