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आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा रोगी व्यक्ति को घुटने के बल बैठाकर इलाज करने का तरीका

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा घुटने के बल बैठाकर रोगी व्यक्ति के शरीर के कई भागों का इलाज किया जा सकता है जो इस प्रकार है-

1. रोगी को घुटने के बल बैठाकर गर्दन के बाहरी भाग पर दबाव।

2. रोगी को घुटने के बल बैठाकर गर्दन के पिछले भाग पर दबाव।

3. रोगी को घुटने के बल बैठाकर पार्श्विक ग्रीवा क्षेत्र दबाव।

4. रोगी को घुटने के बल बैठाकर पश्च कपाल-अन्तस्था दबाव।

5. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कनपटी क्षेत्र दबाव।

6. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधों के मध्य के भाग दबाव।

7. रोगी को घुटने के बल बैठाकर ऊपरी स्कंधफलक क्षेत्र दबाव।

8. रोगी को घुटने के बल बैठाकर धड़ का प्रसार दबाव।

9. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधे के जोड़ों को ऊपर तथा नीचे की ओर मोड़ना दबाव।

10. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधे तथा मेरू-रज्जु पर नीचे की ओर थपथपाना दबाव।

1. रोगी को घुटने के बल बैठाकर गर्दन के बाहरी क्षेत्र पर दबाव- रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले उसे दोनों घुटनों के बल झुकाकर बैठाना चाहिए। फिर रोगी के धड़ को सीधे तानकर रखने के लिए कहना चाहिए। इस प्रकार से बैठने से गर्दन तथा स्कंधफलक क्षेत्र शिथिल हो जाते हैं। फिर रोगी का इलाज करने के लिए चिकित्सक को भी घुटनों के बल रोगी व्यक्ति के जरा सा बाईं ओर तथा रोगी व्यक्ति की तरफ झुककर बैठना चाहिए। फिर चिकित्सक को अपने दाहिने अंगूठे को रोगी के बाहरी ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र के बिन्दु पर रखकर दबाव देना चाहिए तथा रोगी के शरीर के करोटियड सायनस तथा करोटिड धमनी का स्पन्दन पर भी यह दबाव देना चाहिए। फिर रोगी के शरीर पर नीचे की ओर धमनी के साथ-साथ हंसली के सम्मुख थायरॉयड ग्रंथि तक जो चार बिन्दुएं होती है उन पर लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से दबाव को दिन में तीन बार दोहराना चाहिए। जब इस प्रकार का दबाव रोगी के शरीर के बाईं तरफ पूरा हो जाए तो इसके बाद रोगी के दाएं भाग के तरफ भी ठीक इसी तरह से दबाव देना चाहिए।

2. रोगी को घुटने के बल बैठाकर पश्च ग्रीवा क्षेत्र दबाव- रोगी व्यक्ति के पश्चग्रीवा (गर्दन का पिछला भाग) क्षेत्र पर दबाव देने के लिए रोगी को घुटने के बल बैठाकर उसके बाद चिकित्सक को रोगी व्यक्ति के पीछे की और खड़े होकर थोड़ा सा झुकते हुए रोगी व्यक्ति के गर्दन के पिछले क्षेत्र के दाएं-बाएं भाग पर अंगूठे तथा उंगलियों से बारी-बारी दबाव देना चाहिए। इस क्षेत्र पर दबाव देने के लिए गर्दन के पीछे की ओर दाएं-बाएं तीन बिन्दु होते हैं। इन बिन्दुओं पर लगभग तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए।

3. रोगी को घुटने के बल बैठाकर पार्श्विक ग्रीवा क्षेत्र पर दबाव- रोगी व्यक्ति के पार्श्विक ग्रीवा क्षेत्र पर दबाव देने के लिए रोगी को घुटनो के बल बैठाकर उसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर पार्श्विक ग्रीवां क्षेत्र के तरफ खड़ा हो जाना चहिए। फिर अपने बाईं हथेली से कोमलता पूर्वक रोगी के ललाट को एक हाथ से सहारा देते हुए उसके पार्श्विक ग्रीवा क्षेत्र पर अपने दाहिने हाथ के फैले हुए अंगूठे व उंगलियों से दाएं-बाएं भाग पर दबाव देना चाहिए। दबाव एक बिन्दु से शुरू कर के गर्दन के संधिस्थल पर स्थित बिन्दु तीन तक धीरे-धीरे बढ़ाते हुए तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए और दबाव को तीन बार दोहराना चाहिए। इस तरह से दबाव देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि अंगूठे व उंगलियों का पड़ने वाला दबाव एक बराबर हो।

