परिचय-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार रोगी की टांगों पर उपचार शुरू करने से पहले यह जानना जरूरी है कि जिस प्रकार रोगी व्यक्ति के दाएं पैर पर उपचार किया जाता है ठीक उसी प्रकार से रोगी व्यक्ति के बाएं पैर पर भी उपचार किया जाना चाहिए। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अंतर्गत रोगी के पैरों के बिन्दुओं पर दबाव देकर पैरों से सम्बन्धित होने वाले रोग जल्द ही ठीक किया जा सकते हैं।
पैरों पर निम्नलिखित भाग होते हैं जिनका उपयोग आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा में रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है-
1. नितंब का क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार नितंब क्षेत्र के चार बिन्दुओं वाली दो पंक्तियां त्रिकास्थि के बिन्दुओं में से पहले बिन्दु के प्रत्येक भाग से शुरू होकर नितंब मांसपेशियों के साथ-साथ नीचे जाती ढलुवा रेखाओं के रूप में बाहर जाती हैं और ट्रोचेंटर (नितम्ब की हड्डी) से पहले रुक जाती हैं। इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए नितंब क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने से पहले रोगी को सावधान की अवस्था में खड़ा हो जाना चाहिए। अपने दोनों हाथ के अंगूठे से बारी-बारी रोगी के दाहिने और बाएं नितंब पर जो बिन्दु स्थित है उस पर दबाव देना चाहिए। इन प्रत्येक बिन्दुओं पर दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए तथा इस प्रकार की उपचार की क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए।
2. नेमीकोशी बिन्दु-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार नेमीकोशी बिन्दु एंटीरियर सुपिरियर इलियक स्पाइन से तिरछे रूप में नीचे तथा मेरू रज्जु से पांच सेण्टीमीटर दूर मेरूरज्जु को त्रिकास्थि से जोड़ने वाली रेखा पर स्थित होती है। इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी को सावधान की अवस्था में खड़ा हो जाना चाहिए और फिर इसके बाद अपने नितंबो की मध्य पेशी के स्थान पर स्थित बिन्दु पर दबाव देना चहिए। इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए अंगूठे का उपयोग करना चाहिए तथा दबाव देते समय दोनों हाथों की शेष चारों उंगलियों एंटीरियर सुपीरियर इलियक स्पाइन पर सहारे देने के लिए रखना चाहिए वैसे तो यह उपचार घुटने के बल झुककर करना चाहिए। लेकिन यह उपचार तब करना चाहिए जब इस रोग की अवस्था ज्यादा गंभीर न हो। इन क्षेत्रों पर दबाव तेज देना चाहिए तथा कटिस्नायु खांच की ओर केन्द्रित होना चाहिए। इन बिन्दुओं पर दबाव कम से कम पांच सेकेण्ड के लिए देना चाहिए और इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए।
3. बाहरी जघनास्थिक क्षेत्र
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार इस प्रकार के क्षेत्र पर उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर फैलाकर बैठना चाहिए तथा बायां घुटना जरा सा ऊपर उठा होना चाहिए। अब एंटीयर सुपीरियर इलियक स्पाइन के ठीक नीचे स्थित पहले बाहरी जघनास्थिक बिन्दु पर दाहिने अंगूठे पर बायां अंगूठा रख कर दबाव देना चाहिए। फिर इसके बाद अपने दोनों हाथों की शेष चारों उंगलियां सहारे के लिए जांघों से लिपटी रखनी चाहिए। इसके बाद इस स्थिति से नीचे घुटने तक के सभी दस बिन्दुओं में से प्रत्येक पर तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए और इसके बाद इस क्रिया को कम से कम तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से रोगी को प्रतिदिन अपना इलाज करने से उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
4. मध्य जघनास्थिक क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार इस प्रकार के क्षेत्र पर उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने बाएं घुटने को बाहर की ओर मोड़ की ओर मोड़कर उसके तलुवे को दाहिने घुटने के नीचे लाना चाहिए तथा इसके बाद मध्य जघनास्थिक क्षेत्र के दसों बिन्दु शंकाकार मांसपेशी के ठीक नीचे से एक पंक्ति के रूप में घुटने तक स्थित होती हैं। इसके बाद अपने दाएं हाथ के अंगूठे के समान्तर बाएं हाथ के अंगूठे को रखकर मध्य जघनास्थिक क्षेत्र पर दबाव देना चाहिए। यह दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए और एक बार दबाव देने के बाद इसी क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से रोगी का अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
