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आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तर्गत उपचार की स्थितियां

1. मस्तिष्क- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तर्गत मस्तिष्क से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-

पागलपन, सीमित गंजापन, सिर का भारी होना, सिर में दर्द, माइग्रेन, पश्च कपालिया, स्नायुशूल, केशों तथा कपालावरण का कुपोषण।

2. चेहरा- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तर्गत मस्तिष्क से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-

त्रिधारिया स्नायुशूल, दांत का दर्द, दांत का खोखलापन, चेहरे पर लकवा रोग का प्रभाव, त्वचा का खुरदरापन, पेशी पर लकवे का प्रभाव, अस्थाई निकट दृष्टि दोष, दूर दृष्टि दोष, पलकों पर लकवे का प्रभाव, टेढ़ा दिखाई देना, दिखाई न देना, नाक बंद हो जाना तथा सायनस रोग।

3. पाश्र्व ग्रीवा (गर्दन) के क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तगर्त पाश्र्व ग्रीवा (गर्दन के पीछे का भाग) के क्षेत्र से सम्बन्धित रोग जो ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-

घुमरी आना, कान में विभिन्न प्रकार की ध्वनि सुनाई देना, आवाज कम सुनाई देना, धमनी कठिन्य तथा माइग्रेन

4. बाहरी ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र- अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तर्गत बाहरी ग्रीवा क्षेत्र (गर्दन का बाहरी भाग) से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-

दांत के रोग, दांत में दर्द, खून की कमी, चक्कर आना, वंशानुगत पेशीजनक, गर्दन में अकड़न, धमनी काठिन्य, रजोनिवृतिकालीन (मासिकधर्म के बंद होने का समय) समस्याएं, हिचकी, स्वसंचालित असंतुलन, रज्जु  में जलन, नींद न आना तथा हृदय के रोग

5. पश्च कपाल- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तगर्त पश्च कपाल (सिर के पीछे का भाग) से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-

सिर में दर्द, पागलपन, नींद न आना, स्वसंचालित असंतुलन, खड़े रहने पर चक्कर आना, रजोनिवृति मासिकधर्म के बंद होने का समय) की समस्या, सिर में भारीपन महसूस होना तथा नाक से खून निकलना

6. पश्च ग्रीवा क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तगर्त पश्च ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-

सिर में दर्द, माइग्रेन, पश्च कपालिय स्नायुशूल, धमनी का सही से काम न करना तथा अनिद्रा रोग

7. असफलक के ऊपर का क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अर्न्तगत असफलक (हृदय के आस-पास का भाग) के ऊपर का क्षेत्र से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-

1. इस क्षेत्र के बाईं तरफ हृदय के रोग, आमाशय की गड़बड़ी, क्लोम ग्रंथि से सम्बन्धित रोग।

2. इस क्षेत्र के दायीं तरफ आमाशय के विकार, यकृत की समस्याएं, पित्त-पथरी

3. अकड़न, भूख न लगना, हृदय में जलन तथा प्रचण्ड स्नायुशूल।

8. अन्तरसबंधीय क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अर्न्तगत अन्तरसंबन्धीय क्षेत्र से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-

1. इस क्षेत्र के बायीं तरफ की आंतों तथा आमाशय की गड़बड़ियां, हृदय रोग तथा क्लोम ग्रंथि के रोग।

2. इस क्षेत्र के बायीं तरफ पित्त-पथरी का रोग तथा यकृत के रोग

3. श्वसन रोग, अन्त:पार्श्विक स्नायुशूल, भूख की कमी, वक्ष सम्बंधी कशेरूका में मेरू-रज्जु के एक भाग का टेढ़ापन हो जाना तथा ‘वास नली से सम्बन्धित अस्थमा का रोग।

9. अवस्कंधफलकीय क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तर्गत अवस्कंधफलकीय क्षेत्र से संबन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं इस प्रकार हैं-

