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विटामिन `के´

 

परिचय-

          विटामिन `के´ शरीर के लिए बहुत जरूरी विटामिन होता है। शरीर में कहीं से भी होने वाले रक्तस्राव को रोकने की इसमें अदभुत क्षमता होती है। इसकी कमी से शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं।

विटामिन `के´ की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग-

  • खून का पतला होना।
  • खून में प्रोथेम्बिक तत्व की कमी होना।
  • रक्तस्राव होना।

विटामिन `के´ युक्त खाद्य पदार्थ-

नोट-

          जिन पौधों में क्लोरोफिल होता है, उसमें विटामिन `के´ अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है।

विटामिन `के´ से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

  • विटामिन `के´ पानी में घुल जाता है।
  • विटामिन `के´ नीबू-संतरा, रसदार फल, हरी सब्जियां, पालक, टमाटर में अधिक पाया जाता है।
  • विटामिन `के´ रक्त के संतुलन तथा प्रवाह को अपने प्रभाव में रखता है।
  • घातक शस्त्रों की चोट से निकलने वाले रक्त को रोकने के लिए इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाता है।
  • रक्तस्राव वाले रोगों में शीघ्र लाभ के लिए हमेशा विटामिन `के´ युक्त इंजेक्शन का ही प्रयोग करना चाहिए टैबलेट का नहीं।
  • विटामिन `के´ नियमित दो मिलीग्राम दिन में 3 बार खिलाने से प्रोथोम्बिन नॉर्मल हो जाता है।
  • विटामिन `के´ की कमी से शरीर का खून पतला हो जाता है।
  • नकसीर विटामिन `के´ कमी से बढ़ती है।
  • विटामिन `के´ चूना यानि कैल्शियम के संयोग से तीव्रता से क्रियाशील होता है।
  • खून का न जमना अथवा देर से जमना जाहिर करता है कि शरीर में विटामिन `के´ की अत्यधिक कमी हो चुकी है।
  • विटामिन `के´ पाचनक्रिया सुधारने के लिए सक्रिय योगदान देता है।
  • नवजात शिशु के शल्यक्रम में सर्वप्रथम विटामिन `के´ का प्रयोग करना पड़ता है।
  • नवजात शिशुओं के पीलिया रोग में विटामिन `के´ का प्रयोग करना हितकर होता है।
  • विटामिन `के´ पीले रंग के कणों में उपलब्ध होता है।
  • वयस्क रोगियों को रुग्णावस्था (रोग की अवस्था में) में विटामिन `के´ कम से कम 10 मिलीग्राम तथा अधिक से अधिक 300 मिलीग्राम प्रतिदिन की एक या अधिक मात्रा देनी चाहिए।
  • यदि विटामिन `के´ इंजेक्शन के रूप में उपलब्ध हो तो प्रतिदिन एक एम.एल ही रुग्णावस्था (रोग की अवस्था में) में देना पर्याप्त है। आवश्यकता पड़ने पर यह मात्रा दोहराई भी जा सकती है।
  • किसी भी प्रकार के अधिक स्राव में विटामिन `के´ नियमपूर्वक प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ यदि कैल्शियम और विटामिन सी प्रयोग किया जाए तो और भी अच्छा लाभ होता है।
  • यदि यकृत रोगग्रस्त हो चुका हो और रक्तस्राव (खून बहने) होने लगे तो विटामिन `के´ का प्रयोग करना चाहिए।
  • प्रसव से पहले विटामिन `के´ का प्रयोग करने से प्रसवकाल में रक्तस्राव कम होता हैं
  • ऑप्रेशन के पूर्व तथा ऑप्रेशन के बाद रक्तस्राव न होने देने अथवा कम होने के लिए विटामिन `के´ का प्रयोग किया जाता है।
  • शरीर में गांठे पड़ जाने पर विटामिन `के´ की आवश्यकता पड़ती है।
  • हाइपोप्रोथोम्बेनेविया रोग में विटामिन `के´ के प्रयोग से आराम मिल जाता है।
  • हेमाटेमेसिस रोग में विटामिन `के´ का प्रयोग लाभ देता है।
  • शीतपित्त तथा क्षय (टी.बी.) रोगों में विटामिन `के´ का प्रयोग लाभ प्रदान करता है।
  • रक्तप्रदर में विटामिन `के´ का प्रयोग करने से लाभ होता है।
  • खून को जमाने में विटामिन `के´ का प्रयोग सर्वोत्तम प्रभाव रखता है।
  • प्रोथोम्बिन की कमी विटामिन `के´ की वजह से होती है।
  • आंतड़ियों के घाव तथा आंतड़ियों की सूजन विटामिन `के´ की कमी से होती है। आंतड़ियों में पित्त का अवशोषण न हो पाने की वजह से भी विटामिन `के´ की शरीर में कमी हो जाती है।


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