5. पाश्र्व जघनास्थिक क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पाश्र्व जघनास्थिक क्षेत्र पर दबा देकर इलाज करना हो तो रोगी को चाहिए कि सबसे पहले अपने बाएं पैर को मूल स्थिति में वापस लाकर उसे अन्दर को मोड़े। इस तरह वह दाहिने घुटने के ऊपर होगा। इसके बाद दोनों अंगूठों को उनके बाहरी किनारों से मिलाएं तथा शेष उंगलियों को जांघ के चारों तरफ सहारे के लिए लपेट कर ट्रोचेंटर से घुटने की संधि तक एक रेखा के रूप में स्थित दसों बिन्दुओं में से प्रत्येक पर तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए। इसके बाद फिर से इसी क्रिया को कम से कम तीन बार दोहराना चाहिएं। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करें तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
6. पश्च जघनास्थिक क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पश्च जघनास्थिक क्षेत्र पर दबाव देने के लिए सबसे पहले यह जान लेना चाहिए कि इस क्षेत्र के दस बिन्दुओं में से पहला बिन्दु नितंब के मोड़ पर कटिस्नायु गुलिका के नीचे स्थित होता है तथा शेष बिन्दु घुटने के जो के पिछले कोटर तक नीचे जाती एक पंक्ति में स्थित होते हैं। वैसे इस क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव खड़ी अवस्था में आसानी से दिया जा सकता है। इसलिए रोगी व्यक्ति को खड़ा होकर अपने दोनों हाथों की तर्जनी, मध्य तथा अनामिका उंगलियों से इन बिन्दुओं पर बारी-बारी से लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए तथा इसके बाद इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। जब इस प्रकार से रोगी एक बार उपचार कर लेता है तो उसे अपने पैरों को फैलाकर जमीन पर बैठ जाना चाहिए और फिर अपने बाएं घुटने को ऊंचा उठाना चाहिए। फिर दोनों हाथों की पहली तीनों उंगलियों को सटाकर उनके उभरे भागों को दूसरे बिन्दु पर रखें तथा अंगूठों को सहारे के लिए जांघ पर कसना चाहिए। फिर इसके बाद जांघ के दसवें बिन्दु पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए और उपचार को तीन बार दोबारा दोहराना चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
7. जानुफलक क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार जानुफलक के क्षेत्र पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर सीधा रखकर बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद अपने बाएं घुटने को जरा सा ऊपर की ओर, जमीन से थोड़ा ऊपर उठाकर तथा नोंक मिले दोनों अंगूठों से घुटने के नीचे स्थित तीन बिन्दुओं में से प्रत्येक बिन्दुओं पर लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इसके बाद घुटने के ऊपर स्थित तीनों बिन्दुओं पर भी दबाव देना चाहिए। इसके बाद इस उपचार को तीन बार दोहराना चाहिए। फिर इसी प्रकार की क्रिया दाएं पैरों पर भी करनी चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
8. जानु पृष्ठीय कोटर-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार जानु पृष्ठीय कोटर के बिन्दुओं पर उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को सीधा आगे की ओर फैलाकर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद अपने दाएं पैर को घुटने के बीच से ऊपर की ओर उठाना चाहिए और फिर अपने दोनों हाथ के अंगूठों को घुटने के जोड़ पर रख कर जानुपृष्ठीय कोटर पर आड़े रूप में स्थित तीन बिन्दुओं में से प्रत्येक बिन्दु पर तथा दोनों आड़े रूप में स्थित तीन बिन्दुओं में से प्रत्येक बिन्दु पर दोनों हाथों की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों के उभरे भाग को रखकर, बाहर से अन्दर की ओर चलते हुए दबाव देना चाहिए। इस क्षेत्र के प्रत्येक बिन्दु पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इसके बाद इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इसके बाद इस तरह से दबाव देने की क्रिया को बाएं पैर पर भी करना चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
9. पश्च अधोजानु क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पश्च अधोजानु क्षेत्र पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर थोड़ा सा तिरछा रूप से मोड़कर बैठ जाना चाहिए। फिर इस क्षेत्र के आठ बिन्दुओं में से पहला बिन्दु जानुपृष्ठीय कोटर के ठीक दूसरे बिन्दु के नीचे होता है तथा इसके बाद शेष सात बिन्दु के नीचे जाती एक रेखा के रूप में कंडरा पेशी तक फैला रहता हैं। इसके बाद पश्च आधोजानु क्षेत्र के बिन्दुओं पर अपने दोनों हाथ की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों से प्रत्येक बिन्दु पर दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए तथा इसके बाद इस दबाव की क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से रोगी आपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