1. इस क्षेत्र के बायीं ओर आंतों तथा आमाशय की गड़बड़ियां तथा क्लोम ग्रंथि के रोग।

2. इस क्षेत्र के बायीं ओर यकृत के रोग तथा पित्त-पथरी रोग।

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा द्वारा कुछ ऐसे रोग होते है जिनका इलाज नहीं किया जा सकता हैं वे इस प्रकार हैं-

1. शल्य क्रिया (ऑप्रेशन) के द्वारा उत्पन्न तेज बुखार, तेज शारीरिक कमजोरी तथा संक्रमणकारी त्वचा के रोग

2. आंतों की ऐंठन, आंतों में रुकावट, कैंसर, पेट के बाहरी भाग की सूजन, उपान्त्र प्रदाह (जलन), वृक्क और नाभि के निचले हिस्से की जलन, क्लोम ग्रंथि का जलन, श्वेत रक्तता, हृदय, फेफड़ों की सूजन, आमाशय का घाव, ड्यूडनल अल्सर।

3. छुआछूत के रोग।

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करते समय कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए जो इस प्रकार हैं-

1. रोगों का इलाज करते समय आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सक को अपने काम पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

2. उपचार को ईमानदारी तथा सावधानी से करना चाहिए।

3. रोगों का इलाज करते समय चिकित्सा की समय अवधि को ध्यान में रखना चाहिए। रोग का इलाज करते समय रोग के लक्षणों को भी ध्यान में रखना चाहिए। रोग का इलाज स्थिति उम्र के अनुसार 30 मिनट से एक घंटे तक होनी चाहिए।

4. रोगी व्यक्ति को उपचार कराने से पहले मल-मूत्र त्यागकर आपने आपको शारीरिक व मानसिक तौर पर शांत रखना चाहिए। यदि ज्यादा आवश्यकता पड़े तो उपचार को बीच में रोका जा सकता है।

5. रोगों का उपचार खाना खाने के आधा घंटा बाद शुरू करना चाहिए। जब पेट खाली होता है, और न ही भरा होता है।

6. रोगों का उपचार करते समय हाथ को स्वच्छ रखना चाहिए तथा हाथ के नाखून को ठीक प्रकार से काट लेना चाहिए।

7. उपचार करने से पहले रोगी को अपने मन को शांत करना चाहिए तथा मानसिक रूप से मजबूत हो जाना चाहिए।

8. उपचार करने से पहले चिकित्सक को गहरी सांस लेकर अपने आप को संयमित करना चाहिए।

9. चिकित्सक को उपचार की मूल बातों का पालन करना चाहिए।

10. इलाज की मूल स्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए। यदि उपचार के लिए मुद्राएं सावधानीपूर्वक नहीं रखी गई तो दबाव का स्थिर नहीं रह पाएगा और रोगी को इलाज का पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा।

11. उपचार करने के लिए जो बिन्दुओं का चुनाव करते हैं उन्हे बहुत ही सावधानीपूर्वक ढूंढना चाहिए।

12. रोगों का इलाज शुरू करते समय दबाव उचित तीव्रता (तेजी) के साथ देना चाहिए तथा बहुत ज्यादा शक्ति के साथ दबाव नहीं देना चाहिए।

13. किसी रोगी व्यक्ति को जब गर्भावस्था, अन्तकशेरूकीय चक्र के हार्निया आदि कई प्रकार के रोग हो जाते हैं जिसके कारण रोगी व्यक्ति अपने शरीर को ठीक प्रकार से घुमा-फिरा न सक रहा हो तो चिकित्सक को उपचार करते समय बहुत अधिक सावधानी पूर्वक रोगी के स्थिति के अनुरूप अपनी स्थिति बनानी चाहिए तथा नियमित तीव्रता (सामान्य तेजी) से दबाव देना चाहिए।

14. रोगी को उपचार कराते समय धैर्य बनाकर रखना चाहिए क्योंकि रोग को ठीक होने में कुछ समय लग सकता है।

15. रोगों का उपचार करते समय रोगी को अपने खान-पान पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।


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