परिचय-
किसी भी व्यक्ति को अपने शरीर की समाप्त हुई ऊर्जा की पूर्ति के करने के लिए भोजन खाने की जरूरत पड़ती है। व्यक्ति जो भोजन खाता है वह शरीर में जाकर पचकर रस, खून, भेद, मज्जा आदि में बदल जाते हैं और शरीर को मजबूत करते हैं। स्थान, काल, पात्र, सामाजिक रीति के मनुष्य अलग-अलग प्रकार के भोजन खाते हैं। शरीर अस्वस्थ रहने पर भी पोषण और जीवन-धारण करने के लिए भोजन करना बहुत जरूरी है लेकिन जो व्यक्ति रोगी होता है उसकी पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है, इसलिए बीमार शरीर जरूरत के अनुसार पुष्टिदायक और आसानी से पचनेवाले भोजन की जरूरत होती है। रोगी के भोजन को ही पथ्य कहा जाता है।
रोगी के पथ्य के सम्बंध में वैसे तो कोई खास नियम नहीं है। हर रोग के साधारण उपसर्ग और लक्षणों के अनुसार ही साधारण भोजन की व्यवस्था जरूरी है। हर रोगी को गठन, धातु, रुचि और प्रिय, अप्रिय आदि व्यक्तिगत विशेषताओं के मुताबिक ही रोगी के भोजन का चुनाव करना पड़ता है। रोगी का स्वभाव, अभ्यास, रोग कितना ज्यादा है, रोग की अवस्था, रोग के अनुसार शरीर में कमजोरी, सामाजिक और पारिवारिक रीति-नीति, सर्दी-गर्मी आदि मौसम शीतप्रधान, ग्रीष्म-प्रधान आदि वासस्थान के तारतम्य से इन सब पर भी भोजन का निर्णय करते रहने पर विचार करना पड़ता है। सीधी बात है कि रोगी को किसी भी रोग में जो आसानी से पच जाए और बीमार शरीर में पोषण की कमी न हो तथा रोग भी न बढ़ जाए, ऐसा भोजन चुनकर रोगी को देना पड़ता है। ऐसे भोजन जिनसे रोगी को नफरत हो और जो जरूरी न हो वह रोगी को नहीं देना चाहिए क्योंकि ऐसे भोजन से रोगी के मन में भयानक चोट पहुंचती है और कितनी ही बार अगर जबरदस्ती खिलाया भी जाता है तो रोगी को यह बर्दाश्त नहीं होता और रोगी उसे उल्टी के साथ निकाल देता है।
व्यक्ति के रोगी होने पर उसे भोजन सम्बंधी सावधानी बरतना बहुत जरूरी है नहीं तो अच्छी से अच्छी दवा भी रोगी को ठीक नहीं कर सकती और रोगी जल्दी ही मौत के दरवाजे पर पहुंच जाता है। भोजन के हर पदार्थ में कुछ न कुछ भेषज-गुण मौजूद होते हैं। इसके अलावा भोजन पेश करते समय यह पदार्थ इतने बारीक और सहज ग्राहा्र-रूप में बदल दिये जाते हैं कि रोगी के शरीर में भेषज-गुण प्रकट हो जाते हैं। इसलिए अगर सही औषधि का प्रयोग करने पर भी अगर रोगी को विपरीत भोजन दिया जाता है तो इससे रोगी को लाभ की बजाय नुकसान पहुंचता है। बहुत से रोगियों को तो बिना औषधि के सिर्फ सही तरह का भोजन देकर ही ठीक किया जाता है।
रोगी का भोजन रोगी को बिना दिखाए बहुत ही अच्छा और साफ-सफाई से तैयार करना चाहिए। बहुत से लोग होते हैं जो बार-बार समय की बर्बादी के मारे एक ही बार भोजन तैयार कर देते हैं लेकिन यह रोगी के लिए बिल्कुल सही नहीं है। रोगी का भोजन उसी समय तैयार करना चाहिए जब रोगी को खिलाना हो।
