परिचय-
लोहा, कस्तूरी, ऐकोनाइट आदि कितने ही पदार्थों में व्यक्ति के शरीर में रोगों को पैदा करने और नष्ट करने के गुण होते हैं। इनको ही औषधि कहा जाता है। छाना हुआ पानी, शराब, दूध की चीनी, बटिका, अनुबटिका आदि कितने ही चीजों में रोगों को हटाने वाली ताकत नहीं है। इन सब चीजों के सहयोग से सिर्फ औषधियां तैयार होती हैं और सेवन भी की जाती हैं इसलिए इन्हें भेषजवह कहते हैं।
औषधि दो रूप में होती है-औषधि या दवा का सार (अर्थात रोग को दूर करने वाली शक्ति) दो तरह से सुरक्षित रहती है- विचूर्ण और अरिष्ट रूप में।
विचूर्ण-
लोहा आदि सख्त चीजें जो आसानी से सेवन नहीं की जा सकती उन्हें दूध की चीनी के साथ खरल में अच्छी तरह से घोटकर चूर्ण बना लिया जाता है। इस तरह बनाए हुए लोहे आदि के चूर्ण को विचूर्ण कहा जाता है।
अरिष्ट-
जड़ी-बूटियों के रस को निचोड़कर शराब के साथ मिला दिया जाता है। इन दोनों को मिलाकर जो पदार्थ बनता है उसे अरिष्ट (टिंचर) कहते है। इस निकाले हुए रस में मूल पदार्थ के सारे गुण मौजूद होते हैं। इसलिए इस अरिष्ट को मदर टिंचर भी कहा जाता है।
क्रम-
मूल अरिष्ट को दूध की चीनी या शराब के साथ अच्छी तरह से मिलाकर घोटने पर वह बारीक भाग में विभाजित हो जाता है। इस तरह जो दवा तैयार होती है उसे क्रम कहा जाता है जैसे अरिष्ट (सोना, पारा, कोयला) आदि के एक भाग को 9 भाग दूध की चीनी के साथ मिलाने पर पहला पहला दाशमिक क्रम (`1x´ या `1m´ विचूर्ण) तैयार होता है, और 1 भाग अरिष्ट को 99 भाग दूध की चीनी के साथ मिलाने पर सौवां क्रम तैयार होता है।
अगर औषधि का दसवां क्रम बताना हो तो औषधि के नाम के आगे `x´ लगाना चाहिए जैसे नक्स-वोमिका `5x´। अगर औषधि का सौंवा क्रम बताना हो तो दवा के नाम के आगे सिर्फ क्रम बता देने वाला अंक ही लिखना चाहिए जैसे नक्स-वोमिका `8´।
क्रम दो तरह का होता है- (1) द्रव क्रम (लिक्यूड एटटेन्यूशन) या अरिष्ट क्रम (डाइल्यूशन) और (2) शुष्क-क्रम (ड्री एटटेन्यूशन) या विचूर्ण (ट्रीटुरेशन या मदर टिंचर)।
औषधि के कम, मध्यम और ऊंचे क्रम-
1x, 2x, 3x, 3, 6, 12, 18 को औषधि का निम्न क्रम कहा जाता है। 100, 200, 500 (D), 100 (1M), 10000 (10M) 5000 (5M) 1000000 (CM) औषधि के ऊंचे क्रम है।
औषधि के 1x से 30 शक्ति को निम्न क्रम में और 30 शक्ति से ऊपर को ऊंचे क्रम में लिखा जाता है।
औषधि की एक बून्द से लाभ-
जो औषधि सबसे ज्यादा बारीक भाग में बांट दी जाती है उसकी शक्ति बढ़ जाती है। आयुर्वेद का सोना घोटकर छोटे से छोटे भाग में बना दिया जाता है। इसलिए आयुर्वेद के हिसाब से सोना एक बहुत ही जबरदस्त रोगों को दूर करने वाली औषधि है। अवधूती मत से तैयार औषधि बहुत ही बारीक होती है। नमक, सोना, चूना, गंधक, कस्तूरी, धतूरा आदि जड़ वाले पदार्थ होम्योपैथी के क्रम पद्धति के अनुसार जब बिल्कुल बारीक भाग में बांट दिए जाते हैं तो उनके अन्दर रोगों को दूर करने के गुण बहुत बढ़ जाते हैं। यही शक्ति रोगी के शरीर में जाते ही अदभुत तरीके से काम करती है। इसलिए एक बून्द होम्योपैथिक औषधि मरते हुए रोगी को भी नया जीवन दे सकती है।
क्रम या घनीभूत बारीक शक्ति-
होम्योपैथिक औषधि को क्रम पद्धति के अनुसार तैयार करने से उसकी रोगों को दूर करने की ताकत बढ़ जाती है। इसलिए होम्योपैथिक चिकित्सा में “क्रम” शब्द के बदले शक्ति (ड्रग पोटेन्सी) शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे नक्स-वोमिका औषधि की छठी शक्ति को नक्सवोमिका का छठा क्रम समझना चाहिए।