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वक्षस्थल पर दबाव (स्तन के आस-पास दबाव)

परिचय-

          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार यदि किसी स्त्री को वक्षस्थल (स्तन) संबन्धित कोई रोग हो जाता है तो उस स्त्री के रोग को ठीक करने के लिए वक्षस्थल से संबन्धित बिन्दु होती है और इन बिन्दुओं पर दबाव देने से कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार वक्षस्थल से सम्बन्धित कई बिन्दु होती हैं जो इस प्रकार है-

अंतरापर्शुक क्षेत्र-

       आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार स्तन (वक्षस्थल) की मुख्य मांसपेशियों तथा आंतरिक व बाहरी अन्तरापर्शुक की मांसपेशियों के लिए होता है। इसके लिए हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अनामिका उंगलियों से स्तन अंग के बगल में दबाव देना चाहिए। दबाव देते समय प्रत्येक उंगली को छाती के पास दो पंसलियों के बीच में रखना चाहिए। अपनी कोहनियों को बगल में फैलाकर शरीर के दाएं-बाएं भाग में स्थित चारों अंतरापर्शुक बिन्दुओं (छाती के ऊपर की बिन्दुएं) में से प्रत्येक पर बारी-बारी से दबाव देना चाहिए। इसके बाद इन बिन्दुओं के प्रत्येक भाग पर 6 उर्ध्वाकार पक्तियां होती हैं। इसके अलावा ऊपर की तीन पंक्तियों पर एक समय में दबाव देना चाहिए तथा इसके बाद नीचे की तीन पंक्तियों पर दबाव तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए और इसके बाद यह उपचार एक बार और दुबारा से करना चाहिए। फिर इसके बाद दबाव खिंचाव के साथ देना चाहिए। इस प्रकार से उपचार यदि प्रतिदिन किया जाए तो स्तन से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

उरोस्थि क्षेत्र-

       आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार उरोस्थि के पांच बिन्दु स्तन के ऊपर की हड्डी के पास होते हैं। दोनों हाथों की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों को सटाकर प्रत्येक बिन्दु पर हल्के-हल्के दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से यदि प्रतिदिन उपचार किया जाए तो इस भाग से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।

वक्ष क्षेत्र पर हथेली से गोल घुमावदार दबाव-

       आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार अगर अपनी उंगलियों को उरोस्थि अंगों की ओर केन्द्रित करें तो दोनों हथेलियों को वक्ष (स्तन) के दाएं व बाएं भाग पर रखना चाहिए और कोहनियों को अगल-बगल में सीधे रूप में फैलाना चाहिए। फिर बारी-बारी से हथेलियों द्वारा बाहर की ओर घुमावदार पांच बार दबाव देना चाहिए। इसके बाद अपने हाथ को घुमाकर मूल स्थान पर वापस ले जाएं। फिर उंगलियों को डायाफ्राम की ओर मोड़े और उन्हें शीघ्रता से नीचे की ओर वक्ष पर आड़े रूप में ले जाएं। इसके बाद इस क्रिया को दो बार दोहराइये और फिर नीचे की ओर तेजी से थपथपाने के साथ नि:श्वास (सांस को बाहर निकालना) छोड़े। इस क्रिया को प्रतिदिन करने से रोगी स्त्री कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है।


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