10. पार्श्विक अधोजानु क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पार्श्विक अधोजानु क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को सीधा आगे की ओर फैलाकर जमीन पर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद अपने बाएं पैर को घुटने के पास से मोड़कर बैठना चाहिए और फिर इससे आपका बायां पैर दाएं पैर पर आ जाएगा। इसके बाद अधोजानु क्षेत्र के 6 बिन्दुओं में से पहला बिन्दु टिबिया के पार्श्विक स्थूलक के ठीक नीचे रखकर पांच सेकेण्ड तक दबाव दें तथा हाथ की चारों उंगलियों को सहारे के लिए पैर के चारों तरफ कसे रखें। इसके बाद इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। फिर इसके बाद दाएं पैर पर भी इसी प्रकार से दबाव देना चाहिए और इसके बाद टिबिया तथा बहिजंघिका के मध्य स्थित शेष पांच बिन्दुओं में से प्रत्येक पर तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए और फिर इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
11. पदकुर्च क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पदकुर्च क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देकर रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर रखकर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद अपने दाएं पैर को थोड़ा मोड़ना चाहिए और फिर अपने बाएं पैर को ऊपर की ओर उठाना चहिए तथा अपने इस पैर को अपने धड़ की ओर लाए। फिर पदकुर्च क्षेत्र के बहि:गुल्फ से अंत:गुल्फ तक फैले तीन बिन्दुओं पर अपने दोनों हाथ के अंगूठे से दबाव देना चाहिए। फिर इसके बाद सहारे के लिए अंगूठे को छोड़कर शेष उंगलियों से पैर के टखने पर दबाव देना चाहिए। इसके बाद नोक से जुड़े अंगूठों से प्रत्येक बिन्दु पर लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। फिर इस प्रकार से दबाव दूसरे पैरों के पदकुर्च क्षेत्र पर भी देने चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
12. पंजे का पश्च क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पंजे के पश्च क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर रखकर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद आपने दाएं पैर को थोड़ा मोड़ना चाहिए और फिर अपने बाएं पैर को ऊपर की ओर उठाकर तथा अपने इस पैर को अपने धड़ की ओर लाएं। फिर अपने दोनों हाथों के अंगूठे पर अंगूठा रखकर पंजे की पहली व दूसरी उंगलियों के जड़ के मध्य स्थान से प्रारंभ कर के चारों बिन्दुओं में से प्रत्येक पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। जिन बिन्दुओं पर दबाव दिया जाता है वे पश्च क्षेत्र पर स्थित होते हैं। फिर इसके बाद चार-चार बिन्दुओं की शेष तीन लाइनों के रूप बिन्दु होती है इन बिन्दुओं पर भी दबाव देना चाहिए। लेकिन इन बिन्दुओं पर दबाव केवल एक बार ही देना चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
13. आंगुलिक क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पंजे के आंगुलिक क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर रखकर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद अपने दाएं पैर को थोड़ा मोड़ना चाहिए और फिर अपने बाएं पैर को ऊपर की ओर उठाना चहिए। इसके बाद अपने इस पैर को अपने धड़ की ओर लाएं। फिर अपने टखने को बाएं हाथ से पकड़कर ऊपर की ओर मोड़े तथा दाहिने हाथ के अंगूठे व तर्जनी उंगली से प्रत्येक उंगली के पास, मध्य व दूर के पर्वो पर स्थित तीनों बिन्दुओं के पाश्र्व क्षेत्र तथा पद तल (पैर के तलुवों का भाग) के सतहों पर दबाव देना चाहिए। इसके बाद प्रत्येक उंगली के दूरस्थ पर्व पर दबाव देना चाहिए और फिर उंगली को ऊपर की ओर खींचना चाहिए। लेकिन इस उपचार को केवल एक बार ही करना चाहिए।
इस प्रकार से यदि प्रतिदिन इन भागों के बिन्दुओं पर दबाव दें तो इससे सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
14. पदतल क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पदतल (पैर के तलुवों का भाग) क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने बाएं घुटने को बाहर की ओर नीचे की तरफ मोड़ कर बैठना चाहिए। इसके बाद इस पैर के पंजे को ऊपर की ओर मोड़ना चाहिए। फिर इस क्षेत्र के चारों बिन्दुओं को जो दूसरी व तीसरी उंगलियों के मध्य स्थान के नीचे स्थित होते हैं पर दबाव दें। फिर दूसरे बिन्दु के ठीक नीचे तथा तीसरे बिन्दु के मेहराब में और चौथा बिन्दु एड़ी के मध्य पर दोनों हाथ के अंगूठे से दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इसके बाद हाथों की चारों उंगलियों को सहारे के लिए पंजो की पाश्र्व तह पर चिपकी रखनी चाहिए। इस प्रकार से दबाव देते समय अंत में अंगूठे पर अंगूठे को चढ़ाकर तीसरे बिन्दु पर लगभग पांच सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए।