परिचय-
होम्योपैथी चिकित्सा के बारे में एक महान चिकित्सक ने कहा था कि अगर होम्योपैथी की विद्या को गुप्त रखा जाता तो इसके द्वारा होने वाले चमत्कारों को देखकर ही पूरी दुनिया की सारी सरकारें इस विद्या को जानने के लिए कुछ भी कर डालती। महात्मा हैनिमैन जी ने इस विद्या को गुप्त न रखकर संसार के कल्याण के लिए इस विद्या के सारे राज सबके सामने खोलकर रख दिए। उनके मुताबिक कोई भी विद्या अगर सत्य ज्ञान है तो वह गुप्त नहीं रह सकती। गुप्त सिर्फ नकली विद्या को ही रखा जा सकता है। आज 100 से ज्यादा सालों से होम्योपैथी विद्या पूरे देश-विदेश में फैलती जा रही है और दूसरी चिकित्साओं के द्वारा इलाज करवाने वाले भी जब हर तरफ से इलाज करवाकर निराश हो जाते हैं तो इसी की शरण में आते हैं। महात्मा हैनिमैन जी खुद ही पहले एलोपैथिक चिकित्सा करते थे जब उनके खुद के रोग किसी चिकित्सा-पद्धति के द्वारा ठीक नहीं हुए तो वह अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर एलोपैथ से होम्योपैथ की तरफ आ गए।
होम्योपैथी को चिकित्सा-शास्त्र में चमत्कार माना जाता है। वैसे तो एलोपैथी ने भी अपने क्षेत्र में बहुत उन्नति की है, सर्जरी में भी बहुत अच्छे काम किए है लेकिन जहां तक दूसरे रोगों का सम्बंध है इसके द्वारा चिकित्सा करवाने पर हर मरीज यही कहता है कि इससे पहला रोग तो शान्त हो गया है लेकिन कोई दूसरा रोग पैदा हो गया है जैसे किसी मरीज को नींद न आने का रोग था तो नींद आने के लिए उसने गोली खाई, उसे नींद तो आ गई लेकिन दूसरे दिन उसे कब्ज का रोग हो गया। जुकाम की गोली खाई तो जुकाम ठीक होकर सिर में दर्द चालू हो गया। लेकिन होम्योपैथिक चिकित्सा में ऐसा कुछ नहीं है उसकी औषधि से सिर्फ रोग ठीक होता है कोई दूसरा रोग उभरकर नहीं आता। होम्योपैथी से अगर किसी तरह का लाभ नहीं होता तो किसी तरह का नुकसान भी नहीं होता।
जिस तरह लोहे को आग में गर्म करके उसके ऊपर पानी डाला जाता है तो वह एकदम फुर्र से उड़ जाता है लेकिन उस पर ईंट रख दी जाए तो ईंट के गर्म होने के सिवाय कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी। इसी तरह जब किसी व्यक्ति को कोई रोग घेर लेता है तो वह व्यक्ति उस औषधि के लिए `संवेदनशील´ हो जाता है। अगर औषधि उसके लक्षणों वाली होती है तो उस पर अच्छा असर करती है लेकिन अगर उसके लक्षणों वाली न हुई तो उसका रोगी पर कोई असर नहीं होता।