4. रोगी को घुटने के बल बैठाकर पश्च कपाल-अन्तस्था दबाव- रोगी व्यक्ति की गर्दन के पिछले हिस्से पर दबाव देने के लिए रोगी को घुटने के बल बैठा कर उसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर खड़ा हो जाना चहिए। फिर चिकित्सक को अपनी बाईं हथेली से रोगी व्यक्ति की बाईं हथेली से थामे रखकर अपने दाएं अंगूठे से मेरू-मज्जा (सिर के पीछे गर्दन के पास का भाग) के मध्य भाग पश्च ग्रीवा कोटर को दबाते है।  रोगी व्यक्ति को सहारा देने के लिए चिकित्सक को अपने दाहिने हाथ की चारों उंगलियों को रोगी व्यक्ति के दाएं पार्श्विक ग्रीवा क्षेत्र पर दबाव देते हुए रखते हैं। इसके बाद अपने दाहिने हाथ के अंगूठे का रुख ऊपर की ओर रोगी के मध्य बिन्दु की ओर रहता है तथा धीरे-धीरे रोगी के इस भाग पर दबाव देते हैं। इस प्रकार का दबाव कम से कम पांच सेकेण्ड के लिए देना चाहिए तथा इस क्रिया को कम से कम तीन बार दोहरना चाहिए और रोगी के शरीर पर दबाव मेरू-मज्जा तक पहुंच रहा है। चिकित्सक पहले दबाव के समय रोगी को अपना सिर आगे की ओर 30 डिग्री के कोण तक झुकाने को कहता है फिर 2, 3, 4 व क्रिया के दौरान वह रोगी को अपने सिर को पीछे झुकाने के लिए कहना चाहिए तथा इसके बाद रोगी के सिर को 30 डिग्री के कोण पर मोड़ना चाहिए।

5. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कनपटी क्षेत्र दबाव- रोगी व्यक्ति के कनपटी के क्षेत्र पर दबाव देने के लिए रोगी को घुटनों के बल बैठा कर उसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर अपने पैरों को फैलाकर झुक कर खड़ा हो जाना चहिए फिर आपने अपने उंगलियों को आपस में सटाकर आगे की ओर रोगी व्यक्ति के कनपटी क्षेत्र के दाएं-बाएं रखते हैं। फिर इसके बाद अपनी कोहनियों को अगल-बगल फैला देते है ताकि उसकी कलाईयां समान कोण पर मुड़कर सीधा दबाव डाल सके। इस प्रकार दबाव रोगी के शरीर पर कम से कम 10 सेकेण्ड लिए देना चाहिए।

6. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधों के मध्य के भाग दबाव- इस क्रिया में दबाव देने के रोगी को घुटने के बल बैठाने के लिए कहते हैं फिर चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर खड़ा होकर अपने दोनों हाथों के अंगूठे व उंगलियों ज्यादा से ज्यादा फैले रहते हैं। चिकित्सक अपनी उंगलियों को रोगी व्यक्ति के स्कंधफलक के ऊपरी क्षेत्र तथा नीचे की ओर मुख वाले अंगूठे को स्कंधफलक के दाएं-बाएं बिन्दुओं पर रखता है फिर अंगूठे से दबाव लगभग तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए। इसके बाद बारी बारी से दाएं-बाएं अंगूठों के द्वारा स्कंधफलक के मध्य के पांच बिन्दुओं की दो कतारों पर दबाव देतें है इस प्रकार का दबाव कम से कम तीन बार देना चाहिए। रोगी को सहारा देने के लिए हाथ की चारों उंगलियों का उपयोग करना चाहिए। रोगी के शरीर पर दबाव अपनी भुजाओं के सहारे देना चाहिए न कि केवल अंगूठे से। जब रोगी के शरीर पर इस तरह से दबाव दे रहे हो तो रोगी के शरीर के दोनों ओर दबाव का सहारा संतुलित होना चाहिए।

7. रोगी को घुटने के बल बैठाकर ऊपरी स्कंधफलक क्षेत्र दबाव- अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार इस प्रकार से रोगी के शरीर पर दबाव देने के लिए रोगी को सबसे पहले घुटनो के बल बैठाते हैं। इसके बाद चिकित्सक को अपनी टांगों को जरा सा फैलाकर रोगी के पीछे की ओर सीधा खड़ा होना चाहिए फिर थोड़ा सा रोगी की तरफ झुकना चाहिए। इसके बाद अपने अंगूठे को दाएं-बाएं रोगी के स्कंधफलकों पर रखना चाहिए। चिकित्सक को अपने हाथों की उंगलियों को रोगी के आगे की ओर रखना चाहिए तथा अंगूठे से समान कोण बनाने चाहिए। इस प्रकार रोगी के वक्ष क्षेत्र (स्तन) पर सहारे के लिए रखते है। इसके बाद दोनों हाथ के अंगूठे से बारी-बारी दबाव डालते हैं इस प्रकार दबाव कम से कम पांच सेकेण्ड के लिए देना चाहिए तथा यह उपचार कम से कम तीन बार प्रत्येक दिन करना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन दबाव देने से कई प्रकार के रोग जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।

8. रोगी को घुटने के बल बैठाकर धड़ का प्रसार दबाव-

         रोगी व्यक्ति के धड़ का प्रसार करते हुए दबाव देने के लिए रोगी को घुटनो के बल बैठाकर उसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर खड़ा हो जाना चहिए। फिर रोगी की कलाइयों को अपने हाथों में पकड़कर उसके सिर को ऊपर उठा देना चाहिए तथा अपने दाहिने पैर के निचले भाग को सहारे के रूप में रोगी के रीढ़ की हड्डी सटा कर रखना चाहिए। इसके बाद रोगी के पंजों को बाहर की तरफ मोड़े रखते है जिससे कि वह रीढ की हड्डी का स्पर्श न करने पाए।       

        इसके बाद रोगी की बाहों को पकड़कर ऊपर की ओर खींचते है जिसके फलस्वरूप रोगी का धड़ पीछे की तरफ मुड़ जाता है। यइ क्रिया कई बार दोहरानी चाहिए इस प्रकार से क्रिया करते समय पहली बार करने के बाद दूसरी बार जब यह क्रिया दोहराना चाहिए तब चिकित्सक को और पीछे की ओर हट कर यह क्रिया को दोहराना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि रोगी दूसरी बार में रोगी जितना भी पीछे की तरफ झुक सकता है, उसे झुकने दिया जाए तथा बाद जब तक कि उसका चेहरा ऊपर की तरफ न हो पाए तब तक झुकने दिया जाए। जब रोगी पूरी तरह से पीछे की तरफ झुक जाए तब चिकित्सक को रोगी का हाथ छोड़ कर उसे पहले की स्थिति में लाना चाहिए।

9. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधे के जोड़ों को ऊपर तथा नीचे की ओर मोड़ना दबाव- सबसे पहले रोगी को घुटने के बल बैठा देना चाहिए इसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर खड़ा हो जाना चाहिए। इसके बाद रोगी को अपने कंधों तथा धड़ को शिथिलता देना चाहिए। फिर चिकित्सक रोगी के कंधे की त्रिकोणिका पेशी को पकड़ कंधों से यथासम्भव ऊपर की उठाता है और एक दम छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार से इस क्रिया को तीन बार दोहराने से रोगी का कंधे अपने प्रकृतिक स्थिति में आ जाती है।

10. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधे तथा मेरू-रज्जु पर नीचे की ओर थपथपाना दबाव-

         सबसे पहले रोगी को घुटनो के बल बैठाना चाहिए। इसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर झुककर खड़ा होना चाहिए। फिर अपने दोनो हाथों की उंगलियों को रोगी के कंधे पर रख कर दबाव देना चाहिए। इसके बाद रोगी की भुजाओं के पृष्ठ भाग पर नीचे की ओर थपथपाना चाहिए।

         इसके बाद चिकित्सक को रोगी के बाईं तरफ खड़ा होकर अपनी दोनों हथेलियों से सहारे के लिए रोगी के बाएं कंधे पर रखता है। फिर वह नीचे की ओर केन्द्रित अपनी दाएं हथेली तथा उंगलियों को ग्रीवा के सातवें कशेरूका के नीचे रख कर तेजी से रोगी के रीढ़ की हड्डी पर अर्थात नीचे की त्रिकास्थि तक दो बार थपथाता है।


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