JK healthworld logo icon with JK letters and red border

indianayurved.com

Makes You Healthy

Free for everyone — complete solutions and detailed information for all health-related issues are available

रोगी और औषधि की प्रकृति क्या है?

परिचय-

  • जो भी व्यक्ति होम्योपैथिक चिकित्सा अपनाना चाहता है उसे सबसे पहले रोगी की प्रकृति और औषधि की प्रकृति को जानना बहुत जरूरी है। पहले हम रोगी व्यक्ति के बारे में जान लेते हैं कि वह किस प्रकृति का है। कोई भी व्यक्ति दोनों में से किसी एक प्रकृति का हो सकता है या तो शीत प्रकृति (कोल्ड) या ऊष्ण (गर्म) प्रकृति (होट)।
  • शीत (ठण्डा) प्रकृति- जो भी व्यक्ति शीत प्रकृति का होता है उस व्यक्ति को ठंड बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती। ऐसे व्यक्ति घर में खिड़की, दरवाजे बंद करके रहते हैं, अधिक कपड़े पहनकर रहते हैं आदि।
  • ऊष्ण (गर्म) प्रकृति- गर्म प्रकृति के व्यक्ति को जरा सी भी गर्मी बढ़ते ही परेशानी होने लगती है। ऐसे व्यक्ति कपड़े बहुत हल्के और कम से कम ही पहनते हैं, घर में सारे दरवाजे-खिड़कियां खोलकर या बाहर हवा में बैठना पसन्द करते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार-

          आयुर्वेद के अनुसार कफ तथा वात प्रकृति के व्यक्तियों को शीत प्रकृति (कोल्डद्ध का कहा गया है और पित्त प्रकृति के व्यक्ति को ऊष्ण (गर्म) प्रकृति का कहा जाता है।

          जिस तरह व्यक्ति शीत प्रकृति तथा ऊष्ण (गर्म) प्रकृति के होता है उसी तरह औषधियां भी शीत प्रकृति तथा ऊष्ण (गर्म) प्रकृति की होती है जैसे नक्स-वोमिका, फॉस्फोरस, इग्नेशिया, ऐसिड फास आदि शीत प्रकृति की औषधियां कहलाती है और पल्सेटिला, फ्लोरिक ऐसिड, लैकेसिस, पिकरिक ऐसिड आदि ऊष्ण (गर्म) प्रकृति की औषधियां कहलाती है।

जानकारी-

           आयुर्वेद और यूनानियों के अनुसार शीत प्रकृति के रोगी को हमेशा गर्म दवाएं देनी चाहिए और ऊष्ण प्रकृति के रोगी को ठण्डी दवाएं देनी चाहिए। उनके अनुसार अगर शीत प्रकृति के रोगी को उसी प्रकृति की दवाएं दी जाएगी तो इससे रोगी का रोग कम होने की बजाय बढ़ जाएगा लेकिन रोगी की प्रकृति के विपरीत दवाएं दी जाए तो वह दवा बहुत जल्दी असर करती है जैसे शीत प्रकृति के रोगी को गर्म दवा देने से वह दवा ठंड को मार देती है। लेकिन होम्योपैथिक के जन्मदाता हैनीमैन ने इससे कुछ अलग ही कहा है उनके अनुसार अगर किसी व्यक्ति को सर्दी लगती है तो उस व्यक्ति को ठण्डे पानी में नहा लेना चाहिए। इसी तरह अगर किसी व्यक्ति का हाथ आदि जल जाए तो उस हाथ को आग पर सेंकने से आराम मिल जाता है। सर्दी को गर्मी से भी दूर किया जा सकता है और सर्दी से भी दूर किया जा सकता है। अगर सर्दी को गर्मी से दूर किया जाएगा तो उसका असर थोड़ी देर तक ही रहेगा अर्थात अगर सिंकाई की जाए तो सर्दी दूर भाग जाएगी, अगर सिंकाई न की जाए तो थोड़ी देर के बाद फिर से सर्दी लगने लगेगी। अगर ठंड को ठंड से, हल्की ठंड को ज्यादा ठंड से दूर किया जाएगा तो फिर साधन के हट जाने पर भी ठंड नहीं सताती, क्योंकि यह अन्दर का, प्राण शक्ति का या जीवनी शक्ति का उपचार था। इस सिद्धान्त के क्रियात्मक पक्ष को सिद्धान्त का रूप देते हुए उन्होंने चिकित्सा-शास्त्र के जिस सिद्धांत का प्रतिपादन किया उसे समसिद्धान्त (सितिलिया सिमिलिब्यूस) कहा जाता है। इस सिद्धान्त को हैनीमैन ने न सिर्फ विचारों में ही प्रकट किया है बल्कि उन्होंने खुद भी इसका अनुभव किया है। इसलिए होम्योपैथिक चिकित्सा के लिए रोगी और औषधि की प्रकृति जानना बहुत जरूरी है।

          होम्योपैथी का कहना यह है कि अगर रोगी तथा औषधि के सारे लक्षण एक जैसे हो लेकिन रोगी तथा औषधि की ठंडी या गर्म प्रकृति अलग-अलग है तो वह औषधि उस समय रोगी को भले ही ठीक कर दें लेकिन वह रोगी को पूरी तरह से स्वस्थ नहीं कर सकती। वह औषधि पूरी तरह लाभ तभी कर सकती है जब दूसरे लक्षणों के एक जैसे होते हुए उन दोनों के लक्षण भी एक ही समान होंगे।


Copyright All Right Reserved 2025, indianayurved