रोगी को एक ही बार बहुत सारा भोजन न कराकर कई बार थोड़ा-थोड़ा सा खिलाना चाहिए जो रोगी बहुत ज्यादा कमजोर होते हैं उन्हें बैठाकर नहीं बल्कि लेटे-लेटे ही चम्मच, कटोरी आदि से खिलाना चाहिए। भोजन कराने के बाद रोगी को अच्छी तरह से कुल्ला आदि कराकर मुंह साफ कर देना चाहिए ताकि रोगी के मुंह में भोजन का बचा हुआ पदार्थ सड़ न जाए।
साधारण भोजन तैयार करने की प्रणाली-
साबूदाने को उबालने से पहले अच्छी तरह बीन लेना चाहिए। एक जवान व्यक्ति के लिए एक बार के भोजन के लिए पहले 2 चाय के चम्मच बराबर साबूदाना लेकर अच्छी तरह साफ पानी में धो लेने चाहिए और फिर कुछ देर तक पानी में भिगोकर रखना चाहिए। इसके बाद लगभग 1 लीटर पानी में साबुदाने को डालकर हल्की आग पर रख दें। इसके बाद पकने पर जब पानी आधा लीटर के लगभग रह जाए तो इसे आग से उतारकर कपड़े से छान लेना चाहिए। इसके बाद जब यह हल्का गर्म रह जाए तो चिकित्सक से पूछकर उसमें थोड़ी सी पिसी हुई मिश्री या उसके साथ नींबू का रस और नमक मिलाकर रोगी को सेवन कराना चाहिए। अगर चिकित्सक बोलता है तो उसमें थोड़ा सा दूध भी मिलाया जा सकता है। हर तरह के नये या पुराने बुखार में, एसीडिटी में और ज्यादातर हर तरह के रोग में यह साबूदाना सबसे अच्छा भोजन रहता है।
बार्ली-
सबसे पहले एक साफ सी कटोरी 2 चाय के चम्मच के बराबर बार्ली लेकर थोड़े से पानी में अच्छी तरह मिला लेना चाहिए। इसके बाद एक साफ बर्तन में लगभग 1 लीटर पानी लेकर उसमें बार्ली को मिलाकर लगभग 10 मिनट के लिए आग पर उबलने के लिए रख दें। फिर इस बार्ली मिले पानी को आग पर से उतारकर अच्छी तरह से छानने के बाद चिकित्सक के कहे अनुसार इसमें नमक, नींबू, मिश्री या दूध के साथ रोगी को खिलाना चाहिए। हैजा, आमाशय के रोग, दस्त, पेट की गैस आदि रोगों में बार्ली बहुत लाभकारी रहती है।
जानकारी-
पहले के लोगों की बार्ली के बारे में यह सोच थी कि बार्ली को जितना ज्यादा पानी में उबाला जाए यह उतना ही फायदा करती है। लेकिन आज के वैज्ञानिकों की खोज में यह सिद्ध हुआ है कि बार्ली को 5-10 मिनटों से ज्यादा उबालने पर उसका पोषक तत्व और विटामिन बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं।
अरारोट या शटी का शोरबा-
अरारोट या शटी के शोरबे को ठीक बार्ली की ही तरह तैयार किया जाता है। यह शोरबा पेट में गैस, दस्त, हैजा, आमाशय के रोग आदि में बार्ली के बदले इस्तेमाल किया जा सकता है।
पर्लबाली-
पर्लबाली के दानों को अच्छी तरह से साफ करके चाय के चम्मच के बराबर 4 चम्मच पर्लबाली को एक साफ बर्तन में डालकर बहुत अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। इसके बाद लगभग 1 लीटर पानी में इस पर्लबाली को डालकर हल्की आग पर उबालना चाहिए। इसके पकने पर जब आधा लीटर के लगभग पानी रह जाए तब इसे उतारकर छान लेना चाहिए। इस पर्लबाली के पानी को चिकित्सक के कहे अनुसार नींबू, मिश्री, नमक या दूध के साथ रोगी को देना चाहिए।
दाल का पानी-
दाल का पानी तैयार करने के लिए मूंग, मसूर आदि दाल को अच्छी तरह से पानी से धो लेना चाहिए और एक साफ कपड़े में ढीली पोटली बांधकर 16 से 20 गुना पानी में काफी देर तक आग पर रखकर उबालकर छान लेना चाहिए। इसके बाद इसमें 1 हल्दी का टुकड़ा, थोड़ा सा नमक और 1-2 गोलमिर्च डालनी चाहिए। इस दाल के पानी को हल्का सा गर्म रहने पर रोगी को खाने के लिए देना चाहिए। किसी भी तरह के नए या पुराने रोग के बाद रोगी को कमजोरी आने में, भोजन को खाने का मन न करने आदि में यह दाल का पानी लाभकारी रहता है।
सूजी-
एक साफ कड़ाही में सूजी को डालकर उसमें अपने हिसाब से पानी डालकर उबाल लेना चाहिए। इसके बाद उबलते समय इसमें चीनी या पिसी हुई मिश्री डाल देनी चाहिए। इसके बाद रोगी को यह सूजी खिला सकते हैं। रोगी के लिए तैयार की जाने वाली सूजी को तेज आग पर ही भूनना चाहिए और जब तक चिकित्सक न बोले इसमें दूध भी नहीं मिलाना चाहिए।
सूजी की रोटी-
सूजी को साफ पानी में भिगोकर उसकी लेई बनाकर पानी में डालकर थोड़ी देर तक तेज आग पर उबालना चाहिए। इसके बाद इसे आग पर से उतारकर छोटी-छोटी सी रोटी बनाकर गर्म पानी में डूबा लेने से सूजी की रोटी तैयार हो जाती है और रोगी को यह रोटी खिलाई जा सकती है।
चोकर की रोटी-
चोकर को पानी में डालकर काफी देर के लिए भिगोंकर रख लेना चाहिए। इसके बाद इसके नर्म होने पर इसे बेलकर रोटी बना ली जाती है। इसके बाद इस रोटी को तवे पर हल्की आग मे सेककर रोटी तैयार हो जाती है। चोकर की इस रोटी का सेवन करने से रोगी को होने वाला पुराना कब्ज, पुराना बुखार और बार-बार पेशाब आने में बहुत लाभ करती है।
पोर का भात-
सबसे पहले पुराने बारीक चावल को अच्छी तरह से धोकर साफ कपड़े में बांधकर एक हाण्डी में पानी डालकर चावल को अच्छी तरह से उबाल लें।
मांस का सूप-
सबसे पहले मांस को अच्छी तरह से कुचलकर 5 से 10 गुना पानी में डालकर हाण्डी में डालकर हांडी को अच्छी तरह से बन्द करके आग पर उबाले लें। इसके बाद एक साफ कपड़े में हल्दी, गोल मिर्च के दाने और थोड़ा सा धनियां, थोड़ी सी अदरक और थोड़ा सा नमक डालकर मांस मिले हुए पानी में उबालना पड़ता है। इस सिद्ध किये हुए मांस से हडि्डयों को निकालकर 1-3 परत साफ कपड़े में छानकर और कसकर रस निचोड़ लेने से ही मांस का जूस तैयार होता है।
अंडा दूध-
एक ताजे अंडे को साफ पानी में धोकर किसी साफ बर्तन में तोड़ लेना चाहिए। इसके बाद 1 साफ चम्मच से या साफ कियह हुए हाथ से अच्छी तरह हिलाकर उस अंडे में थोड़ी सी चीनी अच्छी तरह मिला लेनी चाहिए। इसके बाद इसमें अन्दाजे से गर्म दूध मिलाने से अंडा दूध तैयार होता है। यह अंडा दूध जल्दी पचनेवाला और पौष्टिक भोजन है। यह अंडा दूध टी.बी रोग में, बेरी-बेरी रोग में, टाइफायड, न्युमोनिया जैसे रोगों में बहुत ज्यादा लाभकारी रहता है।
अंडे की सफेदी मिला हुआ पानी-
एक अंण्डे को अच्छी तरह से धोकर तोड़ लें। फिर उसके अन्दर का सफेद भाग कटोरी में मिला लेना चाहिए। इसके बाद उसमें अपने अन्दाजे से पानी मिलाकर अच्छी तरह से छान लेना चाहिए। पुराने दस्त में, आमाशय में खराबी और टी.बी के रोगियों के लिए यह बहुत ही अच्छा भोजन रहता है।
मिश्री का पानी-
किसी साफ बर्तन में अपने अन्दाजे से पानी डालकर उसके अन्दर मिश्री मिला लें। इसके बाद इस मिश्री मिले हुए पानी को आग पर रखकर उबालने से मिश्री का पानी तैयार हो जाता है और यह रोगी को पिलाया जा सकता है।
ग्लकोज वाटर (ग्लकोज का पानी)-
एक साफ से बर्तन में पानी डालकर गर्म कर लें। फिर इस पानी में चिकित्सक के कहे अनुसार चाय के 2-3 चम्मच की मात्रा के बराबर मिलाकर ग्लूकोज का पानी तैयार करके रोगी को पिला दें।
शोरबा या रस-
झींगा, परवल, कच्चा केला, बैंगन, थोड़ा सा अदरक का रस, हल्दी और नमक को पानी में मिलाकर उबालने से शोरबा या गर्म रस तैयार हो जाता है। यह शोरबा रोगी के लिए बहुत ही लाभकारी रहता है।
जव का मांड-
जव के चावल को अच्छी तरह से बीनकर और धोकर 20 से 25 गुने पानी में मिलाकर आग पर रखकर उबाल लें। चावल के इस पानी को उबलने के बाद छान लेने से इसका मांड तैयार हो जाता है।
चीड़े का मांड-
चीड़े को अच्छी तरह से धोकर और साफ करके किसी कपड़े में ढीला सा ही बांधने के बाद किसी हांड़ी में पानी डालकर बंधे हुए चीड़े को उसमें मिलाकर अच्छी तरह उबाल लेना चाहिए। इसके बाद इस चीड़े को पानी में ही अच्छी तरह से मसलकर छान लेना चाहिए। इसके बाद इसमें नींबू, नमक, चीनी या मिश्री मिलाकर रोगी को भोजन के रूप में सेवन कराया जा सकता है।
धान के लावा का मांड-
साफ धान का मांड चीड़े की मांड की ही तरह तैयार किया जाता है। बस धान के मांड को तैयार करने से पहले धोया नहीं जाता बल्कि चीड़े के मांड को तैयार करने से पहले अच्छी तरह धोया जाता है।
छाने का पानी-
किसी साफ बर्तन में दूध डालकर अच्छी तरह से उबाल लेना चाहिए। इसके बाद दूसरे किसी बर्तन में फिटकरी का पानी बना लें। फिटकरी के पानी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में उबलते हुए दूध में डालते रहें। फिटकरी का पानी डालते-डालते जब दूध फटकर पानी अलग होना शुरू हो जाए तो पानी को मिलाना बन्द कर दें क्योंकि अगर दूध में फिटकरी का पानी ज्यादा गिर जाता है तो उसका स्वाद खराब हो जाता है। इसके बाद किसी साफ बर्तन के मुंह पर कपड़े को बांधकर इस दूध को छान लेना चाहिए और चिकित्सक के कहे अनुसार इस दूध में नींबू का रस या मिश्री मिलाकर रोगी को सेवन करा देना चाहिए। दूसरी बार जब भी छाने का पानी तैयार करना हो तब इस दूध में फिटकरी का पानी या नींबू के रस के बदले पहले का बना हुआ छाने का पानी डालकर ही दुबारा छाने का पानी तैयार किया जाता है। छाने का पानी एक ही साथ ज्यादा मात्रा में बनाकर रखना सही नहीं है क्योंकि कुछ देर के बाद वो छाने का पानी खट्टा हो जाता है। यह छाने का पानी टाइफायड, अविराम ज्वर, पुराना मलेरिया, दस्त और आंतों में होने वाली नई या पुरानी परेशानियों में लाभ करता है।